अण्णा आंदोलन में लोग गिरफ्तारी दें: डॉ संदीप पाण्डेय

छाया: जित्तिमा - सी.एन.एस.
[English] देशभर में अनेक नागरिक समूह अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार मुहिम से जुड़ रहे हैं. जब अन्ना हजारे २७-२९ दिसम्बर २०११ तक मुंबई में अनशन पर बैठेंगे, तब अनेक नागरिक देश में जगह-जगह अनशन/ प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं. मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "लोगों से अपील की जाती है कि जब अण्णा हजारे मुम्बई में अनशन पर बैठें जब तक वे भी अपने-अपने इलाकों में धरने या अनशन के कार्यक्रमों का आयोजन करें व उसके बाद जिला मुख्यालय या नजदीक के थाने पर गिरफ्तारी दें."

डॉ संदीप पाण्डेय, आशा परिवार, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय एवं लोक राजनीति मंच से सम्बंधित हैं.

डॉ पाण्डेय ने बताया कि "मैं खुद हरदोई जिले में स्थित अपने आशा आश्रम, ग्राम लालपुर, पोस्ट व थाना अतरौली, पर 27 से 29 दिसम्बर, 2011, तक अनशन पर बैठूंगा व 30 दिसम्बर को साथियों के साथ अतरौली थाने पर गिरफ्तारी दूंगा।"

फरवरी २०१२ में घोषित विधान सभा प्रादेशिक चुनाव के सन्दर्भ में डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि "आने वाले विधान सभा चुनावों में हम अपील करते हैं किसी भी भ्रष्ट दल या उसके उम्मीदवार को अपना मत न दें तथा सबसे ईमानदार उम्मीदवार, भले ही वह निर्दलीय हो या उसके जीतने की सम्भावना न हो, को ही अपना मत दें। भ्रष्ट दल या उम्मीदवार को अपना मत देकर भ्रष्टाचार को बढ़ाने में अपना योगदान न दें।"

सी.एन.एस.

२०१५ तक शून्य एच.आई.वी. संक्रमण एवं मृत्यु से बहुत दूर है भारत

[English] [फोटो] थाईलैंड की प्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्माता एवम् ऍफ़.एम. रेडियो पत्रकार सुश्री जित्तिमा जनतानामालाका ने लखनऊ के सी-ब्लाक चौराहा इंदिरा नगर स्थित प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त केंद्र के प्रांगण में असंक्रामक रोगों एवम् दीर्घकालिक व्याधियों से सम्बंधित अपने  कुछ प्रासंगिक वृत्तचित्रों का प्रदर्शन गणमान्य पत्रकारों और नागरिकों के समक्ष किया.

सुश्री जित्तिमा जनतानामालाका थाईलैंड के चियांग माई नामक शहर में स्थित जे.आई.सी.एल.मीडिया एंड कम्यूनिकेशन सर्विसेस कम्पनी, (जो सी.एन.एस.की होस्ट कम्पनी है), की प्रबंध निदेशक भी हैं. जून २०११ में जित्तिमा की फिल्म "प्रोटेक्ट पब्लिक हेल्थ" ब्राज़ील में प्रदर्शित की गयी थी.

इस अवसर पर हाल ही में लखनऊ के  संजय  गाँधी  स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में एड्स पर आयोजित ऐसीकोन २०११ पर उनके द्वारा बनायी गयी फिल्म "गेटिंग टू  जीरो : लॉन्ग  रोड  अहेड  फॉर  इंडीयास  एड्स  प्रोग्राम” का भी प्रदर्शन किया गया. करीब ३० मिनट लम्बे इस वृत्त चित्र में उन मूलभूत वास्तविकताओं को दर्शाया गया है जो यू.एन.एजेंसियों द्वारा प्रस्तावित और भारत सरकार द्वारा अनुमोदित, एच.आई.वी. एवम् एड्स संबधित नए संक्रमणों, नई मृत्युओं और इस रोग से जुड़ी हुयी सामाजिक भ्रांतियों को २०१५ तक पूर्ण रूप से ख़तम करने के लक्ष्य में बाधक सिद्ध हो सकती हैं.

