लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा किया गया तम्बाकू नियंत्रण से सम्बंधित सर्वे
आभार:- इस सर्वेक्षण में अपना बहुमूल्य योगदान देने के लिए छत्रपति शाहू जी महराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के शल्य चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्षा, विश्व स्वस्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से वर्ष २००५ में सम्मानित तथा विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा संचालित तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्र के प्रमुख, प्रोफ़ेसर (डॉ.) रमाकांत के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं. श्री अभिषेक मिश्रा और श्री रितेश आर्य के भी आभारी हैं जिन्होंने आंकड़ों के एकत्रीकरण में अपना बहुमूल्य समय दिया और अमित द्विवेदी जिन्होंने इस पूरे सर्वेक्षण में अपना सहयोग प्रदान किया। हम इस सर्वेक्षण के सभी उत्तरदाताओं के आभारी हैं जिन्होंने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अपना बहुमूल्य समय और सहयोग देकर इस प्रयास को सफल बनाया.
पृष्ठभूमि:-तम्बाकू विश्व में रोकी जा सकने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण बन रहा है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की तम्बाकू से इस वर्ष पचास लाख से ज्यादा लोगों की मौत होगी जो टीबी, ऐड्स तथा मलेरिया को मिलाकर होने वाली कुल मौतों की संख्या से भी अधिक है. यदि कठोर कदम नहीं उठाये गए तो तम्बाकू से इस शताब्दी में दस खराब लोगों की मृत्यु का अनुमान लगाया गया है. यद्यपि तम्बाकू से होने वाली मौतें कम ही शीर्षक समाचार बन पाती हैं, परन्तु तम्बाकू के कारण हर ६ सेकंड में एक मौत होती है.
नीतियां:-
भारत में तम्बाकू से प्रतिवर्ष दस लाख से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु होती हैं.
तम्बाकू सेवन की रोकथाम तथा तम्बाकू जनित रोगों,
अक्षमताओं तथा मृत्यु को कम करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने तम्बाकू की रोकथाम के लिए एक विस्तृत नीति को लागू किया है –
सिगरेट तथा अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम -
२००३.
तब से विभिन्न नियम एवं कानून द्वारा इस अधिनियम के अलग-
अलग प्रावधानों को प्रभावकारी रूप से लागू किया जा रहा है.
इसके अलावा विश्व की पहली जन स्वास्थ्य एवं उद्योगों की जवाबदेही के लिए बनी संधि – फ्रेमवर्क
कन्वेंशन ऑन तोबक्को कंट्रोल पर ५ फरवरी,
२००५ को भारत ने भी हस्ताक्षर किया है तथा भारतीय संसद ने इस संधि का समर्थन किया है.
मौजूदा तम्बाकू नियंत्रण नीतियों के बावजूद न सिर्फ़ तम्बाकू का सेवन करने वाले बच्चों और युवाओं की संख्या बढ़ी है बल्कि तम्बाकू जनित रोगों,
अक्षमताओं तथा मृत्यु की संख्या में भी महत्वपूर्ण बढ़त देखी गई है.
जन स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावकारी ढंग से लागू करना भारत एवं विश्व के अन्य राष्ट्रों के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती है.
मुद्दे:-
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक तम्बाकू एकमात्र ऐसा उत्पाद है जो वैध रूप से बेचा जा सकता है और इसका उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हानि पहुँचाता है-
तम्बाकू का प्रयोग करने वाले सौ में से पचास की मौत तम्बाकू जनित कारणों से होनी निश्चित है.
कम दाम,
प्रभावकारी तथा भ्रामक बाजारीकरण,
तम्बाकू से हानि के विषय में जागरूकता की कमी,
इसके प्रयोग के विरुद्ध असंगत जन योजनाओं के कारण तम्बाकू का प्रयोग विश्व में सामान्य रूप से किया जाता है.
तम्बाकू से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव वर्षों और दशकों तक स्पष्ट रूप से पता नहीं चलते.
