२/३ मृत्यु का कारण है गैर-संक्रामक रोग: तम्बाकू नियंत्रण आपात प्राथमिकता है

[English] [फोटो] ६३ प्रतिशत लोगों में मृत्यु का कारण है गैर-संक्रामक रोग, जैसे कि हृदय रोग, कैंसर, श्वास सम्बन्धी रोग, डाईबीटीस, आदि - यह बताया विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने जो मल्हौर, चिनहट, स्थित अरविन्द अकादेमी में मुख्य अथिति के रूप में छात्रों एंड शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे.

छ०श०म० चिकित्सा विश्वविद्यालय के भूतपूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एवं सर्जरी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "लांसेट में प्रकाशित अप्रैल २०११ की शोध के अनुसार, गैर-संक्रामक रोगों से बचने के लिये तम्बाकू नियंत्रण सबसे बड़ी आपात प्राथमिकता है. लांसेट ने विश्व को तम्बाकू मुक्त बनाने के लिये २०४० का लक्ष्य रखा है. यह लक्ष तबतक पूरा नहीं किया जा सकता जब तक बच्चे और युवा तम्बाकू सेवन आरंभ करना ही बंद कर दें क्योंकि ८० प्रतिशत से अधिक तम्बाकू सेवन १८ साल से पहले ही आरंभ होता है. ज़िन्दगी चुने, तम्बाकू नहीं!"

अरविन्द एकेडमी की संस्थापिका-निदेशिका श्रीमती प्रमिला अग्रवाल एवं प्रधानाचार्या डॉ0 वीना शर्मा भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। अरविन्द एकेडमी के छात्रों ने नाटक-मंचन द्वारा स्पष्ट संदेश दिया कि तम्बाकू जानलेवा है और यदि तम्बाकू नशा करने वाले लोग समय रहते नशा मुक्त हो जाए तो स्वास्थ्य पर तम्बाकू जनित जानलेवा रोग होने का खतरा कम हो जाता है।

अखिल भारतीय सर्जनों के संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "विश्व स्वास्थ्य संगठन की नयी रपट (२७ अप्रैल २०११) के अनुसार, यह स्पष्ट है कि मृत्यु का सबसे बड़े कारण हैं गैर-संक्रामक रोग जिनमें हृदय रोग, कैंसर, श्वास सम्बन्धी रोग, डाईबीटीस आदि प्रमुख हैं. कुछ समान जीवनशैली से जुड़े कारण हैं जिनकी वजह से इन गैर संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ता है जैसे कि तम्बाकू का सेवन, शारीरिक व्यायाम या क्रियाओं का अभाव, नुकसानदायक शराब सेवन, भोजन जिसमें संतृप्त या 'ट्रांस' चर्बी, नमक, चीनी (खासतौर पर मीठे पेय) आदि का सेवन, इतियादि."

"पाइल्स (बवासीर) से स्माइल्स तक" पुस्तक के लेखक प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "गैर संक्रामक रोगों से होने वाली ८० प्रतिशत मृत्यु से बचाव मुमकिन है यदि तम्बाकू सेवन त्यागा जाए, शराब नशाबंदी हो, पर्याप्त व्यायाम या शारीरिक क्रियाएं रोजाना जीवन का हिस्सा बने, और भोजन में संतृप्त या 'ट्रांस' चर्बी, नमक, चीनी आदि से परहेज किया जाए."

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "धूम्रपान से तो गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुँचता ही है, धुआं-रहित तम्बाकू से भी गर्भावस्था में कु-प्रभाव पड़ता है - जैसे कि प्रे-क्लैम्पसिया (उच्च रक्त चाप, सूजन आदि), समय से पहले ही बच्चे का जन्म, और जन्म से समय बच्चे का वजन कम होना आदि शामिल हैं."

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "जो बच्चे और युवा धुआं-रहित तम्बाकू का सेवन करते हैं उनकी धूम्रपान करने की सम्भावना अधिक होती है. तम्बाकू कर रूप में घातक है, इससे दूर रहे और जो लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं वो इसको बिना विलम्ब त्यागें जिससे कि स्वास्थ्य पर तम्बाकू जनित  कुप्रभावों का असर कम-से-कम हो सके."

राहुल कुमार द्विवेदी और रितेश आर्य ने कार्यक्रम का समन्वयन किया. इसको नागरिकों का स्वस्थ् लखनऊ अभियान, इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग, अभिनव भारत फाउनडेशन, और आशा परिवार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था.
सी.एन.एस.

चर्नोबिल दिवस: भारत अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करे और खुली जांच करे

चर्नोबिल दिवस: २६ अप्रैल
[English] [फोटो] आज २६ अप्रैल २०११ को चर्नोबिल परमाणु दुर्घटना हुए २५ साल हो गए हैं. चर्नोबिल दिवस के उपलक्ष्य में आज, जहांगीराबाद मीडिया इंस्टीटयूट, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, आशा परिवार और नागरिकों का स्वस्थ लखनऊ अभियान ने वृत्तचित्र प्रदर्शनी एवं परिचर्चा आयोजित की.

शांति एवं विकास के लिये भारतीय चिकित्सक संघ के अध्यक्ष और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त और मग्सेसे पुरुस्कार विजेता डॉ संदीप पाण्डेय इस परिचर्चा के मुख्य वक्ता थे.

अखिल भारतीय सर्जनों के संघ के नव-निर्वाचित अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "परमाणु रेडियोधर्मिता से कैंसर, विशेषकर खून का कैंसर, आनुवांशिक परिवर्तन, आदि हो जाता है. क्या हमारी चिकित्सकीय व्यवस्था परमाणु आपात स्थिति से निबटने के लिये तैयार है?".

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "जापान में हुई परमाणु आपात स्थिति के बाद तो इस बात पर किसी संदेह का प्रश्न ही नहीं उठता है कि दुनिया में सभी परमाणु कार्यक्रमों को, चाहे वो सैन्य या उर्जा के लिये हों, उनको जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी बंद करना होगा."

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "पर्यावरण के लिए लाभकारी तरीकों से उर्जा बनाने के बजाय भारत परमाणु जैसे अत्यंत खतरनाक और नुकसानदायक ऊर्जा उत्पन्न करने के तरीकों को अपना रहा है. विकसित देशों में परमाणु ऊर्जा एक असफल प्रयास रहा है. विश्व में अभी तक परमाणु कचरे को नष्ट करने का सुरक्षित विकल्प नही मिल पाया है, और यह एक बड़ा कारण है कि विकसित देशों में परमाणु ऊर्जा के प्रोजेक्ट ठंडे पड़े हुए हैं. भारत सरकार क्यों भारत-अमरीका परमाणु समझौते को इतनी अति-विशिष्ठ प्राथमिकता दे रही है और इरान-पाकिस्तान-भारत तक की गैस पाइपलाइन को नकार रही है, यह समझ के बाहर है."

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "किसी भी देश क लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन. इस तरह की ऊर्जा नीति अनेकों वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, छोटे पानी के बाँध आदि, गोबर गैस इत्यादि."
परमाणु दुर्घटनाओं की त्रासदी संभवत: कई पीढ़ियों को झेलनी पड़ती है जैसे कि भोपाल गैस काण्ड और हिरोशिमा नागासाकी त्रसिदियों को लोगों ने इतने बरस तक झेला. हमारी मांग है कि भारत बिना-देरी शांति के प्रति सच्ची आस्था का परिचय दे और सभी परमाणु कार्यक्रमों को बंद करे.

बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.

मलेरिया से निबटने के लिए अधिक संसाधन और राजनीतिक समर्थन जरुरी

विश्व मलेरिया दिवस (२५ अप्रैल)
[English] लखनऊ के प्रख्यात सर्जन एवं विश्व स्वास्थय संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि मलेरिया एक ऐसा रोग है जिससे बचाव मुमकिन है और उपचार भी, परन्तु ठोस राजनीतिक समर्थन के और संसाधनों के अभाव में मलेरिया रोकधाम कार्यक्रम सफल नही रहे हैं.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, जो छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के भूतपूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक और सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं, उन्होंने बताया कि दक्षिण पूर्वी एशिया में मलेरिया का दर एक जबरदस्त चुनौती दे रहा है जहाँ ८३ प्रतिशत जनसंख्या को मलेरिया रोग होने का खतरा रहता है. लगभग २ करोड़ लोगों को प्रति वर्ष मलेरिया रोग होता है और इनमे से १००,००० लोग मलेरिया के कारणवश मृत्यु के शिकार हो जाते हैं.

सी-ब्लाक चौराहे पर स्थित पिल्स (बवासीर) टू स्माइल्स क्लिनिक के महानिदेशक प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि आज हमारे पास मलेरिया की रोकधाम के लिए प्रभावकारी नए तरीके हैं और कार्यक्रम भी. परन्तु आर्थिक अभाव के कारणवश और पर्याप्त राजनीतिक समर्थन न होने के कारण मलेरिया कार्यक्रम प्रभावकारी ढंग से लागु नही किए जा रहे हैं. आवश्यकता है कि आर्थिक संसाधनों को मलेरिया कार्यक्रमों में निवेश के लिए एकजुट किया जाए और राजनीतिक समर्थन भी इन कार्यक्रमों को प्रदान किया जाए. ढीले-ढाले रवैये से मलेरिया कार्यक्रम लाभकारी नही सिद्ध होंगे.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि जिन लोगों को मलेरिया का विशेष खतरा रहता है उनमें शामिल हैं: शहरों के स्लम में रहने वाले लोग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, जन-जाति, जो लोग काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह पलायन करते हैं, कम आयु के लोग और जो लोग बॉर्डर पर रहते हैं.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि दक्षिण-पूर्वी एशिया में अनेकों बार मलेरिया महामारी की तरह फैला है, जो जन-स्वास्थ्य को एक भायावाही चुनौती प्रस्तुत करता रहा है. इसमें से एक बड़ी मात्र में ऐसा मलेरिया है जो जंगल में रहने वाले मच्छरों से फैलता है और संक्रमित लोग जन-स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लाभ से अक्सर वंचित रह जाते हैं.

