चूनामपेट के गाँव में डाक्टर आपके द्वार पर
हमारे देश में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में क्या वास्तव में डाक्टर स्वयं ही बीमार के घर पहुँच सकता है? एकबारगी इस बात पर विश्वास ही नहीं होता। परन्तु मद्रास डायबिटीज़ रिसर्च फाउंडेशन ( एम.डी.आर.ऍफ़.) और वर्ल्ड डायबिटीज़ फाउंडेशन (डब्लू.डी.एफ़ ) के संयुक्त तत्वाधान में चेन्नई से लगभग १५० किलोमीटर दूर चूनामपेट ग्रामीण क्षेत्र में मधुमेह की रोकथाम के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम ने इस असंभव को सम्भव कर दिखाया है।
मधुमेह का प्रकोप, केवल शहरों में ही नहीं वरन ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेज़ी से बढ़ रहा है। मधुमेह के साथ जीवित लगभग २ करोड़ जनता ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करती है।
मधुमेह विशेषज्ञ ,डाक्टर विश्वनाथन मोहन के अनुसार, 'केरल के गाँवों में तो मधुमेह का प्रकोप शहरी इलाकों से अधिक है। इसके दो प्रमुख कारण हो सकते हैं---खान पान में चावल का अधिक उपयोग एवं आर्थिक स्थिति में सुधार होने के कारण शारीरिक श्रम में कमी। अनुवांशिक कारणों से भी भारतीय मूल के निवासियों में मधुमेह की संभावना अधिक होती है।’
परन्तु मधुमेह की रोकथाम के सारे प्रयास शहरों तक ही सीमित हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही उपर्युक्त परियोजना का प्रारंभ मार्च २००६ में डेनमार्क स्थित वर्ल्ड डायबिटीज़ फाउंडेशन की सहायता से किया गया। इस कार्यक्रम का प्रस्तावित कार्यकाल ४ वर्ष है तथा यह डाक्टर रविकुमार एवं उनके सहयोगियों के कुशल निर्देशन में चूनामपेट एवं उसके आसपास के गाँवों में चलाया जा रहा है।
डाक्टर मोहन, ( जो इस परियोजना के प्रमुख संचालकों में से एक हैं), का कहना है कि इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य है कि 'मधुमेह सम्बंधित स्वास्थ्य परिचार एवं उपचार' सभी ग्राम वासियों के लिए उपलब्ध हो, सुगम हो, आर्थिक रूप से प्राप्य हो और मान्य हो। इस कार्यक्रम के द्वारा प्राथमिक, द्वितीय एवं उच्च स्तर पर मधुमेह की रोकथाम के अथक प्रयास किए जा रहे हैं।
इस परियोजना का मुख्य आकर्षण है एक टेली मेडीसिन वान , जो सभी आधुनिक संयंत्रों से प्रयुक्त है तथा एक चलते फिरते आधुनिक अस्पताल के समान कार्य करती है। इसकी सहायता से डेढ़ वर्ष के कम समय में ही ४२गाँवों के २३४४९ ( २० वर्ष से अधिक आयु वाले) व्यक्तियों की मधुमेह एवं उससे सम्बंधित जटिलताओं की जांच की जा चुकी है ( विशेषकर आँख और पाँव संबंधी परेशानियां)। जिन व्यक्तिओं में मधुमेह के चलते अपनी दृष्टि खो देनेका खतरा होता है, उनकी चिकित्सा नि:शुल्क की जाती है। परन्तु दवाएं मुफ्त नहीं दी जातीं। हाँ सभी जांचें एवं विशेष उपचार नि:शुल्क हैं।
इस अनूठे प्रयोग के द्वारा शहर के वरिष्ठ चिकित्सा विशेषज्ञों का पूरा लाभ ग्रामीण जनता को घर बैठे ही सुगमता से प्राप्त हो रहा है। इस सम्मिलित प्रयत्न के द्वारा चिकित्सक न केवल आधुनिक चिकित्सा प्रणाली को ग्रामवासियों तक पहुँचा रहे हैं वरन उपचार के उपरांत भी उनसे लगातार संपर्क भी बनाए रखते हैं।
यह परियोजना अनेक व्यक्तियों एवं संस्थानों की सहायता के फलस्वरूप ही सफल हो पायी है, तथा 'सार्वजनिक-निजी क्षेत्र सहयोग’ का जीता जागता उदाहरण है। श्री रामकृष्ण ने अपनी भू संपत्ति इस परियोजना के लिए दान में दी; नेशनल एग्रो फाउंडेशन ने अपना सहयोग प्रदान किया; भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने टेली मेडीसिन वान् के लिए उपग्रह संचार प्रदान किया; तथा डाक्टर रविकुमार एवं उनके सहयोगी अभूतपूर्व लगन से चिकित्सा संबधी कार्यों की बागडोर संभाले हुए हैं।
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मधुमेह संबंधी आधुनिक चिकित्सा प्रणाली को गाँवों के घर घर तक ले जाने के अलावा, इस परियोजना के अंतर्गत, अनेक उचित आहार एवं स्वस्थ जीवन शैली सम्बंधित जागरूकता शिविरों का भी आयोजन किया जाता है। ऐसे ही एक शिविर में भाग लेने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ, जहाँ सुपाच्य एवं स्वास्थ्य प्रद व्यंजन बनाने सिखाये जा रहे थे। पास के ही स्थान में कठपुतली के खेल द्वारा मधुमेह परिचार एवं उपचार के बारे में भी समझाया जा रहा था।
इन सभी प्रयासों के फलस्वरूप ग्रामीण स्वास्थ्य में सुधार तो हुआ ही है, इसके अलावा वहाँ की जनता में एक नई जागरूकता का भी आभिर्भाव हुआ है। विशेषकर महिलाओं एवं युवाओं ने एक जन आन्दोलन की शुरुआत की है जिसके अंतर्गत उचित खान पान और शारीरिक श्रम के द्बारा एक स्वस्थ जीवन जीने का संदेश घर घर में पहुँच रहाहै।
देश के अन्य प्रदेशों में भी ऐसे प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
शोभा शुक्ला
संपादिका,सिटिज़न न्यूज़ सर्विस
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