यदि अन्य स्वास्थ्य मुद्दों से तुलना की जाये तो यह सही है कि एचआईवी/एड्स कार्यक्रम ने पिछले अनेक सालों में अद्वितीय सफलता हासिल की है. एचआईवी रोकधाम के लिए बेमिसाल अभियान चले, नि:शुल्क जांच और विश्व में लगभग 2 करोड़ लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा मिली, वैज्ञानिक शोध के जरिये बेहतर दवाएं मिली, मानवाधिकार के अनेक जटिल मुद्दे उठे (जैसे कि, लिंग-जनित और यौनिक समानता), आदि. सबसे महत्वपूर्ण है कि आज यदि मानक के अनुसार जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा और अन्य देखभाल मिले, तो एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति का वायरल लोड नगण्य रहेगा, वह एक सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है, और उससे किसी को भी एचआईवी संक्रमण नहीं फैलेगा. परन्तु नए एचआईवी संक्रमण दर अभी भी अत्याधिक चिंताजनक है. एक ओर एचआईवी के साथ जीवित लोगों को स्वस्थ रखने की दिशा में सराहनीय प्रयास हुए, वहीं दूसरी ओर, विराट चुनौतियाँ अभी भी हैं.
एड्स नियंत्रण में जो प्रगति हुई है वह भी सब जगह एक समान नहीं है, किसी देश में अधिक तो किसी में कम, या किसी समुदाय-विशेष में कम. जैसे कि, जिन समुदाय को एचआईवी संक्रमण का खतरा ज्यादा है उनमें अक्सर एचआईवी कार्यक्रम की सेवाएँ असंतोषजनक रही हैं.
पिछले चंद सालों में एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र में, नए एचआईवी संक्रमण दर में, अपेक्षित गिरावट नहीं आई है. बांग्लादेश, पाकिस्तान और फिलीपींस में तो नए एचआईवी संक्रमण दर में बढ़ोतरी हो रही है. 2010 से एड्स-मृत्यु दर में 24% गिरावट आई है क्योंकि जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा अधिक लोगों तक पहुँच रही है. परन्तु चंद देशों में मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो गयी है जैसे कि अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और फिलीपींस.
जिनेवा-स्थित इंटरनेशनल एड्स सोसाइटी (आईएएस) की अध्यक्षीय समिति में एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र से निर्वाचित डॉ ईश्वर गिलाडा, एपीसीआरएसएचआर-10 (APCRSHR10) डायलॉग्स में प्रमुख वक्ता थे. यह ऑनलाइन सेमिनार, कोरोना वायरस की चुनौती के बावजूद, 10वें एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ और राइट्स (APCRSHR10) और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित था.
संयुक्त राष्ट्र के एड्स कार्यक्रम (यूएन-एड्स) के मुताबिक, एशिया पैसिफिक क्षेत्र में तीन-चौथाई नए एचआईवी संक्रमण उन समुदाय में हो रहे हैं जिनमें एचआईवी संक्रमण का खतरा ज्यादा है जैसे कि, ट्रांसजेंडर (हिजरा) और समलैंगिक समुदाय, यौन-कर्मी, नशा करने वाले लोग, घुमंतू मेहनतकश मजदूर, आदि. हर देश को प्रयास करना चाहिए कि विधिक और अन्य नीतियां, स्वास्थ्य नीतियों के अनुकूल हों जिससे कि ज़रूरतमंद लोग स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठा सकें जिनमें एचआईवी सेवाएँ भी शामिल हैं.
डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि "2020 तक, विश्व में नए एचआईवी संक्रमण दर और एड्स मृत्यु दर को 5 लाख से कम करने के लक्ष्य से हम अभी दूर हैं. 2018 में नए 17 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हुए और 7.7 लाख लोग एड्स से मृत. दुनिया में 3.79 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं. भारत में अनुमानित है कि 21.4 लाख लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं, जिनमें से 13.45 लाख लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा प्राप्त हो रही है. एक साल में 88,000 नए लोग एचआईवी से संक्रमित हुए और 69,000 लोग एड्स से मृत."
34 साल पहले जब भारत में पहले एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई थी, तब डॉ ईश्वर गिलाडा, देश के उन चिकित्सकों में शामिल थे जिन्होंने आगे बढ़ कर, एचआईवी के चिकित्सकीय देखभाल पर कार्य आरम्भ किया था.