जब तक टी.बी.और एच.आई.वी. के सह संक्रमण को रोका नहीं जायेगा तब तक एड्स से ग्रसित व्यक्ति मरते रहेंगे, क्योंकि एड्स पीड़ित व्यक्तियों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण टी.बी.ही है. जब तक हम एच.आई.वी. के हाई रिस्क ग्रुप, जैसे समलैंगिक, इंजेक्शन द्वारा ड्रग लेने वाले, वेश्यावृत्ति करने वाले, आदि व्यक्तियों का समाज में बहिष्कार करेंगे, उनके साथ भेदभाव करेंगे तथा उन्हें अपराधी घोषित करते रहेंगे, तब तक हमारी वर्तमान स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल सकेगा और उनमें एड्स/एच.आई.वी. संक्रमण का खतरा बना रहेगा. एच.आई.वी. सम्बन्धी नए संक्रमणों, मृत्यु और भेदभाव को पूर्ण रूप से शून्य करने के लिए हमारी वर्तमान स्वास्थ्य  प्रणाली को सुदृढ़ करना नितांत आवश्यक है, ताकि कोई भी निमोनिया, अतिसार, कुपोषण,तपेदिक,हेप टाइटिस बी एवम् सी आदि निरोध्य बीमारियों से (जिनका इलाज संभव है) न मरे.

यह हम सभी के लिए शर्म की बात है उचित दवाएं उपलब्ध होने पर भी १८,००० शिशु (२००९ के आंकड़े) जन्म के दौरान एच.आई.वी. से संक्रमित हो रहे हैं, क्योंकि उनके माता पिता में से एक अथवा दोनों एच.आई.वी. से ग्रसित थे. भारत का नेशनल एड्स कंट्रोल ओर्गैनाईजेशन (नैको) इस प्रकार की अनावश्यक मृत्यों को रोकने में क्यूँ असफल हो रहा है? यह एक विचारणीय प्रश्न है. इस प्रकार के संक्रमण को रोकने के लिए नैको द्वारा अभी भी नेविरापीन नामक दवा दी जा रही है जो अधिक कारगर नहीं है, तथा अन्य प्रभावकारी दवाएं बाज़ार में उपलब्ध है.

सी.एन.एस.

एच.आई.वी. दर गिरा पर यौन संक्रमण का अनुपात बढ़ा है

[English] आज संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में चौथे राष्ट्रीय एड्स अधिवेशन (एसीकान -२०११) का उद्घाटन एस.जी.पी.जी.आई. निदेशक डॉ आर.के.शर्मा ने किया. दक्षिण अफ्रीका से डॉ होसेन कोवाडिया, अंतर्राष्ट्रीय एड्स सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ मार्क वैन्बेर्ग, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के महासचिव डॉ इश्वर एस गिलाडा, एसीकान-२०११ अध्यक्ष डॉ तपन ढोल, आदि विशेषज्ञ भी उद्घाटन समारोह में शामिल थे.

चौथे असिकान में १५ अंतर्राष्ट्रीय एड्स विशेषज्ञ, ७० राष्ट्रीय एड्स विशेषज्ञ, १५० ग्रामीण-शहरी चिकित्सक, और ५०० स्वास्थ्य कर्मी भाग ले रहे हैं.

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के अनुसार, भारत में २३.९५ लाख एच.ए.वी. से ग्रसित लोग हैं. भारतीय जनसंख्या में एच.आई.वी. ०.२५% महिलाओं और ०.३६% पुरुषों में संभावित है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ डी.से.एस. रेड्डी ने कहा कि "नए एच.आई.वी. संक्रमण दर में गिरावट और बढ़ती संख्या में एच.आई.वी. से ग्रसित लोगों का एंटी-रेट्रो-वाइरल दवा लेने के कारणवश एड्स-सम्बंधित मृत्यु दर में भी गिरावट आई है."

२००५ के आंकड़ों के मुकाबले २०१० में एच.आई.वी. दर नशा करने वालों में जो सिरिंज-नीडल बांटते हैं, बढ़ा है (२००५ - १.१% और २०१० - ५%) और सामान्य जन-मानस में कम हुआ है.

कुल एच.आई.वी. ग्रसित लोगों में से ५ प्रतिशत उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं, जबकि २१% आंध्र प्रदेश में और १७% महाराष्ट्र में.

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यक्रमों में भी पिछले सालों काफी बढ़ोतरी हुई है. २००७ में, जिन-समुदाओं को एच.आई.वी. का खतरा अधिक है, जैसे कि समलैंगिक लोग, नशा करने वाले लोग, यौनकर्मी, आदि, उनके लिये सिर्फ ७७३ कार्यक्रम थे और २०११ में १४७३ कार्यक्रम हो गए हैं जो ७५% एच.आई.वी. के अधिक खतरे वाली जनसंख्या को सेवा दे रहे हैं.

यौन रोगों का अनुपात भी बढ़ गया है - २००७ में २.१% था और २०११ में १०.१% हो गया है. राष्ट्रीय एड्स अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ आर.आर. गंगाखेदकर ने कहा कि जिन यौन रोगों का उपचार संभव है उनतक का दर बढ़ गया है.

आज राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान की मदद से ४२६,००० लोगों को एंटी-रेट्रो-वाइरल दवा मिल रही है (२००४ में सिर्फ १६००० को मिल पा रही थी).

बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.

एस.जी.पी.जी.आई. में शुरू होगा चौथा राष्ट्रीय एड्स अधिवेशन

[English] एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (ए.एस.आई.) का चौथा राष्ट्रीय एड्स अधिवेशन १६-१८ दिसम्बर के दौरान संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के सभागार में संपन्न होगा. इस अधिवेशन में १५ अंतर्राष्ट्रीय एड्स विशेषज्ञ और ७० भारतीय एड्स विशेषज्ञ एवं चिकित्सक व्याख्यान देंगे. अधिवेशन में भाग लेने के लिये १५० से अधिक ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों के चिकित्सकों को वजीफा प्रदान किया गया है.

विश्व-विख्यात प्रतिष्ठित एड्स विशेषज्ञ जिनमें से कई भारत से हैं, वे इस अधिवेशन में भाग लेंगे और एड्स नियंत्रण से सम्बंधित अनेक बिन्दुओं पर अपने विचार रखेंगे. एच.आई.वी. परीक्षण, एंटीरेट्रोवाइरल थेरपी (ए.आर.टी.), एच.आई.वी. और टुबरकुलोसिस (टी.बी.) का सह-संक्रमण, एच.आई.वी. और हेपटाइटिस-सी सह-संक्रमण, एच.आई.वी. और हेपटाइटिस-बी सह-संक्रमण, ए.आर.टी. दवाओं से प्रतिरोधकता, टी.बी. की रोकथाम के लिये आई.एन.एच. थेरपी, एच.आई.वी. और हर्पीस सह-संक्रमण, समाज में व्याप्त लिंग-से-सम्बंधित असमानताएं, मानसिक समस्याएँ, आदि इस अधिवेशन के प्रमुख विषय रहेंगे. यह संभवत: पहला ऐसा चिकित्सकीय अधिवेशन होगा जिसमें धूम्रपान और शराब दोनों-प्रतिबंधित हैं.

विश्व स्तर पर एड्स को अब ३० साल हो गए हैं. भारत में पहला एड्स परीक्षण 'पोजिटिव' १९८६ में रपट हुआ था और तब से आज तक २६ साल हो गए हैं और एड्स नियंत्रण का संघर्ष अभी जारी है.

विडंबना यह है कि भारत एक ओर तो विश्व-भर में ८० प्रतिशत से अधिक ए.आर.टी. दवाएं प्रदान करता है और दूसरी ओर अपने ही देश में हजारों लोगों की मृत्यु एड्स से हो रही है. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के आंकड़ों के अनुसार २००९ में जिन ६५,००० एच.आई.वी. से संक्रमित महिलाओं ने बच्चे को जन्म दिया था, उनमें से १८,००० महिलाओं के नवजात शिशु एच.आई.वी. से संक्रमित हो गए. यह अत्यधिक शोचनीय है कि जब ऐसी प्रभावकारी दवाएं उपलब्ध हैं जिनसे नवजात शिशु को एच.आई.वी. संक्रमण से बचाया जा सकता है तब भी १८००० शिशुओं को एच.आई.वी. संक्रमण हो गया.

