(बाएं से दायें) डॉ फ्रांको बी, डॉ ईश्वर गिलाडा, डॉ शेरोन लेविन, डॉ नवल चन्द्र (एसीकॉन 2017) |
आज एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित अनेक नीति और कार्यक्रम हमें ज्ञात हैं, कैसे - एचआईवी के साथ व्यक्ति स्वस्थ और सामान्य जीवनयापन कर सकें - यह पता है, परन्तु जमीनी हकीकत भिन्न है. यदि हम प्रमाणित नीतियों और कार्यक्रमों को कार्यसाधकता के साथ लागू नहीं करेंगे तो 2030 तक एड्स-मुक्त कैसे होंगे?
एएसआई के 10वें राष्ट्रीय अधिवेशन (एसीकॉन 2017) के अकादमिक सहयोगी में शामिल हैं: भारत सरकार का राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान (नाको), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद, भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद, संयुक्त राष्ट्र का एड्स कार्यक्रम, एसोसिएशन ऑफ़ फिजिशियन्स ऑफ़ इंडिया, सांसदों के एड्स फोरम, पीपल्स हेल्थ आर्गेनाईजेशन, काप्रिसा दक्षिण अफ्रीका, आदि. एसीकॉन 2017 में भारत, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया आदि से आये 500 से अधिक एचआईवी विशेषज्ञ भाग लेंगे.
भारत सरकार की 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का एक लक्ष्य (2.4.1.3.) है कि 2020 तक, 90% एचआईवी पॉजिटिव लोगों के यह संज्ञान में हो कि वें एचआईवी पॉजिटिव हैं; जो लोग एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हुए हैं उनमें से कम-से-कम 90% को एंटीरेट्रोवायरल दवा (एआरटी) मिल रही हो; और जिन लोगों को एआरटी दवा मिल रही है उनमें से कम-से-कम 90% लोगों में ‘वायरल लोड’ नगण्य हो (वायरल लोड, जांच में पता नहीं लग रहा हो).
भारत में जब एचआईवी से संक्रमित पहले व्यक्ति को 1986 में चिन्हित किया गया तो सर्वप्रथम चिकित्सक जो एचआईवी इलाज और देखभाल के लिए आगे आये उनमें डॉ ईश्वर गिलाडा का नाम प्रमुख रहा है. डॉ गिलाडा ने सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) से कहा कि यदि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के लक्ष्य पूरे करने हैं तो अप्रत्याशित और ठोस कदम उठाने होंगे. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2016 तक भारत में अनुमानित 21 लाख एचआईवी पॉजिटिव लोगों में से 14 लाख (67%) को यह ज्ञात था कि वे संक्रमित हैं. इन 14 लाख एचआईवी संक्रमित लोगों में से 9 लाख (65% से कम) को एंटीरेट्रोवायरल दवा (एआरटी) मिल रही थी. जन स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अत्यंत जरुरी है कि सभी एचआईवी से ग्रसित लोगों को उनके संक्रमण के बारे में जानकारी हो, उन्हें एआरटी दवाएं मिल रही हों, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे, अन्यथा एचआईवी रोकधाम में जो प्रगति हुई है वो पलट सकती है, जो नि:संदेह अवांछनीय होगा.
वैज्ञानिक शोध ने यह प्रमाणित किया है कि यदि एचआईवी से ग्रसित व्यक्ति नियमित रूप से जीवन-रक्षक एआरटी दवाएं ले रहा हो और उसका वायरल लोड नगण्य रहे (वायरल लोड, जांच में पता नहीं लग रहा हो) तो उससे किसी अन्य को एचआईवी संक्रमण फैलने का खतरा भी नगण्य रहता है और वो स्वयं स्वस्थ और सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है. चूँकि भारत में अभी वायरल लोड जांच करने की क्षमता अत्यंत कम है जिसके कारणवश जिन 9,02,868 लोगों को एआरटी मिल रही है उनके वायरल लोड के बारे में जानकारी ही नहीं है. एसीकॉन 2017 के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के लक्ष्य पूरे करने हैं तो बिना विलम्ब यह सुनिश्चित करना होगा कि हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को एआरटी मिल रही हो, उसकी वायरल लोड जांच हो रही हो और वायरल लोड नगण्य रहे.
2015 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 86,000 नए एचआईवी संक्रमण हुए जिनमें 15 साल से कम उम्र के बच्चे 12% थे (10,400).
क्यूबा, थाईलैंड आदि देशों ने माता-पिता से नवजात शिशुओं को संक्रमित होने वाले एचआईवी से निजात पा ली है. पर भारत को अभी इस दिशा में अधिक कार्य करना है जिससे कि 2020 तक कोई नवजात शिशु एचआईवी संक्रमित न हो.
डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि भारत में 80% - 90% एचआईवी पॉजिटिव लोग जिन्हें एआरटी दवाएं मिल रही हैं, उनका 530 सरकारी एआरटी केन्द्रों और निजी स्वास्थ्य सेवा केन्द्रों पर प्रबंधन तो हो रहा है पर इलाज नहीं हो रहा है. सरकारी एआरटी केन्द्रों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एचआईवी पॉजिटिव लोगों को, वें निरंतरता और सरलता के साथ सेवाएँ दे रहे हों.
शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
5 अक्टूबर 2017
(शोभा शुक्ला, स्वास्थ्य एवं जेंडर अधिकार पर निरंतर लिखती रही हैं और सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) की प्रमुख संपादिका हैं. ट्विटर @shobha1shukla, वेबसाइट: www.citizen-news.org)
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