दक्षिण-पूर्वी एशिया के सारे देशों में, सिवाय माल्दीव्स के, मलेरिया महामारी के रूप में फैला हुआ है और मलेरिया की रोकधाम अत्याधिक मुश्किल होती जा रही है.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि इस छेत्र में ऐसे दो प्रकार के प्रमुख मलेरिया पाये जाते हैं - घातक मलेरिया प्लास्मोदियम फल्सिपरुम और ऐसा मलेरिया जिससे दुबारा मलेरिया होने का खतरा रहता है: प्लास्मोदियम विवक्स. इनसे न केवल स्वास्थ्य को नुकसान होता है बल्कि मलेरिया से लोगों के रोज़गार पर प्रभाव पड़ता है और आर्थिक रूप से भी लोग इस रोग का कु-प्रभाव झेलते हैं.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि ऐसा मलेरिया जब मलेरिया की दवा - क्लोरो-कुयिन - उसपर असरदायक नही रहती, उसे मलेरिया दवा-प्रतिरोधकता कहते हैं, और यह पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया में फ़ैल चुका है. क्लोरो-कुयिन सबसे प्रचलित और सस्ती मलेरिया की दवा है.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि दवा प्रतिरोधक मलेरिया से खतरा कई गुणा बढ़ता जा रहा है. जरुरत है कि हर सम्भव प्रयास किया जाए जिससे मलेरिया रोकधाम के कार्यक्रम अधिक-से-अधिक प्रभावकारी बन सके.
सी.एन.एस

तम्बाकू और नशों से दूर रहें, स्वस्थ और इमानदार नागरिक बने

[English] [फोटो] रानी लक्ष्मी बाई इंटर कॉलेज, सेक्टर-१४, इंदिरा नगर में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय, जो परिचर्चा में मुख्य अथिति थे, छात्रों एवं शिक्षकों को 'स्वस्थ एवं जिम्मेदार नागरिक बनने विषय पर संबोधित कर रहे थे.

छ०श०म० चिकित्सा विश्वविद्यालय के भूतपूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एवं सर्जरी विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "लान्सेट चिकित्सा जर्नल अप्रैल २०११ में प्रकाशित शोध के अनुसार, जन स्वास्थ्य सुधरने के लिये, तम्बाकू नियंत्रण सबसे अत्यावश्यक प्राथमिकता है. लांसेट ने २०४० तक विश्व को तम्बाकू मुक्त करने का आह्वान किया है. जब तक बच्चे और युवा तम्बाकू रहित जीवन नहीं अपनाएंगे यह मुहीम नाकाम रहेगी."

आर.सी.टी.सी. के निदेशक प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "तम्बाकू धीमा ज़हर है और खतरनाक नशा है. अनेक जानलेवा बीमारियों, विक्रित्यों एंड मृत्यु का जनक तम्बाकू से दूर रहने में ही विवेक है. जो लोग, तम्बाकू कंपनियों के भ्रामक तम्बाकू प्रचार की वजह से तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं, वो बिना विलम्ब तम्बाकू सेवन त्याग दें".

अखिल भारतीय सर्जनों के संघ के नव-निर्वाचित अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "अनेक गैर संक्रामक रोगों के सामान खतरा-पैदा करने वाले कारक हैं जैसे कि तम्बाकू सेवन, भोजन जिसमें संतृप्त या 'ट्रांस-फैटी' चर्बी, नमक, चीनी (खासतौर पर मीठे पेय में), शारीरिक व्यायाम न करना, और शराब सेवन, जिसकी वजह से विश्व में से हर ३ में होनी वाली मौतों में से २ इन गैर संक्रामक रोगों की वजह से हैं. गैर संक्रामक रोगों से हर ६ मौतों में से होनी वाली १ मौत तम्बाकू सेवन की वजह से होती है."

डॉ संदीप पाण्डेय ने छात्रों-शिक्षकों को प्रोत्साहित किया कि वें जिम्मेदार और ईमानदार नागरिक बन और न तो घूस ले, और न ही घूस दें. डॉ संदीप पाण्डेय ने छात्रों को शपथ दिलवाई कि वें अपने जीवन में कभी घूस नहीं लेंगे. उन्होंने छात्रों को सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवेदन पत्र लिखना सिखाया और कहा कि वो अपने स्कूल का प्रोजेक्ट करते समय सूचना अधिकार के अंतर्गत आवेदन पत्र लिख कर सूचना पा सकते हैं. डॉ संदीप पाण्डेय ने भ्रष्टाचार विरोधी जन अभियान में सूचना अधिकार अधिनियम पर भी अपने विचार रखे.

राहुल कुमार द्विवेदी, रितेश आर्य एवं रानी लक्ष्मी बाई इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य सुश्री अरोरा ने कार्यक्रम का समन्वयन किया. इसको नागरिकों का स्वस्थ् लखनऊ अभियान, इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग,  अभिनव भारत फाउनडेशन, और आशा परिवार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था.
सी.एन.एस.


लोकपाल बिल का विरोध करना राजनीतिज्ञ बंद करें

[English] जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (उत्तर प्रदेश) एवं लोक राजनीति मंच ने मांग की है कि लोकपाल बिल का विरोध करना राजनीतिज्ञ बंद करें क्योंकि इस बिल से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, प्रशासन व्यवस्था में जवाबदेही बढ़ेगी एवं देश की राजनीति का चरित्र भी बदलेगा। मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि जिस दिन से लोकपाल बिल के मसौदा तैयार करने की समिति का गठन हुआ है, तब से ही इस समिति में जनता की ओर से आमंत्रित सदस्यों पर आरोप मढ़े जा रहे हैं. ऊपर से लगता है कि आरोप लगाने वाले लोग राजनीतिज्ञ हैं, परन्तु यह भी संभव है कि परदे के पीछे से दफ्तरशाह अधिकारी इसको पूरा समर्थन प्रदान कर रहे हों.

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि पहले कपिल सिबल ने लोकपाल बिल का उपहास किया जब उन्होंने कहा कि इससे हर बच्चे को शिक्षा और हर नागरिक को पीने का पानी तो नहीं मिल जायेगा. अब सिबल से यह पूछना चाहिए कि मानव संसाधन विकास मंत्री होने के नाते,  क्या यह उनकी जिम्मेदारी नहीं थी कि वें यह सुनिश्चित करें कि हर बच्चे को शिक्षा मिले? उन्होंने शिक्षा अधिकार आधिनियम तो पारित करवा दिया पर सामान स्कूल प्रणाली को शिक्षा अधिकार अधिनियम से बाहर रख कर उन्होंने लोगों को धोखा ही दिया है, खासकर कि गरीब लोगों को. जब तक सामान स्कूल प्रणाली नहीं लागू की जाएगी, जिसका तात्पर्य यह है कि हर बच्चा एक ही तरह के स्कूल में शिक्षा प्राप्त करे, शिक्षा अधिकार अधिनियम के क्या मायने हैं?

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि दिग्विजय सिंह ने अन्ना हजारे के उपवास पर हुए खर्च पर जांच की मांग की. क्या उन्हें यह नहीं लगता कि २-जी, राष्ट्रमंडल खेल या आदर्श सोसाइटी घोटाला आदि अधिक महत्वपूर्ण और संगीन मुद्दे हैं? यह और बात है कि अरविन्द केजरीवाल के दल ने भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के आय-व्यय का ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया है. यही नहीं, लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने वाली समिति में जनता से सदस्यों ने अपनी परिसंपत्ति भी घोषित कर दी है. राजनीतिज्ञ तो भ्रष्टाचार पर ही टिके हुए हैं. शयद ही कोई सांसद मिले जिसने चुनाव आयोग द्वारा तय की हुई चुनाव खर्चा सीमा (२५ लाख रूपये) में ही चुनाव लड़ा हो. इस तरह के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिये ही लोकपाल बिल आवश्यक है.

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि अमर सिंह जिस सी.डी. की बात कर रहे हैं, वो सिर्फ शरारत है. यह तो कल्पना से परे है कि जिस प्रशांत और शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के १५ में से आधे मुख्य न्यायाधीशों को भ्रष्ट करार किया हो, वो किसी न्यायाधीश को प्रभावित करने की कोशिश करें. अमर सिंह एक ऐसे राजनेता हैं जो अपना सन्दर्भ खो चुके हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में आम लोगों से जुड़ा एक भी मुद्दा नहीं उठाया है, जब कि प्रशांत और शांति भूषण ने बिना कोई फीस लिये, अनेक जनहित में मुद्दों को उठाया है. चूँकि इस सी.डी. विवाद के पीछे अमर सिंह हैं, इसीलिए इसको संजीदगी से नहीं लेना चाहिए.

