सभ्य समाज में लैंगिक और यौनिक हिंसा कैसे?

अनेक देशों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के चलते उत्पन्न गहरी लैंगिक असमानताएं तथा भेदभाव पूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाएँ हैं और इस क्षेत्र में लैंगिक और यौनिक हिंसा की व्यापकता भी जारी है।

कोविड-19 महामारी पर विराम लगाने के लिए स्थानीय नेतृत्व ज़रूरी

कोविड-19 महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक हर व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं होगी तब तक कोई भी संक्रमण-मुक्त नहीं हो सकता, भले ही वह सबसे अमीर या बड़े ओहदे पर आसीन व्यक्ति ही क्यों न हो. इस बात में भी कोई संशय नहीं रह गया कि मज़बूत अर्थव्यवस्था के लिए मज़बूत स्वास्थ्य सुरक्षा अत्यंत आवश्यक है. 11 महीने पहले कोरोना वायरस का पहला संक्रमण वुहान में रिपोर्ट हुआ था। आज विश्व भर में 7.2 करोड़ व्यक्ति इससे संक्रमित हो चुके हैं.

120 माह शेष: क्या हम 2030 तक एड्स-मुक्त हो पाएँगें?

कोविड महामारी से एक सीख स्पष्ट है कि स्वास्थ्य सुरक्षा न सिर्फ अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी है, बल्कि 'सबका साथ सबका विकास' के स्वप्न को पूरा करने के लिए भी. महामारी नियंत्रण जब प्राथमिकता बना तो अनेक गैर-कोविड स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं जिनमें से एक है एड्स नियंत्रण.

क्या विकलांगता केवल शारीरिक ही होती है?

अक्सर हमारी विकलांग सोच ही शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के जीवन को कठिन बना देती है। वे अपनी शारीरिक अक्षमता को तो किसी हद तक झेल लेते हैं, परन्तु उसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव से जूझ पाना आसान नहीं होता।

शादी कोई गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं है

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में ६५ करोड़ महिलाओं और लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दी जाती है। इनमें से एक तिहाई से अधिक भारत में हैं जो बाकी सब देशों से अधिक है। बाल विवाह पर कानूनी प्रतिबंध होने के बावजूद भारत में २२.३ करोड़ ऐसी महिलाएं हैं जिनका विवाह १८ वर्ष की आयु से पूर्व हो गया था। २७% लड़कियों की शादी उनके १८ वें जन्मदिन के पहले हो जाती हैं और ७% की १५ साल की उम्र से पहले। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली लड़कियों के लिए बाल विवाह का खतरा अधिक होता है। इस कुरीति का सबसे बड़ा कारण है सामाजिक असमानता, शिक्षा का अभाव, गरीबी और असुरक्षा।

[विडियो] महिला सशक्तिकरण से ज्यादा ज़रूरी है पुरुष संवेदनशील बनें

महिला सशक्तिकरण से ज्यादा ज़रूरी है पुरुष संवेदनशील बनें

अमरीका के सर्वोच्च नयायालय की न्यायाधीश रुथ बेदर जिन्स्बर्ग (जिनका पिछले माह देहांत हो गया था) ने अनेक साल पहले बड़ी महत्वपूर्ण बात कही थी: "मैं महिलाओं के लिए कोई एहसान नहीं मांग रही. मैं पुरुषों से सिर्फ इतना कह रही हूँ कि वह अपने पैर हमारी गर्दन से हटायें" ("I ask no favour for my sex. All I ask of our brethren is that they take their feet off our necks"). लखनऊ के डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में, मिशन-शक्ति और स्तन कैंसर जागरूकता माह के आयोजन सत्र में यह साझा कर रही थीं शोभा शुक्ला, जो लोरेटो कान्वेंट कॉलेज की पूर्व वरिष्ठ शिक्षिका, महिला अधिकार कार्यकर्ता एवं सीएनएस की संस्थापिका हैं. डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की डॉ अनामिका ने तनवीर गाज़ी की पंक्तिया "तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है" साझा करते हुए, विशेषकर महिलाओं को प्रोत्साहित किया.

