युद्ध और अन्य आपदाओं का जेंडर समानता और स्वास्थ्य अधिकार पर क़हर

[English] महिलाओं के लिए पहले से ही अनेक असमानताएं मौजूद हैं जिन्हें युद्ध और मानवीय संकट और भी बढ़ा देते हैं, जिससे महिला हिंसा, प्रजनन स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य संबंधित चुनौतियाँ बढ़ जाती हैं और साथ ही स्वास्थ्य देखभाल और आजीविका जैसी बुनियादी ज़रूरतें पहुँच से बाहर हो जाती हैं।

युद्ध, प्राकृतिक आपदाएँ (जैसे बाढ़ और अकाल), धार्मिक कट्टरवाद और अन्य मानवीय संकट, महिलाओं के लिए मानवाधिकार उल्लंघन के ख़तरे को बढ़ाते हैं।

धार्मिक कट्टरवाद का कुरूप चेहरा

अफगानिस्तान में मानवाधिकार और मानवीय संकट के खतरे सभी के लिए गहरा रहे हैं, लेकिन महिलाओं समेत जेंडर विविध लोगों की स्थिति और भी गंभीर है। उन्हें तालिबान अधिकारियों से हिंसा, और यहां तक कि मौत, का भी गंभीर खतरा है।

अफ़ग़ानी महिलाओं की स्थिति भी बहुत दयनीय है। अफ़गानिस्तान की एक समलैंगिक महिला परवीन ने "जेंडर न्याय और स्वास्थ्य पर युद्ध और अन्य मानवीय संकटों के प्रभाव" पर "शी एंड राइट्स" सत्र में अपनी हृदय विदारक कहानी सुनाते हुए कहा कि उन्हें लगातार उत्पीड़न और जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।

वह मार्च 2025 का एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन था जब परवीन और उनकी प्रेमिका मरियम ने एक ट्रांसजेंडर दोस्त मावे के साथ अफ़ग़ानिस्तान छोड़ के ईरान जाने की कोशिश की। लेकिन मामला उलट गया। तालिबान ने मरियम और मावे को पकड़ कर हिरासत में ले लिया और तब से वे कैद में हैं। सौभाग्य से परवीन हवाई अड्डे पर सुरक्षा जांच से गुजरने में सफल रही क्योंकि उसका भाई उसके पुरुष संरक्षक के रूप में उसे अनुमति देने हेतु हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हो गया। जब तक तालिबान परवीन की तलाश में हवाई अड्डे पर पहुँचे तब तक उसका विमान उड़ान भर चुका था। 

तालिबान परवीन की तलाश कर रहे हैं। लेकिन वह अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्प है क्योंकि वह नहीं चाहती कि भविष्य में किसी अन्य जेंडर विविध व्यक्ति को तकलीफ़ उठानी पड़े।

परवीन अब अफ़गानिस्तान की समलैंगिक महिलाओं के संघर्ष का चेहरा हैं, जिनके पास कोई अधिकार नहीं हैं। "मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी मुश्किलों का सामना किया है। जब से मौजूदा शासन सत्ता में आया है, हम जेंडर विविध लोगों के लिए जीने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। लेकिन हम अपने अधिकारों के लिए तब तक लड़ते रहेंगे जब तक जेंडर विविध लोग हमारी मातृभूमि में आज़ाद नहीं हो जाते।"

परवीन के सहयोगी नेमत सादत हैं, जो रोशनिया (जेंडर विविध अफ़गानों की सहायता के लिए समर्पित एक नेटवर्क है) के अध्यक्ष हैं। नेमत उन पहले अफ़गानों में से एक हैं जिन्होंने 2013 में खुले तौर पर अपने समलैंगिक होने की बात स्वीकार की थी और जेंडर विविध लोगों के अधिकारों के लिए अभियान चलाया।

