जब 8 घंटे में हेपटाइटिस जाँच-पश्चात इलाज शुरू हो सकता है तो क्यों लगते हैं हफ़्तों?

[English] भारत के मणिपुर राज्य के हेपटाइटिस और एचआईवी से प्रभावित समुदाय ने वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के साथ महत्वपूर्ण बात साबित कीः हेपटाइटिस की जाँच और इलाज आरम्भ करने के मध्य 8 घंटे 12 मिनट के औसत समय से अधिक नहीं आना चाहिए। उन्होंने शोध के ज़रिए यह मणिपुर में कर के दिखाया कि जिस दिन व्यक्ति हेपटाइटिस जाँच करवाने आती/ आता है, उसी दिन सभी जाँच प्रक्रिया पूरी करके, यदि वह पॉज़िटिव है तो, इलाज आरम्भ किया जा सकता है।

आख़िर क्यों एचआईवी के साथ जीवित लोग एक महीने से निरंतर आंदोलनरत हैं?


[English] एक महीने से अधिक हो गया है और एचआईवी के साथ जीवित लोग, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के कार्यालय के बाहर अनिश्चितक़ालीन धरने पर हैं। 21 जुलाई 2022 से यह लोग दिन-रात यहाँ निरंतर शांतिपूर्वक ढंग से बैठे हुए हैं। इनकी माँग स्पष्ट है कि एचआईवी दवाओं की कमी दूर हो, और नियमित एक-महीने की खुराक हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को मिले जब वह अस्पताल दवा लेने जाए।

गृह ए में जलवायु न्याय" प्रकाशन विमोचित

29 जुलाई 2022 को, मांट्रीऑल, कनाडा में आयोजित विश्व के सबसे बड़े एड्स अधिवेशन (24वीं इंटरनेशनल एड्स कॉन्फ़्रेन्स) में, एरो (एशियन पैसिफ़िक रीसॉर्स एंड रीसर्च सेंटर फ़ॉर वूमेन) और सीएनएस ने संयुक्त रूप से, "गृह ए में जलवायु न्याय" प्रकाशन को एक विशेष सत्र में विमोचित किया। इस प्रकाशन को डाउनलोड करने के लिए, यहाँ क्लिक करें

एड्स उन्मूलन कैसे होगा यदि सरकारें अमीर देशों पर निर्भर रहेंगी?

इस बात में कोई संशय नहीं है कि स्वास्थ्य-चिकित्सा क्षेत्र में तमाम नवीनतम तकनीकी, जैसे कि वैक्सीन, जाँच प्रणाली, दवाएँ, आदि अमीर देशों में विकसित हुए हैं। 4 दशकों से अधिक हो गए हैं जब एचआईवी से संक्रमित पहले व्यक्ति की पुष्टि हुई थी। यदि मूल्यांकन करें तो एचआईवी से प्रभावित समुदाय के निरंतर संघर्ष करने की हिम्मत, और विकासशील देशों (जैसे कि भारत) की जेनेरिक दवाएँ, टीके आदि को बनाने की क्षमता न होती, तो क्या दवाएँ सैंकड़ों गुणा सस्ती हुई होती और ग़रीब देशों तक पहुँची होतीं? आज भी, अमीर देशों में दवाएँ, भारत की तुलना में, सैंकड़ों गुणा महँगी हैं। अमीर देशों पर निर्भर रहते तो कैसे लगभग 3 करोड़ लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवाइरल दवाएँ मिल रही होतीं? गौर करें कि इनमें से अधिकांश लोग जो एचआईवी के साथ जीवित हैं ज़िन तक यह जीवनरक्षक दवाएँ पहुँच रही हैं वह अमीर देशों में नहीं बल्कि माध्यम और निम्न आय वाले देशों के हैं।