१९९०-२००० के दौरान जो एड्स एक घातक बीमारी मानी जाती थी आज सिर्फ एक दीर्घकालिक बीमारी हो कर रह गयी है जिसके साथ सामान्य जीवन-यापन संभव है. ए.आर.टी. दवाएं बहुत सस्ती हो गयी हैं. संयुक्त राष्ट्र एवं सहयोगियों के एड्स प्रोग्राम (यू.एन.एड्स) के अनुसार एच.आई.वी. से संक्रमित लोगों की संख्या के आधार पर विश्व में भारत (२३ लाख) का स्थान दक्षिण अफ्रीका (५५ लाख) और नाइजीरिया (२९ लाख) के बाद तीसरे नंबर पर है.

हमारी संस्कृति, मूल्यों, युवाओं और गैर-सरकारी संगठनों की सक्रियता, स्वास्थ्यकर्मियों और दवा-कंपनियों की सहभागिता आदि ने ही भारत की अधिकाँश जनता को एड्स से बचाया है.

भारत में ए.आर.टी. दवाओं को सचेत हो कर और सूझ-बूझ से दिया जाता है बनाम पश्चिम देशों के जहां 'जल्दी और ज्यादा डोज़' ए.आर.टी. दी जाती है, इसीलिए भारत में ए.आर.टी. ले रहे लोगों के जीवन की गुणात्मकता बेहतर है, आर्थिक व्यय कम आता है और दवा-प्रतिरोधकता होने का खतरा भी कम हो जाता है. संयुक्त परिवार, स्थाई विवाह सम्बन्ध, और भारतीय संस्कृति ने भी एड्स से लड़ने में बहुत मदद की है. भारत में प्रथम यौन अनुभव की उम्र भी और देशों के मुकाबले ज्यादा है जो अच्छी बात है.

जब भारत ने 'जेनेरिक' दवा बनानी शुरू की तो पश्चिम राष्ट्रों ने कहा कि भारत नक़ल कर रहा है. सोचने की बात है कि पश्चिम देश जब 'कॉम्बो' दवा बनाते हैं तब उसको नक़ल क्यों नहीं कहते हैं? भारतीय और पश्चिमी दवा कंपनियों के लिये अलग-अलग मापदंड क्यों? भारतीय दवा कंपनियों ने 'जेनेरिक' दवा बना कर बड़ा खतरा उठाया है - कोर्ट मुक़दमे से बचना और 'पेटेंट' होने के बावजूद 'जेनेरिक' दवा बनाने की नीति बूझना और रास्ता निकलना, आदि. पहले पश्चिमी देशों से ए.आर.टी. दवा ११,४५२ अमरीकी डालर की आती थी जो अब मात्र ६९ अमरीकी डालर की रह गयी है. इस प्रकार भारत की दवा कंपनियों द्वारा निर्मित 'जेनेरिक' दवा की कीमत मात्र १ प्रतिशत ही रह गयी है परन्तु दवा की गुणात्मकता १०० प्रतिशत बरक़रार है. भारतीय दवा कंपनियां इसके लिये बधाई की पात्र हैं.

एड्स नियंत्रण कार्यक्रम में काफी कमियां रही हैं, उदाहरण के तौर पर: जितनी एच.आई.वी. पोजिटिव और गर्भवती महिलाओं को 'पी.पी.टी.सी.टी.' की आवश्यकता है उनमें से सिर्फ १० प्रतिशत को यह नसीब हो रही है और वो भी एक-डोज़ 'नेविरापीन' (अब बेहतर उपचार उपलब्ध है और वह मिलना चाहिए), सिर्फ ५६% यौन कर्मियों तक ही एच.आई.वी. कार्यक्रम और सेवाएँ पहुँच रही हैं, सिर्फ ३८% यौन कर्मी एच.आई.वी. से बचाव के बारे में सही जानकारी रखते हैं, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान सिर्फ २०% एच.आई.वी. पोजिटिव लोगों तक पहुँच पा रहा है क्योंकि रपट प्रणाली में ही समस्या है, आधे से अधिक एच.आई.वी. पोजिटिव लोगों को अपने एच.आई.वी. संक्रमण के बारे में जानकारी नहीं है, आदि. जिन लोगों को ए.आर.टी. दवा मिलनी चाहिए उनमें से सिर्फ ३०% को ही मिल पा रही है (२००५ में सिर्फ ६% को मिल पा रही थी), २० प्रतिशत लोग जो निशुल्क ए.आर.टी. दवा ले रहे थे उनकी मृत्यु हो गयी, और १२.५% लोग 'लास्ट-टू-फ़ॉलो-अप' घोषित हैं या उन्होंने २ साल के भीतर ही ए.आर.टी. दवा लेना बंद कर दिया था. दवा-प्रतिरोधक टी.बी. और एच.आई.वी. सह-संक्रमण भी एक भीषण चुनौती दे रहा है, 'आईरिस', एच.आई.वी. के साथ जीवित लोगों को संगठित करना, रोज़गार और इन्श्योरेन्स देना, और एच.आई.वी. से बचाव के नए शोध-रत साधन जैसे कि वैक्सीन और 'माइक्रोबीसाइड' के शोध को आगे बढ़ाना अन्य चुनौतियाँ है.

