योजना आयोग विवाद : योजना और शासन का विकेंद्रीकरण हो, न कि निजीकरण

सोशलिस्ट पार्टी ने कई बार योजना आयोग की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया हैा क्‍योंकि योजना आयोग की स्‍थापना संविधान लागू हो जाने के सात सप्‍ताह बाद केबिनेट ने  एक प्रस्‍ताव के जरिए की थीा आजादी के शुरूआती दौर में योजना आयोग की एक प्रस्‍ताव की मार्फत स्‍थापना की कुछ सार्थकता बनती थी क्‍योंकि सरकार के प्रस्‍ताव में कहा गया था कि योजना निर्माण का काम संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों और राज्‍य के नीति-निर्देशक तत्‍वों की रोशनी में किया जाएगाा प्रस्‍ताव में आगे इस बात पर बल दिया गया था कि योजना आयोग की सफलता सभी स्‍तरों पर लोगों की सहभागिता के आधार पर काम करने पर निर्भर करेगी।

हालांकि, योजना आयोग जल्‍दी ही संघीय चेतना और वित्‍त आयोगों की भूमिका को नकारते हुए केंद्रीकरण का प्रतीक बन गयाा योजना आयोग के एकाधिकारवादी नजरिए के चलते पंचायत और म्‍युनिसिपैलिटी जैसे स्‍थानीय निकायों की योजना निर्माण में कोई भूमिका नहीं रही।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्‍वंतंत्रता दिवस के मौके पर दिए जाने वाले भाषण में योजना आयोग को भंग कर उसकी जगह पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर एक नई संस्‍था बनाने का ऐलान किया हैा योजना आयोग को भंग करने की मंशा उनके दिमाग में पहले से ही थी, जिसका वे कई बार इजहार कर चुके थेा सोशलिस्‍ट पार्टी प्रधानमंत्री की इस घोषणा को खतरे की घंटी मानते हुए योजना आयोग की जगह उनके द्वारा प्रस्‍तावित संस्‍था के प्रस्‍ताव को पूरी तरह अस्‍वीकार करती हैा

यूपीए सरकार ने भी कारपोरेट पूंजीवाद के दौर में योजना आयोग की भूमिका और प्रासंगिकता का मूल्‍यांकन करने के लिए एक कमेटी बनाई थीा सरकार द्वारा नियुक्‍त ‘इंडिपेंडेंट इवेलुवेशन ऑफिस’ (आईईओ) की रपट में योजना आयोग को भंग कर उसकी जगह सुधारवादियों और तुरता समाधान निकालने वाले विद्वानों का एक समूह यानी थिंक टैंक का गठन करने का सुझाव दिया गया हैा आईईओ की रपट में योजना आयोग को ‘नियंत्रण आयोग’ बताते हुए कहा गया है कि योजना आयोग अपने को आधुनिक अर्थव्‍यवस्‍था और राज्‍यों के सशक्तिकरण की जरूरतों के मुताबिक बदलने में नाकामयाब रहा है, लिहाजा उसे खत्‍म कर दिया जाना चाहिएा

हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उपाध्‍यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया के नेतत्‍व में योजना आयोग विश्‍व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्‍व व्‍यापार संगठन, विश्‍व आर्थिक मंच जैसी वैश्विक संस्‍थाओं के आदेश पर काम कर रहा था, फिर भी उसमें कुछ न कुछ नेहरू युगीन ‘कमांड इकॉनॉमी’ के अवशेष बच रहे थेा मोदी, जिसने कारपोरेट पूंजीवाद के साथ सात फेरे लिए हैं, ऐसी कोई बाधा बरदाश्‍त नहीं करते हैं। वे विकास का काम निजी खिलाडियों के हाथ में सौंपने को आतुर हैं. सोशलिस्‍ट पार्टी मोदी की घोषणा को संविधान और गरीबों के खिलाफ गहरी शरारत करार देती हैा

सोशलिस्‍ट पार्टी की मांग है कि नीति निर्माण में कारपोरेट हस्‍तक्षेप के खिलाफ कडे उपाय किए जाएं, पार्टी का यह विश्‍वास नहीं है कि एक संविधानेतर संस्‍था की जगह कोई दूसरी संविधानेतर संस्‍था खडी कर दी जाए। सोशलिस्‍ट पार्टी का विश्‍वास आर्थिक समेत सत्‍ता के विकेंद्रीकरण में है, जिसका दार्शनिक आधार डॉ. राममनोहर लोहिया के मशहूर भाषण, जो उन्‍होंने संविधान लागू होने के एक महीने बाद 26 फरवरी 1950 को दिया था, ‘चौखंभा राज’ हैा  डॉ. लोहिया की ‘चौखंभा राज’ – गांव, जिला, प्रांत, केंद्र - की अवधारणा गांधी के ‘ग्रामस्‍वराज’ की अवधारणा का विस्‍तार हैा सोशलिस्‍ट पार्टी का विश्‍वास है कि विकास के लिए जमीन, जंगल, पानी, खनिज, वनस्‍पति-जीवजंतु जैसे प्राकतिक संसाधनों पर अधिकार, कोष का आबंटन, नीति निर्माण, और योजना का काम सबसे पहले ग्राम पंचायतों ओर म्‍युनिसिपैलिटियों के स्‍तर पर होना चाहिएा संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों (1993) के अनुसार सभी चुनी हुई सरकारों का यह संवैधानिक कर्तव्‍य हैा सभी स्‍तरों पर शासकीय व्‍यवस्‍था का विकेंद्रीकरण होना चाहिए और वास्‍तविक सत्‍ता ‘जिला योजना समितियों’ की मार्फत पंचायतों और म्‍युनिसिपेलिटियों से निकलनी चाहिएा

सोशलिस्‍ट पार्टी विकेंद्रीकरण की संवैधानिक लडाई को विभिन्‍न जागरूकता कार्यक्रमों के माध्‍यम से लोगों तक लेकर जाएगीा विकेंद्रीकरण की लडाई वास्‍तव में लोकतांत्रिक समाजवाद के लिए लडाई हैा

सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस