अफ्रीका में डायबिटीज़
(ज़िम्बाबवे निवासी चीफ के मसिम्बा बिरिवासा के लेख का हिन्दी अनुवाद)
अफ्रीका में मधुमेह की बीमारी एक मौन हन्ता के समान है। एड्स ओर मलेरिया के समान इस रोग पर न तो मीडिया का ही ध्यान जाता है, न ही इससे जूझने के लिए कोई भी एजेंसी इस पर धन व्यय करने को प्रस्तुत होती है। परन्तु अफ्रीका में मधुमेह के रोगियों के आंकड़े यह बताते हैं कि स्थिति वास्तव में शोचनीय है, तथा जन स्वास्थ्य नीति निर्धारण में डायबिटीज़ पर उचित ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अफ्रीका में लगभग १ करोड़ व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित हैं। विकास शील देशों में यह रोग मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण माना जाता है, तथा २०२५ तक, मधुमेहियों की संख्या २ करोड़ तक पहुँचने की संभावना है।
इंटर नैशनल डायबिटीज़ फेडरेशन (आई.डी.ऍफ़.) का मानना है कि अफ्रीका में यह रोग एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है, और यदि समय रहते इसके निवारण हेतु ठोस कदम नहीं उठाये गए तो इसके कुप्रभावों से जूझना और भी कठिन हो जाएगा।
आई.डी.ऍफ़. का यह भी कहना है कि यदि वर्त्तमान स्थिति बनी रही तो २०१० के अंत तक इसकी प्रबलता में ९५% की बढ़ोतरी होने की संभावना है।
इस महादेश में अनेको वयस्क एवम् बच्चे, इंस्युलिन की कमी के कारण मर रहे हैं, और ऐसा लगता है कि बहुत से रोगी तो इस रोग का निदान होने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उपचार होना तो दूर की बात है। जो बच भी जाते हैं, वे इस रोग से जनित अंधेपन अथवा विकलांगता का शिकार हो जाते हैं।
इस महादेश के अधिकाँश नागरिकों को इस रोग के बारे में समुचित जानकारी नहीं है। अत: वे इसकी भयावहता को समझ नहीं पाते। फलस्वरूप, इस रोग का समय रहते उपचार नहीं हो पाता, जिसके कारण रोगी को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तिस पर, अधिकाँश क्षेत्रों में, मधुमेह संबंधी औषधियों की आपूर्ति भी अपर्याप्त है।
वर्त्तमान परिपेक्ष्य में, डायबिटीज़ के बढ़ते हुए आतंक को देखते हुए, यह आवश्यक है कि सरकार, जन स्वास्थ्य उपक्रम, नीति निर्धारक, निधिकरण अधिकरण एवम् स्थानीय समुदाय डायबिटीज़ की समस्या पर अपना ध्यान शीघ्रता शीघ्र केन्द्रित करें।
सरकार को अल्प लागत वाली नीतियों को लागू करके इस रोग के आक्रमण को रोकना होगा. आई.डी.ऍफ़. के अनुसार, आहार में परिवर्तन लाकर, शारीरिक क्रिया कलाप बढ़ा कर, एवम् जीवन शैली में उचित परिवर्तन लाकर, न केवल डायबिटीज़ के संघात को कम किया जा सकता है, वरन अन्य रोगों पर भी काबू पाया जा सकता है।
वर्त्तमान समय में, सरकारों द्वारा इस दिशा में संतोषजनक कार्य नहीं किया जा रहा है, जिसका दीर्घ कालिक प्रभाव घातक होगा। जन स्वास्थ्य इकाइयों में, डायबिटीज़ शुरू होने के पूर्व निदान, निरंतर देखभाल से लेकर उसकी जटिलताओं से जूझने की क्षमता होना आवश्यक है। इसके अलावा, जन साधारण को, इस रोग से सम्बंधित सभी उपचार एवम् औषधियाँ, कम दामों पर सुगमता से उपलब्ध होने चाहिए।
इस दिशा में राजनैतिक सूझ बूझ एवम् मीडिया की भूमिका अहम् है। विशेषकर, रेडियो के माध्यम से डायबिटीज़ की रोकथाम, निदान एवम् उपचार से सम्बंधित सन्देश, दूर दराज़ के इलाकों में भी घर घर तक पहुंचाए जा सकते हैं।
हम सभी को एकजुट हो कर इस रोग से लड़ना ही होगा, क्योंकि यह हम सभी के स्वास्थ्य का मामला है।