कृपया ‘फिलिप मौरिस इंटरनेशनल ’ को संदेश भेजें की वह जन स्वास्थ्य नीतियों से दूर रहे

कृपयाफिलिप मौरिस इंटरनेशनलको संदेश भेजें की वह जन स्वास्थ्य नीतियों से दूर रहे
एवं
अंतर्राष्ट्रीय फोटो ज्ञापन में हस्ताक्षर करें, जो फिलिप मौरिस इंटरनेशनल को प्रेषित किया जायेगा


सेवा में,
श्रीमान लुई केमिलेरी,
चीफ एक्जीक्यूटिव आफिसर,
फिलिप मौरिस इंटरनेशनल ,
लौसें ,
स्विट्जरलैंड


प्रिय श्री केमिलेरी,

मैं, चौदहवें अंतर्राष्ट्रीयतम्बाकू एवं स्वास्थ्यअधिवेशन' में एक प्रतिभागी होने के नाते से इस बात से अत्यन्त क्षुब्ध हूँ कि आपकी कंपनी का मुख्य उद्देश्य एक ऐसी रोकी जा सकने वाली महामारी को फैलाना है जिसकी चपेट में आकर विश्व के ५० लाख व्यक्ति मौत के शिकार होने वाले हैं

सभी स्वास्थ्य अधिकारी एवं जन अधिकारी, सर्व सम्मति से यह मानते हैं कि जन स्वास्थ्य नीतियों के निर्धारण में तम्बाकू उद्दोग का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिएविश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रतिपादितअंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधिमें भी इस विचार को सम्मिलित किया गया है

पिछले वर्ष, नवम्बर माह में दक्षिण अफ्रीका में हुए संधि सम्मलेन में, अनुमोदन करने वाले राष्ट्रों ने विशेष मानक तय किए थे कि किस प्रकार जनहित स्वास्थ्य नीतियों के निर्धारण में, फिलिप मौरिस और अन्य तम्बाकू कंपनियों का हस्तक्षेप हो

मेरा देशभारत’, उन १६० से भी अधिक देशों में से एक है, जिन्होनें अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू संधि का अनुमोदन किया है

इस समय, जब आपकी कंपनी के बोर्ड के सदस्य, वरिष्ठ अधिकारी एवं अन्य भागीदार, अपने वार्षिक सम्मलेन के लिए एकत्रित हो रहे हैं, तब मैं तथा विश्व के अन्य व्यक्ति आपको केवल एक सीधा और साफ़ संदेश देना चाहते हैं किआप कृपया जन स्वास्थ्य नीतियों से दूर रहें’।

भवदीय,
नाम ---------------
संस्था ---------------
देश ------------------



कृपया इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके ‘कारपोरेट अकाउंट बिलिटी
इंटरनेशनल ’ को भेजें
अपनी फोटो प्रदर्शिनी स्थल पर ऍफ़ .सी ए . बूथ में खिंचवा लें।





मायावती जी, हमारे लिए घर के बदले बुलडोज़र क्यों?

मायावती जी, हमारे लिए घर के बदले बुलडोज़र क्यों?
दलित
हितैषी सरकार ने दलितों-गरीबों को बेघर किया


१९ फ़रवरी को बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा के इशारे पर स्थानीय प्रशासन ने बर्बरतापूर्वक लखनऊ के डालीगंज छेत्र में गोमती नदी के तट पर नदवा बस्ती को तोड़ गिराया।

यह घटना प्रदेश सरकार एवं केंद्रीय सरकार दोनों की ही हर-गरीब-को-घर देने की नीति पर सवाल खड़े कर देती है.
बिना वैकल्पिक आवास की व्यवस्था किए हुए जिस बर्बरता एवं संवेदनहीनता के साथ प्रशासन ने बुलडोज़रों से घरों को तोड़ गिराया है, यह अमानवीय है। इन घरों को तोड़ने का और सैकड़ों लोगों को विस्थापित करने का जो कारण बताया जा रहा है कि गोमती नदी के तट पर निजी कंपनी द्वारा ‘विकास’ एवं सुन्दरीकरण आदि का कार्य कराया जाएगा, जिससे निजी कंपनियों को और पूंजीपतियों को ही लाभ मिलेगा, यह विकास का तरीका हमें स्वीकार नहीं है।


इसी के विरोध में विस्थापित लोगों ने एवं शहर के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने विधान सभा के सामने धरना प्रदर्शन किया है. इनकी मांग है कि विस्थापित लोगों को घर प्रदान किए जाएँ और इस तरह के 'विकास' को रोका जाए जिससे गरीब लोग विस्थापित होते हैं और सिर्फ़ पूंजीपतियों को ही लाभ मिलता हो।

