नर्स संगठनों की है मांग कि सबके लिए हो स्वास्थ्य सुरक्षा एक समान


[English] फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (12 मई) के रूप में मनाया जाता है. इस साल, फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म को 200 साल हो रहे हैं और इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरे वर्ष 2020 को, नर्स और दाई के सम्मान में, समर्पित कर दिया है.

अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर क्या हम लोग स्वास्थ्य सुरक्षा में नर्स की भूमिका को सिर्फ सम्मानित ही करेंगे या उनके श्रम अधिकार, वाजिब आय और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी कार्य करेंगे? यह सवाल पूछते हैं अनेक नर्स संगठन के प्रतिनिधि जिन्होंने हम लोगों से नर्स दिवस पर बातचीत की.

केरल से यूनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन से सम्बंधित टी.सी. जिबिन कहते हैं कि भारत में अब तक 65,000 से अधिक लोग कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से ग्रसित हैं, जिनमें से 1000 से अधिक नर्स हैं. हालाँकि केरल जैसे प्रदेश में जहाँ स्वास्थ्य व्यवस्था सुचारू रूप से लागू है, वहां सिर्फ 2 नर्सों ने  कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) की रिपोर्ट है. नर्स और सभी स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमण नियंत्रण के लिए सभी ज़रूरी व्यवस्था होना अनिवार्य है. स्वास्थ्यकर्मी सुरक्षित रहेंगे तब ही तो वह जीवनरक्षक सेवा प्रदान कर सकेंगे. पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव एकुइपमेंट) की कमी का एक बड़ा कारण यह है कि यह पहले अधिकांश अन्य देशों से आयात की जाती थी, जिनमें चीन भी शामिल है. देश में अनेक जगह स्वास्थ्यकर्मी न सिर्फ पीपीई की कमी झेल रहे हैं परन्तु असंतोषजनक क्वारंटाइन सुविधा से भी जूझ रहे हैं.

जिबिन कहते हैं कि कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) सम्बंधित नीतियां हों या अन्य स्वास्थ्य नीति, जब नीति निर्माण में, चिकित्सक वर्ग को शामिल किया जाता है तो बराबरी के साथ नर्स संगठन को क्यों नहीं? आख़िरकार रोगी के साथ अधिकाँश समय और संपर्क तो नर्स का ही रहता है और स्वास्थ्य सेवा में उनका योगदान भी अहम् है, तो फिर, सम्मान और श्रेय में क्यों है भेदभाव? अधिकाँश स्वास्थ्य नीति वह लोग निर्मित कर रहे हैं जिनकी नर्स की पृष्ठभूमि ही नहीं है. कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) और अन्य दिशानिर्देश जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से आते हैं, वह संतोषजनक ढंग से हर जगह लागू नहीं हो पा रहे. नर्स संगठनों को नीति निर्माण में चिकित्सकों के संगठनों जैसे, बराबरी से सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए. देश में नीति तो है कि हर 6 रोगी पर 1 नर्स हो पर हकीकत यह है कि 60-70 रोगियों पर एक नर्स है.

कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) के दौरान नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने जो हिंसा, शोषण और भेदभाव झेला है उसके कारण भारत सरकार ने विशेष अध्यादेश के ज़रिये स्वास्थ्यकर्मी पर हिंसा करने को कानूनन जुर्म घोषित किया है.

पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल की एशिया पसिफ़िक क्षेत्रीय सचिव केट लैपिन कहती हैं कि कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) के चलते श्रमिक यूनियन का पुराना सिद्धांत, 'टच वन टच आल' (यदि एक प्रभावित होगा तो सब प्रभावित होंगे), अत्यंत प्रासंगिक हो गया है. यदि हमारी स्वास्थ्य सेवा सबका ख्याल नहीं रख पा रही है तो हम सब को खतरा है. हमें समाज का पुनर्निर्माण ऐसा करना होगा कि हर एक इंसान सकुशल जीवन सम्मान के साथ जी सके.

दक्षिण कोरिया के जन सेवा और यातायात कर्मचारी यूनियन की वोल-सन लीम कहती हैं कि दक्षिण कोरिया ने जैसे कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) की रोकधाम की, उसके कारण उसको जग प्रशंसा तो मिली. परन्तु यदि गंभीरता से अधयन्न करें तो अनेक ऐसे कदम हैं जो बेहतर जन स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं. दक्षिण कोरिया में कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से संक्रमित लोगों में से 2-3% ही स्वास्थ्यकर्मी थे. दक्षिण कोरिया में सबके लिए सर्वजनीन स्वास्थ्य सुरक्षा है परन्तु सरकारी अस्पताल पर्याप्त हैं ही नहीं.

वोल-सन लीम ने बताया कि दक्षिण कोरिया के डेगू शहर में, मध्य फरवरी तक कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) का इतना अनुपात हो गया था कि सभी अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा के लिए कठोर परीक्षा की घड़ी उत्पन्न हो गयी थी. ऐसे में न सिर्फ नर्सों की  कमी थी बल्कि विशेषकर, ऐसी नर्स जो संक्रामक रोग और सघन देखभाल एकक (इंटेंसिव केयर यूनिट) में प्रशिक्षित हो, उनकी बड़ी कमी रही. अस्पताल में जगह ही नहीं रही इसीलिए अनेक कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) के रोगी जिन्हें चिकित्सकीय देखरेख चाहिए थी, उन्हें नहीं मिल पायी. जो लोग कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से आरंभ में मृत हुए उनमें से 23% की मृत्यु अस्पताल से बाहर हुई. दक्षिण कोरिया में सरकारी अस्पतालों की संख्या बढ़ाने की ज़रूरत है. सरकारी अस्पताल में चिकित्सक की संख्या में भी गिरावट आ रही है जो चिंताजनक है. जो स्वास्थ्यकर्मी संविदा पर कार्य कर रहे हैं उनको भी पीपीई मिलना सुनिश्चित करना चाहिए.

ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स नर्सेस और दाई संगठन की महासचिव जूडिथ कीज्दा ने कहा कि पीपीई की कमी बहुत बड़ी समस्या है जिसका एक बड़ा कारण है कि पीपीई देश के भीतर नहीं बनाये जाते. कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) ने यह साबित कर दिया है कि सरकारी जन स्वास्थ्य सेवा कितनी ज़रूरी है. हालाँकि ऑस्ट्रेलिया की सरकारी स्वास्थ्य सेवा अन्य देशों की तुलना में काफ़ी बेहतर ही मानी जाएगी परन्तु वहां भी निजीकरण का प्रयास हो रहा है, जिसका नतीजा है कि रेडियोलोजी, पैथोलॉजी, और डायलिसिस आदि की सेवाओं का निजीकरण हो गया है.

ऑस्ट्रेलिया में महामारी नियंत्रण योजना में देश भर की नर्सों से भी राय-मशविरा होता है. नीति निर्माण में नर्सों का योगदान होना ही चाहिए. परन्तु पिछली महामारी नियंत्रण योजना 2008 में बनी थी जो संभवत: प्रासंगिक नहीं रही है. जूडिथ की मांग है कि सरकार वर्त्तमान सन्दर्भ में महामारी नियंत्रण योजना शीघ्र ही बनाये और उसे नियमित आवश्यकतानुसार संशोधित करती रहे जिससे कि वह प्रासंगिक बनी रहे.

फिलीपींस के जन सेवा श्रमिक संगठन के जिलियन रोकुए ने कहा कि पीपीई की भारी कमी देश में बनी हुई है जिसके कारण कुछ नर्स को कचरा बैग तक पीपीई की जगह इस्तेमाल करना पड़ा है जो बेहद खेदपूर्ण है. चूँकि कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) के कारण तालाबंदी है, इसलिये जन यातायात सेवा ठप्प है और नर्सों को  वापिस घर जाने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है. अनेक नर्सों को अपने ही घर में या परचून दुकान आदि में घुसने से स्थानीय लोगों ने आपत्ति की. एक नर्स पर तो लोगों ने क्लोरीन ही फेंक दी.

एक ओर तो हम लोग नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी को ताली बजा कर सम्मानित करते हैं, और दूसरी तरफ उनका जीना दूभर किये हुए हैं. यदि सभी स्वास्थ्यकर्मी सुरक्षित और स्वस्थ रहेंगे तभी तो वह जीवनरक्षक सेवा प्रदान कर सकेंगे.

जिलियन का कहना है कि फिलीपींस की नर्सें  न केवल अपने देश में बल्कि अनेक देशों में कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से सम्बंधित स्वास्थ्य-सेवा दे रही हैं. एक नर्स लन्दन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत थी जिसकी मृत्यु क्वारंटाइन में हुई. एक और नर्स जो न्यू यॉर्क में कार्यरत थी उसको पीपीई न मिलने के कारण कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) हुआ और अंतत: मृत हुई.

जिलियन का मानना है कि सरकारों को ऐसी नीतियों को पलटना होगा जिसके कारणवश सरकारी जन-स्वास्थ्य सेवा कमज़ोर होती है.

पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल की एशिया पसिफ़िक क्षेत्रीय सचिव केट लेप्पिन कहती हैं कि सरकारों का सबसे महत्वपूर्ण काम यह है कि ऐसी सामाजिक व्यवस्था बने कि हर इन्सान की सम्मान के साथ देखरेख हो सके. ऐसी व्यवस्था जिसमें बीमारी और रोग से मुनाफ़ा कमाया जाता हो, को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. स्वास्थ्य सेवा तो मानवाधिकार स्वरुप हर इंसान को मिलनी होगी और यह उसकी जेब में कितने पैसे हैं, उसपर निर्भर नहीं कर सकता है.

11 मई 2020

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