[English] 25% ‘डाइबिटीस’ या मधुमेह के साथ जीवित लोग, ‘मधुमेही-पाँव’ से संबन्धित समस्याओं का सामना अपने जीवनकाल में करते हैं। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के ब्रेस्ट एवं एंडोकराइन सर्जरी विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ ज्ञान चंद का कहना है कि मधुमेही लोग अक्सर पाँव में मधुमेह-संबन्धित समस्याओं से जूझते हैं। सामान्य समस्या भी अति-गंभीर रूप के लेती है जिसका स्वास्थ्य और जीवन पर अत्यंत अवांछनीय असर पड़ता है। अक्सर नस को नुकसान पहुंचता है जिसकी वजह से पाँव में महसूस करने की क्षमता नगण्य हो जाती है। पाँव में रक्त संचार का बिगड़ना या पाँव या पैर-उंगली का विकृत होना आदि समस्याएँ आती हैं।
डॉ ज्ञान चंद, जो आगामी 1-2 मार्च 2014 को एसजीपीजीआई में होने वाली “मधुमेही-पाँव देखभाल पर 5वीं राष्ट्रीय कार्यशाला” के आयोजन सचिव हैं, उनका कहना है कि मधुमेही लोगों में पाँव के तलवे में खुले घाव का होना गंभीर स्थिति है और मधुमेही पाँव को जन्म देता है। मधुमेही पाँव की वजह से अत्याधिक लंबे अरसे तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है और यदि उचित चिकित्सकीय देखभाल न मिली तो पाँव का अंगच्छेदन तक करना पड़ सकता है। 75% पाँव अंगच्छेदन मधुमेही लोगों में ही होते हैं। मधुमेही लोगों में प्रति-वर्ष 10 लाख से अधिक पाँव अंगच्छेदन होते हैं – लगभग हर 30 सेकंड में एक पाँव अंगच्छेदन!”
30-60 वर्षीय मधुमेही लोगों में पाँव अंगच्छेदन का खतरा अधिक रहता है। भारत में औसतन 45,000 पाँव अंगच्छेदन होते हैं। भारत में हुए एक शोध के अनुसार 50% मधुमेही लोग, जिनके पाँव अंगच्छेदन करने पड़े थे, वे 3 वर्ष के भीतर ही मृत हुए। यह अत्यंत चिंताजनक है। मधुमेही लोगों के अंगच्छेदन का सीधा प्रभाव उनके पूरे परिवार पर पड़ता है क्योंकि उनके रोजगार आदि पर अंकुश लगता है।
डॉ ज्ञान चंद ने सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) को बताया कि एसजीपीजीआई में 500 से अधिक मधुमेही पाँव के रोगी इलाज के लिए प्रति वर्ष आते हैं जिनमें से 10% को शल्य-चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है (जिसमें सूक्ष्म और प्रमुख अंगच्छेदन शामिल है)। मधुमेही पाँव के रोगियों की संख्या तो बढ़ रही है परंतु सूक्ष्म और प्रमुख अंगच्छेदन का दर कम हो रहा है।
भारत में 4.1 करोड़ लोगों को मधुमेह है और यदि उचित मधुमेह-नियंत्रण कार्यक्रम नहीं सक्रिय हुए तो 2025 तक 6.6 करोड़ लोग मधुमेह से प्रभावित हो सकते हैं। गाँव की तुलना में मधुमेह शहरों में अधिक पनप रहा है।
डॉ ज्ञान चंद ने बताया कि 75% मधुमेही-पाँव अंगच्छेदन को रोका जा सकता है। मधुमेह से संबन्धित पाँव की समस्याओं के बारे में जागरूकता जरूरी है और मधुमेही पाँव की उचित देखभाल भी उतनी आवश्यक है। नंगे-पाँव चलना, स्वास्थ्य जागरूकता का अभाव, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ, मधुमेही-समस्याओं का विलंब से उचित इलाज करवाना, मधुमेही-पाँव का अनुचित इलाज जिससे समस्या सुलझने के बजाय अधिक गंभीर हो जाती है, आदि कुछ कारण हैं जिनकी वजह से मधुमेही-पाँव जन स्वास्थ्य के लिए एक चुनौती बना हुआ है।
