एड्स को भारत में हुए ३० साल: उत्तर प्रदेश में एड्स नियंत्रण में सफलताएँ परन्तु चुनौतियाँ बरक़रार

[English] ३० साल पहले १९८५ में भारत में जब पहले एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति की जांच पक्की हुई, तब चंद चिकित्सकों में जो सर्वप्रथम आगे आये और एचआईवी पोसिटिव लोगों की देखभाल आरंभ की, वो थे डॉ इश्वर गिलाडा, अध्यक्ष, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई).डॉ गिलाडा लखनऊ में १५ दिसम्बर को संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में हुए सेमिनार 'भारत में एड्स को हुए ३० साल: सफलताएँ पर चुनौतियाँ बरकरार' में मुख्य वक्ता थे. यह सेमिनार, एसजीपीजीआई के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट, एएसआई, पीपल्स हेल्थ आर्गेनाइजेशन और सीएनएस द्वारा एसजीपीजीआई में आयोजित किया गया था.

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए वैश्विक सतत विकास लक्ष्य २०३० के क्या मायने हैं?

बाबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
भारत सरकार ने २ माह पहले दुनिया की अन्य सरकारों के साथ, संयुक्त राष्ट्र की ७०वीं महासभा में वैश्विक सतत विकास लक्ष्य २०३० को पारित तो कर दिया, पर क्या हम इन लक्ष्यों की ओर तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं या पीछे जा रहे हैं? उदहारण के तौर पर, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में मातृत्व मृत्यु दर ९२ प्रति १००,००० जीवित-शिशु जन्म है. वैश्विक सतत विकास लक्ष्य ३.१ के अनुसार २०३० तक मातृत्व मृत्यु दर ७० प्रति १००,००० जीवित शिशु जन्म से कम होना है।

विश्व एड्स दिवस पर विशेष: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एड्स नियंत्रण में प्रगति, पर चुनौतियाँ बरकरार

बाबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज सर्विस (सीएनएस)
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना प्रदेशों में देश केअन्य सभी प्रदेशों की तुलना में, सबसे अधिक एचआईवीके साथ जीवित लोग हैं, १.७ लाख. भारत में कुल नए एचआईवी संक्रमण में से आधे ४ प्रदेशों में होते हैं: आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तामिल नाडू और कर्नाटक।