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आर्टीमिसिनीन दवा प्रतिरोधकता कंबोडिया, लाओस, बर्मा, थायलैंड और वियतनाम में पहले ही मलेरिया नियंत्रण को गंभीर चुनौती दे रहा है।
एशिया पैसिफिक लीडर्स मलेरिया अलाइन्स के प्रमुख सचिव डॉ बेंजामिन रोलफ़े ने कहा कि आर्टीमिसिनीन दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि एशिया पैसिफिक क्षेत्र में मलेरिया नियंत्रण के लिए प्रभावकारी समन्वय हो, और सशक्त मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम देशों में जमीनी स्तर पर भी सक्रिय हो।
थायलैंड-कंबोडिया बार्डर से होती हुई आर्टीमिसिनीन दवा प्रतिरोधक मलेरिया पश्चिम की ओर बढ़ कर बर्मा (म्यांमार) तक आ पहुंची है यह भारत जैसे राष्ट्र के लिए चिंताजनक बात है और प्रभावकारी मलेरिया नियंत्रण की प्राथमिकता बढ़ती जा रही है। आर्टीमिसिनीन दवा प्रतिरोधक मलेरिया न केवल पहले हुए मलेरिया नियंत्रण को निष्फल कर सकती है बल्कि जन स्वास्थ्य के लिए भी एक भीषण चुनौती प्रस्तुत कर सकती है।
एशिया देशों में से कुछ ऐसे हैं जो मलेरिया नियंत्रण में निवेश में कटौती कर रहे हैं जबकि इस समय आर्टीमिसिनीन दवा प्रतिरोधक कार्यक्रम को पूरी तरह समर्थन चाहिए। एशिया पैसिफिक क्षेत्र में 3.2 करोड़ मलेरिया के केस प्रति वर्ष होते हैं और 47000 मृत्यु होती हैं। लग भाग 200 करोड़ लोगों को इस क्षेत्र में मलेरिया का खतरा है।
एशिया पैसिफिक क्षेत्र में 22 ऐसे देश हैं जिनमें मलेरिया महामारी के रूप में चिन्हित है, 3.2 करोड़ मलेरिया केस और 47000 मृत्यु प्रति वर्ष इन्हीं में रपट होते हैं। अफ्रीका के बाद एशिया पैसिफिक में ही विश्व में सबसे अधिक मलेरिया के केस हैं। सन 2000 से मलेरिया नियंत्रण में आई सक्रियता से 80 करोड़ मलेरिया के केस और 1 लाख मलेरिया के कारण मृत्यु होने से बचाया जा सका है।
भारत, इंडोनेशिया, म्यांमार (बर्मा), पाकिस्तान, पापुआ न्यू गिनी, आदि में मलेरिया का 89% भार है। मलेरिया की दर और मृत्यु दर में गिरावट इसीलिए संभव हो पायी है क्योंकि आर्टेमिसिनीन जैसी प्रभावकारी दवाएं उबलब्ध थीं और रोग पर कारगर थीं। परंतु आर्टेमिसिनीन की बढ़ती दवा प्रतिरोधकता खतरनाक है क्योंकि बिना दवा मलेरिया का उपचार कैसे होगा?
यदि 2030 तक एशिया पैसिफिक क्षेत्र को मलेरिया मुक्त करना है तो यह आवश्यक है कि मलेरिया नियंत्रण प्रभावकारी ढंग से हो, हर देश में हो, और दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश लगे।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
15 नवम्बर 2014