इस एड्स अधिवेशन में भारतीय परिप्रेक्ष्य में एड्स नियंत्रण से जुड़े ऐसे ही संजीदा मुद्दों पर चिकित्सकीय संवाद और परिचर्चा होगी. इस अधिवेशन के संयुक्त आयोजक हैं : भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्, भारत सरकार का बायोटेकनालाजी विभाग, संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान, और पीपुल्स हेल्थ संस्थान. अमरीका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य इंस्टिट्यूट (एन.आई.एच.) ने इस अधिवेशन को आर्थिक रूप से समर्थन दिया है. इस अधिवेशन में फार्मा प्रदर्शनी लगेगी और ५५ पोस्टर भी प्रदर्शित किये जायेंगे.

बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.

तम्बाकू उत्पाद के पाकेटों से गायब है नयी चित्रमय चेतावनी

[English] हालाँकि १ दिसंबर,२०११ से भारत में बिकने वाले सभी तम्बाकू उत्पादों के पैकेट पर नयी प्रभावकारी चित्रमय स्वास्थ्य चेतावनी लागू हो जानी चाहिए थी परन्तु १५ दिन बाद तक यह लागू नहीं हुई है. इसके बारे में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने २७ मई, २०११ को, सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम २००३ (कोटपा २००३) के फोटो चेतावनी सेक्शन के तहत एक गज़ट नोटिफिकेशन जारी कर दिया था .

विश्व स्वास्थय संगठन महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत बाबी रमाकांत का कहना है कि जब सरकार ने गजट नोटिफिकेशन २७ मई २०११ को जारी कर दिया था तो तम्बाकू कंपनियों के पास ६ महीने से अधिक समय था इस जन-स्वास्थ्य अधिनियम का पालन करने के लिये. उचित अधिकारियों को ऐसे तम्बाकू उत्पाद जो कानून का उलंघन कर रहे हैं उनको जब्त करना चाहिए.

इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग का नेत्रित्व कर रही शोभा शुक्ल का कहना है कि पहले भी हमारी सरकार ने कई बार, तम्बाकू उद्योग के दबाव में आकर नई चेतावनियों को कम असरदार बनाने के साथ साथ उनके लागू करने की तारीख को भी आगे बढ़ाया है. नवम्बर २००८ में स्वास्थ्य मंत्रालय ने केंद्र सूचना आयोग को बताया था कि तम्बाकू उद्योग के निरंतर दबाव के कारण वह प् तम्बाकू नियंत्रण स्वास्थ्य नीतियाँ रभावकारी ढंग से लागू नहीं कर पा रही है.

शोभा शुक्ल ने कहा कि भारत ने फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टुबैको कंट्रोल (एफ़.सी.टी.सी.) को २००४  में अंगीकार किया था. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रथम अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संधि है. इस संधि के अनुसार भारत को २७ फरवरी, २००८ तक फोटो चेतावनी को कार्यान्वित कर देना चाहिए था. परन्तु किसी भी प्रकार की पहली चित्रमय चेतावनी मई २००९ में ही लागू करी गयी. और यह अपने आप में बहुत ही कमज़ोर साबित हुई.

युवा नेता और नागरिकों का स्वस्थ लखनऊ अभियान के समन्वयक राहुल कुमार द्विवेदी ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तम्बाकू पैक पर बड़ी और प्रभावकारी फोटो चेतावनियाँ, राष्ट्रीय  स्तर पर तम्बाकू नियंत्रण में बहुत कारगर सिद्ध होती हैं. विश्व में किये गए अनेक शोध यह दर्शाते हैं कि बड़ी और डरावनी चित्र चेतवानी का असर भी बड़ा प्रभावी होता है, तथा तम्बाकू उपभोक्ताओं को तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित करता है-- विशेषकर बच्चों और युवाओं को.