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि दिग्विजय सिंह ने न्यायाधीश संतोष हेगड़े पर टिपण्णी की है कि कर्णाटक में वो प्रभावशील लोकायुक्त नहीं रहे हैं. दिग्विजय सिंह ने कहा कि यदि अन्ना हजारे उत्तर प्रदेश में मायावती के भ्रष्टाचार के विरोध में अभियान छेड़ेंगे तब उनकी पार्टी उनका समर्थन करेगी. लगता है दिग्विजय सिंह अपनी पार्टी के लोगों के अलावा सबके विरोध में कारवाई चाहते हैं और सबकी इमानदारी को परखना चाहते हैं.

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि मनमोहन सिंह ने दफ्तरशाह अधिकारियों को यही सिद्धांत बताया है कि वें अपने भ्रष्ट सहकर्मियों का बहिष्कार करें. परन्तु यह सुझाव मनमोहन सिंह अपने ऊपर नहीं लागू करते. यदि उन्होंने अपनी पार्टी में भ्रष्ट सदस्यों और मंत्रियों का बहिष्कार किया होता तो स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती.

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि एक प्रभावकारी और मजबूत लोकपाल बिल के विचार से सभी राजनीतिज्ञ परेशान है क्योंकि यह उनकी सबसे बड़ी कमजोरी पर चोट कर रहा है. यदि कल को एक मजबूत कारगर लोकपाल बिल आ गया तो इन राजनीतिज्ञों का राजनीति में रहना मुश्किल हो जायेगा. इसीलिए यह सब इतने घबरा रहे हैं. और यही वजह है कि उनके पीछे की उद्योग एवं दफ्तार्शाहों की ताकत पूरा प्रयास कर रही है कि लोकपाल  बिल का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया खंडित हो जाये.

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि लोकपाल बिल सिर्फ भ्रष्टाचार को ही नहीं रोकेगा बल्कि इस देश की राजनीतिक चरित्र को ही बदल कर रख देगा. हम लोग, धनाढ्य लोगों के बजाय जमीन से जुड़े हुए लोगों को मुख्यधार की राजनीति में देखेंगे जो अपनी सीमित आये में ही जीवन-यापन कर रहे होंगे और अपनी राजनीति भी पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ करते होंगे. ऐसे लोगों पर अनुचित दबाव बनाना, लुभाना आदि असंभव होगा. इसीलिए उद्योग एवं दफ्तरशाह भी राजनीतिज्ञों के साथ बहुत चिंतित हैं.

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (उत्तर प्रदेश) एवं लोक राजनीति मंच द्वारा जारी पत्र पर अनेक हस्ताक्षर हैं जिनमें अलोक अगरवाल, जीपी सिंह, मधुरेश कुमार, संदीप पाण्डेय, अजित झा, अरुंधती धुरु, एस.एर.दारापुरी, गौतम बंदोपाध्याय, कविता श्रीवास्तव, महेश कुमार, अधिवक्ता रवि किरण जैन, अधिवक्ता मोहम्मद शोएब, अरविन्द मूर्ति, केशव चाँद, आर सुनीलम, जयशंकर पाण्डेय, नन्दलाल मास्टर, मनीष गुप्ता, राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, आदि प्रमुख हैं.

बाबी रमाकांत - सी.एन.एस

धुआं-रहित तम्बाकू भी उतनी घातक है जितना धूम्रपान

[English] धुआं-रहित तम्बाकू (गुटखा, खैनी आदि) भी जान-लेवा बीमारियों, विकृतियों और मृत्यु का जनक है, तम्बाकू किसी भी रूप में ली जाए, धुआं-रहित या धूम्रपान हो - स्वास्थ्य के लिये घातक हो सकती है. अखिल भारतीय सर्जनों के संगठन के निर्वाचित अध्यक्ष एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, डी-ब्लाक इंदिरा नगर स्थित डैफ़ोडिल्स कॉन्वेंट इंटर कॉलेज में मुख्य-वक्ता थे और छात्रों एवं शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के भूतपूर्व मुख्य-चिकित्सा अधीक्षक एवं सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं एवं वर्तमान में 'पाइल्स तो स्माइल्स केंद्र' और सिप्स अस्पताल के निदेशक हैं.

डैफ़ोडिल्स कॉन्वेंट इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य पियूष मिश्रा के साथ प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने छात्रों एवं शिक्षकों को किसी भी रूप में तम्बाकू का सेवन न करने की शपथ दिलवाई.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "अमरीका की सी.डी.सी. के अनुसार धुआं रहित तम्बाकू में भी २८ कैंसर पैदा करने वाले तत्व होते हैं और धुआं-रहित तम्बाकू कैंसर का एक जनक है, खासतौर पर मुहं का कैंसर होने की सम्भावना कई गुना बढ़ जाती है."

पुरुस्कृत पुस्तक "राख के ढेर पर" के लेखक प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "धुआं-रहित तम्बाकू से ल्यूकोप्लेकिया (कैंसर से पहले वाली स्थिति जिसमें गाल के अन्दर की त्वचा सख्त और सफ़ेद धब्बे युक्त हो जाती है) होने का खतरा सर्वाधिक है. जबड़ों और दाँतों के अन्य रोग भी इसी से होते है."

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "धुआं-रहित तम्बाकू से भी गर्भावस्था में कु-प्रभाव पड़ता है - जैसे कि प्रे-क्लैम्पसिया (उच्च रक्त चाप, सूजन आदि), समय से पहले ही बच्चे का जन्म, और जन्म से समय बच्चे का वजन कम होना आदि शामिल हैं."

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "पुरुषों में धुआं रहित तम्बाकू से भी वीर्य-संख्या का कम होना आदि कुप्रभाव शामिल हैं."

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि "जो बच्चे और युवा धुआं-रहित तम्बाकू का सेवन करते हैं उनकी धूम्रपान करने की सम्भावना अधिक होती है. तम्बाकू कर रूप में घातक है, इससे दूर रहे और जो लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं वो इसको बिना विलम्ब त्यागें जिससे कि स्वास्थ्य पर तम्बाकू जनित  कुप्रभावों का असर कम-से-कम हो सके."

इस कार्यक्रम में लखनऊ के अन्य जाने-माने लोग उपस्थित थे जिनमें राहुल कुमार द्विवेदी, शोभा शुक्ला, रितेश आर्य, आनंद पाठक, प्रमुख थे. इस कार्यक्रम को नागरिकों का स्वस्थ लखनऊ अभियान, इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग, अभिनव भारत फाउनडेशन, और आशा परिवार ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था.

सी.एन.एस. 

बाल उत्पीड़न के अपराधियों को दण्डित करने के लिए कड़े क़ानून का अभाव

अंजलि सिंह -सी.एन.एस

भारत में यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों कि संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. हाल ही में नई दिल्ली में हुए एक हादसे में एक युवक ने अपने पड़ोसी की पांच वर्षीय बच्ची का बलात्कार करके उसक क़त्ल कर दिया. इसी प्रकार कुछ समय पूर्व, कानपुर की एक बालिका अपने शिक्षक की यौन अमानुषिकता की शिकार होकर मृत्यु का ग्रास बनी.

उत्तर प्रदेश में इस प्रकार के हादसों की कमी नहीं है. सितम्बर २००९ में १३ वर्षीय नौरा को लखनऊ के मानकनगर रेलवे स्टेशन के पास मृत अवस्था में पाया गया. उसकी ७ वर्षीय सहेली नूर बानो वहीं पर बेहोश अवस्था में पायी गयी तथा उसके शरीर पर चाकू के घाव और जलने के निशान पाए गए. गरीब बस्ती में रहने वाली उन दोनों बच्चियों के परिवार वालों ने जब पुलिस में शिकायत दर्ज करने की कोशिश की तो कृष्णा नगर थाने के इंचार्ज ने उन्हें भगा दिया. ४ महीनों तक ने तो कोई भी पुलिस कार्यवाही की गयी न ही नूर बानो को किसी मजिस्ट्रेट या चाइल्ड वेलफेयर कमीशन के समक्ष पेश किया गया. नूर के शरीर के निशानों से यौन उत्पीड़न का मामला साफ़ ज़ाहिर था, परन्तु मेडिकल परीक्षण की रिपोर्ट ने केवल सिर पर चोट की बात कही. नौरा की संदिग्ध मौत के बारे में भी कोई छान बीन नही करी गयी.

नूर बानो के अनुसार, दोनों को कुछ व्यक्तियों ने एक सफ़ेद गाड़ी के अन्दर घसीट लिया था. उसके बाद उसे कुछ याद नहीं. पुलिस ने यह कह कर केस बंद कर दिया की बच्चियां चलती ट्रेन से गिर गयी थीं. मई २००५ में, कूड़ा बीनने वाली एक १३ वर्षीय बालिका के साथ कुछ लड़को ने घंटों बलात्कार कर के आशियाना पुलिस स्टेशन के सामने फ़ेंक दिया. ५ वर्षों के बाद भी आशियाना रेप केस के नाम से मशहूर इस केस का अभी तक कोई निपटारा नहीं हुआ है. बच्ची अभी तक एक डरी और सहमी हुई गुमनामी की ज़िन्दगी जी रही है, और अपराधी स्वछंद घूम रहे हैं. मुक़दमा नाबालिग अपराधियों के न्यायालय में चल रहा है.

