एरो की सह-निदेशक साईं ज्योतिर्मय रेचरला ने कहा कि “विकास के वित्तपोषण के लिए ज़रूरी है कि वैश्विक आर्थिक प्रणाली का जेंडर परिवर्तनकारी सुधार हो जिससे कि सरकारें स्वास्थ्य और जेंडर संबंधित सतत विकास लक्ष्यों पर ईमानदारी और न्यायपूर्ण रूप से कार्य कर सकें। साईं का मानना है कि आर्थिक न्याय के बिना जेंडर न्याय और स्वास्थ्य अधिकार, दोनों पर खरा उतरना संभव नहीं है।
साईं ने कहा कि यह बैठक, पूर्व में 2002 (मोंटेरे मेक्सिको), 2008 (दोहा, कतर) और 2015 (अड्डिस अबाबा, इथियोपिया) में हुई बैठकों की तुलना में भी निराशापूर्ण रही। जो वादे सरकारों ने आईसीपीडी 1994 और बीजिंग घोषणापत्र 1995 में किए थे, उनकी तुलना में भी इस बैठक ने अत्यंत निराश किया है – जब विकास का न्यायसंगत वित्तपोषण नहीं हो सकेगा तो कैसे सतत विकास लक्ष्यों पर सामाजिक और जेंडर न्याय और अधिकार को केंद्र में रख कर कार्य होगा?
डॉ माबेल बायंको, अर्जेंटीना की लोकप्रिय चिकित्सक हैं जिन्होंने अनेक दशकों से स्वास्थ्य और जेंडर अधिकार पर कार्य किया है। उन्होंने कहा कि लोग कह रहे हैं कि इस बैठक में पारित हुए घोषणापत्र ने अधिकारों के साथ ‘समझौता’ किया है - पर सच इससे भी अधिक कष्टदायक है क्योंकि जब सरकारों ने इस घोषणापत्र में कोई ठोस वादा ही नहीं किया, तो यह 'समझौता' मात्र भी कैसे कहा जा सकता है? जनता के दृष्टिकोण से तो यह पूर्णत: असफल बैठक रही है।
माबेल बायंको ने कहा कि इस बैठक का दस्तावेज़ कमजोर है। उदाहरण के लिए उन्होंने बताया कि इस दस्तावेज़ में सबके स्वास्थ्य की बात तो है पर प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार की बात गायब है। क्या सुरक्षित गर्भपात का अधिकार सरकारें हर जरूरतमंद नवयुवती या महिला के लिए – अधिकार स्वरूप - सुनिश्चित करेंगी?
ऋण और विकास पर एशियाव्यापी आंदोलन (एपीएमडीडी) की प्रमुख लिडी नैकपिल ने कहा कि विकास के वित्तपोषण पर वैश्विक बैठक के शुरू होने के 2-3 सप्ताह पहले ही, इसका घोषणापत्र पक्का हो चुका था – इससे ज़्यादा निंदनीय क्या हो सकता है? बैठक का क्या मायने है जब बैठक में पारित होने वाला दस्तावेज़ पहले ही पक्का किया जा चुका है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह अमीर देशों ने किया है क्योंकि अमीर देश और पूंजीवादी ताकतें ही यह नहीं चाहती कि विकास का वित्तपोषण ऐसा हो जो नारीवादी एजेंडे पर खरा उतरे।
उदाहरण के तौर पर, अमीर देश और पूंजीवादी ताकतें यह नहीं चाहती कि विकासशील देशों के ऋण माफ हों। वह चाहती हैं कि विकासशील देश, अमीरों (और उनके बैंक – जैसे कि वर्ल्ड बैंक आदि) को ऋण चुकाते रहें भले ही वह धनराशि, शिक्षा, स्वास्थ्य, जेंडर आदि के सामाजिक निवेश से निकाल के ऋण भरने के लिए दी जा रही हो।
आख़िर, अमीर देश, विकासशील देशों के संसाधनों को सदियों तक लूट कर ही इतने अमीर बने हैं। अब समय आ गया है कि विकासशील देशों को ऋण मुक्त किया जाए जिससे कि वह पूर्णत: स्वास्थ्य, जेंडर, शिक्षा, आदि पर समाज-हित में कार्य कर सकें।
जब तक वैश्विक आर्थिक ढांचे में नारीवादी परिवर्तनकारी सुधार नहीं किए जायेंगे तब तक कोई जन-हितैषी दीर्घकालिक परिणाम निकलने की कोई संभावना नहीं हैं। बल्कि मौजूदा वैश्विक आर्थिक ढांचा सिर्फ़ अमीर देशों और पूंजीवादियों के हितों की रक्षा कर रहा है।
लोगों को बोलने की आज़ादी कहाँ है?
