तोड़ डालिए नशीली दवाओं का भ्रमजाल
अभी हाल ही में मादक द्रव्यों के दुरुपयोग एवम् उनके अवैध व्यापार के विरुद्ध मनाये गए अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर इस बात पर जोर दिया गया कि नशीले पदार्थों के सेवन से वैश्विक स्तर पर अनेकों जीवन बर्बाद हो रहे हैं, अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है तथा आर्थिक विकास पर अंकुश लग रहा है.
इस अवसर पर यू.एन.ओ. के सेक्रेटरी जनरल बन की मून ने अपने सन्देश में समस्त विश्व का आह्वान करते हुए अपील करी कि ' हम सभी को स्वयं के, तथा औरों के जीवन को मादक द्रव्यों के चंगुल से दूर रखना होगा. इनके इस्तेमाल से जहां एक ओर एड्स तथा अन्य घातक रोग हमारे स्वास्थ्य पर हमला करते हैं, वहीं इनकी खेती करने से हमारा पर्यावरण भी दूषित होता है. समाज में अपराधिक प्रवृत्तियां पनप कर देशों की न्यायिक व्यवस्था को खोखला करते हुए गरीबी और अव्यवस्था को जन्म देती हैं, तथा उपभोक्ता विनाश के गर्त में गिरता जाता है. इस विषम स्थिति से मुक्ति पाने के लिए, इन पदार्थों की खेती करने वाले क्षेत्रों से गरीबी दूर करके उनका उचित विकास करना प्रत्येक राष्ट्र एवम् समुदाय का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए. '
यदि हम वैश्विक आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थिति वास्तव में गंभीर है. मादक द्रव्यों का अवैध धंधा, पेट्रोलियम और शस्त्र उद्योग के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कारोबार है. संसार का कोई भी क्षेत्र इन द्रव्यों के व्यसन एवम् अवैध व्यापार के श्राप से मुक्त नही है. लाखों व्यसनी, ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते हुए, नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं. इनका प्रयोग न केवल हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बर्बाद कर रहा है, वरन इनके अवैध उत्पादन एवम् वितरण के चलते हिंसात्मक अपराध भी फल फूल रहे हैं.
हमारे देश का युवा वर्ग (विशेषकर उत्तर पूर्व राज्यों का) भी इसके भयावह चंगुल में फँसा है. अमीर गरीब, शहरी और ग्रामीण-- समाज का कोई भी अंग इनसे अछूता नहीं है. यू.एन.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी रूप से भारत में १० लाख हेरोइन सेवी हैं. गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार यह संख्या ५० लाख तक हो सकती है. चरस, भाँग गाँजा, अफीम, हेरोइन का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है. इनके अलावा कोडीन युक्त कफ सिरप तथा इंजेक्शन द्वारा लिए जाने वाले मादक द्रव्य भी खूब प्रचलित हैं. ट्रैफिक सिग्नल पर या यूं ही सड़को पर भीख माँगते हुए इन व्यसनियों से आपका सामना अवश्य हुआ होगा. चाहे ये समाज के निम्न वर्ग के गरीब हों, अथवा संभ्रांत परिवारों के व्यसनी-- ये सभी गुमनामी के अन्धकार में डूबे, एक निष्कासित जीवन जीते हैं. जो एक बार इस व्यसन के शिकार हो जाते हैं उनके लिए इससे छुटकारा पाना सरल नहीं होता. एक बार लत लग जाने पर ये नशे की अपनी दैनिक खुराक खरीदने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. इस नशे की लत ही कुछ ऐसी होती है कि व्यक्ति विवेकशून्य हो जाता है. उसका स्वयं पर कोई अधिकार ही नहीं रहता.
उत्तर प्रदेश कि एक मद्य निषेध अधिकारी श्रीमती अरुणा जोशी के अनुसार, "युवाओं में द्रव्य अपव्यय कि बढ़ती हुई लत के मुख्य कारण है संयुक्त परिवारों का विघटन ; माता पिता दोनों के ही कार्यरत होने के कारण बच्चों की समुचित देखभाल में कमी; एवम् आधुनिक समाज में नैतिक मूल्यों का हास. उचित आदर्शों के अभाव में युवा वर्ग का दिशा भ्रमित होना आश्चर्य की बात नहीं है."