आपदा से निबटने की तैयारी और महिला स्वास्थ्य सुरक्षा में है सीधा संबंध

पिछले एक दशक में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित और विस्थापित लोगों की संख्या दोगुनी हो गई है और निरंतर बढ़ रही है। आपदाओं के जोखिम व उनसे होने वाले नुकसान का एक मुख्य कारण है जलवायु संकट। साथ ही सशस्त्र संघर्षों की वजह से भी लोग सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपने घर छोड़ कर विस्थापित होने को मजबूर हो रहे हैं। जलवायु संकट से होने वाली भीषण गर्मी और अनावृष्टि ने भी आपदा सम्बन्धी आर्थिक नुक़सान में बढ़ोतरी की है।

[विडियो] सांप्रदायिक और जातीय आधार पर राजनीति बंद हो | समाज में सांप्रदायिक सद्भावना और शांति रहे

सांप्रदायिक और जातीय आधार पर राजनीति बंद हो | समाज में सांप्रदायिक सद्भावना और शांति रहे


8-दिन-उपवास क्रम का समापन दिवस | हाथरस से डॉ संदीप पाण्डेय का सन्देश
 
अनेक जन-मुद्दों पर,सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने लखनऊ में 8 दिन का उपवास क्रम अभियान आयोजित किया था (2-9 अक्टूबर 2020). यह उपवास सुबह से शाम तक रोजाना रहा और हर दिन लोगों से जुड़ें मुद्दे को उठाया गया. आज उपवास के अंतिम दिन, सांप्रदायिक सद्भावना का मुद्दा केंद्र बिंदु में रहा.

चैतरफा पड़ोसियों के साथ संबंध संकट में


प्रधान मंत्री ने अपने शुरुआती दिनों में खूब विदेश यात्राएं की। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे विदेश मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाले हुए हैं जबकि वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्चराज पूर्णकालिक विदेश मंत्री थीं। नरेन्द्र मोदी के समर्थकों ने कहना शुरु कर दिया कि प्रधान मंत्री की इन यात्राओं से दुनिया में भारत की साख बढ़ गई है। चीन, जापान, अमरीका जैसे बड़े देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ व्यक्तिगत सम्बंध भी उन्होंने प्रगाढ़ करने की कोशिश की। उनकी सबसे पहली विदेश यात्रा नेपाल की थी यह मानकर कि हिंदू बहुल देश को भारत विशेष महत्व देगा।

[विडियो] "चैतरफा पड़ोसियों के साथ संबंध संकट में", कहना है मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित डॉ संदीप पाण्डेय का

महिला स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए ज़रूरी है आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समानता

भारत समेत एशिया पैसिफिक क्षेत्र के अनेक देशों की अधिकांश महिलाओं के लिए प्रजनन न्याय (रिप्रोडक्टिव जस्टिस) तक पहुँच एक स्वप्न मात्र ही है। प्रजनन न्याय का अर्थ है व्यक्तिगत शारीरिक स्वायत्तता बनाए रखने का मानवीय अधिकार; यह चुनने और तय करने का अधिकार कि महिला को बच्चे चाहिए अथवा नहीं चाहिए; और इस बात का सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक अधिकार कि बच्चों का लालन पालन एक सुरक्षित वातावरण में किया जा सके।

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल का फैसला लागू करो

कोरोना काल में निजी विद्यालयों की मनमानी और बढ़ गई है। वे आनलाइन कक्षाओं के नाम पर औपचारिकता पूरी कर बच्चों के अभिभावकों से पूरा शुल्क वसूल रहे हैं। आनलाइन कक्षाओं का यह हाल है कि गरीब परिवारों से जिन बच्चों का दाखिला शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 में मुफ्त शिक्षा हेतु निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत स्थान जो गरीब बच्चों के लिए आरक्षित हैं में हो गया है वे पढ़ ही नहीं पा रहे क्योंकि उनके घर में ऐसा मोबाइल नहीं कि आॅनलाइन कक्षा कर सकें अथवा है भी तो वह दिन के समय उनके पिता या बड़े भाई के पास होता है जो काम पर जाते हैं। जो बच्चे आनलाइन कक्षा करते भी हैं तो उन्हें मोबाइल फोन की कनेक्टीविटी आदि की समस्या के कारण समझ में नहीं आता।

[विडियो] न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल का फैसला लागू करो

बलात्कार-हत्या ज्यादा बड़ा अपराध है या साजिश करना?

उत्तर प्रदेश में मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानून व व्यवस्था कायम करने के लिए ठोक दो की नीति अपनाई और सौ से ज्यादा मुठभेड़ों में तथाकथित अपराधियों के मारे जाने के बाद दावा किया कि सारे अपराधी या तो मारे गए अथवा अपनी जमानत खारिज करवा जेल पहुंच गए हैं। फिर लगातार एक के बाद एक अपराध की दिल दहलाने वाली घटनाएं हुईं जिसने सरकार की पोल खोल कर रख दी। बिकरू कांड, तमाम बलात्कार व हत्या की घटनाएं, फिरौती के लिए बस का अपहरण, मुठभेड़, पुलिस अधीक्षक द्वारा महोबा में खनन व्यापारी से फिरौती की मांग कुल मिलाकर एक अराजक उत्तर प्रदेश की तस्वीर पेश करते हैं।

मजदूर विरोधी सरकार

YouTube, Facebook, Instagram | 1 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार द्वारा तालाबंदी के दौरान श्रम कानूनों के साथ छेड़-छाड़ कर काम के घंटे 9 से 12 करने व काम से घंटों से ऊपर काम करने की सामान्य मजदूरी से दोगुणा के बजाए उतनी ही मजदूरी देने के निर्णय को संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार की तौहीन बताते हुए खारिज कर दिया। यह दिखाता है कि कोरोना जैसे संकट काल में भी सरकार ने उनकी भलाई के बजाए मजदूरों का अतिरिक्त शोषण करने की ही नीति बनाई।

[विडियो] मजदूर विरोधी सरकार (मैग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय की प्रेस वार्ता)

[विडियो] "उ.प्र. में कानून व व्यवस्था ध्वस्तः, मुख्यमंत्री इस्तीफा दें": सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) उपवास दिन-2

सबके लिए स्वास्थ्य सुरक्षा की मांग को ले कर गाँधी जयंती पर उपवास पर लोग


  • रोग से मुनाफ़ा अर्जित करना बंद हो
  • स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण बंद कर स्वास्थ्य सेवा का राष्ट्रीयकरण हो
  • सभी सरकारी कर्मचारी और निर्वाचित प्रतिनिधि और उनके परिवार के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवा अनिवार्य हो (इलाहबाद उच्च न्यायलय के 2018 के आदेश को अक्षरश: बिना विलम्ब लागू किया जाए)

महात्मा गाँधी को प्रतीकात्मक ही नहीं बल्कि धरातल पर उतारना है ज़रूरी: मेधा पाटकर

[English] यूँ तो महात्मा गाँधी प्रतीकात्मक रूप में, हर कार्यालय और किताब में हैं पर उनको धरातल पर उतारना बहुत ज़रूरी हो गया है. यह कहना है वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का, जो गाँधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में शिरोधार्य कर, सामाजिक न्याय सम्बंधित आन्दोलन और सत्याग्रह के लिए समर्पित रही हैं. महात्मा गाँधी के 150वीं जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में, 26 सितम्बर से 2 अक्टूबर 2020 तक, द पब्लिक इंडिया द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में मेधा पाटकर भी एक विशिष्ठ वक्ता थीं.

उम्र की डगर पर बेझिझक चल कर तो देखो, ज़िन्दगी ज़रा जी कर तो देखो

अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग की पंक्तियाँ "ग्रो ओल्ड अलौंग विथ मी, दी बेस्ट इस येट टू बी" (जीवन का सफ़र संग तय करो, अभी सर्वोत्तम शेष है) कितनी सारगर्भित हैं। कदाचित इसी आशा को पूर्णता प्रदान करने के लिए प्रत्येक वर्ष १ अक्टूबर को इंटरनेशनल डे ऑफ़ ओल्डर पीपुल (अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस) मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य है वरिष्ठ नागरिकों के प्रति संवेदनशीलता पैदा करना. वर्ष २०२० में इस दिवस की ३०वीं वर्षगाँठ है। 