नेमत ने बताया "हमारे पास 1,000 से ज़्यादा जेंडर विविध लोगों की सूची है जो अभी भी अफ़गानिस्तान में रह रहे हैं। आज तक हमने 265 लोगों को पश्चिमी देशों और ओमान में सुरक्षित पहुचाने में मदद की है और हमें उम्मीद है कि परवीन भी सुरक्षित जगह पर पहुँच जाएँगी, हालाँकि अभी उनका भविष्य बहुत अनिश्चित लग रहा है। हम तब तक अपनी लड़ाई जारी रखेंगे जब तक हम सभी आज़ाद नहीं हो जाते और उम्मीद है कि तालिबान के बाद की दुनिया में अफ़गानिस्तान में लोकतंत्र वापस आ जाएगा। मुझे यकीन है कि वह दिन हमारे जीवनकाल में आएगा।"

युद्ध ग्रस्त क्षेत्र अभूतपूर्व संकटों का सामना कर रहे हैं

दक्षिण सूडान में चल रही लड़ाई और कलह ने जेंडर विविध समुदाय, एचआईवी के साथ जीवित लोगों, यौनकर्मी, और विकलांग व्यक्ति जैसे हाशिए पर रह रहे लोगों को आघात पहुँचाया है। उन्हें शारीरिक हिंसा, घरेलू हिंसा और यौन शोषण का सामना करना पड़ रहा है।

दक्षिण सूडान में महिला अधिकारों पर कार्यरत और डबल्यूईसीएसएस की अध्यक्ष रेचल अडाऊ के अनुसार साउथ सूडान की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली टूट रही है। मातृ और बाल स्वास्थ्य सेवाएं बहुत बुरी स्थिति में है। संक्रामक रोगों का जोखिम भी बढ़ गया है। अभी दक्षिण सूडान में नदी के दूषित पानी के कारण हैजा का प्रकोप फैला हुआ है। नदी के किनारे रहने वाले लोगों को साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। संघर्ष के कारण खाद्य असुरक्षा होने से युवतियों तथा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण और एनीमिया अधिक है। लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर भी बहुत अधिक है। इन सबके परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी पैदा हो रही हैं।

दक्षिण सूडान में दो न्यायिक प्रणालियाँ हैं - संविधान और प्रथागत पारंपरिक कानून। परंपरा के अनुसार, पुरुष ही कमाते हैं। महिलाओं के पास संसाधनों तक पहुँच नहीं है, निर्णय लेने की पहुँच नहीं है, नेतृत्व में उनकी कोई आवाज़ नहीं है क्योंकि उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है। संविधान के अनुसार दक्षिण सूडान में सभी महिलाओं को समान अधिकार हैं, लेकिन वे कानूनों के खराब क्रियान्वयन के कारण उनका प्रयोग करने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए, भले ही उनके पास संपत्ति रखने का कानूनी अधिकार है , लेकिन अक्सर उन्हें इस अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। साथ ही महिला हिंसा के अपराधियों को सज़ा नहीं मिलती।

युद्धग्रस्त लेबनान में भी स्थिति चिंताजनक है। इज़रायल के सैन्य अभियानों के बढ़ने से गहरा मानवीय संकट पैदा हो गया है। सितंबर 2024 से अब तक लेबनान में 10 लाख से ज़्यादा लोग अपने घर छोड़कर भाग चुके हैं। इज़रायली हमलों में लेबनान में करीब 4000 लोग मारे गए हैं और हज़ारों इमारतें और घर नष्ट हो गए हैं। अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी बम बारी की गई है। इस लड़ाई और कलह ने मौजूदा असमानताओं को और बढ़ा दिया है, जिससे बुनियादी ज़रूरतों और सेवाओं तक पहुँचने में चुनौतियाँ बढ़ गई हैं। कमज़ोर और हाशिए पर रह रहे समूह - महिलाएँ, जेंडर विविध लोग, एचआईवी के साथ जीवित लोग, विकलांग लोग, बुज़ुर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, लेबनान में लड़ाई और कलह के कारण क्षति और आर्थिक नुकसान की लागत अमेरिकी डॉलर 8.5 बिलियन आंकी गई है। और 2024 में लेबनान की जीडीपी वृद्धि में अनुमानित 9% की कमी आई।