इसलिए एक तरफ़ जब तम्बाकू का सेवन विश्व में बढ़ रहा है तभी दूसरी तरफ़ तम्बाकू जनित रोग तथा मृत्यु की अभी शुरुआत हुई है.
आगे की रणनीति:-परन्तु हम भविष्य परिवर्तित कर सकते हैं. यह तम्बाकू महामारी विनाशकारी है लेकिन इसकी रोकथाम संभव है, इसके लिए हमें तम्बाकू के खिलाफ तुंरत सशक्त प्रयास करने चाहिए.हम इस तम्बाकू महामारी को रोक सकते हैं तथा तम्बाकू मुक्त विश्व की और अग्रसर हो सकते हैं लेकिन इसके लिए हमें अभी से ही प्रयास करने होंगे.
सर्वेक्षण :
उद्देश्य:-
• भारत की राष्ट्रीय तम्बाकू उपयोग सांख्यिकी को लखनऊ शहर स्तर पर प्रमाणित करना।
• भारत में मौजूदा तम्बाकू नियंत्रण नीतियों के विषय में जागरूकता के स्तर का पता लगाना
• तम्बाकू नियंत्रण अभियान, जो कम खर्चे पर काफी प्रभावकारी रहे हैं, इस पर समुदाय के लोगों का नजरिया जानना।
• सर्वेक्षण के नतीजों को मीडिया के विभिन्न माध्यमों द्वारा प्रचारित करना तथा राष्ट्रीय स्तर के सभी सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को तम्बाकू के विषय में जागरूक करना।
विधि:- प्रश्नावली की रचना
• प्रश्नावली की रचना के लिए हम लोगों ने विभिन्न छेत्र के लोगों की सहायता ली जैसे- शोधार्थी, सांख्यिकी के विशेषज्ञ,तम्बाकू नियंत्रण अभियान में लगे विशेषज्ञ जिससे कि प्रश्नों को आसान और लोगों द्वारा आसानी से समझ में आ सकने वाला बनाया जा सके।
• १५ प्रश्नों को चार भागो में बांटा गया था.(विस्तृत जानकारी के लिए प्रश्नोतरी देखें)
• उत्तरदाता के विषय में व्यक्तिगत जानकारी।
• एक खंड उन उत्तरदाताओं के लिए था जो तम्बाकू का प्रयोग करते हैं, जिस से उनके तम्बाकू प्रयोग के इतिहास के बारे में जाना जा सके।
• भारत में तम्बाकू नियंत्रण अधिनियम और उस से सम्बंधित नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन
आंकडों का अंकन:-प्रत्येक प्रश्न के निर्धारित कोडेड बहुविकल्प थे. डाटा शीट हमने माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल शीट तथा उसके सूत्र की सहायता से आंकड़ों को अंकित किया और उसका मूल्यांकन किया.
आंकड़ों का एकत्रीकरण:-
• आंकड़ों को एकत्र करने के लिए हमने सर्वेक्षणकर्ताओं की एक टीम बनाई जिसमें महिला और पुरूष दोनों सम्मिलित थे।
•
सर्वेक्षणकर्ताओं के नाम:
१.
आलोक कुमार द्विवेदी2.
सारिका त्रिपाठी•
५ दिनों (
२८ जुलाई-
१ अगस्त,
२००८)
में ७६३ उत्तरदाताओं से आंकड़े एकत्र किए गए।• सर्वेक्षण स्थान: इस सर्वेक्षण में हर तरह के लोगों को सम्मिलित करने के उद्देश्य से हमने ऐसे स्थानों को चुना जहाँ हर तरह के लोग आते हो जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और बाज़ार।
•
सर्वेक्षणकर्ताओं को इस सर्वेक्षण की विधि और प्रत्येक प्रश्न की संवेदनशीलता के विषय में पूरी जानकारी दी गई जिस से उत्तरदाताओं को किसी प्रकार की हिचकिचाहट न हो.
सर्वेक्षणकर्ताओं को निर्देश:-
• उत्तरदाताओं को अपना परिचय देना तथा इस सर्वेक्षण के विषय में उन्हें जानकारी देना।
• कोई भी प्रश्न पूछने से पहले उत्तरदाताओं की आज्ञा लेना।
• उत्तरदाताओं से प्रत्येक प्रश्न विनम्रतापूर्वक पूछना जिस से की वे बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दे सकें.
सर्वेक्षण के परिणाम:-
कुल ७६३ उत्तरदाताओं में ७० प्रतिशत पुरूष तथा ३० प्रतिशत महिलाएँ थी।विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष २००८ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के युवाओं में तम्बाकू का प्रयोग १४.
१ प्रतिशत है,
जिसमें से पुरुषों में १७.
३ प्रतिशत और महिलाओं में ९.
७ प्रतिशत है.
भारत के वयस्कों में तम्बाकू उपयोग पुरुषों तथा महिलाओं में क्रमशः ५७ प्रतिशत और ३.१ प्रतिशत है.राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की २००६ कि रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर तम्बाकू उपयोग १८ से २४ वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में पाया गया है.
हमारे सर्वेक्षण में ज्यादातर उत्तरदाता ३० से ५० वर्ष की आयु वर्ग में थे, इसके बाद १८-३० वर्ष(३९%) ११ प्रतिशत उत्तरदाता ५० वर्ष या इससे ज्यादा आयु के थे और मात्र ६ प्रतिशत उत्तरदाता ०-१८ वर्ष की वर्ग में थे.
कई आंकड़े इस और इंगित करते हैं कि तम्बाकू प्रयोग सभी प्रकार के शैक्षणिक पृष्ठभूमि के लोगों में प्रचलित है, इसमें वे लोग भी सम्मिलित हैं जिनके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है. इस सर्वेक्षण में ज्यादातर उत्तरदाता स्नातक थे(४१%),इसके बाद अन्य तीन वर्गों में कोई महत्वपूर्ण अन्तर नहीं था- परास्नातक(२९%), बारहवीं पास (२८.१०%)तथा वे जिनके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी (३१%)।
सर्वेक्षण के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि ५७ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कभी भी किसी भी प्रकार के तम्बाकू का सेवन नहीं किया और ४३ प्रतिशत उत्तरदाता तम्बाकू का सेवन करते थे.
सर्वेक्षण के तथ्य यह दर्शाते हैं कि ४४ प्रतिशत उत्तरदाता पिछले ०-
५ वर्ष से तम्बाकू का सेवन करते आ रहे हैं,
४३ प्रतिशत उत्तरदाता पिछले ५-
१० वर्षों से तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं,
१२ प्रतिशत उत्तरदाता पिछले १५-
२० वर्षों से तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं,
जबकि १ प्रतिशत उत्तरदाता २० वर्षों से अधिक से तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं।
तम्बाकू के परंपरागत प्रकार (
जैसे कि पान)
अब पुरानी पीढ़ी का शौक है,
नई पीढ़ी अब तम्बाकू के नए प्रकार जैसे-
तम्बाकू टूथपेस्ट,
गुटखा और सिगरेट का सेवन करती है.
तम्बाकू प्रयोग में गुटखा सबसे ज्यादा प्रचलित है.
हमारे सर्वेक्षण के अनुसार,
३९ प्रतिशत उत्तरदाता गुटखे का सेवन करते हैं,
३२ प्रतिशत सिगरेट पीते हैं,
१० प्रतिशत बीड़ी पीते हैं,
जबकि १९ प्रतिशत इनमें से सभी प्रकार के तम्बाकू का सेवन करते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्धयन के अनुसार वर्ष १९९१ से २००२ के बीच प्रर्दशित ४४० बॉलीवुड फिल्मों में तम्बाकू सेवन दिखाया गया था, इनमें चार में से तीन फिल्मों में सिगरेट के माध्यम से तम्बाकू सेवन दिखाया गया है. फिल्मों में हीरो द्वारा तम्बाकू सेवन अक्सर युवाओं को सिगरेट पीने कि तरफ़ आकर्षित करता हैं क्यूँकि वे इसे फैशन और स्टाइल का प्रतीक मानने लगते हैं. ३६ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने सभी तीन कारणों से – व्यावसायिक या निजी तनाव, अपने से बड़ों को सेवन करते हुए देखने से, फिल्मी कलाकारों को या फैशन से प्रभावित होकर तम्बाकू का सेवन शुरू किया . ३० प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने तनाव कि वजह से तम्बाकू का सेवन शुरू किया.
विश्व स्वस्थ्य संगठन तथा रोग नियंत्रण केंद्र के समर्थन से भारत में वर्ष २०००-२००४ के बीच वैश्विक युवा तम्बाकू सर्वेक्षण किया गया जिस के अनुसार करीब ६८.५ प्रतिशत छात्र जो सिगरेट पीते थे, वे इसे छोड़ना चाहते थे जबकि ७१.४ प्रतिशत पिछले वर्षों में इसे छोड़ने का प्रयास कर चुके हैं. पुरे भारत में, ८४.६ प्रतिशत सिगरेट पीने वाले छात्रों को परिवार के सदस्यों, समुदाय के लोगों, डॉक्टर और मित्रो द्वारा इसे छोड़ने के विषय में सलाह एवं सहायता मिली है.लखनऊ में किए गए हमारे सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार ६९ प्रतिशत सर्वेक्षण उत्तरदाताओं ने तम्बाकू सेवन कि आदत को छोड़ने कि कोशिश की है, ३१ प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने तम्बाकू सेवन छोड़ने कि कभी कोई कोशिश नहीं की।
लिखित चेतावनी, टैक्स तथा अन्य प्रतिबन्ध जो सिगरेट के पैकेट पर दिखाई देती हैं वे अन्य तम्बाकू उत्पादों पर अक्सर नही होते. गुटखा, बीड़ी और अन्य तम्बाकू उत्पादों का उत्पादन तथा मार्केटिंग कुछ हद तक असंगठित सेक्टर द्वारा किया जाता है, जिस कारण इन पर नियम तथा कानून लागु करने में परेशानी आती है. परन्तु जब यह सवाल पूछा गया कि बीड़ी और सिगरेट में से कौन ज्यादा नुकसानदायक है तो ४९ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि दोनों ही बराबर नुकसानदायक है, ३० प्रतिशत ने कहा कि बीड़ी ज्यादा नुकसानदायक है .
मई २००८ में भारत के स्वस्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जरी किए गयी बीड़ी मोनोग्राफ के अनुसार बीड़ी कम से कम सिगरेट के बराबर नुकसानदायक है ही. भारत के समतुल्य देश जैसे ब्राजील, थाईलैंड, सिंगापुर, होन्ग कोंग, उरुगुए, वेनेज़ुएला तथा अन्य विकसित देशो ने तम्बाकू के पैकेट का ५० प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा फोटो वाली चेतावनी को दिया है।
सर्वेक्षण के अनुसार ५२ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि पैकेट पर फोटो वाली चेतावनी से जागरूकता बढ़ेगी जबकि ४५ प्रतिशत लोगों का यह मानना था कि इससे जागरूकता पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा.