खेद की बात है कि भारत में अभी भी बच्चों के साथ हुए इस प्रकार की वारदातों को अपराधिक नहीं करार किया जाता.  अध्ययनों द्वारा यह पता चलता है कि भारत में घरों में काम करने वाले, या फिर सड़कों पर अथवा संरक्षण गृहों में रहने वाले बच्चों में ७५% ऐसे हैं जो कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार हुए हैं. महिला एवम् बाल विकास मंत्रालय द्वारा २००७ में किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि विश्व भर में सबसे अधिक उत्पीड़ित बच्चे भारत में ही हैं (५३%). अधिकाँश हादसों में उत्पीड़क कोई अनजान नहीं, वरन जान पहचान  वाला व्यक्ति ही होता है.  केंद्र सरकार की २००८ की एक रिपोर्ट ने भी इस बात की पुष्टि की है. यह वास्तव में लज्जा का विषय है की यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ चाइल्ड राइट्स पर हस्ताक्षर करने के बावजूद, भारत सरकार अपने देश के बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने में असक्षम है. भारतीय दंड संहिता में भी इन हादसों को किसी विशेष प्रकार के अपराध का नाम नहीं दिया गया है.  फिर जो संस्थाएं बच्चों के अधिकारों को लेकर काम कर रही हैं, वो कानून की मदद किस प्रकार लें? 'यू.पी. स्टेट लीगल सर्विसेस अथॉरिटी' की सचिव जी श्री देवी के अनुसार, ' हमारी राष्ट्रीय नीति के अनुसार, बच्चे देश की अनमोल धरोहर हैं, और हम सबका कर्तव्य है कि उन्हें हर प्रकार के उत्पीड़न एवम् शोषण से बचाएं. यह सच है कि भारतीय दंड संहिता में इसके लिए विशेष प्रावधान नहीं है, पर रुचिका बलात्कार केस के बाद, माननीय गृह  मंत्री  चिदंबरम जी के संरक्षण में एक नया 'यौन अपराध क़ानून' प्रस्तावित है. यदि यह कानून पास हो गया तो बलात्कारी को २ वर्ष कि जेल हो सकती है.'

परन्तु ऐसे घृणित अपराधों के लिए क्या दो वर्ष कि सजा काफी है?

श्री देवी जी का कहना है कि, ' ड्राफ्ट बिल में अवयस्क के साथ किये गए बलात्कार के मामलों में अधिकतम १०साल कि कैद हो सकती है. बिल में अवयस्क की आयु सीमा भी १६ वर्ष से बढ़ा कर १८ वर्ष कर दी गयी है. इससे बाल विवाह, एवम् अवयस्क विवाहित के साथ किये गए बलात्कार के मामलों को भी अपराध की श्रेणी में लाया जा सकेगा.

बाल कल्याण कमिटी नई दिल्ली की भूतपूर्व अध्यक्ष भारती शर्मा के अनुसार, ' ऐसे सभी मामलों में तुरंत पुलिस कार्यवाही आवश्यक है, और अपराधी को तुरंत पकड़ना भी ज़रूरी है ताकि वो अन्य बच्चों के साथ यही कुकर्म दोबारा न कर सके. साथ ही बच्चों को भी इस विषय की उचित जानकारी एवम् परामर्श देना आवश्यक है ताकि वे स्वयं अपनी रक्षा कर सकें. बच्चों में यह विश्वास पैदा करना भी ज़रूरी है कि कोई ऐसी दुर्घटना हो जाने की स्थिति  में वे किसी समझदार और विश्वसनीय व्यक्ति से इस बारे में बात कर सकें, तथा बच्चे की शिकायत पर उचित कार्यवाही की जा सके.

एक धनात्मक बात यह है कि शीघ्र ही एक इंटिग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्शन योजना को कार्यान्वित किया जाने वाला है जिसके अंतर्गत बाल संरक्षण का एकीकृत कार्यक्रम बड़े और छोटे शहरों में उपलब्ध हो पायेगा.'

 बच्चों के हितों के लिए काम करने वाली 'साथी' नामक संस्था से सम्बद्ध अनुराधा वर्मा का कहना है कि, ' उत्पीड़न के शिकार बच्चों को बहुत अधिक देखभाल एवम् संरक्षण की आवश्यकता होती है. अधिकतर मामलों में अपराधी कोई जानने वाला  व्यक्ति ही होता है. ऐसी स्थिति में बच्चे को बार बार उसी व्यक्ति के हाथों यौन उत्पीड़न का शिकार तब तक होना पड़ता है जब तक उसे उस परिवेश से बाहर निकाल कर बचाया नहीं जाता. ऐसे बच्चे जीवन भर के लिए भावात्मक रूप से घायल हो जाते हैं, तथा उन्हें लम्बे समय तक उचित मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता होती है. परन्तु दुर्भाग्यवश, बाल संरक्षण अथवा बचाव केन्द्रों पर इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं होती. इन केन्द्रों पर प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की कमी, समस्या को और गंभीर बना देती है. इस कमी का निराकरण तुरंत होना चाहिए'.

अंजलि सिंह -सी.एन.एस
(अनुवाद: शोभा शुक्ल - सी.एन.एस)

ज़िन्दगी चुने, तम्बाकू नहीं!

चूँकि अधिकाँश तम्बाकू नशा युवावस्था में आरंभ होता है, इसीलिए आवश्यक है कि बच्चों और युवतियों/ युवाओं को तम्बाकू-जनित रोगों, विकृतियों और मृत्यु से सम्बंधित जानकारी हो जिससे कि वो ज़िन्दगी चुने, और तम्बाकू नहीं - कहना है प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त का जो अखिल भारतीय शल्य-चिकित्सकों के संगठन के निर्वाचित अध्यक्ष हैं. प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, इंदिरा नगर बी-ब्लाक स्थित स्प्रिंग डेल कॉलेज में आयोजित "तम्बाकू मुक्त जीवनशैली पर परिचर्चा" में छात्रों-शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे. प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त भारत के पहले सर्जन हैं जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने २००५ में अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार से नवाज़ा.

छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के भूतपूर्व सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "अनेक जान लेवा और गंभीर रोगों का तम्बाकू जनक है जैसे कि हृदय रोग, कैंसर, फेफड़े के रोग, आदि, जिससे पूर्णतया: बचाव मुमकिन है."

सी-ब्लाक चौराहे इंदिरा नगर पर स्थित "पाइल्स (बवासीर) टू स्माइल्स" क्लिनिक एवं शाहमीना रोड स्थित सिप्स अस्पताल के निदेशक प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "हर वर्ष भारत में ही दस लाख लोगों की तम्बाकू के कारण मृत्यु होती है. मौजूदा जो लोग तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं, उनमें से ५० प्रतिशत लोगों की मृत्यु तम्बाकू जनित कारणों से ही होगी."

मुंबई की दंत विशेषज्ञ डॉ शिवानी शर्मा ने कहा कि "मुंह के कैंसर का तम्बाकू एक बड़ा कारण है. तम्बाकू-जनित मुंह-के-कैंसर के खतरे को कम करने के लिये तम्बाकू सेवन को बिना-विलम्ब त्यागना आवश्यक है."

डॉ शिवानी शर्मा ने कहा कि "जिन लोगों में कैंसर-से-पहले वाली स्थिति होती है, उन्हें तुरंत तम्बाकू सेवन बंद करना चाहिए और दन्त विशेषज्ञ से जांच करवानी चाहिए जिससे कि मुंह के कैंसर होने की सम्भावना कम हो सके."

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "तम्बाकू व्यसनियों को नशा मुक्ति के लिये विशेषज्ञों से मदद लेनी चाहिए. शोध के अनुसार अक्सर तम्बाकू सेवन करने वाले लोग तम्बाकू-जनित रोगों, विकृतियों और मृत्यु से अनभिज्ञ होते हैं. जो तम्बाकू व्यसनी इन खतरों को संजीदगी से समझते हैं, उनकी नशा-मुक्त होने की सम्भावना अधिक होती है."

इस कार्यक्रम में लखनऊ के अन्य जाने-माने लोग उपस्थित थे जिनमें राहुल कुमार द्विवेदी, शोभा शुक्ला, रितेश आर्य, आनंद पाठक, प्रमुख थे. इस कार्यक्रम को नागरिकों का स्वस्थ लखनऊ अभियान, इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग,  अभिनव भारत फाउनडेशन, और आशा परिवार ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था.

सी.एन.एस

योगी की राजनीति सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा

तस्वीर: राजीव यादव
[प्रोफेसर (डॉ) रूप रेखा वर्मा के वक्तव्य की ऑडियो रेकॉर्डिंग सुनने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये
[English] न केवल गोरखपुर को बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश को जिस तरह से उग्र हिंदुत्ववाद जकड़ता जा रहा है वो नि:संदेह भारत के समक्ष एक जटिल चुनौती है कि कैसे हर नागरिक के लिए भले ही वो किसी भी धर्म-जाति की (का) हो, उसको सभी संवैधानिक अधिकार प्राप्त हो सकें और सम्मानजनक सुरक्षित और बिना-खौफ जीवन-यापन कर सके. उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब में प्रदर्शित वृत्तचित्र "भगवा युद्ध: एक युद्ध राष्ट्र के विरुद्ध" के दौरान यही बात स्पष्ट थी.

लखनऊ विश्वविद्यालय की भूतपूर्व उप-कुलपति एवं 'साझी दुनिया' से जुड़ीं प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर (डॉ) रूप रेखा वर्मा ने कहा: "एक समय में पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रगतिशील विचारों की सरजमीन मानी जाती थी, जहां पर राही मासूम रज़ा जैसे साहित्यकार पैदा हुए और वहाँ से एक लम्बे समय तक लिखा, और वामपंथी आन्दोलन की, प्रगतिशील विचारों की, समतावादी आन्दोलन की वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश की सरजमीं जानी जाती थी. फिरकापरस्ती को घुसने न देने की ताकत थी उस जमीन में, उसके लिए पूर्वांचल जाना जाता था."

