टीबी-एचआईवी का बढ़ता जाल

एचआईवी से पीड़ित लोगों में मौत का एक प्रमुख कारण टीबी है, अतः एचआईवी के साथ जीवनयापन करने वालों को बचाने के लिए टीबी-एचआईवी के सह-संक्रमण से निपटना आवश्यक है। पूरे विश्व में 10 लाख से अधिक लोगों को टीबी एवं एचआईवी के उपचार की एक साथ ज़रूरत पड़ती है। वर्ष 2011 में, 340 लाख से अधिक लोग एचआईवी वाइरस से संक्रमित थे और पिछले 30 सालों में (जब से इस महामारी की शुरुआत हुई) अब तक लगभग 250 लाख से अधिक लोग इस बीमारी के कारण मृत्यु का शिकार हो चुके हैं।

एचआईवी से संक्रमित व्यक्तियों के लिए टीबी रोग कितना घातक है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2010 में एचआईवी संक्रमण से होने वाली प्रत्येक चार मौतों में से एक  मृत्यु टीबी रोग के कारण हुई। इसके बावजूद कि टीबी का इलाज उपलब्ध है और एचआईवी को नियंत्रित किया जा सकता है, वर्ष 2011 में 4 लाख 30 हजार लोगों की मृत्यु इन दोनों बीमारियों के सह-संक्रमण के कारण हुई।

भारत में भी 23 लाख एचआईवी पाज़िटिव लोगों में से 95 हजार टीबी-एचआईवी के सह-संक्रमण से पीड़ित हैं। टीबी रोग आज भी एचआईवी पाज़िटिव लोगों के जीवन के लिए एक गंभीर समस्या के रूप में विद्यमान है, जबकि हम यह जानते हैं कि टीबी रोग के इलाज के लिए डाट्स प्रोग्राम के तहत इसकी दवाएं मुफ्त में उपलब्ध हैं।

टीबी रोग माइकोबैक्टीरियम बैक्टीरिया के कारण होता है, और दुनिया की कुल आबादी के एक तिहाई लोग इस बैक्टीरिया से संक्रमित हैं पर उन्हें सक्रिय टीबी नहीं है. स्वस्थ लोगों में सक्रिय टीबी रोग विकसित होने का खतरा बहुत कम होता है, पर एचआईवी से संक्रमित लोगों में सक्रिय टीबी रोग विकसित होने का खतरा काफी ज्यादा है क्योंकि एचआईवी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है.

इन दोनों संक्रमणों का आपस में गहरा संबंध है और टीबी रोग एचआईवी के साथ रहने वाले लोगों के लिए एक अवसरवादी संक्रमण है. एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को एंटीरिट्रोवाइरल उपचार (एआरटी) शुरू कर देना चाहिए क्योंकि टीबी का संबंध सीडी-4 काउंट से है। जितना कम सीडी-4 काउंट होगा उतना अधिक सक्रिय टीबी होने का खतरा होगा। एआरटी शरीर में सीडी-4 काउंट को बढ़ाता है, फलस्वरूप सक्रिय टीबी होने की संभावना कम हो जाती है।

इन्टर्नैशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्युबरक्लोसिस एंड लंग डिज़ीज़ (द यूनियन)  के ज़िम्बाबे में टीबी-एचआईवी प्रोग्राम की समन्वक डॉ रीता डोल्डो का कहना है कि “एंटीरिट्रोवाइरल उपचार, एचआईवी के साथ जीवन यापन करने वाले लोगों में सक्रिय टीबी रोग को रोकने के अच्छे तरीकों में से एक है. अध्ययनों से यह पता चला है कि प्रभावी एआरटी टीबी के विकास के जोखिम को 70-90% तक कम कर देता है. साथ ही व्यक्ति को आइसोनियाजीड प्रिवेंटिव थेरिपी (आई.पी.टी) लेनी चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि आई.पी.टी लेने से व्यक्ति में सक्रिय टीबी होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है”।

आई.पी.टी- एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों को सक्रिय टीबी रोग से बचाव में मदद के लिए दिया जाता है।

स्पष्ट है एचआईवी संक्रमित लोगों को सक्रिय टीबी संक्रमण से बचाने के लिए आई.पी.टी लेने के साथ-साथ  एआरटी दवा शुरू कर देनी चाहिए तथा एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को टीबी रोगियों के नज़दीक सम्पर्क में आने से भी बचना चाहिए तभी इस सह संक्रमण से बचाव संभव हो सकता है।

इन दोनों बीमारियों के सहसंक्रमणों से पीड़ित मरीज़ो के इलाज़ में प्रमुख बाधायें टीबी और एचआईवी कार्यक्रमों के बीच कमजोर समन्वय है। वर्ष 2011 में, 40% टीबी मरीजों (25 लाख) का एचआईवी परीक्षण किया गया परंतु मात्र 10% एचआईवी पाज़िटिव लोगों का टीबी परीक्षण किया जा सका। द यूनियन के डॉ रीता डोल्डो कहती है कि “टीबी से संक्रमित एचआईवी पाज़िटिव मरीजों को टीबी का इलाज शुरू होने के 8 सप्ताह के भीतर ही एआरटी दवा शुरू कर देनी चाहिए। परन्तु जिन रोगियों में प्रतिरक्षा प्रणाली अत्यधिक कमजोर हो तो उनमें टीबी दवा शुरू होने के दो सप्ताह भीतर ही एआरटी दवा शुरू कर देनी चाहिए”।

यह अत्यंत आवश्यक है कि टीबी-एचआईवी के सह-संक्रमण के घातक प्रभाव को कम करने के लिए इन दोनों स्वास्थ्य कार्यक्रमों को और बेहतर तथा समन्वित रूप से एक साथ कार्य करना होगा ताकि रोग निरीक्षण, परीक्षण, उपचार तथा नए मरीज की खोज में आने वाली सभी अड़चनों को दूर किया जा सके और उचित स्वास्थ्य सेवाओं के द्वारा इन रोगों के दोहरे प्रभाव से लोगों को बचाया जा सके। स्वास्थ्य प्रणाली को एक सुनियोजित तरीके से अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को निभाना होगा ताकि ऐसे रोगियों की देखभाल ठीक प्रकार से हो सके। एचआईवी से पीड़ित लोगों में मौत का कारण टी बी संक्रामण कदापि नहीं होना चाहिए क्योंकि टी बी का इलाज संभव है और एचआईवी को दवाओं के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

राहुल द्विवेदी -सी.एन.एस.