बॉबी रमाकांत - सीएनएस
एचआईवी के साथ जीवित लोगों को सरकार द्वारा नि:शुल्क एंटी-रेट्रोवाइरल दवायेँ तो मुहैया हो रही हैं पर सह-संक्रमणों का खतरा बढ़ रहा है। तपेदिक या टीबी, हेपटाइटस-सी वाइरस, हेपटाइटस-बी वाइरस, मधुमेह, हृदय रोग, पक्षघात, गुर्दे से जुड़ी बीमारियाँ, आदि एचआईवी के साथ जीवित लोगों में घातक रूप ले सकती हैं, कहना है शोभा शुक्ला का जो सीएनएस एवं आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान से जुड़ी हैं।
शोभा शुक्ला ने बताया कि एचआईवी के साथ जीवित लोगों को एचआईवी संक्रमण के बाद जितनी जल्दी सम्भव हो उतनी जल्दी एंटी-रेट्रोवाइरल (एआरवी) दवा देनी चाहिए जिससे की वे स्वस्थ रहें, उनको सह-संक्रमणों का खतरा कम हो, आयु सामान्य हो, और एचआईवी संक्रमण को रोकने में भी मदद मिले।
खेद की बात है की टीबी जिसका नि:शुल्क उपचार उपलब्ध है, वो एचआईवी के साथ जीवित लोगों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। टीबी के रोगी की एचआईवी जांच और एचआईवी के साथ जीवित लोगों की टीबी जांच आवश्यक है। भारत में हुई शोध के अनुसार यह भी स्पष्ट है कि टीबी रोगियों की मधुमेह जांच होनी जन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टुबर्क्यलोसिस एंड लंग डिज़ीज़ के वरिष्ठ सलहकार डॉ एंटनी हरीस ने बताया की शोध के आधार पर, अब भारत सरकार को एचआईवी के साथ जीवित लोगों को एआरटी दवाएं जल्दी देनी चाहिए और टीबी रोगियों की एचआईवी जांच करनी चाहिए।
एचआईवी पॉज़िटिव लोगों के उत्तर प्रदेश नेटवर्क से जुड़े नरेश यादव ने कहा की एचआईवी कार्यक्रम और अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों में बेहतर तालमेल बैठना जरूरी है, जिससे की एचआईवी पॉज़िटिव लोग हेपटाइटस बी और सी वाइरस, टीबी, मधुमेह, हृदय रोग, गुर्दे के रोग, कैंसर, आदि से भी बच सके और सभी सुविधाएं उन्हें मुहैया हों। नरेश यादव ने कहा कि यदि दवाओं के स्टॉक की निरंतरता टूटेगी तो लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
शोभा शुक्ला ने बताया महिलाओं को सिर्फ एचआईवी का ही अधिक खतरा नहीं है बल्कि उन्हे अनेक प्रकार के यौन रोग, और जच्चा-बच्चा संबंधी रोग से भी बचने कि लिए साधन चाहिए जिनका इस्तेमाल वे स्वयं कर सकें।
बॉबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
दिसंबर २०१३
एचआईवी के साथ जीवित लोगों को सरकार द्वारा नि:शुल्क एंटी-रेट्रोवाइरल दवायेँ तो मुहैया हो रही हैं पर सह-संक्रमणों का खतरा बढ़ रहा है। तपेदिक या टीबी, हेपटाइटस-सी वाइरस, हेपटाइटस-बी वाइरस, मधुमेह, हृदय रोग, पक्षघात, गुर्दे से जुड़ी बीमारियाँ, आदि एचआईवी के साथ जीवित लोगों में घातक रूप ले सकती हैं, कहना है शोभा शुक्ला का जो सीएनएस एवं आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान से जुड़ी हैं।
शोभा शुक्ला ने बताया कि एचआईवी के साथ जीवित लोगों को एचआईवी संक्रमण के बाद जितनी जल्दी सम्भव हो उतनी जल्दी एंटी-रेट्रोवाइरल (एआरवी) दवा देनी चाहिए जिससे की वे स्वस्थ रहें, उनको सह-संक्रमणों का खतरा कम हो, आयु सामान्य हो, और एचआईवी संक्रमण को रोकने में भी मदद मिले।
खेद की बात है की टीबी जिसका नि:शुल्क उपचार उपलब्ध है, वो एचआईवी के साथ जीवित लोगों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। टीबी के रोगी की एचआईवी जांच और एचआईवी के साथ जीवित लोगों की टीबी जांच आवश्यक है। भारत में हुई शोध के अनुसार यह भी स्पष्ट है कि टीबी रोगियों की मधुमेह जांच होनी जन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टुबर्क्यलोसिस एंड लंग डिज़ीज़ के वरिष्ठ सलहकार डॉ एंटनी हरीस ने बताया की शोध के आधार पर, अब भारत सरकार को एचआईवी के साथ जीवित लोगों को एआरटी दवाएं जल्दी देनी चाहिए और टीबी रोगियों की एचआईवी जांच करनी चाहिए।
एचआईवी पॉज़िटिव लोगों के उत्तर प्रदेश नेटवर्क से जुड़े नरेश यादव ने कहा की एचआईवी कार्यक्रम और अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों में बेहतर तालमेल बैठना जरूरी है, जिससे की एचआईवी पॉज़िटिव लोग हेपटाइटस बी और सी वाइरस, टीबी, मधुमेह, हृदय रोग, गुर्दे के रोग, कैंसर, आदि से भी बच सके और सभी सुविधाएं उन्हें मुहैया हों। नरेश यादव ने कहा कि यदि दवाओं के स्टॉक की निरंतरता टूटेगी तो लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
शोभा शुक्ला ने बताया महिलाओं को सिर्फ एचआईवी का ही अधिक खतरा नहीं है बल्कि उन्हे अनेक प्रकार के यौन रोग, और जच्चा-बच्चा संबंधी रोग से भी बचने कि लिए साधन चाहिए जिनका इस्तेमाल वे स्वयं कर सकें।
बॉबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
दिसंबर २०१३