उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई, जो एचआईवी चिकित्सकों का राष्ट्रीय समूह है) के दल से भेंट की जिसका नेतृत्व कर रहे थे एएसआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ ईश्वर गिलाडा और संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर (डॉ) तपन एन ढोल. डॉ गिलाडा ने बताया कि एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी संक्रमण नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य मंत्री को सुझाव दिये हैं और साथ ही एएसआई के चिकित्सकों/विशेषज्ञों की सेवाएँ नि:शुल्क प्रदान करने का आश्वासन भी दिया. 1986 में जब भारत में पहला एचआईवी से संक्रमित रोगी चिन्हित हुआ, तब जो डॉक्टर सबसे पहले इलाज और देखभाल के लिए आगे बढ़ कर आये उनमें से प्रमुख थे डॉ ईश्वर गिलाडा.
डॉ गिलाडा ने कहा कि हाल ही में उन्नाव में एचआईवी से 50 से अधिक लोगों के संक्रमित होने पर वे सभी चिंतित हैं. हालाँकि प्रारंभ में अप्रशिक्षित/झोला छाप व्यक्ति द्वारा संक्रमित सुई (इंजेक्शन) लगाने से एचआईवी संक्रमित होने की रिपोर्ट आई थी - जो वैज्ञानिक आधार पर, केवल अफवाह मात्र ही कही जा सकती है. जैसा कि सर्वविदित है, भारत में एचआईवी संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा साधन असुरक्षित यौन सम्बन्ध ही हैं जो संभवत: उन्नाव क्षेत्र में भी संक्रमण फैलाने का जरिया रहा होगा. एचआईवी के समाचार तो प्रमुख रूप से प्रसारित होते हैं, पर शायद हम यह भूल जाते हैं कि 20 से अधिक यौन रोग और 20 से अधिक अन्य ऐसे रोग हैं जो असुरक्षित / अस्वच्छ सुई (इंजेक्शन) से फ़ैल सकते हैं. कुछ ऐसे संक्रमण हैं जो एचआईवी वायरस से अनेक गुना अधिक सरलता से संक्रमित होते हैं - उदाहरण के लिए, एचआईवी की तुलना में हेपेटाइटिस- सी वायरस के संक्रमित होने का खतरा (और सम्भावना) 10 गुना अधिक होती है, और हेपेटाइटिस बी वायरस के संक्रमित होने का खतरा (और सम्भावना) 100 गुना अधिक होती है. यदि सुरक्षित/ स्वच्छ सुई/ इंजेक्शन से संक्रमण फैला हो तो सभी संभावित संक्रमणों की उपयुक्त जांच होनी चाहिए.
डॉ गिलाडा ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में एचआईवी दर कम है परन्तु भारत सरकार के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के अनुसार, एचआईवी के नए संक्रमण जिन प्रदेशों में सबसे अधिक रिपोर्ट किये गए उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात शामिल हैं.
३२ माह में कैसे पूरे करेंगे एचआईवी के 90:90:90 लक्ष्य?
डॉ गिलाडा ने संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के टेलीमेडिसिन सभागार में अतिथि व्याख्यान दिया. इस कार्यक्रम में वरिष्ठ सर्जन डॉ एहतेशाम उद्दीन सिद्दीकी, उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी से डॉ प्रीती पाठक, वरिष्ठ स्वास्थ्य संचार-संवाद विशेषज्ञ यादवेन्द्र, संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ) तपन एन ढोल, प्रमुख रहे.
डॉ इश्वर गिलाडा ने बताया कि भारत सरकार की 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का एक लक्ष्य (2.4.1.3.) है 2020 तक एचआईवी का 90:90:90 का लक्ष्य पूरा करना है— 90% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को यह पता हो कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं; जो लोग एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हुए हैं उनमें से कम-से-कम 90% को एंटी रेट्रो वायरल दवा (एआरटी) मिल रही हो; और जिन लोगों को एआरटी दवा मिल रही है उनमें से कम-से-कम 90% लोगों में ‘वायरल लोड’ नगण्य हो.
