भारत में बीड़ी तम्बाकू-जनित मृत्यु का सबसे बड़ा कारण

भारत में १० करोड़ लोगों से भी अधिक बीड़ी का सेवन करने वाले लोग हैं. जितने लोग बीड़ी पीने की वजह से तम्बाकू-जनित मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उतने अन्य सभी प्रकार के तम्बाकू उत्पादनों द्वारा जनित बीमारियों से भी नही मरते. विश्व स्वास्थ्य संगठन पुरुस्कार विजेता प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने बताया कि यह तथ्य बीड़ी मोनोग्राफ नामक रपट में सामने आए जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की थी.

भारत में ८० करोड़ से अधिक बीड़ी प्रति वर्ष बिकती हैं. चौकाने वाला तथ्य यह है कि भारत में ५३ प्रतिशत तम्बाकू सेवन बीड़ी के रूप में होता है, जब कि सिर्फ़ १९ प्रतिशत तम्बाकू सेवन सिगरेट के रूप में होता है. औसतन हर एक बिकने वाली सिगरेट पर ८ बीड़ी बिकती हैं, कहा प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने जो अखिल भारतीय शल्य-चिकित्सकों (सर्जनों) के संघ के नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

"तम्बाकू हर रूप में घातक है. वर्त्तमान में बीड़ी पीने का दर कई प्रदेशों में अधिक है, जैसे कि मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम में १०.६ - १४.२ प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश, असाम, बिहार, चंडीगढ़ और मेघालय में ४.६ - ९.२ प्रतिशत, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, उड़ीसा, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश में १.1 - २.९ प्रतिशत, और गोया, तमिल नाडू, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में १० प्रतिशत है" कहा प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने. भारत में मिजोरम में बीड़ी सेवन का दर सबसे अधिक है और पंजाब में सबसे कम.

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "जिन घरों में शराब या पान का सेवन होता हो, वहाँ पर बीड़ी पीने की सम्भावना अधिक होती है, ऐसा इस रपट में निकल के आया है."

"बीड़ी में तम्बाकू की मात्रा सिगरेट की तुलना में कम होती है पर निकोटीन, टार और अन्य हानिकारक पदार्थों की मात्रा काफी अधिक होती है. इनमें से कई ऐसे पदार्थ हैं जिनसे कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है" कहना है प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त का.

बीड़ी पीने से स्वास्थ्य पर जान-लेवा कु-प्रभावों में से मुह के कैंसर, खाने की नली के कैंसर आदि प्रमुख हैं, जो तम्बाकू-जनित कैंसर के कुल अनुपात का ७५ प्रतिशत हैं!इस रपट में यह भी प्रमाणित हुआ है कि बीड़ी पीने और तपेदिक या टीबी के मध्य सीधा सम्बन्ध है.

चंद तथ्य:
- ८५ प्रतिशत बीड़ी में इस्तेमाल होने वाली तम्बाकू भारत में ही उगाई जाती है
- गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में ३५ प्रतिशत कृषि योग्य खेतों में बीड़ी बनाने के लिए तम्बाकू और तेंदू पत्ते आदि की खेती होती है
- बीड़ी बनाने के लिए १०,५०,००० टन तम्बाकू और ३,००० टन तेंदू पत्ता लगता है
- मध्य प्रदेश और राजस्थान से अधिकांश बीड़ी बनाने के लिए तेंदू पत्ता आता है.

सी.एन.एस.

एड्स कार्यकर्ताओं के धरने की वजह से उत्तर प्रदेश में एड्स दवाएं उपलब्ध

[English] राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यालय के भीतर शुक्रवार २० मई २०११ से अनेक एच.आई.वी. के साथ जीवित लोग धरना दे रहे हैं क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश के एंटी-रेट्रो-वाईरल (ए.आर.टी) केन्द्रों पर एड्स दवा आपूर्ति प्रणाली खंडित चल रही थी और दवाएं नियमित तौर पर उपलब्ध नहीं थीं. २ महीनों से निरंतर प्रयास कर रहे एड्स कार्यकर्ताओं की अपील पर जब राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान ने नज़रंदाज़ कर दिया, तब जा कर एड्स कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यालय में ही कल से प्रदर्शन चालू किया.