डॉ संदीप पाण्डेय, एस आर दारापुरी, अरुंधती धुरु, चुन्नी लाल, एवं आशा परिवार और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के अन्य लोग

दलित हितैषी सरकार ने दलितों-गरीबों को बेघर किया

दलित हितैषी सरकार ने दलितों-गरीबों को बेघर किया

नदवा झोपड़-पट्टी को प्रशासन के बुलडोज़रों ने तोड़ गिराया

आज बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा के इशारे पर स्थानीय प्रशासन ने लखनऊ के डालीगंज छेत्र में नदवा झोपड़-पट्टी को बुलडोज़रों से तोड़ गिराया। २५० से भी अधिक लोग बेघर हो गए। यह घटना प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती के दावे पर सवाल खड़े कर देती है जो मायावती ने अपने जन्मदिन पर किया था - कि उत्तर प्रदेश के हर गरीब को घर मिलेगा।

जब वरिष्ट सामाजिक कार्यकर्ता एवं रामों मग्सय्सय पुरुस्कार से सम्मानित डॉ संदीप पाण्डेय नदवा झोपड़-पट्टी की और जा रहे थे तब पुलिस ने उनको जबरन हिरासत में ले लिए और नदवा जाने से रोका, और हसनगंज पुलिस थाने में रोक कर रखा।

'बेसिक सर्विसेस फॉर उर्बन पुअर' या BSUP के तहत जो मकान गरीबों को मिलने वाले थे, उनको पाने के लिए इस झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोग पैसा इकठ्ठा कर रहे थे। इससे पहले कि BSUP वाले घर बन कर तैयार हों, प्रशासन ने इनको बर्बरतापूर्वक बेघर कर दिया। इस नदवा झोपड़-पट्टी में अधिकाँश लोग जो रहते हैं वोह दलित हैं।

जब दोपहर में डॉ संदीप पाण्डेय को हसनगंज पुलिस थाने से बहार जाने की अनुमति मिली, तब तक नदवा झोपड़-पट्टी को बुलडोज़रों ने पूरी तरह से तोड़ दिया था। जो २५० लोग बेघर हुए थे उन्होंने विधान सभा के सामने धरना देने के लिए प्रस्थान कर दिया कि उनको वैकल्पिक रहने की जगह मिले जबतक BSUP वाले मकान बन कर तैयार नहीं हो जाते।

परन्तु रास्ते में ही इन विस्थापित लोगों में से एक महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। अपर जिला मजिस्ट्रेट ओ.पी.पाठक जी ने समय से एंबुलेंस बुला कर इस महिला को जिला अस्पताल में भिजवाया जिससे इसको उपयुक्त चिकित्सकिये सहायता मिल सके।

लखनऊ के नागरिक, तमाम सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने और जो २५० से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं, उन्होंने प्रदेश सरकार से वैकल्पिक रहने के स्थान के लिए मांग की है, और जल्द-से-जल्द BSUP वाले मकानों को पूरा बनाने के लिए और इन लोगों को आवंटित करने के लिए भी मांग की है।


डॉ संदीप पाण्डेय, एस.आर दारापुरी, चुन्नी लाल, चंद्र भूषण एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) एवं आशा परिवार के अन्य लोग

पुलिस की उपस्थिति में बसपा से जुड़े प्रधान के पति द्वारा लाठियाँ चलवाने व् मजदूरी न देने के मामले में अभी तक कार्यवाही नहीं

पुलिस की उपस्थिति में बसपा से जुड़े प्रधान के पति द्वारा लाठियाँ चलवाने व् मजदूरी न देने के मामले में अभी तक कार्यवाही नहीं

१४ जनवरी २००९ को हरदोई जिले के भरावन विकास खंड की ग्राम पंचायत एराकाकेमऊ में बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता व् ग्राम प्रधान के पति धनश्याम ने जो अनुसूचित जाति के मजदूरों पर लाठियाँ चलवाई उस मामले में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है . मजदूर ग्राम प्रधान के घर अपनी बकाया मजदूरी मांगने उपस्थित हुए थे।

लाठी चलने से एक अनुसूचित जाति के मजदूर मेदयी (पुत्र नारायण) व् आशा परिवार कार्यकर्ता राम भरोसे चोटिल हुए . यह घटना थानाध्यक्ष अतरौली व् उनके पुलिसकर्मियों की उपस्थिति में हुई . इस घटना के एक माह बाद भी उपर्युक्त पंचायत के लालपुर गाँव के ४० से ऊपर मजदूरों को अभी पूरी मजदूरी नहीं मिली है जो राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना का उलंघन है।