डॉ गिलाडा ने कहा कि जन स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अत्यंत आवश्यक है कि एचआईवी से ग्रसित सभी लोगों को उनके संक्रमण के बारे में जानकारी हो, उन्हें एआरटी दवाएं मिल रही हों, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे, अन्यथा एचआईवी रोकधाम में जो प्रगति हुई है वो पलट सकती है, जो नि:संदेह अवांछनीय होगा. वैज्ञानिक शोध यह प्रमाणित करते हैं कि यदि एचआईवी से ग्रसित व्यक्ति नियमित रूप से जीवन-रक्षक एआरटी दवाएं ले रहा हो और उसका वायरल लोड नगण्य रहे, तो उससे किसी अन्य को एचआईवी संक्रमण फैलने का खतरा भी नगण्य रहता है और वह स्वयं एक स्वस्थ और सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है. चूँकि भारत में अभी वायरल लोड जांच करने वाली मशीनों की अत्यधिक कमी है, जिसके कारणवश जिन 9,02,868 लोगों को एआरटी मिल रही है उनमें अधिकांश के वायरल लोड के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. यदि भारत को अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के लक्ष्य पूरे करने हैं तो बिना विलम्ब यह सुनिश्चित करना होगा कि हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को एआरटी मिल रही हो, उसकी वायरल लोड जांच हो रही हो और उसका वायरल लोड नगण्य रहे.
डॉ गिलाडा ने कहा कि 2016 तक, अनुमानित 21 लाख एचआईवी संक्रमित लोगों में से सिर्फ 67% लोगों को यह ज्ञात था कि उन्हें एचआईवी है. इन 14 लाख एचआईवी संक्रमित लोगों को जिन्हें संक्रमण की जानकारी थी, उनमें से 10 लाख से अधिक को जीवन-रक्षक एंटी-रेट्रो-वायरल दवा मिल रही थी. अर्थात भारत में अभी भी एच आई वी से संक्रमित 30% से अधिक लोगों को अपने संक्रमित होने का पता ही नहीं है। इन लोगों तक जांच और दवा पहुचना अत्यंत आवश्यक है. इसके अलावा, वर्तमान में केवल 50% एचआईवी संक्रमित लोगों को ही एंटी-रेट्रो-वायरल दवा मिल रही है,और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बाकि के 50% को भी यह दवा शीघ्र ही प्राप्त हो. यही राष्ट्रीय एड्स कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन की मार्गनिर्देशिका कहती है कि हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को बिना विलम्ब एंटी-रेट्रो-वायरल दवा मिले जिससे कि वे स्वस्थ रहे, संक्रमण न फैले और टीबी आदि जैसे अवसरवादी संक्रमण होने का खतरा भी अत्यंत कम हो सके.
डॉ गिलाडा ने कहा कि आज एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित अनेक नीति और कार्यक्रम हमें ज्ञात हैं। हमें यह भी पता है कि कैसे एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति भी एक स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकते हैं। परन्तु जमीनी हकीकत भिन्न है. यदि हम प्रमाणित नीतियों और कार्यक्रमों को कार्यसाधकता के साथ लागू नहीं करेंगे तो 2030 तक एड्स-मुक्त कैसे होंगे?
शोभा शुक्ला एवं बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
12 अप्रैल 2018
प्रकाशित:
डॉ गिलाडा ने कहा कि हाल ही में उन्नाव में एचआईवी से 50 से अधिक लोगों के संक्रमित होने पर वे सभी चिंतित हैं. हालाँकि प्रारंभ में अप्रशिक्षित/झोला छाप व्यक्ति द्वारा संक्रमित सुई (इंजेक्शन) लगाने से एचआईवी संक्रमित होने की रिपोर्ट आई थी - जो वैज्ञानिक आधार पर, केवल अफवाह मात्र ही कही जा सकती है. जैसा कि सर्वविदित है, भारत में एचआईवी संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा साधन असुरक्षित यौन सम्बन्ध ही हैं जो संभवत: उन्नाव क्षेत्र में भी संक्रमण फैलाने का जरिया रहा होगा. एचआईवी के समाचार तो प्रमुख रूप से प्रसारित होते हैं, पर शायद हम यह भूल जाते हैं कि 20 से अधिक यौन रोग और 20 से अधिक अन्य ऐसे रोग हैं जो असुरक्षित / अस्वच्छ सुई (इंजेक्शन) से फ़ैल सकते हैं. कुछ ऐसे संक्रमण हैं जो एचआईवी वायरस से अनेक गुना अधिक सरलता से संक्रमित होते हैं - उदाहरण के लिए, एचआईवी की तुलना में हेपेटाइटिस- सी वायरस के संक्रमित होने का खतरा (और सम्भावना) 10 गुना अधिक होती है, और हेपेटाइटिस बी वायरस के संक्रमित होने का खतरा (और सम्भावना) 100 गुना अधिक होती है. यदि सुरक्षित/ स्वच्छ सुई/ इंजेक्शन से संक्रमण फैला हो तो सभी संभावित संक्रमणों की उपयुक्त जांच होनी चाहिए.
