प्रथम विश्व निमोनिया दिवस, २ नवम्बर २००९: निमोनिया जनित मृत्यु दर को घटाने के लिए प्रतिबद्धता जरूरी

प्रथम विश्व निमोनिया दिवस, नवम्बर २००९
निमोनिया जनित मृत्यु दर को घटाने के लिए प्रतिबद्धता जरूरी

निमोनिया से २० लाख बच्चों (५ साल से कम उम्र) की मौत प्रति वर्ष होती है। जबकि निमोनिया का इलाज सस्ता एवं हर जगह उपलब्ध है - न तो निमोनिया के लिए वैक्सीन शोध चाहिए, न नई दवाएं, न नई जांचे, क्योंकि प्रभावकारी इलाज सस्ता है और उपलब्ध भी। इसके बावजूद भी २० लाख बच्चों की मौत प्रति वर्ष निमोनिया से होती है।


"निमोनिया होने पर फेफड़ों में हवा की थैलियों में संक्रमण या बलगम भर जाता है। गम्भीर निमोनिया घातक भी हो सकती है" कहना है
प्रोफ़ेसर (डॉ) रमा कान्त का, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार (२००५) प्राप्त चिकित्सक हैं और लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय में सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।
"निमोनिया के लक्षण हैं: सामान्य से अधिक तेज़ सांस या सांस लेने में परेशानी, सांस लेते या खांसते समय छाती में दर्द, खांसी के साथ पीले, हरे या जंग के रंग का बलगम, बुखार, कंपकंपी या ठंड लगना, पसीना आना, होंठ या नाखून नीले होना आदि" कहना है डॉ रमा कान्त का।
निमोनिया की जांच - "स्पूटम कल्चर" - अधिकांश स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध होती है। "इसके बावजूद भी निमोनिया से हर १५ सेकंड में एक बच्चा मर जाता है, जो बेहद खेद की बात है" कहना है प्रोफ़ेसर डॉ० रमा कान्त का।

"आख़िर निमोनिया से बच्चे क्यों मर रहे हैं" यही सवाल जन-स्वास्थ्य पर कार्यरत संस्थाओं को आतंकित करता रहा है जिसके कारणवश इस वर्ष २ नवम्बर २००९ को सर्वप्रथम विश्व निमोनिया दिवस मनाया जा रहा है। तपेदिक (टी.बी.) एवं अन्य फेफड़े के उन्मूलन के लिए समर्पित अंतर्राष्ट्रीय संस्था (इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्टटुबेर्कुलोसिस एंड लंग डिसीस - "द यूनियन") भी निमोनिया की रोकधाम एवं उन्मूलन के लिए समर्पित है।

यूनियन के एक शोध में पाया गया कि ६८ ऐसे देशों में हुआ जहाँ निमोनिया का मृत्यु दर अधिक है, सिर्फ़ ३२ प्रतिशत ऐसे बच्चों को ही उचित दवा मिल पाती है जिनको निमोनिया होने की सम्भावना होती है। ६८ प्रतिशत बच्चे जिन्हें निमोनिया होनी की शंका होती है, निमोनिया के उपचार की दवा से वंचित रहते हैं। यह अत्यन्त दुःखदाई बात है क्योंकि निमोनिया का उपचार सस्ता है और स्वास्थ्य केन्द्रों में उपलब्ध भी।

यदि विश्व को सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (मिलिनिम डेवेलपमेंट गोल) हासिल करना है कि २०१५ तक बच्चों में मृत्यु दर ५० प्रतिशत कम हो सके, तो निमोनिया नियंत्रण एवं उन्मूलन के लिए कार्यक्रमों को प्रभावकारी ढंग से लागू करना अनिवार्य है।