प्रोफेसर (डॉ) रूप रेखा वर्मा ने कहा कि "किस तरह से गोरखपुर फिरकापरस्त लोगों के कब्जे में हुआ यह समझने की जरुरत है. जब गोरखपुर में यह नारा लगना शुरू-शुरू ही हुआ था कि: "गोरखपुर में रहना है तो योगी योगी कहना होगा", और शायद तब तक पूरा गोरखपुर भी उसके शिकंजे में नहीं आ पाया था, तो यहाँ लखनऊ में बैठक हुई थी जिसमें ये चिंता व्यक्त की गयी थी कि हम लोग जो गोरखपुर से इतनी दूर बैठे हैं जिनकी जड़ें गोरखपुर में नहीं हैं, जिनका कोई 'काडर' गोरखपुर में नहीं है, वो लोग कैसे इसको वहीँ-का-वहीँ रोक के, इस हवा को तहसनहस कर सकते हैं. उस समय देश में जगह-जगह फिरकापरस्त ताकतें पनप रही थीं और हस्तछेप भी हो रहे थे, और इतना वक़्त नहीं था कि हम लोग गोरखपुर में नए सिरे से अपनी कोई टीम बनाये और इस लड़ाई को लड़ें. बात यह हुई कि वो राजनीतिक दल जिनके एजेंडे में फिरकापरस्ती नहीं है और जिनके काडर चुनावी कारणों से हर जगह होने ही चाहिए, उनसे हम सहायता मांग सकते हैं कि वो तत्काल अपने काडर को भेज कर हस्तछेप करें और उनके लिए यह चुनावी दृष्टि से भी फायदेमंद होगा. उनके अपने हितों और हमारे सामाजिक हितों में इस मेल की वजह से हम उनसे मदद लें, यह योजना बनी थी."

प्रोफेसर (डॉ) रूप रेखा वर्मा ने कहा कि "मुझे वामपंथी दल और समाजवादी पार्टी जाने को कहा गया था और श्री प्रकाश कारत और श्री अहमद हसन से बात हुई थी. इन सभी ने यह कहा कि हमारे काडर इसको नियंत्रित कर लेंगे, और हम लोग इतनी चिंता नहीं करें. परन्तु हम लोगों के देखते-ही-देखते न केवल पूरा गोरखपुर बल्कि अन्य छेत्र जैसे कि मऊ में भी फिरकापरस्ती जमती गयी. हम लोगों के एक दल ने मऊ जा कर मऊ दंगों की रपट लिखी थी और इसके प्रमाण थे कि कैसे हिन्दू युवा सेना के लोगों ने पहली गोली चलायी थी और उसी से सारा दंगा शुरू हुआ था, वर्ना वहाँ दंगे होने की कोई जमीन बनने न पायी थी. इस तरीके से आज हालत यह है कि पूरा पूर्वी उत्तर प्रदेश फिरकापरस्त ताकतों के चंगुल में है." 

प्रोफेसर (डॉ) रूप रेखा वर्मा ने बताया कि "पहले तो फिरकापरस्त ताकतें सूक्ष्म या महीन तरीकों से लम्बे समय तक काम करने की कोशिशें कर रही थी जिसके बाद ही उनका जहर घुल पाता था. परन्तु अब तो एक दबंग फिरकापरस्त 'मूवमेंट' है जिसने पूर्वी उत्तर प्रदेश को अपना शिकार बनाया है, जिसमें उस महीन तरीके से काम करने की न तो शिद्दत है, न अक्ल है, न तमीज है, सिर्फ दबंगई की वजह से और गोरखनाथ पीठ का धार्मिक लाभ उठा कर के और गोरखनाथ पीठ के पूरे स्वरुप को बदल कर ही यह पनप राही हैं."

स्त्री विरोधी मुद्दे और फिरकापरस्ती ताकतें कैसे आसानी से जुड़ जाती है, इस पर भी प्रोफेसर (डॉ) रूप रेखा वर्मा ने प्रकाश डाला. प्रोफेसर वर्मा ने कहा कि "उत्तर प्रदेश की बड़ी अजीब स्थिति है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश पूरी तरह से फिरकापरस्त दबंगों के गिरफ्त में है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्त्री-विरोधी पितृसत्ता व्याप्त है - यूँ तो पूरे भारत में ही पितृसत्ता है पर जिस तरह की पितृसत्ता, जिस तरह का स्त्री-विरोधी मौहौल, हमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखने को मिलता है वो चिंताजनक है. स्त्री-विरोधी पितृसत्ता का तानाबाना फिरकापरस्ती से होना बहुत आसान हो जाता है."

प्रोफेसर (डॉ) रूप रेखा वर्मा, उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब में वृत्तचित्र "भगवा युद्ध: एक युद्ध राष्ट्र के विरुद्ध" के प्रदर्शन से पहले सत्र में अपने विचार रख रही थीं. भाजपा सांसद और गोरखनाथ पीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ द्वारा पूर्वांचल में की जा रही साम्प्रदायिक आतंकी राजनीति पर यह वृत्तचित्र आधारित है. 

फिल्म के बाद आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए मागसेसे पुरुस्कार से सम्मानित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ० संदीप पाण्डे ने कहा कि पूर्वांचल में यह प्रयोग लम्बे समय से चल रहा है और इसे लगातार सरकार व प्रशासन द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। एडवोकेट मुहम्मद शुएब ने कहा कि भगवा युद्ध न केवल एक समुदाय विशेष के खिलाफ की जा रही आतंकी गतिविधियों को सामने लाती है, बल्कि बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के दलितों, महिलाओं व बच्चों में साम्प्रदायिकता के विषरोपण को सामने लाती है। अयोध्या के महंत युगल किशोर शरण शास्त्री ने कहा कि आदित्य नाथ योगी परम्परा के विरुद्ध ऐसी परम्परा की रचना कर रहे हैं जिसमें योगी, बदमाश के रूप में सामने आया रहा है। उन्होंने कहा कि यह फिल्म ऐसे प्रयोगों का पर्दाफाश करती है।

हिंदी में बनी 43 मिनट की इस फिल्म का निर्देशन युवा फिल्मकार राजीव यादव, शाहनवाज आलम और लक्ष्मण प्रसाद ने किया है। इस प्रदर्शन में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता अरुधंती धुरू, अयोध्या-फैजाबाद की वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस, रवि शेखर सहित शहर के विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोग और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।

बाबी रमाकांत - सी.एन.एस

खाद्य सुरक्षा व जलवायु परिवर्तन पर एक वर्ष का क्षमतावर्धन प्रशिक्षण कार्यक्रम

गोरखपुर एनवायरन्मेन्टल एक्शन ग्रुप, भारत एवं विमेन्स अर्थ एलायन्स, अमरीका की संयुक्तत्वाधान में भारतीय महिलाओं की खाद्य सुरक्षा व जलवायु परिवर्तन पर एक वर्ष का क्षमतावर्धन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस तरह का प्रशिक्षण पहली बार भारत देश में आयोजित किया जा रहा है। प्रशिक्षण प्रक्रिया इस वर्ष 3 चरणों में आयोजित होगी। प्रथम चरण का प्रशिक्षण 6 दिन का होगा जो 18 अप्रैल से 23 अप्रैल तक जी0ई0ए0जी0 प्रशिक्षण केन्द्र कैम्पियरगंज में आयोजित होगा। उसके बाद 3 दिन का प्रशिक्षण सितम्बर और नवम्बर में किया जायेगा। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को करने का उद्देश्य है कि गावों की अग्रणी महिलाएं अपने समुदाय को खाद्य सुरक्षा टिकाऊ कृषि पारिस्थितिक और आर्थिक सुरक्षा की तरफ ले जा सकें।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में 5 राज्यों उ0प्र0, बिहार, उत्तरांचल, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल की 41 महिला किसान प्रतिभाग करेगीं जो कि बाढ प्रभावित क्षेत्र की होगीं। इस प्रशिक्षण की प्रतिभागी गांव की अग्रणी महिलाएं होंगी जो कि लिंग, टिकाऊ कृषि, खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं व समाधानों पर विभिन्न विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त करेंगी। इस प्रशिक्षण की खास विशेषता यह है कि अलग-अलग क्षेत्रों के किसानों में ज्ञान व अनुभव में सामंजस्य बनाते हुए तकनीकी ज्ञान को आगे बढ़या जा सके जिससे कि प्रशिक्षित महिला किसान अपने अनुभव को अपने क्षेत्र के किसानों में बाट सके।

इस सम्पूर्ण प्रशिक्षण को प्राप्त करने से प्रतिभागी महिलाओं को ऐसी दक्षता व संसाधन प्राप्त हो सकेंगे जिससे वे-अपने समुदाय हेतु एक परियोजना को तैयार कर सकें और इसे क्रियान्वित कर सके जैसे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु देसी फसलों का अनाज भंडारण या विविधापूर्ण फसलों का उत्पादन।आपदा के खतरों को कम कर सकें ताकि बाढ़ जैसी स्थितियों से निपटा जा सके। टिकाऊ खेती तकनीकों को कार्यान्वित कर सके।