प्रधानपति ने ग्राम पंचायत खाते से अवैध रूप से पैसे भी निकाले हैं जो बात जॉब कार्ड पर चढ़े फर्जी मजदूर दिवसों और भुगतान की गई राशि से स्पष्ट होती है।


पुलिस के सामने मजदूरों पर लाठी चलाने तथा ग्राम पंचायत के खाते से पैसा निकाल लेने की जाँच व् दोषी पाए जाने पर घनश्याम के विरुद्ध कार्यवाही की मांग को लेकर करीब १२५ ग्रामीण हरदोई जिला मुख्यालय पर १६/०२/२००९ से धरने पर बैठें हैं तथा आज से दो कार्यकर्ता मोह्हमद नसीम व् रामप्रकाश अनशन भी शुरू कर चुके हैं।

यह मुहीम राजनीति में अपराध व् भ्रष्टाचार जो एक दुसरे को पुष्ट करते हैं , key ख़िलाफ़ है. राजनीति में भ्रष्टाचार व् अपराध के हावी होने का खामियाजा आम नागरिक को ही उठाना पड़ता है kyonki वह अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हो जाता है।

एक दलित हितैषी सरकार जो भय मुक्त समाज बनाने का दावा करती है key साशन में ही खुलेआम भ्रष्ट व अपराधी तत्वों को राजनीतिक संगरक्षण प्राप्त है इससे ज्यादा खतरनाक बात लोकतंत्र के लिए नही हो सकती .

अपराध व् भ्रष्टाचार के विरुद्ध आशा परिवार व् जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय का संघर्ष जारी रहेगा .

मेदयी रामभरोसे संदीप पाण्डेय

निर्धन रोगियों के मसीहा - मनीष

निर्धन रोगियों के मसीहा - मनीष


यदि आज २७ वर्षीय मनीष लखनऊ में ज़रूरत मंद मरीजों की सेवा न कर रहे होते तो कदाचित अपने जन्म स्थानबलिया जिले में कपड़े धो रहे होते। मनीष का जन्म धोबी जाति में हुआ, जो एक अनुसूचित जाति है। जब मनीष नवीं कक्षा में पढ़ते थे तब उन्हें अपने सहपाठियों के घर से धुलाई के लिए कपड़े लाने एवं धुले हुए कपड़े घरपहुँचाने पड़ते थे। यह कार्य उन्हें तनिक भी रुचिकर नहीं लगता था। स्कूल के अन्दर तो वे अपने मित्रों के समकक्ष थे। परन्तु उन्हीं मित्रों के घर जब वो धुलाई के कपड़े लेने जाते तो बराबरी का दर्जा ख़त्म हो जाता। उनसे एक धोबी की तरह व्यवहार किया जाता। जाँत- पात, धनी- निर्धन, का भेदभाव उन्हें दु:खी कर देता। जब कोईउनके पिता के साथ दुर्व्यवहार करता तो उनका मन क्षोभ से भर जाता। मनीष ने तय किया कि वो अपना पुश्तैनी धंधा छोड़कर कोई और सम्मानीय कार्य करेंगे। चार बार हाईस्कूल में फेल होने के बाद उन्होंने बिजनेस करने की ठानी। वो थोक में बिजली का सामान खरीद कर बेचने लगे। धीरे धीरे बिजली से सम्बंधित मरम्मत का काम भी सीख लिया।


सन् २००० में मनीष लखनऊ आकर एक स्वयं सेवी संस्था के ग्रामीण केन्द्र ‘आशा आश्रम’में कार्य करने लगे। यह केन्द्र लखनऊ से ६० किलोमीटर दूर हरदोई जिले के लालगंज गाँव में स्थित है। अपनी ईमानदारी के कारण मनीष को आश्रम के आय व्यय का हिसाब देखने का काम दिया गया। इसके अलावा, वो कभी कभी गाँव के रोगियों को इलाज के लिए लखनऊ ले जाते थे। सन् २००४ में उन्होंने अपने निष्काम सेवा भाव से अपने एक सहकर्मी, लक्ष्मीनारायण की जान बचाई। मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित लक्ष्मी नारायण ७ दिनों तक बेहोश रहे। उनके परिवार ने भी उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी। पर मनीष ने हार नहीं मानी। वो उन्हें इलाज के लिए लखनऊ के मेडिकल कालेज ले आए। अपनी अथक सेवा से मनीष ने अपने साथी की जान बचा ली।


