90% देशों ने एएमआर योजना तो बनायी पर सिर्फ़ 11% ने उसे वित्तीय पोषण दिया
कल्पना कीजिए कि 97 साल पहले उन लोगों का क्या हाल होता होगा जो बैक्टीरिया से होने वाले रोगों से बीमार थे परंतु 1928 तक एंटीबायोटिक दवा का इजात ही नहीं हुआ था। एंटीबायोटिक की दवा आने के बाद अनेक जानलेवा और लाइलाज संक्रमणों का इलाज आसान हो गया। परंतु दवाओं के ग़ैर-जिम्मेदारी के साथ बढ़ते अनुचित और दुरुपयोग के कारण, रोग पैदा करने वाले जीवाणु, दवा प्रतिरोधक हो जाते हैं जिसे एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस या एएमआर कहते हैं। दवा प्रतिरोधकता के बाद दवाएं काम नहीं करती, रोग का इलाज मुश्किल हो जाता है (नई दवाएँ चाहिए जो अत्यंत सीमित हैं और महँगी हैं) और रोग लाइलाज तक हो सकता है।
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