महिला, कानून और विकास पर एशिया पैसिफिक फोरम (एपीडबल्यूएलडी) से संबंधित ज़ैनब शुमैल ने कहा कि विकास के वित्तपोषण पर वैश्विक बैठक में अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाएं गए थे जिससे कि सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिभागिता न कर सकें। पूरी बैठक का आयोजन ऐसा था कि कार्यकर्ता और सरकारी प्रतिनिधि का आमना-सामना न हो या न्यूनतम हो।
ज़ैनब ने कहा कि यदि लैपटॉप कंप्यूटर पर कोई स्टीकर चिपका हो जैसे कि ‘ऋण मुक्ति’ आदि, तो उसको बैठक में अंदर ले के जाने की अनुमति नहीं थी। चूँकि बैठक स्पेन के सिविल नामक शहर में हो रही थी जहाँ तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस तक था, लोग अक्सर काग़ज़ के पंखे का उपयोग करते थे। यदि इन काग़ज़ के पंखों पर कोई नारा हो (जो सुरक्षाकर्मी को सरकारों के विरोध में लगे) तो उनको भी ले के जाने की अनुमति नहीं थी।
सबसे चिंताजनक यह है कि कोई रिपोर्ट, दस्तावेज़ आदि जो सुरक्षाकर्मियों को सरकारों के विरोध में प्रतीत हो, उसको बैठक में अंदर ले के जाने की अनुमति ही नहीं थी।
माबेल बायंको ने भी यही चिंता जतायी। माबेल ने कहा कि जो लोग स्वास्थ्य अधिकार और जेंडर न्याय के अनुवायी हैं उन्हें बैठक में प्रतिभागिता के अधिकार को वापस लेना होगा। यदि जन सामाजिक आंदोलनों के प्रतिनिधि विकास संबंधित बैठकों से बाहर कर दिए जाएँगे तो पूँजीवादियों की जीत होगी और हमारे जेंडर और विकास न्याय के आंदोलन की हार।
खाड़ी और पूर्वी अफ्रीका के देशों के नारीवादी आंदोलन से जुड़ी शिरीन तलात ने कहा कि विकास के वित्तपोषण बैठक की आड़ में अमीर देश ‘बहुपक्षीय प्रणाली’ को पुन: स्थापित करना चाहते हैं। विकसित और विकासशील देशों के मध्य, बहुपक्षीय प्रणाली असफल रही है क्योंकि वह सिर्फ़ अमीर देशों और पूंजीवादियों की हितों को पूरा करती है।
उदाहरण के लिए, कोविड के दौरान कुछ अमीर देशों ने, अपनी जनसंख्या से अनेक गुना कोविड वैक्सीन टीके ख़रीद के उनका भंडारण किया – और टीके ख़राब (एक्सपायर) होने पर उनको फेंक दिया – पर उन विकासशील देशों को नहीं दिया जिनकी जनता को एक भी टीका नहीं लगा था।
आरो की साईं ज्योतिर्मय रेचरला ने कहा कि बहुपक्षीयवाद तभी सफल होगा जब अमीर विकसित देश उसपर हावी होना बंद करेंगे - और सभी देश - विशेषकर कि विकासशील देश लोकतांत्रिक रूप से बराबरी, सम्मान और अधिकार के साथ प्रतिभागिता कर सकेंगे और निर्णय लेने की प्रक्रिया में समता के साथ भागीदारी कर सकेंगे।
शिरीन ने कहा कि विकास के वित्तपोषण बैठक से अमरीका पहले ही बाहर हो गया था। इस बैठक में 113 मॉडल प्रदर्शित किए गए हैं जो अमीर यूरोपी देशों के अनुसार, विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था और विकास के लिए 'लाभकारी' रहेंगे – परंतु यह सभी 113 मॉडल झूठे और ग़लत समाधान हैं और मात्र पूँजीवादियों की जेब भरने के काम आयेंगे।
फॉस फेमिनिस्ट की श्वेता श्रीधर ने कहा कि ऋण, कर, व्यापार और न्याय के मुद्दे, नारीवादी एजेंडा और प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य, अधिकार और न्याय से आंतरिक रूप से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, आर्थिक स्वायत्तता होने पर शारीरिक स्वायत्तता बढ़ती है। ग़रीबी और शोषण के कारण जो समुदाय सामाजिक हाशिये पर हैं, उनकी प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच खंडित होती है।
श्वेता श्रीधर ने कहा कि न सिर्फ़ विकास के वित्तपोषण बैठक में बल्कि अनेक ऐसी बैठकों में ऐसा प्रयास हो रहा है कि जेंडर के मुद्दे सिर्फ़ महिला-अधिकार संबंधित बैठकों तक सीमित रखें जायें। जबकि ज़रूरत इसके ठीक विपरीत है कि बैठक या विमर्श चाहे स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, वित्तपोषण, व्यापार, वैश्विक शांति आदि पर हो – सभी में जेंडर संबंधित मुद्दे उनके परिप्रेक्ष्य में उठने चाहिए।
शांति की कथनी-करनी में फ़र्क़ क्यों?
माबेल बायंको ने सवाल उठाया कि एक ओर सरकारें, विकास के वित्तपोषण बैठक में वैश्विक शांति की माँग करती हैं और दूसरी ओर उनमें से कुछ देश, जो नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) से जुड़े हैं, ने जून 2025 की नाटो बैठक में 2035 तक सेना-रक्षा संबंधित बजट 5% बढ़ाने का संकल्प लिया है। माबेल बायंको का कहना है कि यह सेना-रक्षा बजट बढ़ोतरी के लिए पैसे तो शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के बजट से ही काटे जाएँगे।
एरो की साईं ज्योतिर्मय रेचरला ने भी कहा कि "विकास के वित्तपोषण बैठक से ठीक पहले 2-दिवसीय नारीवादी फोरम का आयोजन हुआ जिसके राजनीतिक घोषणापत्र की एक माँग यह है कि युद्ध कम हों, क्षेत्रीय आक्रमण और नरसंहार समाप्त हों। इससे कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं है।"
शी एंड राइट्स सत्र को इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन फ़ैमिली प्लानिंग, ग्लोबल सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी एंड इंक्लूज़न, एरो, सीएनएस आदि ने मिल कर आयोजित किया था।