'दो कदम पीछे फिर एक आगे' जैसा हाल है यूपी में तम्बाकू पर वैट का

[English] जुलाई २०१२ में उत्तर प्रदेश सरकार ने तम्बाकू उत्पादनों पर वैट को बढ़ा कर ५०% किया था पर फिर वापस २५% कर दिया था. हाल ही में सरकार ने फिर से वैट बढ़ाया है जो सराहनीय कदम है और बढ़ा कर ४०% कर दिया है.स्वास्थ्य को वोट अभियान के राहुल द्विवेदी कहते हैं कि "वैट की इस बढ़ोतरी को देख कर लगता है कि हम लोग 'दो कदम पीछे और एक कदम आगे' जैसे कार्य कर रहे हैं जब कि टाटा कैंसर अस्पताल में तम्बाकू जनित कैंसर के अधिकाँश रोगी उत्तर प्रदेश से ही हैं."

यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य: युवा आगे आये तो बात‎ बन जाये

बृहस्पति कुमार पाण्डेय , सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
फोटो क्रेडिट: सीएनएस 
कुछ समय पहले तक लोग यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य से जुडी समस्याओं पर कुछ भी बोलने से ‎हिचकते थे। मामला चाहे स्त्री पुरूष के बीच बनने वाले शारीरिक सम्बन्धों का रहा हो या प्रजनन ‎स्वास्थ्य से जुडा मुद्दा हो, इस पर हर वर्ग खुलकर बात करने से हिचकता रहा है। लेकिन ‎अब हालात पहले जैसे नही रहे। जहां लोग सुरक्षित सेक्स, गर्भ निरोधक साधन इत्यादि को ‎लेकर असमंजस में हुआ करते थे, वहीं युवाओं के मन में यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी  ‎जिज्ञासा और प्रश्नों ने इस विषय पर उन्हें संवेदनशील भी बनाया है। भारत में अभी तक सेक्स और प्रजनन स्वास्थ्य को एक विषय के रूप में स्कूलों में ‎पढाने का मुद्दा विवादो में रहा है।

[युवा स्वर] युवाओं के लिए महत्वपूर्ण है यौन-शिक्षा



जनता उम्मीदवारों से पूछे उनके बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं या नहीं?

सरकारी चिकित्सालय में इलाज कराना भी अनिवार्य हो
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं। कुछ दिनों पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले कि सरकारी तनख्वाह पाने वालों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी विद्यालय में पढ़ना होगा के आलोक में सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) जनता का आह्वान करती है कि वे इन चुनावों में खड़े होने वालों उम्मीदवार से पूछना शुरू करें के उनके बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं अथवा नहीं? उच्च न्यायालय के आदेशानुसार यह व्यवस्था अगले शैक्षणिक सत्र से लागू होनी चाहिए।

भारतीय आधुनिक समाज में यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति

रितेश त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस 
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वर्तमान  भारतीय  आधुनिक  समाज विकासशील समाज वाले देशों की श्रेणी में है। भारत तकनीकि रूप से व अन्य विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अच्छा विकास कर रहा है। लेकिन जब हम बात करते हैं यौनिक व प्रजनन स्वास्थ्य की तो स्थिति कुछ अच्छी नहीं दिखाई देती क्योंकि जनसँख्या के लिहाज से भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा शिशु व प्रसूति मृत्यु दर है जो बहुत दुखदाई है। इसका कारण हमारा पारंपरिक समाज है जिससे स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्ष बाद भी हम इस समस्या से निकल नहीं पा रहे हैं । देश  में  कितनी  मौतें  केवल  इन्हीं  कारणों  से  हो  रही  हैं । जागरूकता  की  कमी  के  कारण  लोग  इस समस्या  का  सामना नहीं  कर पा रहे   हैं ।

किशोर एवं किशोरियों में यौन शिक्षा का महत्त्व

विकास द्विवेदी, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
यौन शिक्षा का तात्पर्य युवक-युवतियों में अपने शरीर के प्रति ज्ञान का नया आयाम विकसित करने से है। यौन शिक्षा का अर्थ केवल शारीरिक संसर्ग से ही सम्बंधित  नहीं है बल्कि यौन शिक्षा के माध्यम से हम यौन जनित विभिन्न  जिज्ञासाओं, विभिन्न यौन जनक बीमारियों की जानकारी और उससे बचने के उपायों के प्रति जागरूक होते हैं। अगर सही तरीके से किशोर एवं किशोरियों को सेक्स से सम्बंधित सलाह दी जाय तो यौन रोगों में तथा यौन अपराधों में में भी कमी आ सकती है। यौन सम्बन्धी जिज्ञासाओं के सही समाधान न होने से युवा कहीं न कहीं गलत दिशा में भटक जाते हैं। यौन शिक्षा उन्हें अपने शरीर के प्रति, यौन  संबंधों के प्रति, यौन जनित बीमारियों के प्रति, सुरक्षित यौन संबंधों के प्रति, रिश्तों की गरिमा के प्रति सचेत करती है।

युवाओं द्वारा प्रजनन और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्राप्त करने में शर्म और झिझक क्यों?