भारत में मधुमेही-पाँव से संबन्धित समस्याओं में सबसे प्रचलित हैं ‘नुइरोपैथी’ जनित समस्याएँ – जिनकी वजह से 80% पाँव के नासूर-से छाले और 20% नुइरो-इश्चमिक होते हैं। जिन मधुमेही लोगों को नुइरोपैथी हो उनको अधिक समय तक बहुत अधिक तापमान से बचना चाहिए (जैसे कि धार्मिक स्थानों पर लंबी दूरी तक नंगे पाँव पैदल चलना)। उसी तरह इन लोगों को एक ही मुद्रा में (जैसे कि पालती मार के) बैठना नहीं चाहिए वरन घाव बन सकते हैं।
डॉ ज्ञान चंद ने बताया कि जिन महिलाओं को मधुमेह-जनित नुइरोपैथी हो उन्हे पाँव-उँगलियों में बिछिया आदि नहीं पहनना चाहिए वरना मधुमेही पाँव जनित समस्याएँ अधिक गंभीर रूप धरण कर सकती हैं। पसीने के कारण फंगल संक्रमण आदि भी मधुमेही पाँव की समस्याओं को अधिक गंभीर बना सकता है।
एसजीपीजीआई में आगामी 1-2 मार्च 2014 तक होने वाली मधुमेही-पाँव देखभाल पर 5वीं राष्ट्रीय कार्यशाला में मधुमेही पाँव संबन्धित समस्याओं के चिकित्सकीय प्रबंधन प्रमुख विषय रहेगा।
इस कार्यशाला में विभिन्न चिकित्सकीय स्नातकोत्तर छात्रों और विशेषज्ञों को प्रशिक्षण मिलेगा। मैडिसिन, सर्जरी/ शल्य-चिकित्सा, हड्डी-रोग चिकित्सा, प्लास्टिक शल्य-चिकित्सा, एंडोकराइन मैडिसिन और शल्य चिकित्सा, आदि के स्नातकोत्तर छात्र एवं विशेषज्ञ इस कार्यशाला में भाग लेंगे। इस कार्यशाला में अनेक सत्रों में मधुमेही पाँव से संबन्धित विषय पर व्याख्यान एवं परिचर्चा होगी जिसमें प्रमुख विषय इस प्रकार हैं: मधुमेही पाँव का घाव एवं चिकित्सकीय प्रबंधन, शल्य-चिकित्सा के दौरान मधुमेह नियंत्रण, शल्य-चिकित्सा एवं बिना-आपरेशन मधुमेही पाँव की देखभाल और इलाज, ऑक्सिजन थेरेपी आदि से मधुमेही पाँव का इलाज, मधुमेही पाँव और रक्त-संचार नियंत्रण, प्लास्टिक शल्य चिकित्सा, ‘चारकोट’ पाँव, पोषण आदि।
इस कार्यशाला में देश-भर के जाने-माने मधुमेही पाँव विशेषज्ञ प्रतिभागियों का ज्ञान वर्धन करेंगे जिनमें डॉ अरुण बाल, डॉ अशोक दामिर, डॉ सुनील करी, आदि प्रमुख हैं।
बाबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
फरवरी २०१४
डॉ ज्ञान चंद, जो आगामी 1-2 मार्च 2014 को एसजीपीजीआई में होने वाली “मधुमेही-पाँव देखभाल पर 5वीं राष्ट्रीय कार्यशाला” के आयोजन सचिव हैं, उनका कहना है कि मधुमेही लोगों में पाँव के तलवे में खुले घाव का होना गंभीर स्थिति है और मधुमेही पाँव को जन्म देता है। मधुमेही पाँव की वजह से अत्याधिक लंबे अरसे तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है और यदि उचित चिकित्सकीय देखभाल न मिली तो पाँव का अंगच्छेदन तक करना पड़ सकता है। 75% पाँव अंगच्छेदन मधुमेही लोगों में ही होते हैं। मधुमेही लोगों में प्रति-वर्ष 10 लाख से अधिक पाँव अंगच्छेदन होते हैं – लगभग हर 30 सेकंड में एक पाँव अंगच्छेदन!”