अनचाहे गर्भ का खतरा कम करता है आपातकालीन गर्भनिरोधक

आज के आधुनिक युग में भी परिवार नियोजन और सुरक्षित यौन संबंध की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर ही अधिक है। इसके बावजूद भारत समेत एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के कुछ अन्य देशों की अनेक महिलाओं को, आधुनिक गर्भ निरोधक साधन मिल ही नहीं पाते. जिन महिलाओं के लिए आधुनिक गर्भ निरोधक साधन उपलब्ध हैं, और उन्हें मिल सकते हैं, उन्हें भी कई बार अनेक कारणों से अनचाहा गर्भ धारण करना पड़ता है - जैसे गर्भनिरोधक की
विफलता, गर्भनिरोधक गोलियां लेने में चूक हो जाना या फिर अपनी मर्जी के खिलाफ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाना। ऐसी महिलाओं के लिए "आपातकालीन गर्भनिरोधक" (इमरजेंसी कंट्रासेप्शन) एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है जो गर्भावस्था के ज़ोखिम को कम करता है।

[विडियो] बिहार बाढ़ और वर्धा में वन कटाई

जलवायु परिवर्तन और महिला स्वास्थ्य में क्या है संबंध?


जलवायु परिवर्तन के हमले को झेलने में भारत समेत एशिया पैसिफिक क्षेत्र के देश सबसे आगे हैं। पिछले तीस वर्षों के दौरान दुनिया की ४५% प्राकृतिक आपदाएँ - जैसे बाढ़, चक्रवात, भूकंप, सूखा, तूफान और सुनामी - इसी क्षेत्र में हुई हैं।

एसपीआई संवाद: बिहार के भागलपुर में कार्यरत गौतम कुमार प्रीतम से बातचीत

 

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खेल-खेल में चर्चा: स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और मानवाधिकार

यह तो सर्वविदित है कि शारीरिक व्यायाम और खेलकूद हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, परन्तु क्या खेल-खेल में युवाओं की यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य-सम्बन्धी समस्याओं, तथा लिंग-आधारित हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों को भी दूर किया जा सकता है? यह कुछ अविश्वसनीय सा लगता है।

परिवार नियोजन क्या अकेले महिलाओं का ही दायित्व है?

भारत समेत विश्व के अनेक देशों में परिवार नियोजन को मुख्य रूप से केवल महिलाओं का ही मुद्दा माना जाता है - जैसे पुरुषों का इससे कोई लेना-देना ही न हो. गर्भ निरोध के १४ तरीकों में केवल २ - कॉन्डोम और पुरुष नसबंदी - में ही पुरुषों की प्रत्यक्ष भागीदारी की जरूरत होती है. शेष सभी गर्भ निरोधक विधियां केवल महिलाओं के उपयोग के लिए हैं. वैश्विक स्तर पर ७० प्रतिशत से अधिक गर्भ निरोधक उपयोगकर्ता महिलाएं ही हैं. इसमें महिला नसबंदी (२४ प्रतिशत) सबसे ज़्यादा प्रचलित है जबकि पुरुष नसबंदी मात्र २ प्रतिशत है. गर्भ निरोध का सारा भार महिलाओं के मत्थे ही मढ़ दिया गया है.

हमारे जीवन, जीवनशैली और रोज़गार से कम-से-कम संसाधनों का दोहन हो

- सबके सतत विकास के लिए यह है ज़रूरी - मेधा पाटकर

[English] [रिकॉर्डिंग देखें] ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरित हो कर अनेक युवाओं ने एक नया अभियान आरंभ किया - 'एक बेहतर दुनिया की ओर'. प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने इस अभियान को जारी करते हुए देश-विदेश के युवाओं को याद दिलाया कि महात्मा गाँधी ने कहा था कि प्रकृति में इतने संसाधन तो हैं कि हर एक की ज़रूरतें पूरी हो सके परन्तु इतने नहीं कि एक का भी लालच पूरा हो सके. सबके सतत विकास के लिए यह ज़रूरी है कि हमारा जीवन, जीवनशैली और रोज़गार ऐसे हों कि कम-से-कम संसाधनों का दोहन और उपयोग हो. मेगसेसे पुरूस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि हर एक व्यक्ति को कम-से-कम एक संकल्प लेना होगा जिससे वह दुनिया को बेहतर बनाने के लिए अपना योगदान दे सके. इस कार्यक्रम में ग्रेटा थुनबर्ग के वैश्विक अभियान, फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर, से भी अनेक युवाओं ने भाग लिया.

कोविड-19 महामारी में महिलाधिकार क्यों अधिक खतरे में?

