विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में तीसरा सबसे अधिक मलेरिया दर
भारत में है. भारत में 1 करोड़ 80 लाख लोगों को हर वर्ष मलेरिया रोग से
जूझना पड़ता है. पिछले अनेक सालों में, भारत ने मलेरिया नियंत्रण के लिए
प्रगति तो की पर चुनौतियाँ भी जटिल होती गयीं. भारत सरकार ने 2030 तक मलेरिया
उन्मूलन का वादा किया है. एशिया पैसिफ़िक देशों के प्रमुखों ने जब 2030 तक समस्त एशिया पैसिफ़िक से मलेरिया उन्मूलन करने का आहवान किया तो भारत के प्रधान
मंत्री नरेन्द्र मोदी उनमें शामिल थे. हाल ही में लन्दन में संपन्न हुई
“कामनवेल्थ हेड्स ऑफ़ गवर्नमेंट” मीटिंग में, भारत समेत अन्य देशों ने वादा
किया कि, 2023 तक सभी 53 कामनवेल्थ देशों से, मलेरिया दर को आधा करेंगे.
भारत सरकार ने मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय फ्रेमवर्क (2016-2030) को
फरवरी 2016 में जारी किया था जो मलेरिया-मुक्त भारत के लिए सरकारी परियोजना
है.
३२ माह में कैसे पूरे करेंगे एचआईवी/ एड्स नियंत्रण के 90:90:90 लक्ष्य?
उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई, जो एचआईवी चिकित्सकों का राष्ट्रीय समूह है) के दल से भेंट की जिसका नेतृत्व कर रहे थे एएसआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ ईश्वर गिलाडा और संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर (डॉ) तपन एन ढोल. डॉ गिलाडा ने बताया कि एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी संक्रमण नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य मंत्री को सुझाव दिये हैं और साथ ही एएसआई के चिकित्सकों/विशेषज्ञों की सेवाएँ नि:शुल्क प्रदान करने का आश्वासन भी दिया. 1986 में जब भारत में पहला एचआईवी से संक्रमित रोगी चिन्हित हुआ, तब जो डॉक्टर सबसे पहले इलाज और देखभाल के लिए आगे बढ़ कर आये उनमें से प्रमुख थे डॉ ईश्वर गिलाडा.
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