सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
[English] हालांकि हर नागरिक के लिए स्वास्थ्य सेवा का लक्ष्य भारत सरकार का एक अरसे से रहा है, परंतु हकीकत यह है कि समाज का एक बड़ा तबका जानलेवा रोगों से जूझ रहा है जिनमें से अधिकांश से बचाव मुमकिन था, और यदि वो स्वास्थ्य सेवा प्राप्त कर पाता है तो खर्चे की वजह से गरीबी की ओर ढकल जाता है।
प्रथम सर्व-व्यापी स्वास्थ्य सेवा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित मीडिया संवाद में केजीएमयू के सर्जरी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और डबल्यूएचओ अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त सर्जन प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि यूपी में न केवल सबको सम्पूर्ण स्वास्थ्य मिलनी चाहिए बल्कि यह भी सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन रोगों से बचाव मुमकिन है उनसे हमारे लोग सफलतापूर्वक बच सके।
संक्रामक रोग जैसे कि टूबेर्कुलोसिस (क्षय रोग), यौन संक्रामण जैसे कि एचआईवी आदि भी प्रदेश में चुनौती बने हुए हैं। प्रमुख जानलेवा गैर-संक्रामक रोग जैसे कि कैंसर, हृदय रोग, पक्षघात, मधुमेह, श्वास संबंधी रोग, अस्थमा, मानसिक रोग, आदि 2/3 मृत्यु के लिए जिम्मेदार है। इन रोगों का खतरा ऐसे कारणों से अनेक गुना बढ़ता है जिनसे बचा जा सकता है: तंबाकू सेवन, शराब, असंतुलित आहार, भुखमरी, फास्ट फूड, साफ सफाई न रखना, लकड़ी ईंधन आदि वाले चूल्हे, प्रदूषण, असंतोषजनक संक्रमण नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवाएँ महंगी होना, आदि। मगसेसे पुरूस्कार प्राप्त वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि सरकार और निजी क्षेत्र के बीच पार्टनर्शिप (पीपीपी) को निजीकरन ही मानना चाहिए क्योंकि पीपीपी से सेवाएँ सबसे-जरूरतमन्द से दूर होती हैं और कीमत बढ़ती है। यदि सबसे जरूरतमन्द लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुचानी हैं तो यह सरकारी तंत्र से ही मुमकिन है। इसीलिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त करना सबसे अहम कार्य है।
इलाज कराने से कोई भी गरीब न हो
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टीबी एंड लंग डीजीस (द यूनियन) के डॉ एंथनी हैरिस ने वेब लिंक के जरिये कहा कि इलाज ऐसा नो हो कि कोई भी अधिक गरीबी में ढकल जाये। यह अत्यंत जरूरी है कि स्वास्थ्य सेवाएँ सब तक पहुचे, खासकर कि वंचित वर्ग तक, और स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में व्यय भी न हो।
यदि उप्र में स्वास्थ्य व्यवस्था सशक्त होती तो 5 साल से कम उम्र के बच्चे निमोनिया जैसे रोग से न मर रहे होते जिससे बचाव मुमकिन है और इलाज भी। गोमती नगर स्थित आरएमएल अस्पताल के डॉ अभिषेक वर्मा ने बताया कि बाल निमोनिया का एक बड़ा कारण है वायु प्रदूषण, जिसकी वजह से श्वास संक्रमण हो सकते हैं। बच्चों के फेफड़े की क्षमता कम होती है इसीलिए कम मात्रा में भी 'अलर्जन' निमोनिया, ब्रोङ्किटिस आदि उत्पन्न कर सकता है। घर के अंदर तंबाकू धुएँ या लकड़ी ईंधन वाले चूल्हे के धुए से भी श्वास रोग हो सकते हैं। जन्म उपरांत 6 माह तक केवल माँ का दूध ही बच्चे को मिलना चाहिए - यह बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पोषण देता है और शरीर में एंटी-बॉडी बनाता है जो बच्चे की प्रतिरोधकता बढ़ाता है। घर के अंदर और बाहर प्रदूषण, धूल, आदि से बच्चे को बचाए, जाड़े में गरम कपड़े पहनाए, और यदि कोई लक्षण हो तो बिना विलंब चिकित्सकीय सहायता प्राप्त करें। यदि निमोनिया जैसे रोग जल्दी चिन्हित होंगे तो उपचार भी बेहतर हो सकता है। तीककरन भी अवश्य करवाए।
डॉ पाण्डेय ने कहा कि सरकार को जन स्वास्थ्य सेवा ऐसे सशक्त करनी चाहिए कि गुणात्मक स्वास्थ्य सेवा इस बात पर निर्भर न करे कि आप कहा रह रहे है, या आप के पास कितना पैसा है या आप किस लिंग या आयु के हैं।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