तब पहली बार लोगों ने मनीष के अन्दर छिपे हुए इस गुण को पहचाना। अब मनीष आशा परिवार के स्वास्थ्यसेवा स्वयं सेवक बन गए। उन्होंने लखनऊ को अपना कार्यक्षेत्र बनाया, क्योंकि आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों के गंभीर रोगी इलाज के लिए लखनऊ ही आते हैं। लखनऊ मेडिकल कालेज को केन्द्र बना कर वो निर्धन रोगियों की सेवा में जुट गए। शहरी अस्पतालों से अनभिज्ञ रोगियों को वे उचित सलाह देते हैं तथा सरकारी अस्पतालों में उन्हें नि:शुल्क अथवा कम दाम में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में तत्पर रहते हैं। अपने कार्य करने के दौरान मनीष ने देखा कि सरकारी अस्पताल में चिकित्सा हेतु आए अनेक ग्रामीण रोगी दलालों के चक्कर में पड़ कर, प्राइवेट अस्पतालों में जाकर हजारों रुपये व्यय करने को बाध्य हो जाते हैं। मनीष को दु:ख है कि स्वास्थ्य परिचार को सेवाभाव से नहीं देखा जाता। उनके अनुसार केवल ५% डाक्टर एवं स्वास्थ्य कर्मी ही रोगियों के प्रति संवेदनशील हैं।


मनीष बेघर और लावारिस लोगों की सेवा में भी तत्पर रहते हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति लच्छू की सहायता करके पहले उसका इलाज मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग में कराया, फिर आशा आश्रम में कई महीनों तक रखा। लच्छू की भाषा किसी को समझ ही नही आती थी, इस कारण उसके घरवालों से संपर्क नहीं हो पा रहा था। बाद में एक पुलिस अफसर की मदद से पता चला कि वो झारखंड प्रदेश के गाँव का निवासी था। उसके घर का पता लगा कर मनीष ने उसे उसके परिवार से मिला दिया। इसी प्रकार एक गरीब रिक्शा चालक के लीवर के आपरेशन के लिए पैसे जुटा कर मनीष ने उसका इलाज कराया। इस प्रकार अनगिनत बेसहारा और गरीब लोगों की नि:स्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं मनीष। अब तो मेडिकल कालेज के अनेक डाक्टर एवं छात्र भी मनीष के सेवाकार्य में आर्थिक सहयोग देते हैं। हाल ही में वहाँ ‘जियोर्जियन होप’ नामक संगठन बना है जो अन्य सेवा कार्यों केअलावा, मनीष के सेवा कार्यों में भी योगदान देगा।


मनीष का सपना है कि वो गरीबों के इलाज के लिए एक ऐसा अस्पताल बनाएं जहाँ चिकित्सा सुविधाएं नि:शुल्क अथवा बहुत कम दामों पर उपलब्ध हों। उनकी लगन और मेहनत से यह स्वप्न अवश्य साकार होगा। मनीष का जीवन पूर्ण रूप से निर्बल एवं निर्धन व्यक्तियों की सेवा में ही समर्पित है।


(मौलिक रूप से यह लेख डॉ संदीप पाण्डेय द्वारा अंग्रेज़ी में रचित है जिसको यहाँ पर क्लिक करने से पढ़ा जा सकता है। इसका अनुवाद शोभा शुक्ला जी द्वारा किए गया है जिसके लिए हम सब कृतज्ञ हैं)


काला अज़ार का बढ़ता प्रकोप

काला अज़ार का बढ़ता प्रकोप
अमित द्विवेदी, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट
लखनऊ, उत्तर प्रदेश


काला अज़ार के रोगियों के लिए पर्याप्त जाँच और दवाएं उपलब्ध नहीं

काला अज़ार के रोगियों के लिए पर्याप्त जाँच और दवाएं उपलब्ध नहीं

काला अज़ार पर चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) ने कहा कि काला अज़ार का अनुपात कम करने के लिए और काला अज़ार के उपचार के लिए जो दवाइयाँ हैं उनके प्रति लोगों में प्रतिरोधकता का दर कम करने के लिए, यह आवश्यक है कि काला अज़ार के उपचार के लिए असरदायक दवाओं की उपलब्धता बढ़ाई जाए और इसकी जाँच होने के लिए सुविधाएँ बढ़ाई जाए। इस अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) एक अति-महत्त्वपूर्ण शोध के परिणाम घोषित कर रहा है जिसके अनुसार काला अज़ार के उपचार में "लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी" (अम्बिसोम) एक प्रभावकारी भूमिका निभा सकता है।

बिहार प्रदेश में, जहाँ काला अज़ार महामारी का रूप लिए हुए है, वहाँ पर 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) के शोध से यह नतीजा सामने आया है कि 'लिपोसोमल अम्फोतेरीसिन बी' से काला अज़ार का उपचार अत्यधिक प्रभावकारी है, और सफल इलाज का दर ९८% आया है, काला-अज़ार सम्बंधित मृत्यु दर भी कम हुआ है और काला अज़ार का उपचार सफलतापूर्वक पूरा करने वालों के दर में भी गिरावट आई है। इस 'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' से काला अज़ार के उपचार करने पर, इस रोग के दुबारा होने के दर में भी कमी आई है, यह दवाएं कम 'टोक्सिक' हैं, और उपचार की अवधि अन्य दवाओं के मुकाबले कम है।

"हालाँकि काला अज़ार के उपचार के लिए 'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' एकमात्र दवा नहीं है, परन्तु यह शोध द्वारा प्रमाणित हुआ है कि यह सबसे प्रभावकारी और सुरक्षित इलाज का विकल्प है। हमारा मानना है कि इस दवा को 'काला अज़ार के उपचार के लिए भारतीय प्रोटोकोल' में शामिल करना चाहिए" कहना है डॉ० नायिन्स लीमा का जो 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) की 'ट्रोपिकल' चिकित्सक सलाहाकार हैं।

यदि काला अज़ार का इलाज न किया जाए, तो यह घातक भी हो सकती है। मानव में काला अज़ार का रोग, काला-अज़ार से संक्रमित 'सैण्ड' मक्खी के काटने से फैलता है। हालाँकि विकसित देश काला अज़ार से संभवत: अनभिज्ञ हैं, यह 'पैरासिटिक' रोग विश्व में लगभग १ करोड़ २० लाख लोगों को ग्रसित किए हुए है। प्रति वर्ष लगभग ५ लाख लोग काला अज़ार से संक्रमित होते हैं, और इनमें से ५० प्रतिशत भारत में है। भारत में काला अज़ार विशेषकर बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में महामारी का अनुपात लिए हुए है। इन भारतीय प्रदेशों में काला अज़ार मुख्यत: ग्रामीण छेत्रों में हाशिये पर रह रहे गरीब लोगों को ही सबसे भयंकर तरीके से प्रभावित करता है।

'सोडियम स्टिबोग्लूकोनेट', काला अज़ार का सबसे प्रचलित उपचार है। परन्तु इस दवा से लोगों में बढ़ती प्रतिरोधकता अत्यन्त चिंता का विषय है - खासकर कि भारत में, जहाँ लगभग ६५ प्रतिशत रोगियों को ऐसा काला अज़ार होता है जिसका कीटाणु संक्रमण के पहले से ही इस दवा के प्रति प्रतिरोधक होता है, और इसीलिए इन लोगों में यह दवा असरकारी होगी ही नहीं। शोध एवं विकास कार्यक्रमों ने काला अज़ार को नज़रअंदाज़ किया है।

"विकासशील देशों में काला अज़ार के रोगियों को बहुत लंबे समय तक नज़रअंदाज़ किया गया है। हमारे प्रोजेक्ट में, लोग तब स्वास्थ्य केन्द्र पर आते हैं जब काला अज़ार का रोग बहुत बढ़ गया होता है क्योंकि इन लोगों को न तो काला अज़ार के प्रारंभिक लक्षण के बारे में जानकारी होती है, और न ही यह पता होता है कि काला अज़ार की जांच के लिए और इलाज के लिए कहाँ जाएँ", कहना है गारेथ बैरेट का। "जिन लोगों में काला अज़ार का अनुपात अत्याधिक है, उनको जांच और उपचार उपलब्ध नहीं है, और गरीबी के कारण अक्सर इन्हीं लोगों में उपचार गुणात्मक दृष्टि से कमजोर होता है, जिससे काला अज़ार फैलने का खतरा और दवा के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है"

'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' दवा से काला अज़ार के उपचार का खर्च रुपया २१,८५५ (यूरो ३५०) प्रति रोगी आता है जो बहुत महँगा है। "इस दवा की कीमत को जल्द-से-जल्द कम करने की आवश्यकता है, 'जेनेरिक' दवाएं एवं अन्य दवाओं के साथ मिलाकर इसको बनाने की भी जरुरत है जिससे कि भारत जैसे देशों में यह दवा काला अज़ार के उपचार के लिए प्रथम इलाज का विकल्प हो" कहना है गारेथ बैरेट का।