डॉ ईश्वर गिलाडा, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एचआईवी चिकित्सकों एवं शोधकर्ताओं की राष्ट्रीय संस्था) के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने कहा कि भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और संयुक्त राष्ट्र के एड्स कार्यक्रम (UNAIDS) दोनों के अनुसार, 2020 तक एचआईवी का 90-90-90 का लक्ष्य पूरा करना है और सिर्फ 9 महीने शेष रह गए हैं: 2020 तक 90% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को यह पता हो कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं; जो लोग एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हुए हैं उनमें से कम-से-कम 90% को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही हो; और जिन लोगों को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है उनमें से कम-से-कम 90% लोगों में वायरल लोड नगण्य हो. वायरल लोड नगण्य रहेगा तो एचआईवी संक्रमण के फैलने का खतरा भी नगण्य रहेगा, और व्यक्ति स्वस्थ रहेगा.
डॉ गिलाडा ने बताया कि विश्व में 79% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को एचआईवी टेस्ट सेवा मिली, जिनमें से 62% को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है और 53% लोगों में वायरल लोड नगण्य है.
एशिया पैसिफिक क्षेत्र में, 59 लाख लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं जिनमें से 69% को एचआईवी पॉजिटिव होने की जानकारी है, 78% को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है और 49% का वायरल लोड नगण्य है.
टीबी से बचाव मुमकिन है और इलाज भी संभव है. तब क्यों एचआईवी पॉजिटिव लोगों में टीबी सबसे बड़ा मृत्यु का कारण बना हुआ है?
सीएनएस निदेशिका शोभा शुक्ला ने बताया कि 2018 में 15 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 2.5 लाख लोग एचआईवी से भी संक्रमित थे (2017 में 16 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 3 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे).
हर नया टीबी रोगी, पूर्व में लेटेंट टीबी से संक्रमित हुआ होता है। और हर नया लेटेंट टीबी से संक्रमित रोगी इस बात की पुष्टि करता है कि संक्रमण नियंत्रण निष्फल था जिसके कारणवश एक टीबी रोगी से टीबी बैक्टीरिया एक असंक्रमित व्यक्ति तक फैला।
लेटेंट टीबी, यानि कि, व्यक्ति में टीबी बैकटीरिया तो है पर रोग नहीं उत्पन्न कर रहा है। इन लेटेंट टीबी से संक्रमित लोगों में से कुछ को टीबी रोग होने का ख़तरा रहता है। जिन लोगों को लेटेंट टीबी के साथ-साथ एचआईवी, मधुमेह, तम्बाकू धूम्रपान का नशा, या अन्य ख़तरा बढ़ाने वाले कारण भी होते हैं, उन लोगों में लेटेंट टीबी के टीबी रोग में परिवर्तित होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
दुनिया की एक-चौथाई आबादी को लेटेंट टीबी है। पिछले 60 साल से अधिक समय से लेटेंट टीबी के सफ़ल उपचार हमें ज्ञात है पर यह सभी संक्रमित लोगों को मुहैया नहीं करवाया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2018 मार्गनिर्देशिका के अनुसार, लेटेन्ट टीबी उपचार हर एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को मिले, फेफड़े के टीबी रोगी, जिसकी पक्की जांच हुई है, उनके हर परिवार सदस्य को मिले, और डायलिसिस आदि करवा रहे लोगों को भी दिया जाए.
सीएनएस निदेशिका शोभा शुक्ला ने कहा कि "यह अत्यंत आवश्यक है कि एचआईवी से संक्रमित सभी लोगों को उनके संक्रमण के बारे में जानकारी हो, उन्हें एआरटी दवाएं मिल रही हों, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे तथा वह टीबी से बचें, अन्यथा एचआईवी रोकधाम में जो प्रगति हुई है वो पलट सकती है, जो नि:संदेह अवांछनीय होगा."
डॉ गिलाडा ने कहा कि आज एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित अनेक नीति और कार्यक्रम हमें ज्ञात हैं। हमें यह भी पता है कि कैसे एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति भी एक स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकते हैं। परन्तु जमीनी हकीकत भिन्न है. यदि हम प्रमाणित नीतियों और कार्यक्रमों को कार्यसाधकता के साथ लागू नहीं करेंगे तो 2030 तक एड्स-मुक्त कैसे होंगे?
विश्व टीबी दिवस, 24 मार्च 2020 को है. टीबी से बचाव मुमकिन है. टीबी की पक्की जांच और पक्का इलाज मुमकिन है और सरकारी स्वास्थ्य सेवा में नि:शुल्क उपलब्ध है. परन्तु आज भी टीबी क्यों एचआईवी पोसिटिव लोगों में सबसे बड़ा मृत्यु का कारण बना हुआ है? इमानदारी से मूल्याङ्कन की ज़रूरत है जिससे कि स्वास्थ्य सुरक्षा सभी को मिल सके, संक्रमण दर पर अंकुश लग सके और सतत विकास लक्ष्य पर हम सब खरे उतर सकें.
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एड्स नियंत्रण में जो प्रगति हुई है वह भी सब जगह एक समान नहीं है, किसी देश में अधिक तो किसी में कम, या किसी समुदाय-विशेष में कम. जैसे कि, जिन समुदाय को एचआईवी संक्रमण का खतरा ज्यादा है उनमें अक्सर एचआईवी कार्यक्रम की सेवाएँ असंतोषजनक रही हैं.
पिछले चंद सालों में एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र में, नए एचआईवी संक्रमण दर में, अपेक्षित गिरावट नहीं आई है. बांग्लादेश, पाकिस्तान और फिलीपींस में तो नए एचआईवी संक्रमण दर में बढ़ोतरी हो रही है. 2010 से एड्स-मृत्यु दर में 24% गिरावट आई है क्योंकि जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा अधिक लोगों तक पहुँच रही है. परन्तु चंद देशों में मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो गयी है जैसे कि अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और फिलीपींस.
जिनेवा-स्थित इंटरनेशनल एड्स सोसाइटी (आईएएस) की अध्यक्षीय समिति में एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र से निर्वाचित डॉ ईश्वर गिलाडा, एपीसीआरएसएचआर-10 (APCRSHR10) डायलॉग्स में प्रमुख वक्ता थे. यह ऑनलाइन सेमिनार, कोरोना वायरस की चुनौती के बावजूद, 10वें एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ और राइट्स (APCRSHR10) और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित था.
संयुक्त राष्ट्र के एड्स कार्यक्रम (यूएन-एड्स) के मुताबिक, एशिया पैसिफिक क्षेत्र में तीन-चौथाई नए एचआईवी संक्रमण उन समुदाय में हो रहे हैं जिनमें एचआईवी संक्रमण का खतरा ज्यादा है जैसे कि, ट्रांसजेंडर (हिजरा) और समलैंगिक समुदाय, यौन-कर्मी, नशा करने वाले लोग, घुमंतू मेहनतकश मजदूर, आदि. हर देश को प्रयास करना चाहिए कि विधिक और अन्य नीतियां, स्वास्थ्य नीतियों के अनुकूल हों जिससे कि ज़रूरतमंद लोग स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठा सकें जिनमें एचआईवी सेवाएँ भी शामिल हैं.
डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि "2020 तक, विश्व में नए एचआईवी संक्रमण दर और एड्स मृत्यु दर को 5 लाख से कम करने के लक्ष्य से हम अभी दूर हैं. 2018 में नए 17 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हुए और 7.7 लाख लोग एड्स से मृत. दुनिया में 3.79 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं. भारत में अनुमानित है कि 21.4 लाख लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं, जिनमें से 13.45 लाख लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा प्राप्त हो रही है. एक साल में 88,000 नए लोग एचआईवी से संक्रमित हुए और 69,000 लोग एड्स से मृत."
34 साल पहले जब भारत में पहले एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई थी, तब डॉ ईश्वर गिलाडा, देश के उन चिकित्सकों में शामिल थे जिन्होंने आगे बढ़ कर, एचआईवी के चिकित्सकीय देखभाल पर कार्य आरम्भ किया था.
डॉ ईश्वर गिलाडा, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एचआईवी चिकित्सकों एवं शोधकर्ताओं की राष्ट्रीय संस्था) के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने कहा कि भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और संयुक्त राष्ट्र के एड्स कार्यक्रम (UNAIDS) दोनों के अनुसार, 2020 तक एचआईवी का 90-90-90 का लक्ष्य पूरा करना है और सिर्फ 9 महीने शेष रह गए हैं: 2020 तक 90% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को यह पता हो कि वे एचआईवी पॉजिटिव हैं; जो लोग एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हुए हैं उनमें से कम-से-कम 90% को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही हो; और जिन लोगों को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है उनमें से कम-से-कम 90% लोगों में वायरल लोड नगण्य हो. वायरल लोड नगण्य रहेगा तो एचआईवी संक्रमण के फैलने का खतरा भी नगण्य रहेगा, और व्यक्ति स्वस्थ रहेगा.
डॉ गिलाडा ने बताया कि विश्व में 79% एचआईवी पॉजिटिव लोगों को एचआईवी टेस्ट सेवा मिली, जिनमें से 62% को एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है और 53% लोगों में वायरल लोड नगण्य है.
एशिया पैसिफिक क्षेत्र में, 59 लाख लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं जिनमें से 69% को एचआईवी पॉजिटिव होने की जानकारी है, 78% को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा मिल रही है और 49% का वायरल लोड नगण्य है.
एचआईवी पॉजिटिव लोगों में सबसे बड़ा मृत्यु का कारण क्यों हैं टीबी?
टीबी से बचाव मुमकिन है और इलाज भी संभव है. तब क्यों एचआईवी पॉजिटिव लोगों में टीबी सबसे बड़ा मृत्यु का कारण बना हुआ है?
सीएनएस निदेशिका शोभा शुक्ला ने बताया कि 2018 में 15 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 2.5 लाख लोग एचआईवी से भी संक्रमित थे (2017 में 16 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 3 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे).
हर नया टीबी रोगी, पूर्व में लेटेंट टीबी से संक्रमित हुआ होता है। और हर नया लेटेंट टीबी से संक्रमित रोगी इस बात की पुष्टि करता है कि संक्रमण नियंत्रण निष्फल था जिसके कारणवश एक टीबी रोगी से टीबी बैक्टीरिया एक असंक्रमित व्यक्ति तक फैला।
लेटेंट टीबी, यानि कि, व्यक्ति में टीबी बैकटीरिया तो है पर रोग नहीं उत्पन्न कर रहा है। इन लेटेंट टीबी से संक्रमित लोगों में से कुछ को टीबी रोग होने का ख़तरा रहता है। जिन लोगों को लेटेंट टीबी के साथ-साथ एचआईवी, मधुमेह, तम्बाकू धूम्रपान का नशा, या अन्य ख़तरा बढ़ाने वाले कारण भी होते हैं, उन लोगों में लेटेंट टीबी के टीबी रोग में परिवर्तित होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
दुनिया की एक-चौथाई आबादी को लेटेंट टीबी है। पिछले 60 साल से अधिक समय से लेटेंट टीबी के सफ़ल उपचार हमें ज्ञात है पर यह सभी संक्रमित लोगों को मुहैया नहीं करवाया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2018 मार्गनिर्देशिका के अनुसार, लेटेन्ट टीबी उपचार हर एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को मिले, फेफड़े के टीबी रोगी, जिसकी पक्की जांच हुई है, उनके हर परिवार सदस्य को मिले, और डायलिसिस आदि करवा रहे लोगों को भी दिया जाए.
सीएनएस निदेशिका शोभा शुक्ला ने कहा कि "यह अत्यंत आवश्यक है कि एचआईवी से संक्रमित सभी लोगों को उनके संक्रमण के बारे में जानकारी हो, उन्हें एआरटी दवाएं मिल रही हों, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे तथा वह टीबी से बचें, अन्यथा एचआईवी रोकधाम में जो प्रगति हुई है वो पलट सकती है, जो नि:संदेह अवांछनीय होगा."
डॉ गिलाडा ने कहा कि आज एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित अनेक नीति और कार्यक्रम हमें ज्ञात हैं। हमें यह भी पता है कि कैसे एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति भी एक स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकते हैं। परन्तु जमीनी हकीकत भिन्न है. यदि हम प्रमाणित नीतियों और कार्यक्रमों को कार्यसाधकता के साथ लागू नहीं करेंगे तो 2030 तक एड्स-मुक्त कैसे होंगे?
विश्व टीबी दिवस 2020
विश्व टीबी दिवस, 24 मार्च 2020 को है. टीबी से बचाव मुमकिन है. टीबी की पक्की जांच और पक्का इलाज मुमकिन है और सरकारी स्वास्थ्य सेवा में नि:शुल्क उपलब्ध है. परन्तु आज भी टीबी क्यों एचआईवी पोसिटिव लोगों में सबसे बड़ा मृत्यु का कारण बना हुआ है? इमानदारी से मूल्याङ्कन की ज़रूरत है जिससे कि स्वास्थ्य सुरक्षा सभी को मिल सके, संक्रमण दर पर अंकुश लग सके और सतत विकास लक्ष्य पर हम सब खरे उतर सकें.
22 मार्च 2020
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