यह स्वच्छ्ता का मामला है, केवल आराम का नहीं

रितेश कुमार त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
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यह देश के लिए बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि आज़ादी के लगभग ७ दशक बीत जाने के बाद भी हम माहवारी स्वच्छ्ता के मुद्दे पर खुल कर बात नहीं कर सकते, जिससे महिलाएं और किशोरियां विभिन्न प्रकार के संक्रमण का शिकार हो रही हैं. इसके बारे में जानना चाहिए और इस समस्या के समाधान में आ रही दिक्कतों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. उत्तर प्रदेश में वर्त्तमान समय में लगभग २८ लाख किशोरियां केवल इस समस्या के कारण ही स्कूल छोड़ रही हैं. उत्तर प्रदेश जनसंख्या के लिहाज से बड़ा राज्य है। यहाँ पर मासिक स्राव से संबन्धित स्वच्छता के बारे में जागरूकता का नितांत अभाव है।

मासिक धर्म: स्वच्छता बनाम स्वस्थता

विकास द्विवेदी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस 
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यूनीसेफ का आंकड़ा है कि उत्तर प्रदेश में ८५% महिलाएं मासिक चक्र के समय पुराना अथवा गंदा कपड़ा इस्तेमाल करती हैं जिसके कारण उन्हें विभिन्न प्रकार की बीमारियों/संक्रमण का सामना करना पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया समाचार पत्र की एक खबर के अनुसार उत्तर-प्रदेश सरकार २०१७ तक १००% माहवारी स्वच्छता को हासिल करेगी।

मासिक धर्म स्वच्छता का लड़कियों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर प्रभाव

मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस 
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आँकड़े बताते हैं कि मासिक धर्म स्वच्छता का सीधा सम्बन्ध न केवल किशोरियों के स्वास्थ्य वरन उनकी शिक्षा से भी है। इस प्रक्रिया के दौरान साफ़ सफाई न रखने के कारण अनेक प्रकार के संक्रमण  बीमारियाँ  होने का खतरा बना रहता है, जो कभी कभी जानलेवा भी हो सकता है। यूनीसेफ के एक सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में ८५% किशोरियां माहवारी के दौरान फटे पुराने कपड़ों का प्रयोग कर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती हैं। और उत्तर  प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की माने तो प्रदेश में हर साल २८ लाख।

युवा स्वर: मासिक धर्म सम्बंधित स्वच्छता के लिए आवश्यक है किशोरियों और महिलाओं का सशक्तिकरण

स्वास्थ्य सेवाओं में एचआईवी के साथ जी रहे लोगों के साथ भेदभाव क्यों?

प्रभजोत कौर, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस 
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डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों को तो भगवान का स्वरुप माना जाता है  परन्तु जब ये भगवान के स्वरूप एच आई वी मरीज़ों को  हीनभावना से देखते हैं तो मनुष्यता पर से  विश्वास ही उठने लगता है  यह तो हम सभी जानते हैं कि एच आई वी से ग्रसित होने पर भी  दवाओं की मदद से एक सामान्य ज़िन्दगी जी जा सकती है  परन्तु समाज एवं डॉक्टर की प्रताड़ना को झेलना बहुत ही कठिन है. यह बात मैं अपने निजी जीवन के अनुभवों के आधार पर कह रही हूँ।

सरकारी अधिकारियों/ जन-प्रतिनिधियों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़े

[English] इलाहबाद हाई कोर्ट ने १८ अगस्त २०१५ को सरकारी स्कूल की खस्ता हालत पर ध्यान देते हुए उत्तर प्रदेश मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि सरकारी अधिकारियों/ सरकार से वेतन प्राप्त करने वाले लोग और जो जन प्रतिनिधि हैं या न्यायलय से जुड़े हैं उनके बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूल ही जाना पड़े. तब ही वे सरकारी स्कूल की गुणात्मकता बढ़ाने के बारे में संगीन होंगे.

मासिक धर्म शर्मसार होने की घटना नहीं, बल्कि स्वस्थ होने का प्राकृतिक संकेत है

शोभा शुक्ला, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
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[English] यूपी स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रदेश में २८ लाख किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल जाने में नागा करती हैं. मासिक धर्म सम्बन्धी अस्वच्छता से अनेक संक्रमण, सूजन, मासिक धर्म सम्बन्धी ऐठन, और योनिक रिसाव आदि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी आती हैं. मासिक धर्म एक किशोरी या महिला के लिए प्राकृतिक स्वस्थ होने का संकेत है, न कि शर्मसार या डरने या घबड़ाने वाली कोई 'घटना'. सर्वे के अनुसार ८५% किशोरियां पुराने कपड़ों को ही मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल करती हैं.

युवा स्वर: युवा और एचआईवी एवं टीबी, पर प्रभ्ज्योत कौर की आवाज़


मासिक धर्म के प्रति अपराधबोध क्यों?

नीतू यादव, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस 
मासिक धर्म महिलाओं की प्रजनन क्षमता से सम्बंधित एक प्राक्रतिक प्रक्रिया है तथा उनके शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. प्रत्येक किशोरी को इस नियमित प्रक्रिया के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का न केवल अधिकार वरन आवश्यकता भी है। परन्तु यह खेद का विषय है कि आज के आधुनिक युग में भी भारत वर्ष, विशेषकर उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े प्रांत, में इस महत्त्व पूर्ण विषय पर कोई भी बातचीत करना बहुत ही शर्मनाक माना जाता है।