इनके प्रदर्शन की वजह से अब उत्तर प्रदेश में आज २१ मई २०११ को एड्स दवा उपलब्ध हो गयी हैं, जिनको गुजरात और द्ल्ल्ली के भंडार से लाया गया है, और बिहार में संभवत: शाम तक दवा पहुँच जाए.

दिल्ली नेटवर्क ऑफ़ पोसिटिव पीपल (एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों का समूह) ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान एवं स्वास्थ्य मंत्रालय से अपील की है कि वें एड्स दवाओं की आपूर्ति प्रणाली की अनियमतता को बिना विलम्ब दुरुस्त करें क्योंकि दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों को, जिनको इन दवाओं की आवश्यकता है, यह दवाएं मिल नहीं रही हैं.

कल एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के स्थानीय समूहों के अनुसार, फरवरी और मई २०११ के मध्य उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और गोरखपुर जिलों में एवं बिहार के गया, भागलपुर, दरभंगा, मुज़फरपुर, एवं पटना जिलों में एड्स दवाओं की आपूर्ति प्रणाली में अनेक बार व्यवधान आया है. एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के स्थानीय समूहों के अनुसार, सैकड़ों लोगों पर दवाएं न मिलने के कारण कुप्रभाव पड़ा है.

उत्तर प्रदेश के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के समूह के नरेश यादव का कहना है कि "इलाहाबाद में पहले जबरन एड्स दवा का वितरण राशन की तरह होने लगा और एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों को सिर्फ ५ दिन की दवा दी जाती थी पर अब तो दवा उपलब्ध ही नहीं है. अन्य ए.आर.टी. केन्द्रों की स्थिति भी इसी तरह की है." आज दिल्ली में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यालय में चल रहे धरने के असर में आज से दवा आपूर्ति प्रणाली फिर से चालू हो गयी है.

दिसंबर २०१० में एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों ने सूचित किया था कि उनको एकदम से बिना पूर्व जानकारी के 'नेविरापीन' दवा की बजाय 'एफाविरेंज़' दवा दी जाने लगी थी क्योंकि सरकारी दवा-भंडार में 'एफाविरेंज़' अधिक मात्र में थी और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान को 'एक्सपायरी' या दवा कारगर तिथि - मार्च २०११ - के पहले यह 'एफाविरेंज़' दवा समाप्त करनी थी.

आखिर क्या कारण है कि जीवन रक्षक और जीवन अवधि बढ़ने वाली दवाओं की आपूर्ति प्रणाली नियमित ढंग से नहीं चल पा रही है और उसमे आये दिन व्यवधान आता रहता है?

अक्सर इसका कारण अपर्याप्त एवं असंतोषजनक परियोजना, स्थानीय जरूरतों को इमानदारी से न आंकना, कमजोर दवा वितरण प्रणाली और भ्रष्टाचार होता है.

एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के समूह ने स्वास्थ्य मंत्रालय एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान से अति-शीघ्र ही जीवन रक्षक दवाओं के आपूर्ति प्रणाली प्रबंधन को दुरुस्त करने का आह्वान किया है जो टी.बी. एवं एड्स जैसे स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिये अतिआवश्यक है.

दिल्ली के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोग उत्तर प्रदेश एवं बिहार के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के प्रति अतिचिन्तित हैं और इसीलिए राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यालय के बाहर धरने पर हैं. इनकी मांग है कि २४ घंटे के अन्दर एड्स दवाओं का वितरण पुन: सामान्य ढंग से चालू हो और दवा आपूर्ति की अनियमतता की जांच हो.

सी.एन.एस. 

भारतीय एड्स कार्यक्रम - दवा-आपूर्ति प्रणाली अनियमित

दवा-प्रतिरोधकता होने का खतरा एवं दवाएं जरुरतमंदों की पहुँच से बाहर

[English] दिल्ली नेटवर्क ऑफ़ पोसिटिव पीपल (एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों का समूह) ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान एवं स्वास्थ्य मंत्रालय से अपील की है कि वें एड्स दवाओं की आपूर्ति प्रणाली की अनियमतता को बिना विलम्ब दुरुस्त करें क्योंकि दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों को, जिनको इन दवाओं की आवश्यकता है, यह दवाएं मिल नहीं रही हैं.

एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के स्थानीय समूहों के अनुसार, फरवरी और मई २०११ के मध्य उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और गोरखपुर जिलों में एवं बिहार के गया, भागलपुर, दरभंगा, मुज़फरपुर, एवं पटना जिलों में एड्स दवाओं की आपूर्ति प्रणाली में अनेक बार व्यवधान आया है. एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के स्थानीय समूहों के अनुसार, सैकड़ों लोगों पर दवाएं न मिलने के कारण कुप्रभाव पड़ा है.

उत्तर प्रदेश के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के समूह के नरेश यादव का कहना है कि "इलाहाबाद में पहले जबरन एड्स दवा का वितरण राशन की तरह होने लगा और एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों को सिर्फ ५ दिन की दवा दी जाती थी पर अब तो दवा उपलब्ध ही नहीं है. अन्य ए.आर.टी. केन्द्रों की स्थिति भी इसी तरह की है."

दिल्ली नेटवर्क ऑफ़ पोसिटिव पीपल के विकास आहूजा के अनुसार "पिछले महीने तपेदिक या टी.बी. की दवा दिल्ली में उपलब्ध नहीं थीं. अब एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के समूह के अनुसार कई प्रदेशों में एड्स दवा आपूर्ति प्रणाली में अनियमतता सामने आ रही है." "इससे अनेक एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है. यदि एड्स एवं टी.बी. की दवाएं नियमित रूप से उपलब्ध नहीं होंगी तो लोगों को दवा प्रतिरोधकता हो जाएगी, जिसके वजह से यह दवा उनपर कारगर नहीं रहेगी" कहना है विकास आहूजा का.

दिसंबर २०१० में एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों ने सूचित किया था कि उनको एकदम से बिना पूर्व जानकारी के 'नेविरापीन' दवा की बजाय 'एफाविरेंज़' दवा दी जाने लगी थी क्योंकि सरकारी दवा-भंडार में 'एफाविरेंज़' अधिक मात्र में थी और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान को 'एक्सपायरी' या दवा कारगर तिथि - मार्च २०११ - के पहले यह 'एफाविरेंज़' दवा समाप्त करनी थी.

आखिर क्या कारण है कि जीवन रक्षक और जीवन अवधि बढ़ने वाली दवाओं की आपूर्ति प्रणाली नियमित ढंग से नहीं चल पा रही है और उसमे आये दिन व्यवधान आता रहता है?

अक्सर इसका कारण अपर्याप्त एवं असंतोषजनक परियोजना, स्थानीय जरूरतों को इमानदारी से न आंकना, कमजोर दवा वितरण प्रणाली और भ्रष्टाचार होता है.

एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के समूह ने स्वास्थ्य मंत्रालय एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान से अति-शीघ्र ही जीवन रक्षक दवाओं के आपूर्ति प्रणाली प्रबंधन को दुरुस्त करने का आह्वान किया है जो टी.बी. एवं एड्स जैसे स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिये अतिआवश्यक है.

दिल्ली के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोग उत्तर प्रदेश एवं बिहार के एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों के प्रति अतिचिन्तित हैं और इसीलिए राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यालय के बाहर धरने पर हैं. इनकी मांग है कि २४ घंटे के अन्दर एड्स दवाओं का वितरण पुन: सामान्य ढंग से चालू हो और दवा आपूर्ति की अनियमतता की जांच हो.


सी.एन.एस .

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए तैयार युवा

[English][फोटो] 'नागरिकों का स्वस्थ लखनऊ' अभियान के अंतर्गत  सेक्टर-१६, इंदिरा नगर, स्थित ए. एल. एस अकादमी में आयोजित एक जन जागरूकता कार्यक्रम में 'तम्बाकू नियंत्रण और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई' परिचर्चा का आयोजन किया गया . कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आये प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित, डॉ. संदीप पाण्डेय ने बच्चों को  भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लिए सूचना अधिकार अधिनियम के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया. पाण्डेय जी ने बच्चों से यह भी अनुरोध किया कि न तो वे कभी घूस  लें तथा न ही कभी घूस  दें.