चरम जलवायु घटनाएँ अपना असर दिखा रही हैं

केन्या के प्रजनन स्वास्थ्य नेटवर्क की निदेशक नेली मुन्यासिया का मानना है कि, केन्या सहित, वैश्विक दक्षिण के देशों को अनेक संकटों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि बाढ़, खाद्य आपूर्ति में कमी, और युद्ध। इन सब आपदाओं के कारण महिलाएँ तथा जेंडर विविध समुदाय सबसे अधिक प्रभावित हैं। महिला हिंसा में वृद्धि हुई है, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच बाधित हुई है, तथा महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण, कम उम्र में विवाह, अंतरंग-साथी द्वारा की गई हिंसा और विस्थापन का जोखिम बढ़ गया है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी व्यवधान है। जब सड़कें टूटी होती हैं, तो लड़कियाँ और महिलाएँ नदी पार नहीं कर पाती हैं, जिससे उनकी शिक्षा बाधित होती है और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच खंडित होती है। जिन महिलाओं को प्रसव-पूर्व देखभाल, या गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन की ज़रूरत होती है, एचआईवी के साथ जीवित लोग जिन्हें अपनी नियमित दवा की ज़रूरत होती है - वे युद्ध या बाढ़ संकट के कारण इन सेवाओं तक नहीं पहुँच पाते हैं। बड़े पैमाने पर विस्थापन, खाद्य असुरक्षा और सामाजिक संरचनाओं का टूटना - ये सभी महिलाओं के यौन शोषण को बढ़ावा देते हैं।

जेंडर और स्वास्थ्य पर लैंसेट आयोग की हाल में जारी की गई रिपोर्ट, जेंडर न्याय और स्वास्थ्य समानता के बीच महत्वपूर्ण संबंध पर जोर देती है। यह रिपोर्ट, जेंडर समानता विरोधी पित्तरात्मक विचारधाराओं के पनपने, और स्वास्थ्य और जेंडर समानता पर उनके हानिकारक प्रभावों का मुकाबला करने की आवश्यकता को भी स्वीकार करती है।

पित्रात्मक व्यवस्था के चलते महिलाओं द्वारा किए जाने वाले घरेलू और देखभाल संबंधी काम अवैतनिक माने जाते हैं, उन्हें महत्वहीन माना जाता है और उन्हें कम मान्यता दी जाती है। यौन और प्रजनन संबंधी श्रम के लिए भी यही बात लागू होती है। अगर लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा, सामाजिक सहायता सेवाओं, कार्यक्षेत्र में भागीदारी और अधिकारों तक समान पहुंच मिल पाए तो इससे कुछ उम्मीद की किरण जग सकती है। लेकिन अभी तक, गहरी पैठ रखने वाली पितृसत्ता द्वारा प्रेरित हानिकारक आख्यान और लैंगिक मानदंड लैंगिक समानता की राह में रोड़े अटका रहे हैं - न केवल सूडान में, बल्कि एशिया और अफ्रीका के कई अन्य देशों में भी।

आइए हम एक नारीवादी विश्व व्यवस्था के लिए मिलकर काम करें, जहाँ सभी को समान अधिकार, समान सम्मान और संसाधनों तक समान पहुँच और नियंत्रण मिले, चाहे उनकी जाति, पंथ या जेंडर पहचान कुछ भी हो। जेंडर असमानता और विषाक्त पुरुषत्व को हमारे साथ ही समाप्त होना चाहिए।

शोभा शुक्ला - सीएनएस
(सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)
12 मई 2025

प्रकाशित: