तम्बाकू के 'सादे पैकेट' पर चित्रमय चेतावनी क्यों है अधिक प्रभावकारी?

सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम 2003 के तहत तम्बाकू उत्पाद के पैकेट पर, चित्रमय चेतावनी 1 जून 2009 से भारत में लागू हो पायी. पर इतना पर्याप्त नहीं है क्योंकि तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगाये बिना असामयिक मृत्यु दर कम हो नहीं सकता. अब भारत को जन स्वास्थ्य के लिए, एक बड़ा कदम लेने की जरुरत है जो अनेक देशों में लागू है और तम्बाकू नियंत्रण में कारगर सिद्ध हुआ है: 'प्लेन पैकेजिंग' या सादे तम्बाकू पैकेट पर अधिक प्रभावकारी और बड़ी चित्रमय चेतावनी की नीति अब भारत में भी पारित होनी चाहिए.

बिना स्वस्थ पर्यावरण के स्वस्थ इंसान कहाँ?

स्वास्थ्य से जुड़े लोग अक्सर पर्यावरण को महत्व नहीं देते और पर्यावरण से जुड़े लोग स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर कम बात करते हैं। ज़मीनी हक़ीक़त तो यह है कि बिना स्वस्थ पर्यावरण के, इंसान समेत जीवन के सभी रूप, स्वस्थ रह ही नहीं सकते। जीवन से जीवन पोषित होता है. सरकारों ने सतत विकास लक्ष्यों का वादा तो किया है जिनमें स्वास्थ्य, पर्यावरण, लिंग जनित समानता, शहरी ग्रामीण सतत विकास, आदि सभी मुद्दों को एक दूजे पर अंतरंग रूप से निर्भर माना गया है पर सही मायनों में जिस विकास मॉडल के पीछे हम भाग रहे हैं वो हमारे पर्यावरण का विध्वंस कर रहा है और जीवन को अस्वस्थ।

तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगाये बिना सतत विकास मुमकिन नहीं

[विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 2017 वेबिनार रिकॉर्डिंग | पॉडकास्ट] हालाँकि सरकार ने 2030 तक हर इंसान के लिए सतत विकास का सपना पूरा करने का वादा तो किया है पर तम्बाकू महामारी के कारणवश, अनेक विकास मानकों पर प्रगति उल्टी दिशा में जा रही है. जानलेवा गैर-संक्रामक रोग (ह्रदय रोग, पक्षाघात, कैंसर, दीर्घकालिक श्वास रोग, आदि) से मृत्यु का एक बड़ा कारण है: तम्बाकू. तम्बाकू के कारण गरीबी, भूख, पर्यावरण को नुक्सान, अर्थ-व्यवस्था को क्षति, आदि भी हमको झेलने पड़ते हैं.