12 दिसम्बर 2014
[English] हालांकि हर नागरिक के लिए स्वास्थ्य सेवा का लक्ष्य भारत सरकार का एक अरसे से रहा है, परंतु हकीकत यह है कि समाज का एक बड़ा तबका जानलेवा रोगों से जूझ रहा है जिनमें से अधिकांश से बचाव मुमकिन था, और यदि वो स्वास्थ्य सेवा प्राप्त कर पाता है तो खर्चे की वजह से गरीबी की ओर ढकल जाता है।
प्रथम सर्व-व्यापी स्वास्थ्य सेवा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित मीडिया संवाद में केजीएमयू के सर्जरी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और डबल्यूएचओ अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त सर्जन प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने कहा कि यूपी में न केवल सबको सम्पूर्ण स्वास्थ्य मिलनी चाहिए बल्कि यह भी सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन रोगों से बचाव मुमकिन है उनसे हमारे लोग सफलतापूर्वक बच सके।
संक्रामक रोग जैसे कि टूबेर्कुलोसिस (क्षय रोग), यौन संक्रामण जैसे कि एचआईवी आदि भी प्रदेश में चुनौती बने हुए हैं। प्रमुख जानलेवा गैर-संक्रामक रोग जैसे कि कैंसर, हृदय रोग, पक्षघात, मधुमेह, श्वास संबंधी रोग, अस्थमा, मानसिक रोग, आदि 2/3 मृत्यु के लिए जिम्मेदार है। इन रोगों का खतरा ऐसे कारणों से अनेक गुना बढ़ता है जिनसे बचा जा सकता है: तंबाकू सेवन, शराब, असंतुलित आहार, भुखमरी, फास्ट फूड, साफ सफाई न रखना, लकड़ी ईंधन आदि वाले चूल्हे, प्रदूषण, असंतोषजनक संक्रमण नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवाएँ महंगी होना, आदि। मगसेसे पुरूस्कार प्राप्त वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि सरकार और निजी क्षेत्र के बीच पार्टनर्शिप (पीपीपी) को निजीकरन ही मानना चाहिए क्योंकि पीपीपी से सेवाएँ सबसे-जरूरतमन्द से दूर होती हैं और कीमत बढ़ती है। यदि सबसे जरूरतमन्द लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुचानी हैं तो यह सरकारी तंत्र से ही मुमकिन है। इसीलिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त करना सबसे अहम कार्य है।
इलाज कराने से कोई भी गरीब न हो
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टीबी एंड लंग डीजीस (द यूनियन) के डॉ एंथनी हैरिस ने वेब लिंक के जरिये कहा कि इलाज ऐसा नो हो कि कोई भी अधिक गरीबी में ढकल जाये। यह अत्यंत जरूरी है कि स्वास्थ्य सेवाएँ सब तक पहुचे, खासकर कि वंचित वर्ग तक, और स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में व्यय भी न हो।
यदि उप्र में स्वास्थ्य व्यवस्था सशक्त होती तो 5 साल से कम उम्र के बच्चे निमोनिया जैसे रोग से न मर रहे होते जिससे बचाव मुमकिन है और इलाज भी। गोमती नगर स्थित आरएमएल अस्पताल के डॉ अभिषेक वर्मा ने बताया कि बाल निमोनिया का एक बड़ा कारण है वायु प्रदूषण, जिसकी वजह से श्वास संक्रमण हो सकते हैं। बच्चों के फेफड़े की क्षमता कम होती है इसीलिए कम मात्रा में भी 'अलर्जन' निमोनिया, ब्रोङ्किटिस आदि उत्पन्न कर सकता है। घर के अंदर तंबाकू धुएँ या लकड़ी ईंधन वाले चूल्हे के धुए से भी श्वास रोग हो सकते हैं। जन्म उपरांत 6 माह तक केवल माँ का दूध ही बच्चे को मिलना चाहिए - यह बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पोषण देता है और शरीर में एंटी-बॉडी बनाता है जो बच्चे की प्रतिरोधकता बढ़ाता है। घर के अंदर और बाहर प्रदूषण, धूल, आदि से बच्चे को बचाए, जाड़े में गरम कपड़े पहनाए, और यदि कोई लक्षण हो तो बिना विलंब चिकित्सकीय सहायता प्राप्त करें। यदि निमोनिया जैसे रोग जल्दी चिन्हित होंगे तो उपचार भी बेहतर हो सकता है। तीककरन भी अवश्य करवाए।
डॉ पाण्डेय ने कहा कि सरकार को जन स्वास्थ्य सेवा ऐसे सशक्त करनी चाहिए कि गुणात्मक स्वास्थ्य सेवा इस बात पर निर्भर न करे कि आप कहा रह रहे है, या आप के पास कितना पैसा है या आप किस लिंग या आयु के हैं।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
12 दिसम्बर 2014