महात्मा गाँधी को प्रतीकात्मक ही नहीं बल्कि धरातल पर उतारना है ज़रूरी: मेधा पाटकर

[English] यूँ तो महात्मा गाँधी प्रतीकात्मक रूप में, हर कार्यालय और किताब में हैं पर उनको धरातल पर उतारना बहुत ज़रूरी हो गया है. यह कहना है वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का, जो गाँधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में शिरोधार्य कर, सामाजिक न्याय सम्बंधित आन्दोलन और सत्याग्रह के लिए समर्पित रही हैं. महात्मा गाँधी के 150वीं जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में, 26 सितम्बर से 2 अक्टूबर 2020 तक, द पब्लिक इंडिया द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में मेधा पाटकर भी एक विशिष्ठ वक्ता थीं.

उम्र की डगर पर बेझिझक चल कर तो देखो, ज़िन्दगी ज़रा जी कर तो देखो

अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग की पंक्तियाँ "ग्रो ओल्ड अलौंग विथ मी, दी बेस्ट इस येट टू बी" (जीवन का सफ़र संग तय करो, अभी सर्वोत्तम शेष है) कितनी सारगर्भित हैं। कदाचित इसी आशा को पूर्णता प्रदान करने के लिए प्रत्येक वर्ष १ अक्टूबर को इंटरनेशनल डे ऑफ़ ओल्डर पीपुल (अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस) मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य है वरिष्ठ नागरिकों के प्रति संवेदनशीलता पैदा करना. वर्ष २०२० में इस दिवस की ३०वीं वर्षगाँठ है। 

अनचाहे गर्भ का खतरा कम करता है आपातकालीन गर्भनिरोधक

आज के आधुनिक युग में भी परिवार नियोजन और सुरक्षित यौन संबंध की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर ही अधिक है। इसके बावजूद भारत समेत एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के कुछ अन्य देशों की अनेक महिलाओं को, आधुनिक गर्भ निरोधक साधन मिल ही नहीं पाते. जिन महिलाओं के लिए आधुनिक गर्भ निरोधक साधन उपलब्ध हैं, और उन्हें मिल सकते हैं, उन्हें भी कई बार अनेक कारणों से अनचाहा गर्भ धारण करना पड़ता है - जैसे गर्भनिरोधक की
विफलता, गर्भनिरोधक गोलियां लेने में चूक हो जाना या फिर अपनी मर्जी के खिलाफ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाना। ऐसी महिलाओं के लिए "आपातकालीन गर्भनिरोधक" (इमरजेंसी कंट्रासेप्शन) एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है जो गर्भावस्था के ज़ोखिम को कम करता है।