वर्तमान कोरोना वायरस रोग (कोविड-१९) महामारी के कारणवश इस वर्ष का विश्व जनसंख्या दिवस बहुत ही प्रासंगिक और सामयिक रहा क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, कोविड-१९ महामारी से सम्बंधित तालाबंदी के दौरान महिला-हिंसा और प्रताड़ना में बढ़ोतरी ही हुई है.

क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप भारी पड़ रहा है?

[English] भारत सरकार के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) ने 2 जुलाई 2020 को कहा था कि 15 अगस्त 2020 (स्वतंत्रता दिवस) तक कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से बचाव के लिए वैक्सीन के शोध को आरंभ और समाप्त कर, उसका "जन स्वास्थ्य उपयोग" आरंभ किया जाए. क्योंकि यह फरमान भारत सरकार के सर्वोच्च चिकित्सा शोध संस्था से आया था, इसलिए यह अत्यंत गंभीर प्रश्न खड़े करता है कि क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप ने ग्रहण लगा दिया है? भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद ने अगले दिन ही स्पष्टीकरण दिया कि उसने यह पत्र इस आशय से लिखा था कि वैक्सीन शोध कार्य में कोई अनावश्यक विलम्ब न हो. परन्तु सबसे बड़े सवाल तो अभी भी जवाब ढूंढ रहे हैं. पिछले सप्ताह एक संसदीय समिति को विशेषज्ञों ने बताया कि वैक्सीन संभवत: 2021 में ही आ सकती है (15 अगस्त 2020 तक नहीं).

सतत विकास के लिए आयु-अनुकूल व्यापक यौनिक शिक्षा क्यों है ज़रूरी?


एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के लगभग एक अरब युवा १० से २४ वर्ष की आयुवर्ग के हैं, जो इस क्षेत्र की कुल आबादी का २७% है। इनमें से प्रत्येक को कभी-न-कभी अपने जीवन सम्बंधित ऐसे निर्णय लेने पड़ेंगे जिनका प्रभाव उनके यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ेगा। परन्तु अनेक शोधों के अनुसार इनमें से अधिकांश किशोर/ किशोरियों में इन निर्णयों को ज़िम्मेदारी से लेने के लिए आवश्यक ज्ञान एवं जानकारी का अभाव है.

सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए सरकारी सेवाएँ क्यों हैं ज़रूरी?


[English] दुनियाभर में कोरोनावायरस रोग (कोविड-19) महामारी ने हम सबको यह स्पष्ट समझा दिया है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में पर्याप्त निवेश न करने और उलट निजीकरण को बढ़ावा देने के कितने भीषण परिणाम हो सकते हैं. इसीलिए इस साल के संयुक्त राष्ट्र के सरकारी सेवाओं के लिए समर्पित दिवस पर यह मांग पुरजोर उठ रही है कि सरकारी सेवाओं को पर्याप्त निवेश मिले और हर व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा मिले.

निजी अस्पताल में सरकारी पैसे से इलाज की छूट लेकिन निजी परिवहन से यात्रा करने पर सरकारी लाभ से क्यों वंचित?

पिछले तीन माह में यह स्पष्ट हो गया है कि कोरोना वायरस महामारी को रोकने में सरकार लगभग हर मोर्चे पर असफल रही है। न केवल सरकार कोरोना वायरस संक्रमण के तेजी से बढ़ते फैलाव को रोकने में असमर्थ रही है बल्कि उसके ही कारण देश के अधिकाँश लोगों को संभवतः सबसे बड़ी अमानवीय त्रासदी झेलनी पड़ी है। सरकार की असंवेदनशील, अल्प-कालिक और संकीर्ण सोच के कारण करोड़ों लोगों के मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ। सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों ने वैज्ञानिकों और चिकित्सकों से सलाह नहीं ली जिसके कारण उसके अनेक निर्णय, नवीनतम शोध और प्रमाण पर आधारित नहीं रहे।

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर विशेष: तम्बाकू उन्मूलन के बिना कैसे होगा तम्बाकू-जनित महामारियों का अंत?


[English] इस समय पूरे विश्व में कोरोनावायरस महामारी के कारण स्वास्थ्य-सुरक्षा की सबसे विकट परीक्षा है. यदि भारत समेत उन देशों के आंकड़ों पर नज़र डालें जहाँ कोरोनावायरस महामारी विकराल रूप लिए हुए है तो यह ज्ञात होगा कि जिन लोगों को उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह (डायबिटीज), दीर्घकालिक श्वास रोग, आदि है, उनको कोरोनावायरस संक्रमण होने पर, अति-गंभीर परिणाम होने का खतरा अत्याधिक है (जिसमें मृत्यु भी शामिल है). गौर करने की बात यह है कि तम्बाकू इन सभी रोगों का खतरा बढ़ाता है. तम्बाकू पर जब तक पूर्ण-विराम नहीं लगेगा तब तक यह मुमकिन ही नहीं है कि तम्बाकू-जनित रोगों की महामारियों पर अंकुश लग पाए, और इनमें कोरोनावायरस महामारी भी शामिल हो गयी है.

कोरोनावायरस रोग महामारी नियंत्रण में, प्रवासी श्रमिकों के साथ अमानवीयता क्यों?


दुनिया भर में अब कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 47 लाख से ऊपर पहुँच गयी है और 3.13 लाख लोग मृत हुए हैं. परन्तु जन स्वास्थ्य आपदा और महामारी नियंत्रण के प्रयासों के दौरान, श्रमिकों के साथ बर्बर अमानवीयता क्यों हो गयी?

नर्स संगठनों की है मांग कि सबके लिए हो स्वास्थ्य सुरक्षा एक समान


[English] फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (12 मई) के रूप में मनाया जाता है. इस साल, फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म को 200 साल हो रहे हैं और इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरे वर्ष 2020 को, नर्स और दाई के सम्मान में, समर्पित कर दिया है.

क्या शराब और तम्बाकू से कोरोना वायरस रोकधाम खतरे में पड़ जायेगा?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तम्बाकू और शराब दोनों से कोरोना वायरस रोग होने पर गंभीर परिणाम होने का खतरा बढ़ता है और मृत्यु तक हो सकती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तम्बाकू और शराब दोनों के सेवन की, कोई भी सुरक्षित सीमा नहीं है – यानि कि, हर रूप में और हर मात्रा में, यह हानिकारक हैं. जब देश कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा था और तालाबंदी हो गयी थी, तब शराब कंपनियां सरकार पर यह दबाव बनाने का प्रयास कर रही थीं कि शराब को ‘अति-आवश्यक श्रेणी’ में लाया जाए क्योंकि खाद्य सामग्री की तरह शराब ही अति-आवश्यक है. कोरोना वायरस महामारी में शायद पृथ्वी पर हर इंसान को यह समझ में आ गया है कि भोजन कितना आवश्यक है परन्तु शराब और तम्बाकू, न केवल, गैर ज़रूरी हैं बल्कि कोरोना वायरस रोग का खतरा भी बढ़ाते हैं.

कोरोना वायरस रोग महामारी पर अंकुश के लिए क्यों है ज़रूरी तम्बाकू उन्मूलन?

[English] भारत समेत जो देश इस समय कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) महामारी से जूझ रहे हैं, उनके वैज्ञानिक शोध आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि जो लोग अधिक आयु के हैं और जिन्हें गैर-संक्रामक रोग हैं, उन्हें कोविड-19 के गंभीर लक्षण हो सकते हैं और मृत्यु होने की सम्भावना भी अधिक है. विश्व में गैर-संक्रामक रोग के कारण 70% मृत्यु होती है. हृदय रोग, पक्षाघात, कैंसर, मधुमेह, दीर्घकालिक श्वास रोग, आदि प्रमुख गैर-संक्रामक रोग हैं. इन सभी गैर-संक्रामक रोगों का खतरा अत्याधिक बढ़ाता है - तम्बाकू सेवन. किसी भी प्रकार के तम्बाकू सेवन करने से, जानलेवा गैर संक्रामक रोग का खतरा मंडराने लगता है और कोविड-19 होने पर भी परिणाम घातक हो सकते हैं.

कोरोना संकट ने गैर-बराबरी खत्म करने का मौका उपलब्ध कराया है

प्रवीण श्रीवास्तव, डॉ संदीप पाण्डेयबॉबी रमाकांत
विश्व में कोरोना वायरस रोग कोविड-19 से दसियों लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं हलांकि मरने वालों की संख्या अभी लाख से कम है। कोरोना वायरस चीन के वुहान क्षेत्र में पहली बार 31 दिसम्बर को चिन्हित हुआ और 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उसे वैश्विक जन स्वास्थ्य आपदा घोषित किया, इसी दिन भारत में पहला मामला केरल में प्रकाश में आया और अब तक भारत में हजारों लोग संक्रमित हो चुके हैं और मरने वालों की संख्या सौ पार कर गई है।

9 महीने शेष हैं: क्या हम एड्स-संबंधित 2020 लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे?

यदि अन्य स्वास्थ्य मुद्दों से तुलना की जाये तो यह सही है कि एचआईवी/एड्स कार्यक्रम ने पिछले अनेक सालों में अद्वितीय सफलता हासिल की है. एचआईवी रोकधाम के लिए बेमिसाल अभियान चले, नि:शुल्क जांच और विश्व में लगभग 2 करोड़ लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा मिली, वैज्ञानिक शोध के जरिये बेहतर दवाएं मिली, मानवाधिकार के अनेक जटिल मुद्दे उठे (जैसे कि, लिंग-जनित और यौनिक समानता), आदि. सबसे महत्वपूर्ण है कि आज यदि मानक के अनुसार जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा और अन्य देखभाल मिले, तो एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति का वायरल लोड नगण्य रहेगा, वह एक सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है, और उससे किसी को भी एचआईवी संक्रमण नहीं फैलेगा. परन्तु नए एचआईवी संक्रमण दर अभी भी अत्याधिक चिंताजनक है. एक ओर एचआईवी के साथ जीवित लोगों को स्वस्थ रखने की दिशा में सराहनीय प्रयास हुए, वहीं दूसरी ओर, विराट चुनौतियाँ अभी भी हैं.

बिक्री-दुकान पर भी नहीं तम्बाकू उत्पाद प्रदर्शित कर सकते: बोगोर की जनता ने जीता कोर्ट केस

जैसे-जैसे दुनिया भर से वैज्ञानिक शोध पर आधारित प्रमाण आते गए कि तम्बाकू सेवन जानलेवा है, सरकारों ने तम्बाकू-उद्योग के तमाम हथकंडों के बावजूद, तम्बाकू नियंत्रण के प्रयास भी किये. उदाहरण के तौर पर, तम्बाकू उत्पाद के विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगने लगा परन्तु तम्बाकू उद्योग ने, बिक्री-दुकान पर, विज्ञापन और उत्पाद-प्रदर्शित करना नहीं छोड़ा. इंडोनेशिया के बोगोर शहर की जनता ने कोर्ट में केस जीता कि तम्बाकू बिक्री-दुकान पर भी तम्बाकू उत्पादन का प्रदर्शन नहीं हो सकता. जनता की यह पहल अत्यंत सराहनीय है, विशेषकर इसलिए कि न सिर्फ इससे तम्बाकू नियंत्रण सशक्त होता है बल्कि अन्य शहर-देश की जनता को भी उम्मीद मिलती है कि तम्बाकू उद्योग को हराना और ज़िन्दगी को जिताना भी संभव है.

महिला समानता के बिना कैसे होगा सबका विकास?

8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समानता केन्द्रीय बिंदु रहा. आज भी हमारे समाज में, यदि महिलाओं को बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो तो यह विकास के ढाँचे पर भी सवाल उठाता है क्योंकि आर्थिक विकास का तात्पर्य यह नहीं है कि समाज में व्याप्त असमानताएं समाप्त हो जाएँगी. बल्कि विकास के ढाँचे बुनियादी रूप से ऐसे हैं कि अनेक प्रकार की असमानताएं और अधिक विषाक्त हो जाती हैं.

प्रजनन स्वास्थ्य सुरक्षा के बिना सतत विकास मुमकिन नहीं

डॉ शिवोर्ण वार, संयोजक, APCRSHR10
[English] सिर्फ स्वास्थ्य क्षेत्र में ही प्रगति से स्वास्थ्य-सुरक्षा नहीं मिल सकती, विशेषकर कि उनको, जो सबसे अधिक ज़रूरतमंद हैं. स्वास्थ्य सेवा में सुधार के साथ-साथ, अन्य क्षेत्र में भी सुधार आवश्यक है जिससे कि समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए जीवन बेहतर हो सके. मूलभूत सेवाएँ, आर्थिक प्रगति, गरीबी उन्मूलन आदि से भी, हमारा स्वास्थ्य और संभावित जीवन-काल दोनों ही प्रभावित होता है, जिसमें प्रजनन और यौन स्वास्थ्य भी शामिल है.