इसके अलावा, इसमें सरकार को धन भी  व्यय  नहीं करना पड़ता, क्योंकि यह दायित्व तम्बाकू कम्पनी का हो जाता है.

बाज़ार में बिकने वाली विदेशी सिगरेटों के पैक पर भी ये चेतावनियाँ अंकित होनी चाहिए, वर्ना ऐसी विदेशी सिगरेटों को जब्त करना चाहिए.

सी.एन.एस.

शांति एवं लोकतंत्र पर होगा भारत-पाकिस्तान संयुक्त लोकमंच का इलाहाबाद अधिवेशन

[English] शांति एवं लोकतंत्र के लिये पाकिस्तान-भारत लोकमंच का आठवें संयुक्त अधिवेशन इलाहाबाद में २९-३१ दिसम्बर २०११ के दौरान आयोजित होना तय हुआ है जिसमें दोनों देशों से अनेक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं शांति और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले नागरिक भाग लेंगे. शांति एवं लोकतंत्र के लिये पाक-भारत लोकमंच (उ0प्र0) के उपाध्यक्ष, श्री इरफ़ान अहमद, ने कहा कि इस अधिवेशन के माध्यम से यह सन्देश जायेगा कि दक्षिण एशिया के नागरिकों को और सरकारों को यह कदम उठाने चाहिए:

१. दक्षिण एशिया के देशों के बीच दोस्ती और सहयोग में सुधार हो और मेल बढ़े. इसके लिये इन देशों को वीसा-मुक्त होना चाहिए जिससे कि इस छेत्र के लोग पूरी स्वतंत्रता के साथ एक दुसरे से मिल सकें, और इस छेत्र की मिलीजुली सांस्कृतिक धरोहर की जड़ें मजबूत हों, और व्यापर बढ़े.

२. इन देशों में लोकतान्त्रिक एवं मानवीय मूल्यों को सशक्त किया जाए और समाज के हाशिये पर रह रहे वर्गों के लिये सामाजिक एवं कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाए, जिनमें महिलाएं, दलित, और अन्य धार्मिक और प्रजातीय अल्प-संख्यक वर्ग शामिल हैं. हमारा मानना है कि सक्रियता से इन वर्गों का शोषण करने वाले कानूनों और सामाजिक प्रथाओं को ख़त्म किया जाये.

३. भारत और पाकिस्तान को एक निश्चित समय-काल में अपने परमाणु अस्त्र-शास्त्र को ख़त्म करना आरंभ करना चाहिए जिससे कि दोनों देश मिल कर परमाणु मुक्त दक्षिण एशिया छेत्र स्थापित करने में पहल ले सकें.

४. जापान में घटित परमाणु आपदा के बाद तो यह और भी स्पष्ट हो गया है कि परमाणु शक्ति का सैन्य या ऊर्जा दोनों में ही इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.

५. लोकतान्त्रिक मूल्य और शासन प्रणाली सम्पूर्ण दक्षिण एशिया छेत्र में कायम होनी चाहिए.

६. दक्षिण एशिया छेत्र की सभी सरकारों द्वारा बिना-विलम्ब सैन्यकरण को रोकने के लिये कदम उठाये जाने चाहिए और सैन्य बजट को पारदर्शी तरीकों से जन-हितैषी कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए जैसे कि शिक्षा एवं स्वास्थ्य.

७. चूँकि इस छेत्र की सांस्कृतिक धरोहर मिलीजुली है, सक्रियता के साथ हमें शांति और आपसी सौहार्द बढ़ाने के लिये सांप्रदायिक ताकतों पर अंकुश लगाना चाहिए.

८. हमारा मानना है कि इस छेत्र के सभी सरकारों को कदम उठाने चाहिए कि प्राकृतिक संसाधन जैसे कि जल, जंगल और जमीन, पर स्थानीय लोगों का ही अधिकार कायम रहे, और गैर-कानूनी और विध्वंसकारी तरीकों से जल,जंगल और जमीन को वैश्वीकरण ताकतों से बचाना चाहिए क्योंकि यह जन-हितैषी नहीं है.

बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.