अस्थमा (दमा) नियंत्रण में सहायक है योग

सिटिज़न न्यूज सर्विस - सीएनएस
प्रोफेसर सूर्यकांत
लखनऊ विश्वविद्यालय के सहयोग से तथा किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सूर्यकांत के मार्गदर्शन में किए गए एक शोध अध्ययन में पाया गया कि प्रमाणित चिकित्सीय उपचार के साथ प्रतिदिन तीस मिनट के योगाभ्यास के द्वारा अस्थमा रोगियों के एंटीऑक्सीडेंट के स्तर में बढ़ोत्तरी होती है,  फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार आता है, तथा दवा की खुराक कम हो जाती है, जिसके चलते उनके दैनिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है । प्रत्येक वर्ष एक मई को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। अस्थमा श्वास नली या फेफड़ों के वायुमार्ग की एक दीर्घकालिक बीमारी है। श्वास नली के द्वारा हवा फेफड़ों के अंदर और बाहर आती-जाती है।

अस्थमा पीड़ित व्यक्तियों में  वायुमार्ग की दीवारों में सूजन आ जाती है और वो अतिसंवेदनशील हो जाती हैं। इससे फेफड़ों के अंदर और बाहर हवा के प्रवाह में रुकावट पैदा होती है, जिसके परिणामस्वरूप छाती में घरघराहट, खांसी, जकड़न और सांस लेने में परेशानी होती है। अस्थमा से प्रभावित वायुमार्ग पर वायरस, धुएँ, धूल, फफूँद , पशु लोम, कॉकरोच, और पराग कण जैसी वस्तुओं की तीव्र प्रतिक्रिया होती है ।

वैश्विक स्तर पर लगभग तीस करोड़ व्यक्ति अस्थमा से पीड़ित हैं, जिसमें से दस प्रतिशत (तीन करोड़ ) अकेले भारत में हैं। उत्तर-प्रदेश में पचास लाख लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। हालांकि अधिकतर मामलों में यह रोग घातक नहीं है, परन्तु रोगियों की दैनिक दिनचर्या को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है और समाज पर गंभीर आर्थिक और मानवीय बोझ डालता है।

ग्लोबल इनिसिएटिव ऑफ अस्थमा (GINA) के अनुसार, 40% रोगियों में अस्थमा अनियंत्रितऔर 60% रोगियों में आंशिक रूप से नियंत्रित होता है. इसका अर्थ है कि यह बहुत ही कम रोगियों में  पूर्ण रूप से नियंत्रित होता है। इसका मुख्य कारण है रोगी का इनहेलर दवा को उचित प्रकार से न लेना। यद्यपि विशेषज्ञ अस्थमा मरीजों को नियमित रूप से इनहेलर दवा लेने की सलाह  देते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से केवल 30% रोगी ही इन्हेल्ड दवा लेते हैं, जबकि शेष 70% खाने वाली दवा लेते हैं, जो इतनी असरदार नहीं है।

जो कारक अस्थमा/दमा के दौरे को बढ़ावा देते हैं उन्हें ट्रिगर्स कहा जाता है। ये ट्रिगर्स वायु मार्ग को बंद अथवा संकुचित कर देते हैं, जिससे रोगी को सांस लेने में मुश्किल होने लगती है। सूजी हुई श्वास नलिकाएं अधिक बलगम पैदा करती है और अपने चारों ओर की मांसपेशियाँ को कस कर उनमें जलन पैदा करती हैं, जिसके कारण वायुमार्ग संकुचित हो जाता  है। इसे श्वांस नली का दौरा/आकर्ष कहते हैं। एलर्जी पैदा करने वाले तत्व, आनुवंशिकता, असामान्य शारीरिक रसायन, मनोवैज्ञानिक कारक, वायु प्रदूषण, ठंडे पेय, कुछ रसायन और तनाव अस्थमा के दौरे को  बढ़ावा देने के मुख्य कारक हैं।

यद्यपि अस्थमा एक दीर्घकालिक बीमारी है जिसका इलाज संभव नहीं है, लेकिन दवाएं और जीवन शैली में बदलाव इसके लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। आवश्यकतानुसार  त्वरित राहत दवाओं (थोड़े समय के लिए राहत देने वाले इन्हेल्ड ब्रोंकोडाइलेटर) का उपयोग करके कुछ ही मिनटों में इसके लक्षणों से छुटकारा पाया जा सकता है। दीर्घकालिक नियंत्रक दवाओं को, आमतौर पर लंबे समय तक, प्रतिदिन लिया जाना चाहिए। समय के साथ ये दवाएं राहत देती हैं और मध्यम से औसत स्तर वाले अस्थमा से पीड़ित रोगियों में दौरे को रोकती हैं।

डॉ सूर्य कांत के अनुसार, "अस्थमा नियंत्रण के लिए योगाभ्यास एक साधारण और सस्ता तरीका है, जिसका उपयोग चिकित्सीय उपचार के साथ साथ एक सहायक चिकित्सा के रूप में  किया जा सकता है। नियमित प्राणायाम का अभ्यास बंद श्वांस नली का एक तिहाई भाग खोल देता है, फेफड़ों की सहनशक्ति को बढ़ाता है और अशुद्ध हवा को शरीर से बाहर  निकाल देता है। योग मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है और उसकी प्राकृतिक उपचार प्रणाली को पुनर्जीवित करता है। योग के द्वारा अस्थमा का इलाज करना तो संभव नहीं है, लेकिन अगर प्रमाणित चिकित्सा उपचार के साथ एक सहायक प्रणाली  के रूप में इसका उपयोग किया जाता है तो यह निश्चित रूप से अस्थमा को नियंत्रित कर सकता है।" उन्होंने बताया कि हर मंगलवार और शुक्रवार की सुबह अस्थमा रोगियों को केजीएमयू, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के वाह्य रोगियों के विभाग (ओपीडी) में योग विशेषज्ञ द्वारा योग में प्रशिक्षित किया जा रहा है।

सिटिज़न न्यूज सर्विस - सीएनएस
3 मई 2018