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“जापान से सीख” पोस्टर प्रदर्शिनी का आयोजन स्वास्थ्य को वोट अभियान, सीएनएस, आशा परिवार और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने किया।
बीएचयू-आईआईटी के अतिथि आचार्य और मगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि “यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हिरोशिमा व नागासाकी की विभीषिका झेलने के बाद जापान को फुकुशिमा जैसी दुर्घटना का भी शिकार होना पड़ा। फुकुशिमा की दुर्घटना भी जापान के लिए कम दिल दहलाने वाली नहीं थी। जापान जिसने पहले से ही नाभिकीय शस्त्र न बनाने का संकल्प ले रखा था अब नाभिकीय ऊर्जा को भी त्यागने का निर्णय ले रहा है। अब विकसित दुनिया यह मानने लगी है कि निम्न चार कारणों से नाभिकीय ऊर्जा का कोई भविष्य नहीं हैः (1) इसका अत्याधिक खर्चीला होना, (2) मनुष्य स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक, (3) नाभिकीय शस्त्र के प्रसार में इसकी भूमिका से जुड़े खतरे, व (4) रेडियोधर्मी कचरे के दीर्घकालिक निपटारे की चुनौती”।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि हम भारत सरकार के गैर लोकतान्त्रिक ढंग से परमाणु ऊर्जा थोपने के प्रयास का विरोध करते हैं। अमरीका और यूरोप में जब भारी संख्या में आम लोग सड़क पर उतर आए तब उनकी सरकारों को परमाणु ऊर्जा त्यागनी पड़ी परंतु भारत में जब आम लोग परमाणु ऊर्जा पर सवाल उठा रहे हैं तो उनकी आवाज़ दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
भारत को नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प ढूँढना चाहिए जो इतने खर्चीले व खतरनाक न हों। पुनर्प्राप्य ऊर्जा के संसाधन, जैसे सौर, पवन, बायोमास, बायोगैस, आदि, ही समाधान प्रदान कर सकते हैं यह मान कर यूरोप व जापान तो इस क्षेत्र में गम्भीर शोध कर रहे हैं। भारत को भी चाहिए कि इन विकसित देशों के अनुभव से सीखते हुए नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अमरीका व यूरोप की कम्पनियों का बाजार बनने के बजाए हम भी पुनर्प्राप्य ऊर्जा संसाधनों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें। भारत को ऐसी ऊर्जा नीति अपनानी चाहिए जिसमें कार्बन उत्सर्जन न हो और परमाणु विकिरण के खतरे भी न हो।
बाबी रमाकांत, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
अगस्त 2013