शंकर सिंह - बिचौलिये से सामाजिक कार्य तक का लंबा सफर
शंकर सिंह सड़क परिवहन विभाग से सम्बद्ध एक बिचौलिए थे। उनका काम था लोगों से पैसे लेकर तथा इस विभाग के अधिकारियों को घूस देकर लाइसेंस संबंधी काम करवाना। परन्तु आज वो कानपुर में सूचना के अधिकार को समर्पित एक उत्साही कार्यकर्ता हैं तथा विभागीय भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कृतसंकल्प हैं। शंकर सिंह का बचपन आर्थिक कठिनायिओं में बीता। उनके पिता जे.के. जूट मिल में काम करते थे, परन्तु एक दुर्घटना के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पडी। फिर वे अपने आठ बच्चों की मदद से ‘राजा टी स्टाल’ नामक ढाबा चलाने लगे।
शंकर को किसी प्रकार रोशन ट्रांसपोर्ट कंपनी में २००० रुपये मासिक पर नौकरी मिल गयी। उनका काम था रोड एवं अन्य टैक्स परिवहन विभाग में जमा कराना और नयी गाड़ियों को लाइसेंस और परमिट दिलाना तथा उनका पंजीकरण कराना। २००६ में वे अकारण ही एक मारुती बैन के अनियमित विक्रय में फँस गए । एक बैंक से लोन लेकर खरीदी गई गाडी को दूसरे बैंक से लोन लेकर एक दूसरे व्यक्ती ने खरीदा। परिवहन विभाग के एक क्लर्क ने अपने अधिकारी के कहने पर शंकर सिंह को पीट दिया। यह मार जैसे उनके आत्म सम्मान पर चोट थी।
उन्होंने मुख्य मंत्री से लेकर परिवहन आयुक्त से लिखित शिकायत करके परिवहन विभाग में व्याप्त अनियमितताओं का पर्दा फाश किया। परिवहन आयुक्त ने समझौता करा दिया तथा क्लर्क ने शंकर सिंह से माफी मांग ली। परन्तु अब शंकर दलाली के काम से ऊब चुके थे। उन्होंने सूचना के अधिकार से सम्बंधित एक जन अभियान की ख़बर अखबार में पढी। और वो इस अभियान के एक सक्रीय कार्यकर्ता बन गए। परिवहन विभाग में मोटर चालक के लर्नर लाइसेंस बनाने के लिए ६० रुपये के स्थान पर २०० रुपये लिए जाते थे तथा मुख्य लाइसेंस की फीस १४० रुपये के स्थान पर ३५० ली जाती थी। शंकर एवं उनके साथियों ने ( सूचना का अधिकार) कैम्प लगा कर यह भ्रष्टाचार बंद कराया।
जो शंकर सिंह पहले घूस देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते थे, वही अब उसकी रोक थाम में लग गए। शंकर सिंह नवम्बर २००६ से अब तक अनेकों सूचना के अधिकार कैम्पों में भाग ले चुके हैं। वे कानपुर क्षेत्र के सूचना के अधिकार अभियान कमेटी के अभिन्न अंग हैं। कानपुर में प्रत्येक माह में लगभग १० कैम्प आयोजित किए जाते हैं। इनमें ५० से लेकर २०० तक आवेदन तैयार कर के विभिन्न सरकारी विभागों जैसे कानपुर नगर निगम, जल संस्थान, पुलिस विभाग, जिला पूर्ति कार्यालय, आवास विकास इत्यादि। में भेजी जाती हैं।
पिछले वर्ष हाईस्कूल परीक्षाफल निकलने के बाद अनेक छात्र अपनी उत्तर पुस्तिका देखने को उत्सुक थे, क्योंकि उनके अनुसार उनकी उत्तर पुस्तिकाओं का उचित मूल्यांकन नहीं हुआ था। शंकर सिंह की सहायता से तुंरत ही ६ दिवसीय कैम्प का आयोजन किया गया जिसमें १२०० विद्यार्थियों ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन तैयार किया। इस प्रकार इन जन अभियानों के द्वारा नागरिकों में अपने मूलभूत अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है। मई २००८ में शंकर सिंह ने उन्नाव जिले के मियाँगंज विकास खंड में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत सामाजिक अंकेक्षण या जनता जाँच में भी भाग लिया।
उन्होंने उन्नाव के ग्रामीण क्षेत्रों में ९ दिन बिता कर वहाँ की पंचायतों और खंड विकास कार्यालय की कार्य शैली का अध्ययन किया तथा ग्रामीण मजदूरों से बातचीत करके उनकी समस्याओं को समझने की चेष्टा की । इस प्रकार उनका कार्यक्षेत्र अब पहले से अधिक व्यापक हो गया है। जैसे जैसे उनकी समझ बढ़ रही है वैसे वैसे वे अनेकों सामाजिक कार्यों से जुड़ रहे हैं।
शंकर सिंह ने जो कर दिखाया है वह अनुकरणीय है। भ्रष्टाचार के दलदल से स्वयं को बाहर निकाल कर वे दलितों एवं कमज़ोर वर्ग के लोगों का जीवन सँवारने में लगे हैं। वे जन साधारण को प्रेरित करते हैं कि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों एवं उनको हासिल के लिए लड़ें । अब शंकर सिंह अपने कार्य क्षेत्र का और भी विस्तार करना चाहते हैं। वे भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते हैं ताकि अपने उद्धेश्य में और अधिक कामयाब हो सकें तथा अधिक लोगों की सेवा कर सकें।
(मौलिक रूप से यह लेख डॉ संदीप पाण्डेय द्वारा अंग्रेज़ी में रचित है जिसको यहाँ पर क्लिक करने से पढ़ा जा सकता है। इसका अनुवाद शोभा शुक्ला जी द्वारा किए गया है जिसके लिए हम सब कृतज्ञ हैं)