मधुमिता वर्मा, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
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आज के समय में जब  लगभग ज्यादातर लोग जागरूक हैं फिर भी वे कुछ विषयों को लेकर अनजान बनने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा ही एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु ‘प्रजनन और स्वास्थ्य में सम्बन्ध’ का भी है। ज्यादातर युवा इससे अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन फिर भी लोग इस सन्दर्भ पर बात करना पसंद नहीं करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि यह जानना उनके लिए आवश्यक नहीं है। शर्म और हिचकिचाहट महसूस करते हैं। यही हिचकिचाहट कभी-कभी उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ जाती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लोगों के बीच एक दोस्ताना व्यवहार रखकर हमारे युवाओं की शर्म और हिचकिचाहट को दूर किया जाय।  

सही जानकारी ही उचित उपचार है

नीतू यादव, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस  
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हमारे देश में सेक्स से सम्बंधित कई प्रकार की भ्रांतियां व्याप्त हैं। जिनका मुख्य कारण यह है कि हम सेक्स के विषय में खुलकर बात नहीं करना चाहते हैं, जबकि सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों में सेक्स सदा एक रोमांचक विषय रहता है। किन्तु कोई भी व्यक्ति इस विषय पर बात करने को तैयार नहीं होता, क्योंकि सेक्स से सम्बंधित प्रत्येक बात से हमारे समाज में अपराधबोध होता है। अपने यौन ज्ञान की संतुष्टि के लिए प्रायः लोग चित्रों, फिल्मों, एवं इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं, जिसमें उपलब्ध कराई गयी जानकारी अधिकतर ग़लत ही नहीं वरन भ्रामक भी होती है जिससे दर्शकों को गलत सन्देश प्राप्त होता है और समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार की भ्रांतियां उत्पन्न होती हैं।

हिन्दी की दयनीय स्थिति

डॉ संदीप पाण्डेय, मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता और वरिष्ठ सीएनएस स्तंभकार
14 सितम्बर हिन्दी दिवस होता है क्योंकि इसी दिन 1949 में संविधान सभा ने देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया। अब भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं। इसके पहले भोपाल में 10वां विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ। प्रधान मंत्री ने यहां तक कह डाला कि आने वाले दिनों में कम्प्यूटर की दुनिया में हिन्दी, अंग्रेजी व चीनी का ही वर्चस्व होगा।

कैसे पूरा होगा सौ प्रतिशत माहवारी स्वच्छता का लक्ष्य

बृहस्पति कुमार पाण्डेय, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस 
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महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा माहवारी स्वच्छता का अहम् मुद्दा इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है । जिस ‎विषय पर लोग बात करने से हिचकते थे उस पर हो रही सुगबुगाहट ने माहवारी से जुड़ी सदियों से चली आ रही ‎चुप्पी को तोडने की आस जगा दी है ।‎ अगर माहवारी स्वच्छता के मुद्दे को देखा जाये तो यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है।  ऐसे में  उत्तर प्रदेश सरकार ने सेनेटरी पैड को बेहद सस्ते में तैयार करने की तकनीकी को ईजाद करने वाले श्री अरुणाचलम मुरुगनाथन ‎का सहयोग लेते हुए वर्ष 2017 तक पूरे  प्रदेश में १००% माहवारी स्वच्छता लाने का लक्ष्य रखा है।

माहवारी सम्बन्धी स्वछता के विषय पर खुलकर संवाद ज़रूरी है

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अभिनव त्रिपाठी, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
एक कथन है कि यदि गर्भाशय नहीं होता तो इस पृथ्वी पर संवेदनाएं भी नहीं होतीं और न ही सृष्टि का विकास हो पाता। गर्भाशय का विकास स्त्री के पहले मासिक धर्म से प्रारंभ होने लगता है और समूची मानवजाति का विकास भी। मगर आजादी के लगभग सात दशक बीत जाने के बावजूद भारत में माहवारी स्वच्छता आज भी समाज के हाशिये पर है।