डॉ संदीप पाण्डेय ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि आज तक देश में जितने ही बड़े घोटाले हुए हैं और जिसके कारण देश कि छवि धूमिल हुई है, इन सभी प्रकार के घोटालों में देश के उच्च पदों पर आसीन अधिकारिओं का ही हाथ है. अतः यह जाहिर बात है कि अधिकांश भ्रष्टाचार पढ़े-लिखे लोग ही करते हैं. इसीलिए यह और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि छात्र भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में सक्रीय हों जिससे कि देश का आने वाला भविष्य भ्रष्टाचार मुक्त हो.

पाण्डेय जी ने आगे कहा कि भ्रष्टाचार के लिए केवल घूस लेने वाला ही जिम्मेदार नहीं है बल्कि घूस देनें वाला भी बराबर का जिम्मेदार है. इसलिए भ्रष्टाचार तभी ख़त्म किया जा सकता है जब हम यह प्रण करें कि न तो हम कभी घूस लेंगें और न ही कभी घूस देंगें. आने वाले समय में ये ही बच्चे सरकारी कार्यालयों में उच्च पदों पर आसीन होंगे, और तब धन और पद के लोभ में घूस लेने की अनैतिक लालसा भी उत्पन्न होगी. इसीलिए युवाओं को अभी से ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रतिज्ञा लेना आवश्यक है.

डॉ संदीप पाण्डेय ने छात्रों को सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवेदन पत्र लिखना सिखाया और  बताया कि आवेदन पत्र संबधित विभाग के जन-सूचना अधिकारी को संबोधित किया जाता है. सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगते हुए आवेदन पत्र में यह बात स्पष्ट लिखे कि जानकारी सूचना अधिकार अधिनियम, २००५, के अंतर्गत मांगी जा रही है. १० रूपए का नोट या 'मनी-आर्डर' संलग्न करें, और नोट का नंबर भी आवेदन पत्र में लिख दें. इस आवेदन पत्र को पंजीकृत डाक द्वारा भी भेजा जा सकता है. कार्यशाला के अंत में सभी बच्चों ने सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत उन अनेकों विषयों पर वास्तविक आवेदन पत्र  लिखे, जो उनके जीवन को प्रभावित कर रहे थे.   

कार्यशाला को  संबोधित करते हुए नागरिकों का स्वस्थ् लखनऊ अभियान के समन्वयक राहुल द्विवेदी ने कहा कि तम्बाकू घातक है. तथा तम्बाकू कम्पनियां अपने उत्पाद को बेचने के लिए युवाओं  को निशाना बना कर, तरह-तरह के लुभावने विज्ञापनों के माध्यम से युवाओं को तम्बाकू उपभोग के लिए उकसाती हैं. अतः यह बहुत जरुरी है कि युवा छात्र तम्बाकू के असली घातक चेहरे से परिचित हों, तथा तम्बाकू जनित जानलेवा रोगों को जान लें जिससे कि वें विवेकपूर्ण निर्णय लेकर  स्वस्थ जीवन चुने, न कि तम्बाकू.

बच्चो को प्रोत्साहित करते हुए राहुल द्विवेदी ने कहा कि  सूचना अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन पत्र लिख कर यह पूछना चाहिए कि सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३ को अभी तक पूर्ण रूप से क्यों लागू नहीं किया गया है? क्यों शक्षिक संस्थानों के १०० यार्ड के अन्दर तम्बाकू विक्रय दुकानें हैं? क्यों सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान हो रहा है?

 हम यह उम्मीद करते हैं कि युवा वर्ग सूचना अधिकार अधिनियम का उचित उपयोग करके अपने समाज और देश को स्वस्थ् बनाने का प्रयास करेगा न कि चुपचाप इस प्रकार की नैतिक बुराइयों और भ्रष्टाचार का सहन करता रहेगा. युवा छात्रों के लिए आयोजित इस जन जागरूकता कार्यक्रम से सभी को कुछ नया करने की प्रेरणा मिलेगी, और वे अपने समाज को  शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ् बनाने का प्रयास करेंगे.

शोभा शुक्ल - सी.एन.एस.

धोखा न खाएं! तम्बाकू जानलेवा है!