खेती के क्षेत्र में निपुण लोगों के साथ एक साझा नेटवर्क बना सकें जिससे महिला किसानों के हित-अधिकारों पर सशक्त पैरवी हो सके। महिलाओं की कृषि क्षेत्र में स्थिति सुधारने के लिए अन्य अभियानों से उनका जुड़ाव हो सके।

विशेषज्ञ के रूप में श्री अरूधेन्दू चटर्जी कोलकाता से, सुश्री अदिती कपूर दिल्ली से, सुश्री शबनम सिद्दीकी मुम्बई से, मेलिण्डा क्रेमर कैलीफोर्निया से एवं सुश्री रंजनी कृष्ण मूर्ति चेन्नई से उपस्थित रहेगीं।

जितेन्द्र द्विवेदी

मिस्र का क्रांति के बाद का भविष्य

अजीत साही
(मौलिक रूप से वरिष्ठ पत्रकार अजीत साही ने यह लेख अंग्रेजी में लिखा है जिसका हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की गयी है, त्रुटियों के लिये क्षमा कीजियेगा-सी.एन.एस)

१९ मार्च २०११ को मिस्र की तीन-चौथाई जनता ने जनमत-संग्रह में भाग लिया जिससे कि मिस्र के संविधान में बदलाव लाया जा सके। अरब-दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा जिसने २५ जनवरी से लेकर ११ फरवरी तक ऐतिहासिक जनांदोलन देखा? अनेक युवा 'धर्म-निरपेक्ष' क्रांतिकारी जिन्होंने लाखों लोगों के साथ मिस्र में २९ साल पुरानी होस्नी मुबारक की हुकूमत को ११ फरवरी को सत्ताच्युत करने में भरपूर सहयोग दिया, उनके लिये जनमत-संग्रह में 'हाँ' एक धक्का है। इनमें से अनेक लोग इसलिये बदलाव के लिये संघर्ष कर रहे थे कि मिस्र में एकदम नया संविधान रचित किया जाए, न कि पुराने में ही बदलाव किये जाएँ।

जनमत-संग्रह से तीन दिन पहले, मिस्र की राजधानी काहिरा में मेरे निवास के दौरान बनी मेरी एक मित्र, अमीना खैरात, जो युवा 'ओपेरा' नर्तकी हैं, उन्होंने फोन पर सन्देश भेजा कि 'मिस्र की क्रांति एकदम नए संविधान के लिये थी, इसीलिए पुराने संविधान को पूरा ही हटाना होगा'। अमीना खैरात उस समय मिस्र के सुप्रीम कोर्ट के बाहर दर्जन भर से अधिक मुकदमों के नतीजे का इंतजार कर रही थीं जो जनमत-संग्रह को रोकने के लिये किये गए थे।

मिस्र के सबसे प्रमुख अंग्रेजी अखबार के अनुसार, उनके दो मुख्यधारा के राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले लोग - अरब लीग के महासचिव अमर मौस्सा और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के भूतपूर्व प्रमुख मोहम्मद एल बारादेई - दोनों ने एकदम नए संविधान की मांग का समर्थन किया था। दूसरी तरफ, पिछले ३० साल से अबतक प्रतिबंधित इस्लामिक समूह, 'मुस्लिम भाईचारा', जिसके कट्टरवादी इरादों से पश्चिम के राष्ट्र भी भयभीत रहते हैं, संविधान में संशोधन की मांग का समर्थन कर रहा था।

तो क्या जिस जनमत-संग्रह में तीन-चौथाई मिस्र के नागरिकों ने भाग लिया, उसकी 'हाँ' को धर्म-निरपेक्ष और आधुनिकतावादी लोगों के लिये धक्का ही माना जाए? क्या संशोधित संविधान, धर्म-निरपेक्ष और आधुनिकतावादी लोगों के लिये भारी पड़ेगा? क्या इसका यह मतलब होगा कि व्यवस्था में जो राजनीतिज्ञ हैं - जिनमें से अधिकाँश भ्रष्ट और भूतपूर्व सैन्य अधिकारी हैं - उनके लिये मिस्र की राजनीति और प्रशासन पर पकड़ बनाये रखना मुमकिन रहेगा?

अब हम लोग एक नजर डाल लें कि मिस्र के संविधान में क्या संशोधन प्रस्तावित हैं। कुल मिला कर ११ संशोधन प्रस्तावित हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण यह है कि राष्ट्रपति के कार्यकाल की समय-सीमा ४ साल निर्धारित हो जिसके पश्चात पुनः चुनाव होंगे और राष्ट्रपति को भी दोबारा चुनाव लड़ने दिया जाएगा। राष्ट्रपति के पद पर दो बार से अधिक कोई भी नहीं रह सकेगा - जिसका सीधा तात्पर्य यह है कि किसी भी व्यक्ति का राष्ट्रपति कार्यकाल ८ साल से अधिक हो ही नहीं सकेगा। यह बहुत बड़ा बदलाव है क्योंकि अक्टूबर १९८१ में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादत की हत्या के बाद पुराने संविधान की आड़ में होस्नी मुबारक ने लगभग ३० साल तक बिना किसी अवरोध के राज्य किया।

हालाँकि जो पात्रताएं राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के दावेदारों के लिये रखी गयीं हैं, वो ऐसी हैं कि आम मिस्र के नागरिक का यह चुनाव लड़ना असंभव सा है। अधिकाँश पात्रताएं ऐसी है कि जो लोग पहले से ही राजनीति में हैं, उनके लिये ही यह चुनाव लड़ना संभव हो सकेगा। उदाहरण के तौर पर एक पात्रता यह है कि राष्ट्रपति पद के दावेदार को संसद के सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो। नए संशोधित संविधान में यह भी प्रावधान है कि कोई भी मिस्र का नागरिक राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकती (या सकता) है यदि उसको अनेक शहरों से ३०,००० मिस्र के मतदाता नागरिकों का हस्ताक्षर के साथ समर्थन प्राप्त हों। न्यूनतम उम्र राष्ट्रपति पद के लिये ४० साल निर्धारित की गयी है जिसकी वजह से अधिकाँश मिस्र के नागरिक यूँ भी राष्ट्रपति पद का चुनाव नहीं लड़ सकते क्योंकि मिस्र की ८.५० करोड़ की जनता में से तीन-चौथाई की उम्र ३० साल से कम है। अन्य नए नियमों में से एक है जो मिस्र में राजनीतिक पार्टियाँ बनाने की अनुमति प्रदान करता हैं।

मिस्र में क्या घटित हुआ है यह समझने के लिये सबसे बेहतर तरीका संवैधानिक संशोधनों को बूझना नहीं है, बल्कि यह समझने की आवश्यकता है कि उन १८ दिनों की क्रांति के दौरान आम नागरिक की सोच पर कितना गहरा असर पड़ा है। जब २५ जनवरी २०११ को मिस्र क्रांति आरंभ हुई थी, तब की यदि आप विश्वव्यापी मीडिया में पुरानी रपट और समाचार विश्लेषण पढ़ें तो आप देखेंगे कि कोई यह मानने को ही तैयार नहीं था कि इस क्रांति से कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव आ सकेगा। परन्तु, मेरी तरह, यदि आप तहरीर चौक में होते, जो काहिरा शहर के केंद्र में है, और जिसके विशाल क्षेत्र में १८ दिन की क्रांति के दौरान लाखों लोगों ने एक नए मिस्र की धुन को ले कर डेरा डाला हुआ था, तो आपको स्वयं ही आभास हो जाता कि दुनिया की कोई भी ताकत अब मिस्र में होने वाले इस अवश्यम्भावी लोकतान्त्रिक बदलाव को नहीं रोक पायेगी।

मैं मिस्र ४ फरवरी को पहुंचा जो क्रांति आरंभ होने के बाद का दूसरा शुक्रवार था। पहले शुक्रवार को (२८ जनवरी २०११) मिस्र पुलिस ने हमला कर शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से जान से मार दिया था। मेरे मिस्र पहुँचने के दो दिन पहले भी इससे भी अधिक नृशंस घटना में घोड़े और ऊंट पर सवार सादे-कपड़ों में सैन्यबलों ने हमला बोला था जिससे कि क्रांति को कुचला जा सके। परन्तु इन सब हमलों का विपरीत प्रभाव पड़ा व क्रांतिकारी और अधिक संघर्षशील और दृढ-संकल्पी हो गए। तहरीर चौक पर, जहां मैंने कई दिन और कुछ रात भी बितायी हैं, मैं अनेक लोगों से मिला जो भोजन की तलाश में एक भूखे शेर के समान थे जिन्होंने निश्चय कर लिया था कि क्रांति के अंत तक वो अडिग रहेंगे और होस्नी मुबारक की पीठ ही देख कर दम लेंगे जब उन्हें २९ साल पुराना राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ेगा। मिस्र के इन क्रांतिकारियों और बाकी विश्व में जो अंदाजा लगाया जा रहा था, उसमें काफी अंतर था। एक ओर इन क्रांतिकारियों को पूरा विश्वास था कि होस्नी मुबारक को हटा कर ही दम लेंगे, वहीं दूसरी ओर पश्चमी विश्लेषक और सरकारें यह मानने से ही इन्कार कर रही थीं कि जिस होस्नी मुबारक ने २९ साल तक तानाशाह की तरह राज किया है, उसको हटाना मुमकिन होगा। बिडेन ने कहा था कि मुबारक 'तानाशाह' नहीं है। अमरीका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा था कि होस्नी मुबारक का राजकाल स्थिर रहा है (इन्हीं हिलेरी क्लिंटन ने बिना शर्म के मध्य-मार्च में तहरीर चौक पर क्रांति के गीत गाए)।

हम सबको, मिस्र के अलावा विश्व को, यह समझने की जरुरत है कि मिस्र का भविष्य संविधान में नहीं है। संशोधित हो या नया संविधान हो. मिस्र का भविष्य वहाँ के लोगों की नई चेतना में है जिनमें दबाये जाने का डर कई पीढ़ियों तक समाप्त हो चुका है। बीसों साल तक मिस्र के लोग सर झुकाए इस भय से आतंकित रहते थे कि कब उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए, डराया-धमकाया जाए, जेल भेज दिया जाए या अन्य प्रताड़नाओं का सामना करना पड़े। आपातकालीन कानून जो मुबारक ने १९८१ में पद सँभालते ही बनाया था, वे अब जा कर समाप्ति की ओर है। इन २९ सालों में यदि ५ लोग एक साथ सड़क पर पैदल जाते दिख जाते थे, तो खतरा मंडराता था कि उन्हें गैर-कानूनी सभा के जुर्म में गिरफ्तार किया जा सकता है।

अब और नहीं. 'हमें तहरीर चौक का रास्ता पता चल गया है' कहना है अशरफ तमन्ज का, जो ३० वर्षीय भूतपूर्व राष्ट्रीय दर्जे के बास्केटबाल खिलाड़ी हैं और वर्तमान में क्रांतिकारी, जिनसे मेरा संवाद मुबारक हुकूमत के विस्थापन के बाद हुआ।

यह तो निश्चित है कि लोकतंत्र की राह पथरीली होती है और मिस्र की क्रांतिकारी सभाओं में संख्या और बढ़ेगी। सालों-साल तक, मुबारक की हुकूमत से भी पहले से पश्चिमी ताकतों ने, खासकर तेल के लिये, पश्चिम एशिया के देशों पर नियंत्रण रखा है। मिस्र के सन्दर्भ में अमरीका विशेष परेशान है क्योंकि उसको यह डर है कि मिस्र में पहले से अधिक लोकतान्त्रिक और राष्ट्रवादी सरकार आएगी वो उत्तर में रेड और 'मेडीटेरिनियन' समुद्र को जोड़ने वाली 'सुएज कैनाल' पर अधिक नियंत्रण रखेगी, जो दक्षिण में यूरोप का प्रवेश बिंदु है। उत्तरी अमरीका एवं यूरोप के देशों ने 'सुएज कैनाल' का इस्तेमाल कर के सैंकड़ों बिलियन डालर बचाए हैं, वर्ना उन्हें पूरे अफ्रीका का चक्कर लगा कर जाना पड़ता। उसी तरह से अमरीका और उसके दबदबे में आने वाले पश्चिम एशिया के देश जैसे कि इजराइल को भी डर है कि मिस्र में कहीं राष्ट्रवादी और अधिक-स्वतंत्र सरकार न स्थापित हो जाए। ३० साल से मिस्र ने, अरब दुनिया के अन्य राष्ट्रों को निराश कर, अमरीका और इजराइल के हितों की पूर्ति की है। अरब देशों को यह तक लगता है कि मिस्र ने फिलीस्तीन के मामले में धोखा दिया है।

यह नासमझी ही होगी यदि हम यह मान लें कि अमरीका-इजराइल और यूरोप यूँ ही हार मान कर बैठ जायेंगे। आप देखिये कि वें लीबिया में क्या कर रहे हैं - पहले 'क्रांतिकारियों' को अस्त्र-शास्त्र दिए और फिर ऐसी स्थिति पैदा की कि उनको सैन्य हस्तक्षेप करने का मौका मिला जिससे कि मिस्र के पश्चिम पड़ोसी राज्य (लीबिया) पर नियंत्रण रह सके जिसके पास काफी मात्र में तेल है और यूरोपी देशों, विशेषकर इटली के लिये, वो एक प्रमुख पेट्रोल आपूर्तिकर्ता हैं। यह तो बिलकुल साफ है कि अमरीका और यूरोप दोनों ही मिस्र के कामकाज में हस्तक्षेप करते रहेंगे।

दुनिया को, विशेषकर कि पश्चिम राष्ट्रों को, यह साफ समझ लेना चाहिए कि मिस्र में खेल के नियम अब हमेशा के लिये बदल गए हैं। जैसा कि तमन्ज ने कहा, ‘हमें तहरीर चौक का रास्ता पता चल गया है’। जन शक्ति अब हमेशा मिस्र की सरकार पर निगरानी रखेगी। इसीलिए मिस्र के बाहर व्याप्त खौफ, कि कहीं सैन्य शक्ति उभर कर न आ जाए, के बावजूद, सैन्य शक्तियां ऐसा कुछ भी करने में असफल रहीं और अब चुनाव करवा के लोगों के हाथ में ही हुकूमत देने को हैं। लोकतंत्र एक रात में नहीं कायम हो जाता, और निःसंदेह १८ दिन की क्रांति में तो यह संभव नहीं है। परन्तु, मैं अब और भी अधिक विश्वास के साथ कह सकता हूँ, कि जो हमने १८ दिनों में देखा है वो आने वाले २० साल की क्रांति की शुरुआत है।

मैंने अपने पड़ाव के दौरान काहिरा में अनेक लोगों से बात की और पाया कि लोकतंत्र से उनको क्या हासिल होगा इसकी लोगों में बहुत ही कम समझ है। लगभग सभी लोगों को पूरा यकीन था कि जैसे ही चुनाव हो जायेंगे, और राष्ट्रवादी सरकार केंद्र में आ जाएगी, सब ठीक हो जायेगा। एक मिस्र नागरिक ने यह तक मुझसे कहा कि 'हम आपके भारत जैसा बनना चाहते हैं'। मैंने तुरंत जवाब दिया, 'मैं मनाता हूँ कि ऐसा न हो!'. पर यह पाठ तो मिस्र के लोगों को स्वयं ही सीखना पड़ेगा जिसके लिये वो अपना समय लेंगे, और अधिक कुरबानी देंगे, काफी संघर्ष करेंगे जिससे कि जनवरी २०११ की क्रांति का फल आने वाले सालों में एक नीव बन सके।

और इसके लिये, आज और आने वाले कल में, उनको कोई भी नहीं रोक सकेगा।

अजीत साही

(मौलिक रूप से वरिष्ठ पत्रकार अजीत साही ने यह लेख अंग्रेजी में लिखा है जिसका हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की गयी है, त्रुटियों के लिये क्षमा कीजियेगा-सी.एन.एस)

"युवाओं को तम्बाकू सेवन से दूर रहना चाहिए": प्रो० रमा कान्त

[English] अधिकांश तम्बाकू सेवन 18 वर्ष से पहले ही आरम्भ होता है। इसीलिए बच्चों एवं युवाओं को तम्बाकू जनित जानलेवा रोगों एवं व्याधियों के बारे में जानकारी देना अनिवार्य है जिससे कि वें ज़िन्दगी चुनें, तम्बाकू नहीं. एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इण्डिया के 2012 निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त ने मुंशीपुलिया, इन्दिरा नगर स्थित एस०जे०एस० पब्लिक स्कूल के छात्रों-शिक्षकों को यही मूल सन्देश दिया. प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त, छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष हैं।

प्रो० डॉ० रमा कान्त, जो नागरिकों के स्वस्थ लखनऊ अभियान के संरक्षक हैं, वें भारत के पहले सर्जन हैं जिनको वर्ष 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक का विशेष अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला है।


एस०जे०एस० पब्लिक स्कूल की प्राधानाचार्या सुश्री अफशान ने कहा कि "मैं अपने शैक्षिक संस्थान परिसर को तम्बाकू मुक्त रखने का पूरा प्रयास करती हूँ। बच्चों और युवाओं को तम्बाकू से दूर रहना चाहिए क्योंकि यह धीमा जहर है।"


प्रो० डॉ० रमा कान्त जो वर्तमान में 'पाइल्स टू स्माइल्स' क्लीनिक के निदेशक हैं, उन्होंने कहा कि "बच्चों एवं युवाओं में तम्बाकू नियंत्रण करना व्यापक तम्बाकू नियंत्रण योजना का एक अहम भाग है"।


प्रो डॉ० रमा कान्त ने कहा कि "भारत में तम्बाकू से हर वर्ष 10 लाख से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं। बच्चों और युवाओं को तम्बाकू कम्पनियों के प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष भ्रामक प्रचार से दूर रहना चाहिए और उससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। उनको तम्बाकू सेवन की असली तस्वीर जो जानलेवा बीमारियों से जुड़ी है उससे परिचित होना चाहिए जिससे कि वें ज़िन्दगी चुनें, तम्बाकू नहीं"।


प्रो० डॉ० रमा कान्त जिनको केन्द्रिय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का अनुशंसा पुरूस्कार भी 1997 में मिल चुका है उन्होंने कहा कि "लगभग आधी तम्बाकू जनित मृत्यु 35-69 वर्ष के दौरान होती है। धूम्रपान से अधिकांश मरने वाले लोगों ने तम्बाकू सेवन युवावस्था में आरम्भ किया था। 30-40 साल के लोग जो तम्बाकू सेवन करते हैं, उनको हृदय रोग होने का पॉंच गुणा अधिक खतरा रहता है। तम्बाकू जनित हृदय रोग एवं कैंसर तम्बाकू व्यसनियों की मौत का सबसे बड़ा कारण है"।

 इस अवसर पर छात्रों के लिए एक वृत्तचित्र 'तम्बाकू सेवन से होने वाले नुकसान' भी प्रदर्शित किया गया जिसमें तम्बाकू के जानलेवा रोगों से ग्रसित लोगों की दास्तान है।


इस परिचर्चा को नागरिकों के स्वस्थ लखनऊ अभियान, इण्डियन सोसायटी अगेंस्ट स्मोकिंग, अभिनव भारत फाउंडेशन एवं आशा परिवार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था


सी.एन.एस.