'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) इस सत्य का स्वागत करता है कि काला अज़ार पर अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन भारत में संपन्न हो रहा है, और भारत से अपील करता है कि वोह काला अज़ार की रोकधाम के लिए स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त बनाने का वादा करे, और जो लोग समाज में हाशिये पर रहते हैं और काला अज़ार से सबसे अधिक संक्रमित हो सकते हैं, उन तक काला अजार की जांच एवं उपचार सेवाएँ उपलब्ध कराये।

'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है, जो भारत में १९९९ से कार्यरत है। बिहार में हाजीपुर रेफेरल अस्पताल में, एम्.एस.ऍफ़ काला अज़ार की जांच और उपचार सेवाएँ लोगों को प्रदान कर रहा है। जुलाई २००७ से एम्.एस.ऍफ़ ने ६,५०० से भी अधिक लोगों को काला अज़ार की जांच सेवाएँ उपलब्ध करायी हैं, और इनमें से जिन २,५०० लोगों को काला अज़ार संक्रमण था, उनको 'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' से उपचार उपलब्ध कराया है।

काला अज़ार के रोगियों के लिए पर्याप्त जाँच और दवाएं उपलब्ध नहीं

काला अज़ार के रोगियों के लिए उचित/ पर्याप्त जाँच और दवाएं उपलब्ध नहीं

लखनऊ/ बार्सेलोना, ३ फरवरी २००९: काला अज़ार पर चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) ने कहा कि काला अज़ार का अनुपात कम करने के लिए और काला अज़ार के उपचार के लिए जो दवाइयाँ हैं उनके प्रति लोगों में प्रतिरोधकता का दर कम करने के लिए, यह आवश्यक है कि काला अज़ार के उपचार के लिए असरदायक दवाओं की उपलब्धता बढ़ाई जाए और इसकी जाँच होने के लिए सुविधाएँ बढ़ाई जाए। इस अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) एक अति-महत्त्वपूर्ण शोध के परिणाम घोषित कर रहा है जिसके अनुसार काला अज़ार के उपचार में "लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी" (अम्बिसोम) एक प्रभावकारी भूमिका निभा सकता है।

बिहार प्रदेश में, जहाँ काला अज़ार महामारी का रूप लिए हुए है, वहाँ पर 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) के शोध से यह नतीजा सामने आया है कि 'लिपोसोमल अम्फोतेरीसिन बी' से काला अज़ार का उपचार अत्यधिक प्रभावकारी है, और सफल इलाज का दर ९८% आया है, काला-अज़ार सम्बंधित मृत्यु दर भी कम हुआ है और काला अज़ार का उपचार सफलतापूर्वक पूरा करने वालों के दर में भी गिरावट आई है। इस 'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' से काला अज़ार के उपचार करने पर, इस रोग के दुबारा होने के दर में भी कमी आई है, यह दवाएं कम 'टोक्सिक' हैं, और उपचार की अवधि अन्य दवाओं के मुकाबले कम है।

"हालाँकि काला अज़ार के उपचार के लिए 'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' एकमात्र दवा नहीं है, परन्तु यह शोध द्वारा प्रमाणित हुआ है कि यह सबसे प्रभावकारी और सुरक्षित इलाज का विकल्प है। हमारा मानना है कि इस दवा को 'काला अज़ार के उपचार के लिए भारतीय प्रोटोकोल' में शामिल करना चाहिए" कहना है डॉ० नायिन्स लीमा का जो 'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) की 'ट्रोपिकल' चिकित्सक सलाहाकार हैं।

यदि काला अज़ार का इलाज न किया जाए, तो यह घातक भी हो सकती है। मानव में काला अज़ार का रोग, काला-अज़ार से संक्रमित 'सैण्ड' मक्खी के काटने से फैलता है। हालाँकि विकसित देश काला अज़ार से संभवत: अनभिज्ञ हैं, यह 'पैरासिटिक' रोग विश्व में लगभग १ करोड़ २० लाख लोगों को ग्रसित किए हुए है। प्रति वर्ष लगभग ५ लाख लोग काला अज़ार से संक्रमित होते हैं, और इनमें से ५० प्रतिशत भारत में है। भारत में काला अज़ार विशेषकर बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में महामारी का अनुपात लिए हुए है। इन भारतीय प्रदेशों में काला अज़ार मुख्यत: ग्रामीण छेत्रों में हाशिये पर रह रहे गरीब लोगों को ही सबसे भयंकर तरीके से प्रभावित करता है।

'सोडियम स्टिबोग्लूकोनेट', काला अज़ार का सबसे प्रचलित उपचार है। परन्तु इस दवा से लोगों में बढ़ती प्रतिरोधकता अत्यन्त चिंता का विषय है - खासकर कि भारत में, जहाँ लगभग ६५ प्रतिशत रोगियों को ऐसा काला अज़ार होता है जिसका कीटाणु संक्रमण के पहले से ही इस दवा के प्रति प्रतिरोधक होता है, और इसीलिए इन लोगों में यह दवा असरकारी होगी ही नहीं। शोध एवं विकास कार्यक्रमों ने काला अज़ार को नज़रअंदाज़ किया है।

