गाँधी से शर्मीला अभियान:

२४-२६ फरवरी २०१० के दौरान तीन दिवसीय गाँधी से शर्मीला अभियान से सैंकड़ों लोग जगह-जगह जुड़े हुए हैं. इम्फाल, मणिपुर में देश भर से विभिन्न सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हुए सामाजिक कार्यकर्ता इकठ्ठे हुए हैं और तीन दिवसीय उपवास के माध्यम से (२४-२६ फरवरी २०१०) इस अभियान को सशक्त कर रहे हैं. इस "गाँधी से शर्मीला अभियान" को संयुक्त रूप से आयोजित किया है: अपुन्बा शर्मीला कांबा लूप, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम्), आशा परिवार, इंसाफ, जस्ट पीस फाउनडेशन, ह्यूमन राईटस अलर्ट और रीचआउट ने.

नवम्बर २००९ में कवयित्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मीला ने अपने उपवास के दस साल पूरे कर लिए हैं. इरोम की मांग है कि आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट (ए.ऍफ़.एस.पी.ए) को हटाया जाए. इरोम ने अपना उपवास दस साल पहले शुरू किया जब मणिपुर के मालोम में भारतीय सेना ने दस निर्दोष लोगों को मार दिया था. पुलिस ने इरोम को ६ नवम्बर २००० को गिरफ्तार कर लिया और भारतीय पेनल कोड सेक्शन ३०९ के तहत आत्महत्या करना का आरोप लगाया. इरोम का स्वास्थ्य दस साल से अधिक के उपवास से निरंतर गिरता गया है. इन दस सालों से अधिक समय में, इरोम ने एक बूँद पानी भी नहीं ग्रहण की है, और जबरदस्ती नाक के रास्ते से उनको ट्यूब द्वारा पोषण दिया जाता है.

ये कानून जम्मू एवं कश्मीर में रहने वाले कुछ वर्ग के मुस्लमान और उत्तर-पूर्वी राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए विशेष बनाया गया लगता है. संयुक्त राष्ट्र की जात-पात भेदभाव मिटने के लिए कमिटी (UN Committee on Elimination of Racial Discrimination) ने ६ मार्च २००७ को इस कानून को हटाने की बात की है. यह विरोधाभास ही तो है कि भारत जो सबसे बड़ा लोकतंत्र राष्ट्र होने का दावा करता है, और जिसने एक ओर सैन्य शक्ति की बढ़ोतरी के लिए निरंतर प्रयास किये हैं जिससे कि देश के नागरिकों की रक्षा हो सके, वहीँ दूसरी ओर राज्य-प्रायोजित हिंसा और मानवाधिकार का उलंघन इस कानून की आड़ में हो रहा है,  जिसकी सुनवाई किसी भी कोर्ट में नहीं हो सकती है. इस मुद्दे पर सरकार की चुप्पी नी:संदेह निंदा की पात्र है.

इस बिंदु पर, हम सब इरोम शर्मीला के प्रति अपना सहयोग व्यक्त करते हैं और हमारी मांग है कि:
- ए.ऍफ़.एस.पी.ए. को बिना विलम्ब हटाया जाए
- स्कूल, विश्वविद्यालय और अवासिक छेत्रों से सेना को हटाया जाए
- सेना के जिन लोगों ने बलात्कार, हत्या और अन्य अपराध किये हैं, उनके खिलाफ करवाई हो

हमारी विनती है कि आप सब इम्फाल में या जहां भी आप हों, वहीँ लोगों को इकठ्ठा कर के गाँधी से शर्मीला अभियान में शामिल हों, और २४-२६ फरवरी २०१० तक उपवास रखें.


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: 
फैसल खान (आशा परिवार और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय)  09313106745, 09868619699
संदीप पाण्डेय (आशा परिवार और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय) ०५२२ २३४७३६५
निन्ग्लूं हंगल (जस्ट पीस फ़ोउनडेशन) 9868592768, insafdelhi@gmail.com
इरोम सिंहजित (जस्ट पीस फाउनडेशन) 9862696184, iromsinghajit@gmail.com
अरविन्द मूर्ति (जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, उत्तर प्रदेश)
एम्.एच. गाँधी (आशा परिवार), गुजरात
सज्जाद हुसैन (जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, जम्मू एवं कश्मीर
बसंता वारेप्पम (ह्यूमन राईटस अलर्ट),  wareppa@gmail.com
क्षेत्रिमयुम ओनील (रीचआउट), onilrights@gmail.com

जलवायु.परिवर्तन एक चुनौती

अन्तराष्ट्रीय मंचों पर प्रायरू विकसित और विकासशील देशों के बीच मूलतरू वाद.विवाद का विषय बनकर रह गयीए जलवायु.परिवर्तन की चुनौती भले ही रोजमर्रा की आजीविका के संघर्ष एवं व्यस्त दिनचर्या मेंलीन लोगों के लिए महज खबर या अकादमिक विषय सामग्री मात्र ही होए सच्चई तो यह है कि हवाए पानीए वाली इस समस्या से देर.सबेरए कम.ज्यादा हम सभी का जीवन प्रभावित होता है । भारत में मौसम बदलाव के एक प्रमुख प्रभाव के रूप में बाढ व सूखे को देखा जा सकता है । देश का बहुत बड़ा क्षैत्र बाढ की विभीषिका को झेलता आ रहा है । परन्तु विगत दो दशकों से बाढ के स्वरूपए प्रवृत्ति व आवृत्ति में व्यापक परिवर्तन देखा जा रहा है । ऐसे बदलाव के चलते कृषिए स्वास्थ्य जीवन यापन आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और जान.मालए उत्पादकता आदि की क्षति का क्रम बढ़ा है । ऐसा नहीं है कि देश के लिए बाढ़ कोई नई बात है परन्तु मौसम में हो रहे बदलाव के इस प्राकृतिक प्रक्रिया की तीव्रता व स्वरूप को बदल दिया है और बाढ़ की भयावहता आपदा के रूप में दिखाई दे रही हैं । इसमें विशेषकर तेज व त्वरित बाढ का आनाए पानी का अधिक दिनों तक रूके रहना तथा लम्बे समय तक जल.जमाव की समस्या समाने आ रही है । मौसम बदलाव का दूसरा प्रमुख सूखे के रूप में देखा जा सकता है । तापमान वृद्धि एवं वाष्पीकरण की दर तीव्र होने के परिणाम स्वरूप सूखाग्रस्त क्षेत्र बढ़ता जा रहा है । मौसम बदलाव के चलते वर्षा समयानुसार नहीं हो रही है और उसकी मात्रा में भी कमी आई है । मिट्टी की जलग्रहण क्षमता का कम होना भी सूखा का एक प्रमुख कारण है । बहुत से क्षेत्र जो पहले उपजाऊ थे आज बंजर हो चले हैं वहाँ की उत्पादकता समाप्त् हो गई है । भारत के संदर्भ में ही हाल के समय में ग्रीन पीस इण्डिया की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि भारत में सर्वाधिक आमदनी वाले वर्ग के एक फीसदी लोग सबसे कम आमदनी वाले ३८ फीसदी लोगों के मुकाबले कार्बन डाई आक्साइड का साढ़े चार गुना ज्यादा उत्सर्जन करते हैं । हाल के बाली सम्मेलन में वनों के कटाव पर विशेष चिन्ता प्रकट की गयी थी । ऐसा अनुमान लगाया है कि ग्रीन हाउस गैसे उत्सर्जन के लिए २० से २५ प्रतिशत के लिए वनों के कटाव उत्तरदायी है । इसलिए वनों के संरक्षण पर विशेष बल दिया जाना चाहिए । हमारे एवं हमारी भावी पीढियों के जीवन को निर्णायक रूप से प्रभावित करने वाली जलवायु.परिवर्तन की समस्या हम सबके लिए चुनौती है । इसका सामना सार्थक एवं प्रभावशाली ढंग से करने के लिए हमें जागरूकता दिखाते हुए सरकारोंए अन्तराष्ट्रीय मंचाों पर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग करते हुए दबाव बनाना होगा । इस दिशा में हो रहे सरकारीए गैर सरकारी संघटनों के प्रयासों में सहयोग देना होगा । व्यक्तिगत जीवन में भी हम सादगी लाने और बिजलीए पानी इंर्धन की बचत की दिशा में कदम उठा सकते हैं । लगातार बढ़ता शहरीकरण जलवायु.परिवर्तन को और बढावा देगा और बढ़ती शहरी जनसंख्या के कारण उपजाऊ भूमि इमारतों के निर्माण हेतु उपयोग हो रही है तथा पेड.पौधों की संख्या तेजी से कम होती जा रही है । भारत में ही १९५५ से २००० के बीच करीब २.३ लाख हेक्टेअर खेती तथा वन भूमि आवासीय उपयोग में आ चुकी है । भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार मात्र एक डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान में वृद्धि से भारत में ४० से ५० लाख टन गेहूँ की कम उपज का अनुमान है । इससे प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता कम होगी और खाद्य असुरक्षा तथा कुपोषण बढेगा । यदि जलवायु परिवर्तनों को समय रहते कम करने तथा खाद्यान्न उपलब्धता बढ़ाने हेतु प्रभावी कदम नही उठाये गये तो शहरी गरीबों पर इसका गभीर असर पड़ेगा और कुपोषित बच्चें की संख्या और भी अधिक बढ जाएगी । जलवायु.परिवर्तन के चलते सूखे एवं बाढ में वृद्धि से पानी की उपलब्धता प्रभावित होगी । भारत वातावरणीय परिवर्तनों से होन वाली स्थितियों पर नियंत्रण से संबंधित योजनाआें पर सकल घरेलू उत्पाद का करीब ढाई प्रतिशत खर्च करता है जो कि एक विकासशील देश के लिए काफी बड़ी राशि है । चूँकि जलवायु.परिवर्तन किसी एक देश अथवा क्षेत्र तक सीमित नहीं है इसलिए इनमें कमी लाने हेतु सभी स्तरों पर ठोस उपायों की जरूरत है । भारत में गैर परम्परागत स्रोतों जैसे सूर्यए जल एवं पवन ऊर्जा की काफी बड़ी संभावना है । पवन ऊर्जा पैदा करने की क्षमता में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है । इन साधनों के प्रयोग हेतु प्रोत्साहन से भी वातावरण से कार्बन डाई आक्साइड को सोखने एवं जलवायु.परिवर्तन को कम करने में काफी सहायता है । चूँकि पुराने वृक्षों में कार्बन डाइ्र आक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए जलवायु.परिवर्तनों के नियंत्रण हेतु प्रत्येक स्तर पर अधिकाधिक वृक्षारोपण को बढावा देने की आवश्यकता है । जलवायु परिवर्तन के कृषि पर तात्कालिक एवं दूरगामी पभावों के अध्ययन की जरूरत है । कृषि वैज्ञानिक भी यहाँ कमी नहीं हैंए लेकिन कृषि वैज्ञानिक भी अभी जलवायु.परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पा रहे है । इसलिए इस दिश में कोई शोध शुरू नहीं हुआ जबकि हमें इस क्षेत्र में तत्काल दो काम करने चाहिए । एक यह कि जलवायु.परिवर्तन से कृषि चक्र पर क्या फर्क पड रहा है । दूसरा क्या इस परिवर्तन की भरपाई कुछ वैकल्पिक फसले लगाकर पूरी की जा सकती है । साथ ही हमें ऐसी किस्म की फसलें विकसित करनी चाहिए जो जलवायु.परिवर्तन के खतरों से निपटने में सक्षम हो.मसलन फसलों की ऐसी किस्मों का ईजादए जो ज्यादा गरमीए कम या ज्यादा बारिश सहन करने में सक्षम हों । यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जलवायु.परिवर्तन न केवल कृषि के लिए बल्कि सम्पूर्ण मानव सभ्यता के लिए एक खतरे के रूप में सामने आया है और इसलिए इसे सीमा में बांधना बेईमानी होगी । कोई भी देश इसकी ऑच से बच नहीं सकता । हम इस तथ्य से भी मुँह नहीं मोड सकते कि जलवायु.परिवर्तन के मुद्दे पर अब शिखर सम्मेलनों के आयोजन की अपेक्षा जमीनी स्तर पर विचार किया जाना चाहिये । हम यह भी उम्मीद करेंगे कि अगले दो सालों के भीतर दुनिया के समस्त देश इस गंभीर चुनौती का सामना करने के लिए एकजुट होकर वर्ष २००९ की डेनमार्क में कोेपेन हेगन वार्ता में कोई ऐसा सर्व सम्मत एजेंडा विश्व के समक्ष रखने में समर्थ होंगे जो २०१२ में समाप्त् होने वाले क्योटो प्रोटोकाल का स्थान ले और उसमें विशेष रूप से कृषि पर पडने वाले जलवायु.परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की प्रभावी व्यवस्था भी शामिल हो।

जितेन्द्र द्विवेदी

४ फरवरी २०१० को विश्व कैंसर दिवस है


विश्व में कैंसर मृत्यु का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार २००५-२०१५ में लगभग ८ करोड़ ४० लाख लोगों की मृत्यु कैंसर की वजह से होगी. ४ फरवरी २०१० को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है. 
इस वर्ष विश्व कैंसर दिवस का केंद्रीय विचार है: "कैंसर से बचाव भी मुमकिन है". कैंसर से बचने के सरल और वास्तविक सुझाव जैसे कि: 
- तम्बाकू सेवन न करना
- पौष्टिक भोजन खाना और नियमित रूप से व्यायाम करना
- शराब आदि व्यसनों का सेवन न करना 
- कैंसर का खतरा बढ़ाने वाले संक्रमणों से बचना 

लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्विद्यालय के सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त का कहना है कि "जन-हितैषी नीतियों को प्रभावकारी ढंग से लागू करना चाहिए. जैसे कि, भारत का सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३, यदि प्रभावकारी ढंग से लागू किया जाए तो संभवत: तम्बाकू-जनित कैंसर का अनुपात कम होगा और उस पर विराम भी लग सकता है".  विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने वर्ष २००५ में प्रोफेसर डॉ रमा कान्त को विशेष पुरुस्कार दे कर सम्मानित किया था.

वर्ष २००५ में, ७६ लाख लोगों की मृत्यु का कारण कैंसर था. इनमें से ७० प्रतिशत मृत्यु, विकासशील देशों में हुईं थीं.