30-60 वर्षीय मधुमेही लोगों में पाँव अंगच्छेदन का खतरा अधिक रहता है। भारत में औसतन 45,000 पाँव अंगच्छेदन होते हैं। भारत में हुए एक शोध के अनुसार 50% मधुमेही लोग, जिनके पाँव अंगच्छेदन करने पड़े थे, वे 3 वर्ष के भीतर ही मृत हुए। यह अत्यंत चिंताजनक है। मधुमेही लोगों के अंगच्छेदन का सीधा प्रभाव उनके पूरे परिवार पर पड़ता है क्योंकि उनके रोजगार आदि पर अंकुश लगता है।
डॉ ज्ञान चंद ने सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) को बताया कि एसजीपीजीआई में 500 से अधिक मधुमेही पाँव के रोगी इलाज के लिए प्रति वर्ष आते हैं जिनमें से 10% को शल्य-चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है (जिसमें सूक्ष्म और प्रमुख अंगच्छेदन शामिल है)। मधुमेही पाँव के रोगियों की संख्या तो बढ़ रही है परंतु सूक्ष्म और प्रमुख अंगच्छेदन का दर कम हो रहा है।
भारत में 4.1 करोड़ लोगों को मधुमेह है और यदि उचित मधुमेह-नियंत्रण कार्यक्रम नहीं सक्रिय हुए तो 2025 तक 6.6 करोड़ लोग मधुमेह से प्रभावित हो सकते हैं। गाँव की तुलना में मधुमेह शहरों में अधिक पनप रहा है।
डॉ ज्ञान चंद ने बताया कि 75% मधुमेही-पाँव अंगच्छेदन को रोका जा सकता है। मधुमेह से संबन्धित पाँव की समस्याओं के बारे में जागरूकता जरूरी है और मधुमेही पाँव की उचित देखभाल भी उतनी आवश्यक है। नंगे-पाँव चलना, स्वास्थ्य जागरूकता का अभाव, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ, मधुमेही-समस्याओं का विलंब से उचित इलाज करवाना, मधुमेही-पाँव का अनुचित इलाज जिससे समस्या सुलझने के बजाय अधिक गंभीर हो जाती है, आदि कुछ कारण हैं जिनकी वजह से मधुमेही-पाँव जन स्वास्थ्य के लिए एक चुनौती बना हुआ है।
भारत में मधुमेही-पाँव से संबन्धित समस्याओं में सबसे प्रचलित हैं ‘नुइरोपैथी’ जनित समस्याएँ – जिनकी वजह से 80% पाँव के नासूर-से छाले और 20% नुइरो-इश्चमिक होते हैं। जिन मधुमेही लोगों को नुइरोपैथी हो उनको अधिक समय तक बहुत अधिक तापमान से बचना चाहिए (जैसे कि धार्मिक स्थानों पर लंबी दूरी तक नंगे पाँव पैदल चलना)। उसी तरह इन लोगों को एक ही मुद्रा में (जैसे कि पालती मार के) बैठना नहीं चाहिए वरन घाव बन सकते हैं।
डॉ ज्ञान चंद ने बताया कि जिन महिलाओं को मधुमेह-जनित नुइरोपैथी हो उन्हे पाँव-उँगलियों में बिछिया आदि नहीं पहनना चाहिए वरना मधुमेही पाँव जनित समस्याएँ अधिक गंभीर रूप धरण कर सकती हैं। पसीने के कारण फंगल संक्रमण आदि भी मधुमेही पाँव की समस्याओं को अधिक गंभीर बना सकता है।
एसजीपीजीआई में आगामी 1-2 मार्च 2014 तक होने वाली मधुमेही-पाँव देखभाल पर 5वीं राष्ट्रीय कार्यशाला में मधुमेही पाँव संबन्धित समस्याओं के चिकित्सकीय प्रबंधन प्रमुख विषय रहेगा।
इस कार्यशाला में विभिन्न चिकित्सकीय स्नातकोत्तर छात्रों और विशेषज्ञों को प्रशिक्षण मिलेगा। मैडिसिन, सर्जरी/ शल्य-चिकित्सा, हड्डी-रोग चिकित्सा, प्लास्टिक शल्य-चिकित्सा, एंडोकराइन मैडिसिन और शल्य चिकित्सा, आदि के स्नातकोत्तर छात्र एवं विशेषज्ञ इस कार्यशाला में भाग लेंगे। इस कार्यशाला में अनेक सत्रों में मधुमेही पाँव से संबन्धित विषय पर व्याख्यान एवं परिचर्चा होगी जिसमें प्रमुख विषय इस प्रकार हैं: मधुमेही पाँव का घाव एवं चिकित्सकीय प्रबंधन, शल्य-चिकित्सा के दौरान मधुमेह नियंत्रण, शल्य-चिकित्सा एवं बिना-आपरेशन मधुमेही पाँव की देखभाल और इलाज, ऑक्सिजन थेरेपी आदि से मधुमेही पाँव का इलाज, मधुमेही पाँव और रक्त-संचार नियंत्रण, प्लास्टिक शल्य चिकित्सा, ‘चारकोट’ पाँव, पोषण आदि।
इस कार्यशाला में देश-भर के जाने-माने मधुमेही पाँव विशेषज्ञ प्रतिभागियों का ज्ञान वर्धन करेंगे जिनमें डॉ अरुण बाल, डॉ अशोक दामिर, डॉ सुनील करी, आदि प्रमुख हैं।
बाबी रमाकांत, सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
फरवरी २०१४