फोटो वाली चेतावनी का अभी भारत में लागु होना बाकि है इस लिए यह उत्तर लोगों के अनुमानों पर आधारित हैं. पुरे विश्व में फोटो वाली चेतावनी से जागरूकता बढ़ी है, तम्बाकू का सेवन करने वाली संख्या में कमी आई है और इसने तम्बाकू का सेवन छोड़ने के लिए लोगों को प्ररित किया है। थाईलैंड, ब्राजील और एउरोपेये संघ, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और बेल्जियम जैसे देशों में फोटो वाली चेतावनी द्वारा तम्बाकू सेवन करनेवालों के प्रतिशत में भरी कमी आयी है. इन सभी देशों में इस चेतावनी के लागु होने के बाद १% प्रतिशत प्रतिवर्ष कि गिरावट आई है
लखनऊ में किए गए सर्वेक्षण में ३७ प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि फोटो वाली चेतावनी से लोग तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित होंगे जबकि ५६ प्रतिशत लोगों का मानना था कि फोटो वाली चेतावनी से लोग तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित नहीं होंगे।
विश्व स्वस्थ्य संगठन के एक अध्यन के अनुसार इस्चेमिक हार्ट रोग (आई.एच.डी) और अप्रत्यक्ष धूम्रपान का आपस में सम्बन्ध होता है, जिन महिलाओं या पुरूष के पति अथवा पत्नी सिगरेट पीते हैं उनमे आई.एच.डी होने की सम्भावना सामान्य से ३० प्रतिशत अधिक होती है. भारत में अप्रत्यक्ष धूम्रपान के शिकार लोगों में कोरोनरी हार्ट रोग की सम्भावना सिगरेट के धुँए से दूर रहने वालो से २५ प्रतिशत ज्यादा होती है. हमारे सर्वेक्षण के अनुसार ७३ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने यह कहा कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान की रोकथाम के लिए सार्वजनिक तथा निजी स्थानों पर धूम्रपान पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगना चाहिए।
केरल कि हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कि गयी थी जिसमें एक महिला ने यह शिकायत दर्ज कि थी कि अक्सर बस से यात्रा करते हुए अपने सह-यात्रिओं के सिगरेट पीने के कारण उसे स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं. इस अर्जी पर हाई कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान पर बने जन स्वास्थ्य नियम को सरकार को जल्द से जल्द प्रभावकारी ढंग से लागु करना चाहिए। इसी विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने नवम्बर २००१ में पुरे देश में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया जैसे स्कूल, लाइब्रेरी, रेलवे वेटिंग रूम तथा बस और ट्रेन.
भारत के स्वस्थ्य मंत्री,
डॉ.
अम्बुमणि रामदोस ने यह कहा है कि २ अक्टूबर २००८ से सभी सार्वजनिक तथा निजी स्थानों पर धूम्रपान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया जाएगा. सर्वेक्षण में इस सवाल के जवाब में ७१ प्रतिशत लोगों का कहना था कि इसे प्रभावकारी ढंग से लागु नहीं किया जा सकेगा जबकि १९ प्रतिशत लोगों का मत था कि सरकार इसे प्रभावकारी ढंग से लागु कर पायेगी.
लोगों को तम्बाकू के नशे से मुक्त कराने के लिए तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्रों को बढ़ावा देने कि जरूरत है. इसका उल्लेख फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबक्को कंट्रोल (ऍफ़.सी.टी.सी) में किया गया है. भारत सरकार और विश्व स्वस्थ्य संगठन के प्रयासों से भारत में राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ कि स्थापना की गई है. लखनऊ में किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक मात्र १३ प्रतिशत लोगों को यह पता है कि तम्बाकू नशा उन्मूलन सेवाएँ उपलब्ध हैं जबकि ५७ प्रतिशत उत्तरदाताओं को इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी.
भारत में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर १३ केन्द्रों पर तम्बाकू उन्मूलन केंद्र स्थापित किए हैं। वर्ष २००२ में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तम्बाकू नशा उन्मूलन केंद्र (टी.सी.सी) कि विभिन्न स्थानों (हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेज, कैंसर हॉस्पिटल) पर स्थापना की जिससे लोगों को तम्बाकू छोड़ने में मदद दी जा सके. लखनऊ में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से ऐसे ही केंद्र को स्थापित किया गया है. सर्वेक्षण में जब यह सवाल किया गया कि क्या प्रदेश के हर जिला अस्पताल तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर ऐसी सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए तो ९६ प्रतिशत लोगों का यह कहना था कि 'हाँ ऐसी सुविधाएँ हर जिला अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर होनी चाहिए'.
लोगों को तम्बाकू के नशे से मुक्त कराने के लिए तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्रों को बढ़ावा देने कि जरूरत है. इसका उल्लेख फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबक्को कंट्रोल (ऍफ़.सी.टी.सी) में किया गया है. भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रयासों से भारत में राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ कि स्थापना कि गई है.