[English] सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) जो पश्चिमी देशों की “ग्रीन पार्टी” के तर्ज़ पर पर्यावरण को विकास से मूलत: जुड़ा हुआ मानती है और भारत की “ग्रीन पार्टी” के रूप में पहचान दर्ज कर रही है, उसका मानना है कि भाजपा के प्रधान मंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी कोई पहले व्यक्ति नहीं जो गंगा की सफाई की बात कर रहे हैं। यह बात अरविंद केजरीवाल भी कर चुके हैं और राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान की 1986 में शुरुआत करके की थी।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि यदि मोदी या केजरीवाल गंगा के मुद्दे पर सच में संवेदनशील हैं तो बनारस के सबसे महत्वपूर्ण पानी के मुद्दे पर उभरे जन संघर्ष पर दोनों ने भूमिका क्यों नहीं ली है? मेहंदीगंज स्थित कोका कोला संयंत्र जो बरसों से अनियंत्रित जल दोहन कर रहा है और पानी को स्थानीय किसानों और बुनकरों की पहुँच से बाहर कर दिया है, उसपर क्यों दोनों मोदी और केजरीवाल चुप हैं?
सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि मोदी का दावा खोखला है कि जैसे उन्होंने गुजरात में साबरमती नदी (371 किमी) की सफाई की उसी तरह गंगा (3000 किमी) की सफाई भी कर देंगे। गंगा पर जो जनसंख्या या गंदगी का दबाव है क्या हम उसकी साबरमती से तुलना भी कर सकते हैं?
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि साबरमती की सफाई की हकीकत: असल में मोदी का उद्देश्य साबरमती नदी को साफ करना नहीं था बल्कि शहरी मध्यम वर्ग के मनोरंजन के लिए एक रिवर फ्रंट बनाना था। पर साबरमती में पानी कम और गंदा था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पिछले सालों के आंकड़ों के अनुसार, साबरमती का बीओडी स्तर 103 एमजी/लिटर अधिकतम, और क्लोरीफ़ोर्म स्तर 500 एमपीएन था।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि इस समस्या का समाधान मोदी ने यह निकाला कि गांधीनगर, गुजरात की राजधानी जो अहमदाबाद से सटी हुई साबरमती के ऊपरी छोर पर स्थित है, के पास से गुजर रही नहर, जिसमें नर्मदा नदी का पानी बहता है, का पानी साबरमती नदी में डाल दिया। तो असल में साबरमती में नर्मदा नदी का पानी है। नर्मदा एक बड़ी और साफ नदी है। इसके किनारे जबलपुर के अलावा कोई बड़ा शहर नहीं और न ही कोई प्रदूषण करने वाले बड़े उद्योग हैं। गुजरात में तो साबरमती में डालने के लिए नरेन्द्र मोदी को नर्मदा का साफ पानी मिल गया, जो असल में गुजरात के किसानों के लिए था, किंतु गंगा को साफ करने के लिए वे कहां से पानी लाएंगे?
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि साबरमती नदी के निचले छोर वासणा में एक बराज बनाकर नदी का पानी रोक लिया गया है ताकि अहमदाबाद शहर के निवासियों को नदी में ज्यादा पानी दिखाई पड़े। देखा जाए तो अहमदाबाद शहर में साबरमती, नदी नहीं, 10.6 किमी की एक झील बन गई है। अहमदबाद शहर का गंदा पानी और उद्योगों का प्रदूषित पानी नदी के निचले छोर पर वासणा बराज के बाद छोड़ा जाता है जिससे नदी अहमदबाद शहर में साफ दिखाई पड़े। लेकिन अहमदबाद शहर के नीचे जो क्षेत्र है उसके लिए साबरमती शायद गंगा से भी ज्यादा प्रदूषित है क्योंकि गुजरात में उद्योग धंधे ज्यादा हैं। साबरमती रिवर फ्रंट बनाते समय नदी के किनारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले तमाम लोगों को उजाड़ा गया, वे कहां गए मालूम नहीं? इतना तो तय है कि एक बड़ी संख्या में लोग बेघर होंगे और अपनी आजीविका से हाथ धो बैठेंगे।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि मायावती के निकट सहयोगी सतीश चंद्र मिश्र को भी यह भूत सवार हुआ कि साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर लखनऊ में गोमती के किनारे रिवर फ्रंट बने। रिवर फ्रंट बनाने के दिशा में पहली कार्यवाही यह हुई कि सैकड़ों परिवारों के ऊपर 2009 में बुलडोजर जरूर चल गया। तो जिसको मोदी विकास के एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं वह बहुत सारे लोगों के लिए विनाश साबित होगा। यह मोदी के गुजरात मॉडल की सच्चाई है।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि मोदी ने साबरमती की तर्ज पर गंगा को साफ करने की बात ऐसे कही है मानों प्रकृति पर उनका बस चलता है। यह उनके अहंकार के साथ-साथ समझ की कमी को भी उजागर करता है।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
10 मई 2014
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि यदि मोदी या केजरीवाल गंगा के मुद्दे पर सच में संवेदनशील हैं तो बनारस के सबसे महत्वपूर्ण पानी के मुद्दे पर उभरे जन संघर्ष पर दोनों ने भूमिका क्यों नहीं ली है? मेहंदीगंज स्थित कोका कोला संयंत्र जो बरसों से अनियंत्रित जल दोहन कर रहा है और पानी को स्थानीय किसानों और बुनकरों की पहुँच से बाहर कर दिया है, उसपर क्यों दोनों मोदी और केजरीवाल चुप हैं?
सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि मोदी का दावा खोखला है कि जैसे उन्होंने गुजरात में साबरमती नदी (371 किमी) की सफाई की उसी तरह गंगा (3000 किमी) की सफाई भी कर देंगे। गंगा पर जो जनसंख्या या गंदगी का दबाव है क्या हम उसकी साबरमती से तुलना भी कर सकते हैं?
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि साबरमती की सफाई की हकीकत: असल में मोदी का उद्देश्य साबरमती नदी को साफ करना नहीं था बल्कि शहरी मध्यम वर्ग के मनोरंजन के लिए एक रिवर फ्रंट बनाना था। पर साबरमती में पानी कम और गंदा था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पिछले सालों के आंकड़ों के अनुसार, साबरमती का बीओडी स्तर 103 एमजी/लिटर अधिकतम, और क्लोरीफ़ोर्म स्तर 500 एमपीएन था।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि इस समस्या का समाधान मोदी ने यह निकाला कि गांधीनगर, गुजरात की राजधानी जो अहमदाबाद से सटी हुई साबरमती के ऊपरी छोर पर स्थित है, के पास से गुजर रही नहर, जिसमें नर्मदा नदी का पानी बहता है, का पानी साबरमती नदी में डाल दिया। तो असल में साबरमती में नर्मदा नदी का पानी है। नर्मदा एक बड़ी और साफ नदी है। इसके किनारे जबलपुर के अलावा कोई बड़ा शहर नहीं और न ही कोई प्रदूषण करने वाले बड़े उद्योग हैं। गुजरात में तो साबरमती में डालने के लिए नरेन्द्र मोदी को नर्मदा का साफ पानी मिल गया, जो असल में गुजरात के किसानों के लिए था, किंतु गंगा को साफ करने के लिए वे कहां से पानी लाएंगे?
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि साबरमती नदी के निचले छोर वासणा में एक बराज बनाकर नदी का पानी रोक लिया गया है ताकि अहमदाबाद शहर के निवासियों को नदी में ज्यादा पानी दिखाई पड़े। देखा जाए तो अहमदाबाद शहर में साबरमती, नदी नहीं, 10.6 किमी की एक झील बन गई है। अहमदबाद शहर का गंदा पानी और उद्योगों का प्रदूषित पानी नदी के निचले छोर पर वासणा बराज के बाद छोड़ा जाता है जिससे नदी अहमदबाद शहर में साफ दिखाई पड़े। लेकिन अहमदबाद शहर के नीचे जो क्षेत्र है उसके लिए साबरमती शायद गंगा से भी ज्यादा प्रदूषित है क्योंकि गुजरात में उद्योग धंधे ज्यादा हैं। साबरमती रिवर फ्रंट बनाते समय नदी के किनारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले तमाम लोगों को उजाड़ा गया, वे कहां गए मालूम नहीं? इतना तो तय है कि एक बड़ी संख्या में लोग बेघर होंगे और अपनी आजीविका से हाथ धो बैठेंगे।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि मायावती के निकट सहयोगी सतीश चंद्र मिश्र को भी यह भूत सवार हुआ कि साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर लखनऊ में गोमती के किनारे रिवर फ्रंट बने। रिवर फ्रंट बनाने के दिशा में पहली कार्यवाही यह हुई कि सैकड़ों परिवारों के ऊपर 2009 में बुलडोजर जरूर चल गया। तो जिसको मोदी विकास के एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं वह बहुत सारे लोगों के लिए विनाश साबित होगा। यह मोदी के गुजरात मॉडल की सच्चाई है।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि मोदी ने साबरमती की तर्ज पर गंगा को साफ करने की बात ऐसे कही है मानों प्रकृति पर उनका बस चलता है। यह उनके अहंकार के साथ-साथ समझ की कमी को भी उजागर करता है।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
10 मई 2014