जब लाख लोग सड़क पर उतरे, असम सरकार ने अखिल गोगोई को किया रिहा

[English] असम में जब अखिल गोगोई की रिहाई मांगते हुए लगभग लाख लोग सड़क पर उतर आये, असम सरकार को अखिल गोगोई को रिहा करना पड़ा. असम सरकार ने अखिल गोगोई और १०० अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया था जब वें गुवाहटी में जन लोकपल बिल की मांग को और अन्ना हजारे के देश-व्यापी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन के समर्थन को लेकर प्रेस वार्ता संबोधित कर रहे थे. अखिल गोगोई, कृषक मुक्ति संग्राम समिति का नेत्रित्व कर रहे हैं और कर्मठ सूचना-का-अधिकार (RTI) कार्यकर्ता भी हैं.

असम सरकार ने उनको १०० अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया था जिनमें ५० महिलाएं भी थीं. चंद घंटों में ही लाख लोग सड़क पर उतर आये और अखिल गोगोई और अन्य की रिहाई की मांग का दबाव बढ़ता ही गया. अंतत: सरकार ने उनको रिहा कर दिया.

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने असम सरकार द्वारा लोकतान्त्रिक तरीके से अहिंसक आन्दोलन को दबाने के इस अवांछनीय कृत की आलोचना की है.

रोमा

विश्व स्वास्थ्य दिवस, ७ अप्रैल २०११

लखनऊ में खुली दवाओं का बिना-डाक्टरी पर्चे के अनियंत्रित विक्रय, दवाओं का ज्ञान रहित और अनुचित उपयोग, दवाओं को पूरी अवधि तक न लेना, आदि कुछ  मुद्दे हैं जो हम सब विश्व स्वास्थ्य दिवस पर उठाना  चाहते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस इस केंद्रीय विचार पर मनाया है: यदि आज कोई कदम नहीं उठाया गया, तो कल कोई इलाज न रहेगा (Antimicrobial resistance: no action today, no cure tomorrow).

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त प्रोफेसर डॉ रमा कान्त का कहना है कि "विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अगर यूँ ही दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता बढती रही, तो दवाएं बेइलाज हो जाएँगी. अनेक बीमारियों और अवस्थाओं के लिये इलाज के विकल्प सीमित होते जा रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दवा प्रतिरोधकता कोई नयी समस्या नहीं है, बल्कि पुरानी समस्या है जो अब अधिक विकराल रूप ले रही है, और यदि पर्याप्त कदम न उठाये गए तो हम लोग उस युग में पहुँच जायेंगे जब एंटी-बायोटिक दवाओं का आविष्कार ही नहीं हुआ था.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हम इस युग में रह रहे हैं जहां अक्सर दवाओं की वजह से उन बीमारियों और अवस्थाओं का इलाज मुमकिन है जो पहले घातक थीं. यदि दवा प्रतिरोधकता हो जाती है, तो ये जीवन बचाने वाली दवाएं कारगर नहीं रहती".

उदाहरण के तौर पर तपेदिक या टी.बी. में दवा प्रतिरोधकता सबसे अधिक चुनौती दे रही है जहां लगभग ५ लाख लोग दवा प्रतिरोधक तपेदिक या टी.बी. के शिकार हैं. इनमें से ५० प्रतिशत की मृत्यु हो जाती है, जिससे बचाव तभी मुमकिन है यदि तपेदिक की जांच और इलाज समय से कराया जाय..

स्वस्थ्य लखनऊ के लिये नागरिक, आशा परिवार, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, अभिनव भारत फाउनडेशन, इंडियन सोसाइटी अगैंस्ट स्मोकिंग

रामरती को मिला सी0आई0आई0 आदर्श महिला अवार्ड 2011

गोरखपुर एनवायरन्मेन्टल एक्शन ग्रुप से पिछले 15 वर्षो से जुड़कर स्थायी कृषि के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी कैम्पियरगंज के सरपतहा गांव की 50 वर्षीय महिला किसान श्रीमती रामरती को लघु उद्दम एवं स्थायी कृषि के क्षेत्र में किये गये इनके विशेष योगदान पर Confederation of Indian Industry(CII) ने राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार "सी0आई0आई0 आदर्श महिला अवार्ड २०११" से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। यह पुरस्कार आगामी 8-9 अप्रैल 2011 को दिल्ली में आयोजित सी0आई0आई0 के राष्ट्रीय सम्मेलन में दिया जायेगा। पुरस्कार राशि के रूप में इनको एक लाख रूपया मिलेगा। सी0आई0आई0 1895 से सामाजिक मुद्दों पर काम कर रही है। 2005 से सी0आई0आई0 सम्पूर्ण भारत में महिला सशक्तीकरण पर काम करने वाली ग्रामीण महिलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर तीन क्षेत्रों-- शिक्षा एवं साक्षरता, स्वास्थ्य और लद्यु उद्दम-- में  विशेष योगदान हेतु यह पुरस्कार देती आ रही हैं। इस पुरस्कार के लिए पूरे भारत वर्ष से हजारों की संख्या में आवेदन आये थे, लेकिन श्रीमती रामरती द्वारा ग्रामीण स्तर पर अपने सीमित संसाधनों में स्थायी कृषि एवं लघु उद्दम के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास बाकी के सभी आवेदको के प्रयासो से ज्यादा बेहतर पाये गए। रामरती यह पुरस्कार पाने वाली 0प्र0 की पहली महिला किसान है

रामरती के 11 सदस्यी परिवार में इनके पति, तीन बेटे, दो बहुएं एवं 5 नाती है। रामरती के जीवन पर दृष्टिपात करे तो स्पष्ट होता है कि इनका जीवन काफी मुश्किलों से भरा था. खेती करना तो दूर बीज डालने भर का भी पैसा नही हुआ करता था। अपनी आजीविका चलाने के लिए दूसरे के खेतों में मजदूरी करती थी। लगभग 15 वर्ष पूर्व जी0ई0ए0जी0 द्वारा सरपतहा गांव में गठित 'स्वयं सहायता समूह' के माध्यम से इनका जुड़ाव इस  संस्था से हुआ। खेती से इनका लगाव हमेशा से रहा है. लिहाजा अपनी खेती के प्रति रूचि के चलते जल्दी ही ये चयनित किसान के रूप में संस्था द्वारा चुन ली गयी। जी0ई0ए0जी0 द्वारा  समय-समय पर प्राप्त तकनीकी सहयोग एवं प्रेरणा और अपने स्वयं के ज्ञान व कौशल को जोड़ते हुए बहुत कम समय में इन्होंने अपने आप को एक सफल किसान के रूप में स्थापित कर दिया। घर/परिवार,  एवं खेत खलिहान के बेहतर सामंजस्य, और समय एवं स्थान के बेहतर प्रबन्धन ने उन्हें छोटे से खेत के टुकडे में भी बेहतर आजीविका के साधन उपलब्ध कराये। वे एक ही खेत में एक साथ कई फसलें उगाने का कौशल जानती है। पढ़ी लिखी नहीं हैं लेकिन नामचीन कृषि वैज्ञानिकों को खेती किसानी के अपने ज्ञान से हत प्रभ कर दिया है।

वे संसाधन की मार, मौसम की अनियमितता, लोगों के कटाक्ष से बेपरवाह आगे बढ़ती गयी। अपनी एक एकड़ जमीन में अपनी पूरी दुनिया सजा ली। आज इनके पास सब कुछ है-- पक्का घर, खेती में काम आने वाले औजार, सिंचाई का पम्प सेट। प्रगतिशील किसानों में उनकी गिनती होती है। रामरती का खेत जैव विविधता का पार्क लगता है। ये साल में 32 से अधिक फसलें उगाती है। रामरती के पास कुल एक एकड़ की खेती है जो पूर्ण रूप से जैविक है। वे अपने चार अदद दुधारू जानवरों के गोबर,बगीचे के पत्तों और सब्जियों के अपशिष्ट से जैविक खाद बनाती है। तम्बाकू, लहसुन आदि से कीटनाशक बनाती है। रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग उन्होंने वर्षो पहले छोड़ दिया।

इन्होंने विभिन्न लद्यु उद्योगों जैसे मोमबत्ती और अगरबत्ती बनाना, सब्जी एवं मसाले की खेती, बीज उत्पादन इत्यादि से अपनी आजीविका के विभिन्न विकल्प तो तैयार किये ही, साथ ही अन्य लोगों को भी इसके लिये प्रेरित किया।

आज रामरती अष्टभुजी स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष एवं कृषि सेवा केन्द्र एवं किसान विद्यालय की संचालिका हैं. इसके साथ ही ये एक मास्टर ट्रेनर भी हैं। वह छोटी जोत वाले किसानों को कम लागत और कम संसाधन में लाभकारी खेती के गुर सिखाती है।

जितेन्द्र द्विवेदी
(लेखक, उत्तर प्रदेश में कृषि मुद्दों पर विशेष रूप से लिखते रहे हैं और स्वतंत्र पत्रकार हैं। ईमेल: jitendraabf@gmail.com, फोन: 9415790126)