सम्पूर्ण विश्व में लगभग 3 अरब लोग, (जो अधिकांशत: कम आय वाले देशों में रहते हैं) खाना पकाने, रोशनी और तापने के लिए ठोस ईंधन पर निर्भर हैं। लकड़ी/कंडे/कोयला आदि जलाकर खाना पकाने वाले चूल्हे/अँगीठी के धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, और अन्य ऐसे हानिकारक तत्व होते हैं जो घर के अंदर की हवा के प्रदूषण स्तर को कई गुना अधिक बढ़ा देते है, जो विशेषकर बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक है. अध्ययनों से पता चलता है कि घर के भीतर का वायु प्रदूषण सम्पूर्ण विश्व में कुल रोग के 2.7% भाग के लिए जिम्मेदार है तथा तीन तरह के फेफड़े संबंधी रोग के खतरों को बढ़ाता है (1) बच्चों में फेफड़े संबंधी श्वसन संक्रमण (2) महिलाओं में दीर्घ प्रतिरोधी फेफड़े का विकार (सी.ओ.पी.डी) तथा (3) कोयले के धुएं के संपर्क में आने से महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि प्रति वर्ष लगभग 20 लाख लोग खाना पकाने के लिए गलत ईंधन के प्रयोग के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों से मरते हैं। पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में होने वाली करीब 50% मृत्यु श्वसन संक्रमण से होती है जो कि घरेलू ठोस ईंधन के धुएँ को साँस द्वारा अंदर लेने से उत्पन्न होता है। पाँच साल से कम आयु के लगभग 10 लाख बच्चे घर के अन्दर होने वाले वायु प्रदूषण के कारण निमोनिया से मरते हैं.
पर यदि सही विधि अपनायी जाए तो घर के भीतर के वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। इन्टर्नैशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्युबरक्लोसिस एंड लंग डिज़ीज़ (द यूनियन) के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर डोनाल्ड इनारसन का कहना है कि “घर के अंदर वायु प्रदूषण का प्रभाव जैव ईंधन और धूम्रपान से उत्पन्न धुएँ और हवा के आवागमन की प्रकृति पर निर्भर करता है. ईंधन जितना कम रिफाइंड (परिष्कृत) होगा उतना ही अधिक उसका हानिकारक प्रभाव होगा क्योंकि वह कई प्रकार के प्रदूषित कण उत्पन्न करेगा। इसी प्रकार जितना अधिक रिफाइंड ईंधन होगा उतने ही कम कण उत्पन्न होंगे। धुंए की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि कितना ईंधन तापन और खाना पकाने के लिए प्रयोग किया जाता है और क्या ईंधन का उपयोग घर के अंदर के बंद स्थानों पर किया जाता है. श्वसन संक्रमण बच्चों में निमोनिया विकसित होने के खतरे को बढ़ाता है। ये श्वसन संक्रमण बहुत आम हैं पर गरीब लोगों में ये बहुत जल्दी निमोनिया को न्योता दे देते हैं”।
बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, उचित पोषण और पर्यावरण में सुधार, ऐसे स्वतंत्र कारक हैं जो निमोनिया तथा श्वसन संक्रमण की घटनाओं को कम कर सकते हैं. अतः समाज में लोगों के जीवन स्तर में परिवर्तन लाने के लिए इन कारकों की भूमिका प्रमुख है. सरकार को भी इन कारकों को ध्यान में रख कर ही अपने स्वास्थ्य कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना चाहिए. जब लोगों का जीवन स्तर बेहतर होगा तभी निमोनिया तथा अन्य श्वसन संक्रमणों से बचाव भी सम्भव हो पायेगा.
लखनऊ में अपना निजी क्लीनिक चलाने वाली बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कुमुद अनूप घर के भीतर वायु प्रदूषण के लिए धूम्रपान को दोषी मानती हैं. उनका कहना है कि "शहरी परिपेक्ष में घर के भीतर के वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण है धूम्रपान. जो बच्चे परोक्ष रूप से धूम्रपान के शिकार होते हैं उनमें निमोनिया होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है. धूम्रपान न केवल निमोनिया बल्कि अस्थमा तथा अन्य कई प्रकार के श्वास संबंधी संक्रमणों को दावत देता है. अतः बच्चों को परोक्ष धूम्रपान के कुप्रभावों से बचाने के लिए घर के भीतर धूम्रपान वर्जित होना चाहिए. तभी हम बच्चों में निमोनिया तथा अन्य श्वास सम्बन्धी बीमारियों के खतरे को कम कर पायेंगे".
कुछ डाक्टरों में भी घर के भीतर होने वाले वायु प्रदूषण से जन्मे संक्रमण के बारे में जानकारी का अभाव है। बहराइच जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. के मिश्र घर के भीतर के वायु प्रदूषण को निमोनिया और अन्य श्वसन संक्रमण का कारण नहीं मानते हैं. उनके अनुसार "धूम्रपान, तम्बाकू के प्रयोग से या फिर घर में खाना पकाने के लिए अंगीठी के उपयोग से सीधे तौर पर निमोनिया के होने का खतरा नहीं होता है. हाँ, बच्चे को धुएं में रखने से घुटन हो सकती है पर इससे सीधे तौर पर कोई बीमारी होने का खतरा नहीं होता है".
घर के भीतर वायु प्रदूषण से होने वाले हानिकारक प्रभाव से बचने के संदर्भ में प्रोफ़ेसर इनारसन का कहना है कि “सबसे महत्वपूर्ण कदम लोगों को ही लेने होंगे और इसके लिए बहुत ज्यादा खर्च की भी जरूरत नहीं है. व्यक्तिगत स्तर पर लिए गए छोटे छोटे उपाय ही काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। अगर ईंधन केवल खाना पकाने के लिए ही प्रयोग किया जाता है तो खाना पकाने का स्थान मुख्य निवास के बाहर होना चाहिए और, यदि संभव हो तो, इस प्रकार का प्रबंध हो कि धुआं आसानी से बाहर निकल सके. इसी प्रकार सुधार के कई और भी सरल तरीके हैं: जैसे मिट्टी या पत्थर की एक दीवाल चूल्हे के चारों ओर बनाई जा सकती है जिससे कि धुआँ खुले हवा की ओर ही निर्देशित हो। और भी बेहतर होगा यदि आग को धातु या मिट्टी से बनी बंद अँगीठी या स्टोव में जलाया जाए और स्टोव से एक पाइप को जोड़कर धुएँ को बाहर निकाल दिया जाए। इन तरीकों को अपनाने के लिए अधिक व्यय की आवश्यकता नहीं है. परिष्कृत ईंधन, जैसे प्राकृतिक गैस, का उपयोग करना तो सबसे अच्छा है पर यह महँगा भी बहुत है”.
स्पष्ट है कि घर में उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव से बचने के बारे में सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है तथा सरकार को भी इस दिशा में अविलंब उचित कदम उठाने होंगे।
राहुल द्विवेदी- सी.एन.एस