जी क्या फरमाया आपने? ? ?

जी क्या फरमाया आपने? ? ?


अरे, इतनी देर से गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहा हूँ और तुम हो कि जी, जी लगाए हुए होबहरे हो क्या?

शायद आप सच ही फरमाते हैंइस युग में बढ़ते हुए शोरगुल और प्रदूषण ने हमें सच ही जीवन की रसमय माधुरी के प्रति अँधा और बहरा बना दिया हैकोयल की कूक और पपीहे का सुरीला गीत, डिस्को के उत्तेजनात्मक शोर में खो गए हैहिंसा और सेक्स के विद्रूप प्रस्तुतीकरण ने नैसर्गिक लालित्य को लील लिया है


आम बोलचाल की भाषा में ऐसी अभद्रता और अशलीलता का समावेश हो गया है कि लगता ही नहीं कि हमें एक सशक्त सांस्कृतिक धरोहर की विरासत प्राप्त हुयी थी। हमारे लखनऊ शहर की गंगा जमुनी तहज़ीब के बारे में यह मशहूर था कि यहाँ दुश्मन को गाली भीआपकह कर दी जाती है ( शायद यह सोच कर कि ज़ोर का झटका धीरे से लगे)। सब्जी बेचने वाले कुंजड़े भी गायकी के अंदाज़ में हांक लगाते थेलैला की उंगली हैं, मजनू की पसली , ले लो जी ले लो ये लखनऊ की ककड़ी’।

लखनऊ ही क्यों , पूरा अवध प्रदेश ही जुबान की नफासत और नज़ाकत के लिए मशहूर थापर अब तोतू तड़ाकका माहौल है, भौंडे प्रदर्शन का ज़माना है।


आजकल अंग्रेजी और हिन्दी की जो मिली जुली खिचड़ी बोली जाती है उसमें भी ‘शिट ’ औरबास्टर्ड’ , इन दो शब्दों का प्रयोग सर्वाधिक होता हैये शब्द जैसे हमारे युवा वर्ग और बच्चों की जुबान से चिपक गए हैंएक बार मैंने अपनी कक्षा की १६-१७ वर्षीय छात्राओं से जब पूछा कि क्या वे अपने समवयस्क कोआपकह कर संबोधित करती हैं, तो एक छात्रा ने उत्तर दिया कि जब वो किसी से नाराज़ होती हैं तब उसेआपकह कर बुलाती हैंदूसरी ने फरमाया कि 'तुम और तूशब्दों से आत्मीयता का आभास होता है औरआपसे एक विशिष्ठ दूरी काहाय री हमारी आधुनिक सभ्यता

जब मैंने उनसे ‘शिट' और 'बास्टर्डशब्द के मायने पूछे तो वे शरमा गयीं। उनका कहना था कि ये आजकल की भाषा के ‘कामन वर्ड्सहैं और वो इन्हें आदतन इस्तेमाल करती हैंएक और छात्रा ने कहा कि जब भी वह शुद्ध और मधुर भाषा का प्रयोग करती है तो सारी लडकियां उसका मज़ाक उड़ाती हैं

इसीलिये बातचीत या गुफ्तगू करने के बजाये वेगप्पें ठोंकनापसंद करती हैं( जैसे किसी के दिल में कीलें ठोंक रही हों)। मुहब्बत के ख़ूबसूरत एहसास कोइश्क कमीनाकहने का फैशन हो गया हैअश्लील एवं हिंसात्मक शब्दों का प्रयोग करते रहने से हमारे व्यवहार में भी एक अजीब सी आक्रामकता गयी हैतभी तोगजिनीजैसी विद्रूप हिंसा से भरी फिल्में लोकप्रिय हो रही हैं


कुछ वर्ष पूर्व जब मैं पहली बार मेरठ गयी तो वहाँ की जाटवी बोली से घबरा गयीसभी जैसे बात करके पत्थर मार रहें हों। ‘ तुझे किधर जाना है’, ‘लेना है तो ले वरना आगे बढ़’, जैसे ग्राहक होकर कोई भिखारी हो

पर अब तो यह हाल सभी जगह हैभाषा का माधुर्य ख़त्म हो चुका है और हमारे स्वभाव से विनम्रता लुप्त होती जा रही हैअगर आप किसी चौराहे पर लाल बत्ती होने पर अपना वाहन रोक दें और वहाँ यातायात पुलिस हो तो पीछे वाले आपको कोसने लगेंगे और हार्न पर हार्न बजा कर आपको ही मुजरिम करार कर देंगें


अभी हाल ही में लन्दन के किसी स्कूल के - वर्षीय बच्चों ने अपनी उत्तर पुस्तिका में ऐसी गालियाँ लिखीं कि उनकी शिक्षिका दंग रह गयींएक अध्ययन के दौरान यही हाल मुम्बई के स्कूली बच्चों के बीच पाया गयातथाकथित उच्च वर्गीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी माँ बहन की गाली बिना किसी हिचकिचाहट के देते हैं और अपने माता पिता के समक्ष भी अनुचित शब्दों का बेझिझक प्रयोग करने में नहीं डरतेसमाज शास्त्रियों के लिए यह अभद्र व्यवहार चिंता एवं बहस का विषय बन गया है


पर बच्चों को दोष देने से क्या फायदाइसके लिए कहीं कहीं हम और आप - अभिवावक और शिक्षक - ही दोषी हैंबच्चे जन्म से ही कटु शब्द और दुर्व्यवहार सीख कर नहीं आतेयदि परिवार के सदस्य आपस में विनम्रता से पेश आयें तो बच्चे भी वही सीखेंगें विनम्र निवेदन के बावजूद चलचित्र और नाटक के मध्य मोबाइल फोनों का लगातार बजना शायद आपने भी झेला होगाया फिर मध्य रात्रि में रेलगाडी के अन्दर सहयात्रियों का आपस में बात करना कभी आपको भी खला होगाजब हम इस प्रकार के असंयित व्यवहार का उदाहरण अपने बच्चों के सामने रखेंगें तो उनसे क्या उम्मीद करी जा सकती है? यदि उन्हें टी.वी. और इन्टरनेट के अश्लील और हिंसात्मक कार्यक्रमों से दूर रखा जाय और उनसे शालीनता से पेश आया जाय तो उनके जीवन और शब्दकोष में भी रसमय लालित्य का संचार हो सकता हैहाल ही में आरुषि मर्डर केस के वीभत्स दूरदर्शन प्रसारण ने बाल दर्शकों को मनोवैज्ञानिक रूप सेआतंकित कर दिया थाहम लोग अक्सर बिना सोचे समझेबेफकूफ कहीं के’, ‘पागल हो क्या’, ‘अंधे हो, दिखाईनहीं देता?’, ‘गधे कहीं के’, शब्दों का प्रहार करते रहेंगें तो बाल मन पर बुरा प्रभाव तो पड़ेगा ही।


हमारी बोलचाल की भाषा अगर एक बार फिर से तहज़ीब और मिठास से भर जाए तो जीवन की अनेक कटुताओं और विद्रूपताओं में कमी ज़रूर आयेगीतो आइये

दुनिया भर का ज़हर पिया है हमने, तुमने और सभी ने

जीवन की कटुता धुल जाए, ऐसी मीठी बात करें।’



शोभा शुक्ला

एडिटर

सिटिज़न न्यूज़ सर्विस