"विकासशील देशों में काला अज़ार के रोगियों को बहुत लंबे समय तक नज़रअंदाज़ किया गया है। हमारे प्रोजेक्ट में, लोग तब स्वास्थ्य केन्द्र पर आते हैं जब काला अज़ार का रोग बहुत बढ़ गया होता है क्योंकि इन लोगों को न तो काला अज़ार के प्रारंभिक लक्षण के बारे में जानकारी होती है, और न ही यह पता होता है कि काला अज़ार की जांच के लिए और इलाज के लिए कहाँ जाएँ", कहना है गारेथ बैरेट का। "जिन लोगों में काला अज़ार का अनुपात अत्याधिक है, उनको जांच और उपचार उपलब्ध नहीं है, और गरीबी के कारण अक्सर इन्हीं लोगों में उपचार गुणात्मक दृष्टि से कमजोर होता है, जिससे काला अज़ार फैलने का खतरा और दवा के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है"

'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' दवा से काला अज़ार के उपचार का खर्च रुपया २१,८५५ (यूरो ३५०) प्रति रोगी आता है जो बहुत महँगा है। "इस दवा की कीमत को जल्द-से-जल्द कम करने की आवश्यकता है, 'जेनेरिक' दवाएं एवं अन्य दवाओं के साथ मिलाकर इसको बनाने की भी जरुरत है जिससे कि भारत जैसे देशों में यह दवा काला अज़ार के उपचार के लिए प्रथम इलाज का विकल्प हो" कहना है गारेथ बैरेट का।

'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) इस सत्य का स्वागत करता है कि काला अज़ार पर अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन भारत में संपन्न हो रहा है, और भारत से अपील करता है कि वोह काला अज़ार की रोकधाम के लिए स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त बनाने का वादा करे, और जो लोग समाज में हाशिये पर रहते हैं और काला अज़ार से सबसे अधिक संक्रमित हो सकते हैं, उन तक काला अजार की जांच एवं उपचार सेवाएँ उपलब्ध कराये।

'सरहद-रहित चिकित्सकों' (मेडिसिन्स सांस फ्रंटइर्स - एम्.एस.ऍफ़) एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है, जो भारत में १९९९ से कार्यरत है। बिहार में हाजीपुर रेफेरल अस्पताल में, एम्.एस.ऍफ़ काला अज़ार की जांच और उपचार सेवाएँ लोगों को प्रदान कर रहा है। जुलाई २००७ से एम्.एस.ऍफ़ ने ६,५०० से भी अधिक लोगों को काला अज़ार की जांच सेवाएँ उपलब्ध करायी हैं, और इनमें से जिन २,५०० लोगों को काला अज़ार संक्रमण था, उनको 'लिपोसोमल अम्फोतेरिसिन बी' से उपचार उपलब्ध कराया है।

अधिक जानकारी के लिए, संपर्क करें:
टोन ली सैंडविक:+ 91 9934359550, लीना मेंघनेय: +91 9811365412

शंकर सिंह - दलाली से सामाजिक कार्य तक का लंबा सफर

शंकर सिंह - बिचौलिये से सामाजिक कार्य तक का लंबा सफर

शंकर सिंह सड़क परिवहन विभाग से सम्बद्ध एक बिचौलिए थे। उनका काम था लोगों से पैसे लेकर तथा इस विभाग के अधिकारियों को घूस देकर लाइसेंस संबंधी काम करवाना। परन्तु आज वो कानपुर में सूचना के अधिकार को समर्पित एक उत्साही कार्यकर्ता हैं तथा विभागीय भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कृतसंकल्प हैं। शंकर सिंह का बचपन आर्थिक कठिनायिओं में बीता। उनके पिता जे.के. जूट मिल में काम करते थे, परन्तु एक दुर्घटना के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पडी। फिर वे अपने आठ बच्चों की मदद से ‘राजा टी स्टाल’ नामक ढाबा चलाने लगे।