डॉ गिलाडा ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में एचआईवी दर कम है परन्तु भारत सरकार के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के अनुसार, एचआईवी के नए संक्रमण जिन प्रदेशों में सबसे अधिक रिपोर्ट किये गए उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात शामिल हैं.
३२ माह में कैसे पूरे करेंगे एचआईवी के 90:90:90 लक्ष्य?
डॉ गिलाडा ने संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के टेलीमेडिसिन सभागार में अतिथि व्याख्यान दिया. इस कार्यक्रम में वरिष्ठ सर्जन डॉ एहतेशाम उद्दीन सिद्दीकी, उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी से डॉ प्रीती पाठक, वरिष्ठ स्वास्थ्य संचार-संवाद विशेषज्ञ यादवेन्द्र, संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ) तपन एन ढोल, प्रमुख रहे.
डॉ इश्वर गिलाडा ने बताया कि भारत सरकार की 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का एक लक्ष्य (2.4.1.3.) है 2020 तक एचआईवी का 90:90:90 का लक्ष्य पूरा करना है— 90% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को यह पता हो कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं; जो लोग एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हुए हैं उनमें से कम-से-कम 90% को एंटी रेट्रो वायरल दवा (एआरटी) मिल रही हो; और जिन लोगों को एआरटी दवा मिल रही है उनमें से कम-से-कम 90% लोगों में ‘वायरल लोड’ नगण्य हो.
डॉ गिलाडा ने कहा कि जन स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अत्यंत आवश्यक है कि एचआईवी से ग्रसित सभी लोगों को उनके संक्रमण के बारे में जानकारी हो, उन्हें एआरटी दवाएं मिल रही हों, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे, अन्यथा एचआईवी रोकधाम में जो प्रगति हुई है वो पलट सकती है, जो नि:संदेह अवांछनीय होगा. वैज्ञानिक शोध यह प्रमाणित करते हैं कि यदि एचआईवी से ग्रसित व्यक्ति नियमित रूप से जीवन-रक्षक एआरटी दवाएं ले रहा हो और उसका वायरल लोड नगण्य रहे, तो उससे किसी अन्य को एचआईवी संक्रमण फैलने का खतरा भी नगण्य रहता है और वह स्वयं एक स्वस्थ और सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है. चूँकि भारत में अभी वायरल लोड जांच करने वाली मशीनों की अत्यधिक कमी है, जिसके कारणवश जिन 9,02,868 लोगों को एआरटी मिल रही है उनमें अधिकांश के वायरल लोड के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. यदि भारत को अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के लक्ष्य पूरे करने हैं तो बिना विलम्ब यह सुनिश्चित करना होगा कि हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को एआरटी मिल रही हो, उसकी वायरल लोड जांच हो रही हो और उसका वायरल लोड नगण्य रहे.
डॉ गिलाडा ने कहा कि 2016 तक, अनुमानित 21 लाख एचआईवी संक्रमित लोगों में से सिर्फ 67% लोगों को यह ज्ञात था कि उन्हें एचआईवी है. इन 14 लाख एचआईवी संक्रमित लोगों को जिन्हें संक्रमण की जानकारी थी, उनमें से 10 लाख से अधिक को जीवन-रक्षक एंटी-रेट्रो-वायरल दवा मिल रही थी. अर्थात भारत में अभी भी एच आई वी से संक्रमित 30% से अधिक लोगों को अपने संक्रमित होने का पता ही नहीं है। इन लोगों तक जांच और दवा पहुचना अत्यंत आवश्यक है. इसके अलावा, वर्तमान में केवल 50% एचआईवी संक्रमित लोगों को ही एंटी-रेट्रो-वायरल दवा मिल रही है,और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बाकि के 50% को भी यह दवा शीघ्र ही प्राप्त हो. यही राष्ट्रीय एड्स कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन की मार्गनिर्देशिका कहती है कि हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को बिना विलम्ब एंटी-रेट्रो-वायरल दवा मिले जिससे कि वे स्वस्थ रहे, संक्रमण न फैले और टीबी आदि जैसे अवसरवादी संक्रमण होने का खतरा भी अत्यंत कम हो सके.
डॉ गिलाडा ने कहा कि आज एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित अनेक नीति और कार्यक्रम हमें ज्ञात हैं। हमें यह भी पता है कि कैसे एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति भी एक स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकते हैं। परन्तु जमीनी हकीकत भिन्न है. यदि हम प्रमाणित नीतियों और कार्यक्रमों को कार्यसाधकता के साथ लागू नहीं करेंगे तो 2030 तक एड्स-मुक्त कैसे होंगे?
शोभा शुक्ला एवं बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
12 अप्रैल 2018
पायनियर दैनिक, 13 अप्रैल 2018 |
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