[English] [फोटो] "अधिकांश तम्बाकू सेवन 18 वर्ष से पहले ही आरम्भ होता है। इसीलिए बच्चों एवं युवाओं को तम्बाकू जनित जानलेवा रोगों एवं व्याधियों के बारे में जानकारी देना अनिवार्य है जिससे कि वें ज़िन्दगी चुनें, तम्बाकू नहीं" कहा एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इण्डिया के 2012 निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रोफेसर डॉ0 रमा कान्त ने जो सेक्टर 19, इन्दिरा नगर स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल के छात्रों-शिक्षकों को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे।

प्रोफेसर डॉ0 रमा कान्त, छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष हैं। प्रो0 रमा कान्त भारत के पहले सर्जन हैं जिनको वर्ष 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक का विशेष अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला है।

प्रो0 डॉ0 रमा कान्त जो वर्तमान में 'पाइल्स टू स्माइल्स' क्लीनिक के निदेशक हैं, उन्होंने कहा कि "बच्चों एवं युवाओं में तम्बाकू नियंत्रण करना व्यापक तम्बाकू नियंत्रण योजना का एक अहम भाग है।"

प्रो0 डॉ0 रमा कान्त ने कहा कि "भारत में तम्बाकू से हर वर्ष 10 लाख से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं। बच्चों और युवाओं को तम्बाकू कम्पनियों के प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष भ्रामक प्रचार से दूर रहना चाहिए और उससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। उनको तम्बाकू सेवन की असली तस्वीर जो जानलेवा बीमारियों से जुड़ी है उससे परिचित होना चाहिए जिससे कि वें ज़िन्दगी चुनें, तम्बाकू नहीं।"

प्रो0 डॉ0 रमा कान्त जिनको केन्द्रिय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का अनुशंसा पुरूस्कार भी 1997 में मिल चुका है उन्होंने कहा कि "लगभग आधी तम्बाकू जनित मृत्यु 35-69 वर्ष के दौरान होती है। धूम्रपान से अधिकांश मरने वाले लोगों ने तम्बाकू सेवन युवावस्था में आरम्भ किया था। 30-40 साल के लोग जो तम्बाकू सेवन करते हैं, उनको हृदय रोग होने का पॉंच गुणा अधिक खतरा रहता है। तम्बाकू जनित हृदय रोग एवं कैंसर तम्बाकू व्यसनियों की मौत का सबसे बड़ा कारण है।"

प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि "तम्बाकू व्यसनियों को नशा मुक्ति के लिये विशेषज्ञों से मदद लेनी चाहिए. शोध के अनुसार अक्सर तम्बाकू सेवन करने वाले लोग तम्बाकू-जनित रोगों, विकृतियों और मृत्यु से अनभिज्ञ होते हैं. जो तम्बाकू व्यसनी इन खतरों को संजीदगी से समझते हैं, उनकी नशा-मुक्त होने की सम्भावना अधिक होती है."

नागरिकों के स्वस्थ लखनऊ अभियान, इण्डियन सुसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग, अभिनव भारत फाउंडेशन एवं आशा परिवार ने संयुक्त रूप से इस कार्यक्रम को आयोजित किया था.
सी.एन.एस.

सूचना अधिकार अधिनियम के जरिये लागू करें तम्बाकू नियंत्रण

[English] [फोटो] सेक्टर-२५ इंदिरा नगर स्थित शेरवुड एकेडेमी में कार्यशाला का विषय था "सूचना अधिकार अधिनियम के जरिये लागू करें तम्बाकू नियंत्रण." मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय कार्यक्रम में मुख्य अथिति थे जिन्होंने छात्रों एवं शिक्षकों को सूचना अधिकार अधिनियम, २००५ से भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को सशक्त करने पर बात की. उन्होंने छात्रों को सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवेदन पत्र लिखना सिखाया और उनसे अनुरोध किया कि वें न तो कभी घूस लें, न कभी दें.

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि वो अपने स्कूल का प्रोजेक्ट करते समय सूचना अधिकार के अंतर्गत आवेदन पत्र लिख कर सूचना पा सकते हैं. डॉ संदीप पाण्डेय ने भ्रष्टाचार विरोधी जन अभियान में सूचना अधिकार अधिनियम पर भी अपने विचार रखे. डॉ संदीप पाण्डेय ने बताया कि "आवेदन पत्र जिस विभाग से आप जानकारी मांग रहे हैं, उसके जन-सूचना अधिकारी को संबोधित किया जाता है. सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगते हुए आवेदन पत्र में यह बात स्पष्ट लिखे कि जानकारी सूचना अधिकार अधिनियम, २००५, के अंतर्गत मांगी जा रही है. १० रूपए का नोट या 'मनी-आर्डर' संग्लग्न करें और नोट का नंबर भी आवेदन पत्र में लिख दें. इस आवेदन पत्र को पंजीकृत डाक द्वारा भी भेजा जा सकता है."

डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "यह जाहिर बात है कि अधिकांश भ्रष्टाचार पढ़े-लिखे लोग ही करते हैं. इसीलिए यह और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि छात्र भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में सक्रीय हों और भविष्य में भी न तो कभी घूस लें और न ही दें."

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतरराष्ट्रीय पुरुस्कार २००८ प्राप्त बाबी रमाकांत ने कहा कि "तम्बाकू घातक है. चूँकि अधिकांश तम्बाकू नशा १८ साल से पहले ही आरंभ होता है, यह बहुत जरुरी है कि युवा छात्र तम्बाकू के असली घातक चेहरे से परिचित हों, तम्बाकू जनित जानलेवा रोगों को जान लें जिससे कि वें विवेकपूर्ण निर्णय ले सके और स्वस्थ जीवन चुने, न कि तम्बाकू."

बाबी रमाकांत ने कहा कि "सूचना अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन पत्र लिख कर यह पूछना चाहिए कि सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३ को क्यों लागू नहीं किया गया है? क्यों शक्षिक संस्थानों के १०० यार्ड के अन्दर तम्बाकू विक्रय दुकानें हैं? क्यों सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान हो रहा है? क्यों फिल्मों में तम्बाकू सेवन को प्रदर्शित किया जा रहा है? यदि आप देखें कि किसी तम्बाकू उत्पाद पर ४०% चित्रमय चेतावनी नहीं लगी है तो इसकि रपट करनी भी जरुरी है."

डी-ब्लाक इंदिरा नगर के युवा निवासी राहुल कुमार द्विवेदी ने स्वास्थ्य विभाग के सूचना अधिकारी के नाम सूचना अधिकार अधिनियम २००५ के तहत पंजीकृत डाक से आवेदन पात्र भेजा है. राहुल जानना चाहते हैं कि लखनऊ में और समत उत्तर प्रदेश में सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३ के उलंघन में क्यों शक्षिक संस्थानों के १०० यार्ड के भीतर तम्बाकू विक्रय केंद्र हैं, कौन इनको हटाने के लिए जिम्मेदार है, उसके विरोध में क्या करवाई की गयी है, और कबतक सभी शैक्षिक संस्थानों के १०० यार्ड के भीतर तम्बाकू दुकानें हटा दी जाएँगी?
सी.एन.एस.

विश्व अस्थमा या दमा दिवस: अस्थमा या दमा नियंत्रण ज्यादातर देशों में असफल

विश्व अस्थमा या दमा दिवस: ३ मई २०११
दमा नियंत्रण ज्यादातर देशों में असफल है। विश्व के लगभग ३० करोड़ लोग अस्थमा या दमा की समस्या से ग्रसित हैं! अस्थमा या दमा की बीमारी व्यक्तिगत, पारिवारिक, तथा सामुदायिक तीनो स्तरों पर लोगों को प्रभावित करती है।

विश्व स्तर पर अस्थमा या दमा की समस्या पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक तमाम बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद, अस्थमा या दमा नियंत्रण के विभिन्न कार्यक्रम तेज़ी से फ़ैल रहें हैं।

अस्थमा या दमा को यदि काबू में रखा जाए, और चंद बातों पर विशेष ध्यान दिया जाए, तो नि: संदेह इसका नियंत्रण सम्भव है।

अपर्याप्त और अध-कचरे अस्थमा या दमा नियंत्रण कार्यक्रमों की वजह से लोगों की जीवन शैली भी कुंठित होती दिखाई देती है।

उदाहरण के लिए विश्व में कई छेत्रों में हर चार में से एक अस्थमा या दमा से ग्रसित बच्चा स्कूल नही जा पाता है।

इस बार के विश्व अस्थमा या दमा दिवस का विषय है "आप अस्थमा या दमा पर नियंत्रण पा सकते हैं"।

