२०३० सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाल विवाह एक बड़ी बाधा

बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
वर्ष २००० में भारत समेत विश्व के 192 देशों ने सहस्त्रादि विकास लक्ष्य के अंतर्गत २०१५ ‎तक कुछ बडे लक्ष्यों को प्राप्त करने का वायदा किया था। इन लक्ष्यों में एक प्रमुख लक्ष्य था मातृ एवं नवजात ‎शिशु मृत्यु दर में कमी लाना। लेकिन उसको प्राप्त करने के लिए जो मानक तय किये गये ‎थे उन्हें प्राप्त करने में भारत समेत कई देश विफल रहे। ‎सितम्बर २०१५ में  संयुक्त राष्ट्र संघ के १९३ सदस्य देशों ने १७ सतत विकास लक्ष्यों ‎को पारित किया है जिन्हें वर्ष २०३० तक पूरा करने का समय निर्धारित किया गया है। तय किये गये १७  ‎लक्ष्यों के १६९ टार्गेट्स हैं जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगें। ‎

ग्रामीण परिपेक्ष्य में महिला और बाल स्वास्थ्य

मधुमिता वर्मा, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
यदि हम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो कुपोषण, साफ़-सफाई का न  होना, अस्वच्छता, वायु एवं धुएं का प्रदूषण, खुले में शौच, अज्ञानता, उचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, आदि अनेक ऐसे कारण हैं  जिनके चलते ग्रामीण वासियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को अनेक प्रकार की बीमारियों को झेलना पड़ता है।

यौनिक शो‎षण- चुप्पी तोडनी ही होगी...

बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटीजन न्यूज सर्विस ‎- सीएनएस 
फोटो क्रेडिट: सीएनएस 
देश में यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी सामाजिक चुप्पी, भ्रम व मिथक की वजह से हर ‎रोज किशोर व युवा महिलाओं से जुडे यौन उत्पीडन के कई मामले सामने आते है। यह वह ‎मामले होते है जिसमें यौन उत्पीडन की शिकार महिला या तो पुलिस के पास शिकायत के ‎‎रूप में लेकर जाती है, या अत्यन्त जघन्य होने की दशा में ही सामने आ पाते है। लेकिन ‎ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि यौनिक हिंसा की शिकार होने वाली महिला अपने ‎ऊपर होने वाले यौनिक अत्याचार को या तो चुपचाप सहती रहती है या परिवार के लोगों द्वारा ‎‎ऐसे मामलो को दबा दिया जाता है। ‎

वास्तविकता से इंकार क्यों ?

नीतू यादव, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस 
जब हमारे भारतीय समाज में मानव शरीर से जुड़ी प्राथमिक आवश्यकताओं की बात की जाती है तो प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ रोटी, कपड़ा, और मकान का जिक्र करता है किन्तु   शरीर  के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय पर कोई भी  चर्चा नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे समाज में प्रारंभ से ही किशोर-किशोरियों को यह समझाया जाता है कि इस विषय पर चर्चा करना भी पाप है।  लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य युवा पीढी से जुड़ा हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है.  अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में  जीवन का आनंद कदापि नहीं उठाया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज में इस विषय पर बात करना भी वर्जित है।

लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों की सार्थकता

मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस  
फोटो क्रेडिट: सीएनएस 
प्रजनन सृष्टि का मूल है, लैंगिक परिपक्वता के बिना प्रजनन की कल्पना नहीं की जा सकती है। परन्तु फिर भी हमारे देश में आज भी इस विचारधारा के लोगों की कमी नहीं जो लैंगिक व प्रजनन सम्बन्धी विषयों पर बात करना अपराध मानते हैं। यह संकीर्ण मानसिकता, लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों के प्रचार-प्रसार में बाधक है। नवयुवक-नवयुवतियों में इसको लेकर एक प्रकार का भय व शर्म व्याप्त है जो उन्हें परेशानी होने पर भी छिपाए रहने के लिए बाध्य कर रहा है। यह स्थिति विकास के मार्ग में निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी बाधा है।