शंकर को किसी प्रकार रोशन ट्रांसपोर्ट कंपनी में २००० रुपये मासिक पर नौकरी मिल गयी। उनका काम था रोड एवं अन्य टैक्स परिवहन विभाग में जमा कराना और नयी गाड़ियों को लाइसेंस और परमिट दिलाना तथा उनका पंजीकरण कराना। २००६ में वे अकारण ही एक मारुती बैन के अनियमित विक्रय में फँस गए । एक बैंक से लोन लेकर खरीदी गई गाडी को दूसरे बैंक से लोन लेकर एक दूसरे व्यक्ती ने खरीदा। परिवहन विभाग के एक क्लर्क ने अपने अधिकारी के कहने पर शंकर सिंह को पीट दिया। यह मार जैसे उनके आत्म सम्मान पर चोट थी।

उन्होंने मुख्य मंत्री से लेकर परिवहन आयुक्त से लिखित शिकायत करके परिवहन विभाग में व्याप्त अनियमितताओं का पर्दा फाश किया। परिवहन आयुक्त ने समझौता करा दिया तथा क्लर्क ने शंकर सिंह से माफी मांग ली। परन्तु अब शंकर दलाली के काम से ऊब चुके थे। उन्होंने सूचना के अधिकार से सम्बंधित एक जन अभियान की ख़बर अखबार में पढी। और वो इस अभियान के एक सक्रीय कार्यकर्ता बन गए। परिवहन विभाग में मोटर चालक के लर्नर लाइसेंस बनाने के लिए ६० रुपये के स्थान पर २०० रुपये लिए जाते थे तथा मुख्य लाइसेंस की फीस १४० रुपये के स्थान पर ३५० ली जाती थी। शंकर एवं उनके साथियों ने ( सूचना का अधिकार) कैम्प लगा कर यह भ्रष्टाचार बंद कराया।

जो शंकर सिंह पहले घूस देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते थे, वही अब उसकी रोक थाम में लग गए। शंकर सिंह नवम्बर २००६ से अब तक अनेकों सूचना के अधिकार कैम्पों में भाग ले चुके हैं। वे कानपुर क्षेत्र के सूचना के अधिकार अभियान कमेटी के अभिन्न अंग हैं। कानपुर में प्रत्येक माह में लगभग १० कैम्प आयोजित किए जाते हैं। इनमें ५० से लेकर २०० तक आवेदन तैयार कर के विभिन्न सरकारी विभागों जैसे कानपुर नगर निगम, जल संस्थान, पुलिस विभाग, जिला पूर्ति कार्यालय, आवास विकास इत्यादि। में भेजी जाती हैं।

पिछले वर्ष हाईस्कूल परीक्षाफल निकलने के बाद अनेक छात्र अपनी उत्तर पुस्तिका देखने को उत्सुक थे, क्योंकि उनके अनुसार उनकी उत्तर पुस्तिकाओं का उचित मूल्यांकन नहीं हुआ था। शंकर सिंह की सहायता से तुंरत ही ६ दिवसीय कैम्प का आयोजन किया गया जिसमें १२०० विद्यार्थियों ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन तैयार किया। इस प्रकार इन जन अभियानों के द्वारा नागरिकों में अपने मूलभूत अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है। मई २००८ में शंकर सिंह ने उन्नाव जिले के मियाँगंज विकास खंड में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत सामाजिक अंकेक्षण या जनता जाँच में भी भाग लिया।
उन्होंने उन्नाव के ग्रामीण क्षेत्रों में ९ दिन बिता कर वहाँ की पंचायतों और खंड विकास कार्यालय की कार्य शैली का अध्ययन किया तथा ग्रामीण मजदूरों से बातचीत करके उनकी समस्याओं को समझने की चेष्टा की । इस प्रकार उनका कार्यक्षेत्र अब पहले से अधिक व्यापक हो गया है। जैसे जैसे उनकी समझ बढ़ रही है वैसे वैसे वे अनेकों सामाजिक कार्यों से जुड़ रहे हैं।

शंकर सिंह ने जो कर दिखाया है वह अनुकरणीय है। भ्रष्टाचार के दलदल से स्वयं को बाहर निकाल कर वे दलितों एवं कमज़ोर वर्ग के लोगों का जीवन सँवारने में लगे हैं। वे जन साधारण को प्रेरित करते हैं कि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों एवं उनको हासिल के लिए लड़ें । अब शंकर सिंह अपने कार्य क्षेत्र का और भी विस्तार करना चाहते हैं। वे भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते हैं ताकि अपने उद्धेश्य में और अधिक कामयाब हो सकें तथा अधिक लोगों की सेवा कर सकें।

(मौलिक रूप से यह लेख डॉ संदीप पाण्डेय द्वारा अंग्रेज़ी में रचित है जिसको यहाँ पर क्लिक करने से पढ़ा जा सकता है। इसका अनुवाद शोभा शुक्ला जी द्वारा किए गया है जिसके लिए हम सब कृतज्ञ हैं)