इस विचार द्वारा यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है कि अस्थमा या दमा की सही जांच, इलाज, और नियंत्रण की विधियाँ मौजूद हैं, परन्तु आवश्यकता है जागरूकता जिससे कि प्रभावकारी अस्थमा या दमा नियंत्रण के कार्यक्रम सफल हो सके।

अस्थमा नियंत्रण और प्रबंधन की विश्व स्तर पर निति २००७ के मुताबिक अस्थमा या दमा नियंत्रण का मतलब है कि:

- अस्थमा या दमा का कोई लक्षण न हो और व्यक्ति को अस्थमा या दमा के कारण रात में न टहलना पड़े

- अस्थमा राहत दवा या 'इन्हैलर' का उपयोग न करना पड़े (या न्यूनतम आवश्यकता हो)

- व्यक्ति सामान्य शारीरिक काम कर सकता हो।

- व्यक्ति को अस्थमा या दमा के दौरे बिल्कुल न पड़े या बहुत ही कम पड़े

कुछ लोग जो की अस्थमा से ग्रसित हैं उन लोगों ने कभी भी पर्याप्त अस्थमा की जांच नही करवाई है, इस वजह से उनमें अस्थमा के उपचार और उचित नियंत्रण होने की सम्भावना कम हो जाती है। अस्थमा या दमा के पर्याप्त और सही समय पर जांच न हो पाने की कई सारी वजह हैं। जैसे कि मरीजों में इसके बारे में पर्याप्त जानकारी न होना, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा सही समय पर इसकी पहचान न कर पाना और चिकित्सा व्यवस्था तक लोगों की व्यापक पहुँच न हो पाना इत्यादि।

विश्व के कई सारे देशों जैसे कि मध्य पूर्वी एशिया (गल्फ देशों में), मध्य अमरीका, दक्षिण एशिया, उत्तर पश्चिम और पूर्वी अफ्रीका इत्यादि में दमा के लिए आवश्यक दवाओं की उपलब्धता न होने के कारण स्थिति और भी अधिक गंभीर बन जाती है।

विश्व के कई देशों में जो लोग अस्थमा या दमा से ग्रसित है, उनमें वातावरण में व्याप्त प्रदुषण के कारण अस्थमा या दमा अधिक बिगड़ सकता है।

यदि हम अस्थमा नियंत्रण को प्रभावी बनाना चाहतें हैं तो हम सभी को इसकी प्रभावकारी नियंत्रण के लिए व्यापक नीतियाँ बनानी होगी और उस पर अमल भी करना होगा।
सी.एन.एस.

लखनऊ में भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल बिल मसौदे पर खुली चर्चा

[English] अप्रैल २०११ के आरंभ में अन्ना हजारे के नेत्रित्व में भ्रष्टाचार विरोधी ऐतिहासिक क्रांति की लहर दौड़ी थी. जबसे भारत सरकार ने लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने की समिति में भ्रष्टाचार विरोधी जन-अभियान के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया है, तब से इन लोगों के प्रति आरोपों का हमला शुरू हो गया है. अरविन्द केजरीवाल और स्वामी अग्निवेश, जो लोकपाल बिल के मसौदे को तैयार करने वाली समिति के सदस्य हैं, वें उत्तर प्रदेश में लोगों से लोकपाल बिल से सम्बंधित सुझाव लेने आये. 

 १ मई २०११ को भ्रष्टाचार विरोधी जन-अभियान लखनऊ के संत फ्रांसिस कॉलेज में पहुंचा. युवा कार्यकर्ता एवं मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि "कई लोगों को लगता था कि यह भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चार दिन की चांदनी है जो मीडिया की वजह से प्रचलित हुआ है - और दिल्ली में कुछ मीडिया ने यह कहा कि इस आन्दोलन की जड़ें गहरी नहीं है. पर जब हम लोग उत्तर प्रदेश में आये तो लोग गाँव-गाँव से भरी मात्रा में निकल कर आये हैं. ऐसा लगता है कि जनता के अन्दर जो रोष था वो इस कार्यक्रम के जरिये उमड़ पड़ा है. जिस तरह से लोग उमड़ कर आये हैं लगता है कि कोई प्राकृतिक शक्ति है जो इस सामाजिक बदलाव को समर्थन दे रही है. जिस तरह से मीडिया ने इस मुद्दे को उठाया, जिस तरह से हमारी टीम को तोड़ने की कोशिश की गयी, जिस तरह से कुछ मीडिया में गलत समाचार 'प्लांट' किये गए, मुझे लगता है कि कोई प्राकृतिक शक्ति है जो हमें सही रास्ते की ओर ले जा रही है और जिस तरह से जन समर्थन उमड़ रहा है कुछ सकारात्मक नतीजा जरूर निकलना चाहिए. हमारे पास सिर्फ हमारी सच्चाई और ईमानदारी है." 

अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि "लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने के लिए जिस समिति का गठन हुआ है हम नहीं चाहते कि बंद कमरे में इसको तैयार किया जाए. हम लोगों ने तो यह प्रस्तावित किया था कि इसकी विडियो रेकॉर्डिंग होनी चाहिए जिससे कि जनता को यह पता चले कि अन्दर क्या बातें हो रही हैं. हम लोग शहर-शहर जा कर जनता से पूछ रहे हैं कि आपके इसके बारे में क्या विचार हैं. www.indiaagainstcorruption.org वेबसाइट के जरिये भी लोग हमको सुझाव दे सकते हैं और जितने भी सुझाव हमारे पास आयेंगे हम लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने वाली समिति की बैठक में ले के जायेंगे."

अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि भ्रष्टाचार पर प्रभावकारी ढंग से अंकुश लगाने के लिये लोकपाल बिल आवश्यक है। लोकपाल बिल जो शिकायत पर संवैधानिक रूप से समय-अवधि के अन्दर ही सजा दिलाने की वादा करता है - उसको पारित होने के लिये अरविन्द केजरीवाल ने जन आन्दोलन को सशक्त करने की मांग की। बिना लोकपाल बिल जैसी नीतियों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना मुश्किल है - और - भ्रष्ट अधिकारियों एवं जन-प्रतिनिधियों को सजा दिलवाना भी बहुत जटिल कार्य है।

आखिर भ्रष्टाचार को कैसे रोका जाए? केजरीवाल ने संगीन प्रश्न खड़े किये कि जो संस्थाएं भ्रष्टाचार को रोकने के लिये हैं, उदाहरण के तौर पर जैसे कि सेंट्रल विजिलेंस कमिटी (सी०वि०सि०) सिर्फ सरकार को सलाह दे सकती है, और कोई भी कारवाई नहीं कर सकती। केजरीवाल ने भूतपूर्व सी0वि0सि० से साक्षात्कार के बारे में बताया कि पिछले ५ सालों में उस सी०वि०सि० ने जिन सरकारी अधिकारियों को निलंबित से ले के जेल तक भेजने की 'सलाह' दी उन सबको सरकार ने सिर्फ 'चेतावनी' दे कर छोड़ दिया है। इसी तरह सी०बी०आई० भी कोई जांच तब तक नहीं कर सकती है जब तक सरकार की सहमती न प्राप्त हो।

यदि मजबूत लोकपाल बिल संसद से पारित हो गया तो इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा. प्रस्तावित है कि यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी. कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पायेगा.

अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि इस बिल की मांग है कि भ्रष्टाचारियो  के खिलाफ किसी भी मामले की जांच एक साल के भीतर पूरी की जाये. परीक्षण एक साल के अन्दर पूरा होगा और दो साल के अन्दर ही भ्रष्ट नेता व आधिकारियो को सजा सुनाई जायेगी . इसी के साथ ही भ्रष्टाचारियो का अपराध सिद्ध होते ही उनसे सरकर को हुए घाटे की वसूली भी की जाये. यह बिल एक आम नागरिक के लिए मददगार जरूर साबित होगा, क्यूंकि यदि किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल बिल दोषी अफसर पर जुरमाना लगाएगा और वह जुरमाना शिकायत कर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा. इसी के साथ अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती है तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकेंगे. आप किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते है जैसे कि सरकारी राशन में काला बाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी,  या फिर पंचायत निधि का  दुरूपयोग.

अभी लोकपाल बिल का मसौदा तैयार होने की प्रक्रिया चल रही है - उसके पश्चात् इस मसौदे को संसद से बिना-कमजोर कराये पारित करना भी एक चुनौती होगी. 


बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.