अरुणा जी का मानना है कि समाज से इस बुराई को दूर करने में केवल सरकारी हस्तक्षेप से काम नहीं चलने वाला. डॉक्टरों, अभिभावकों और शिक्षकों को मिल जुल कर इस व्यसन से पीड़ित लोगों को नयी राह दिखानी होगी.
यहाँ यह बात समझना आवश्यक है कि नशे के व्यसनियों को अपराधी करार कर देने से समस्या का हल निकलने के बजाय स्थिति और भी बिगड़ रही है. नशा करने वालों को जेल में डाल कर तथा उन्हें समाज से निष्कासित करके हम उनके स्वास्थ्य लाभ के सारे दरवाज़े बंद कर रहे हैं. यह लत भी एक रोग के समान है और रोगी का उचित इलाज किया जाता है, न कि उसे अपराधी करार करके मरने के लिए छोड़ दिया जाता है.
जो लोग इंजेक्शन के द्वारा नशा लेते हैं, उनकी स्थिति तो और भी गंभीर है. संक्रमित सुई के उपयोग के कारण उनमें एड्स की बीमारी होने की संभावना अधिक होती है. समाज से बहिष्कृत किये जाने पर वे चोरी छुपे ड्रग्स लेते रहते हैं, और किसी भी प्रकार के उपचार/परामर्श के अभाव में नारकीय जीवन जीते हैं. प्राय: किसी भी प्रेम भरे सहारे के अभाव में वे चाह कर भी इस लत से छुटकारा पाने में असमर्थ होते हैं. उन्हें कलंकित जीवन जीने को मजबूर करने के बजाय उचित परामर्श और चिकत्सीय सुविधा उपलब्ध कराने में परिवार एवम् समुदाय का योगदान आवश्यक है. एशिया महाद्वीप में इंजेक्शन द्वारा ड्रग लेने वालों की संख्या सबसे अधिक है. परन्तु उनके नुक्सान को कम करने वाली सेवाएँ उनको सबसे कम उपलब्ध हैं. एड्स एवम् हेपटेटिस-सी निवारण, उपचार तथा अन्य सहायता सेवाएँ उन तक पहुँच ही नहीं पाती, क्योंकि वो समाज में एक बहिष्कृत जीवन जीते हैं.
हमारी लड़ाई रोगी के विरुद्ध नहीं, वरन रोग के विरुद्ध होनी चाहिए. अफीम, चरस, गांजा आदि का अवैध धंधा करने वाले तथा इस विष को अवैध रूप से वितरित करने वाले ही असली अपराधी हैं. सजा उन्हें मिलनी चाहिए न कि उनके जाल में फंसे हुए लोगों को. और केवल रोग को ही नहीं वरन रोग के कारण को समूल रूप से नष्ट करना होगा. अपने बच्चों की परवरिश एक सम्मानजनक और प्यार भरे माहौल में करनी होगी. माता पिता का प्रेम शर्त रहित होना चाहिए ताकि बच्चों/युवाओं को यह विश्वास हो कि वे, बिना किसी हीन भावना के, अपनी समस्याओं को अपने अभिभावकों के समक्ष रख सकते हैं. प्रताड़ित होने का भय ही उन्हें चोरी छिपे काम करने को उकसाता है. अत्यधिक लाड़ प्यार और अत्यधिक सख्ती, दोनों ही विनाशक हैं. असीम धैर्य, अपरिमित प्यार एवम् उचित अनुशासन ही कुशल लालन पालन का मूल्य मन्त्र है.
नारकोटिक्स कमिश्नर श्रीमती जगजीत नवाडिया के शब्दों में, " एक राष्ट्र के रूप में हमें इस मादक द्रव्य सम्बन्धी असुरक्षा को कम करने हेतु सम्मिलित प्रयत्न करने होंगे. युवा वर्ग की ऊर्जा को खेल कूद तथा अन्य सामजिक कार्यों की दिशा में मोड़ कर एक ड्रग्स रहित, स्वस्थ और सुरक्षित भारत की स्थापना के लिए एकजुट प्रयास करने होंगे."
शोभा शुक्ला
एडिटर
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस