२००५ में दिल्ली से मुल्तान तक पदयात्रा के बाद अब समय आ गया है कि शांति कारवाँ को पुन: कायम किया जाए. इस भारत-पाकिस्तान शांति कारवाँ का कार्यक्रम अभी तय नहीं हुआ है, और इस बात पर संवाद जारी है. संभवत: यह कारवाँ जुलाई २०१० के अंतिम सप्ताह से ले कर अगस्त २०१० के प्रथम सप्ताह तक आयोजित किया जा सकता है.
इस भारत-पाकिस्तान शांति कारवाँ के लिए संस्थानिक अनुमोदन आमंत्रित हैं.
जो लोग इस भारत पाकिस्तान शांति कारवाँ में हिस्सा लेना चाहें, कृपया कर के अपना पासपोर्ट विवरण और अन्य आवश्यक जानकारी सईदा दीप, पाकिस्तान (saeedadiep@yahoo.com) और राजेश्वर ओझा, भारत (rajeshwar.ojha@gmail.com) को भेजें:
नाम (जैसा कि पासपोर्ट में है):
पिता का नाम:
पासपोर्ट नंबर:
राष्ट्रीयता:
जन्म-तिथि:
पासपोर्ट किस जगह से जारी हुआ:
पासपोर्ट जारी करने की तारीख:
पासपोर्ट की समापन अवधि:
भारत एवं पाकिस्तान के अलावा अन्य देशों के नागरिक भी इस कारवाँ में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित है. अधिक जानकारी के लिए कृपया करके ई-ग्रुप के सदस्य बने. सदस्य बनने के लिए, ई -मेल भेजिए: indopakpeacecaravan-subscribe@yahoogroups.com or send email to: bobbyramakant@yahoo.com
डॉ संदीप पाण्डेय
(समन्वयक: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय)
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भारत-पाकिस्तान शांति कारवाँ - अमन के बढ़ते क़दम
शायद ऐसा दुनिया में कहीं भी नहीं होगा जैसा कि भारत एवं पाकिस्तान में है, कि लोग भावनात्मक रूप से इतनी घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं. परन्तु उनपर भी दुश्मनी और वैमनस्य का जहर उडेला जा रहा है. इतिहास का वह एक क्रूर मोड़ था जब राजनीतिक बंटवारा हुआ, जिसकी वजह से खून-खराबा हुआ और असंख्य लोगों की जानें गयीं. इन हादसों ने गहरे घाव दिए हैं और दोनों देशों के चैतन्य में ये जख्म अभी भी हरे हैं.
बंटवारे के बाद भारत पाकिस्तान के अशांत इतिहास में चार युद्ध हुए और अनगिनत मासूमों की जानें गयीं. भारत-पाकिस्तान संबंधों में कश्मीर आज भी एक नाजुक रग़ बना हुआ है जो दोनों देशों को स्व: विनाश की ओर ले जाने के खतरे का कारण भी है. दक्षिण एशिया में जो कट्टरपंथी वर्ग हैं वो ये सुनिश्चित करते हैं कि नफरत और वैरभाव की आग धधकती रहे और दोनों ओर जान-माल का भारी नुक्सान होता रहे.
दोनों ओर के आम लोग, जो हिंसा और वैरभाव के शिकार होते हैं, वे वास्तव में अमन, चैन और शांति चाहते हैं - उनका मत है कि दोनों ओर मैत्री और सामान्य संबंधों का माहौल बने. परन्तु दोनों देशों का जो कुलीन शासक वर्ग है वह एक दूसरे के प्रति शंका का भाव रखता है. परन्तु जब भी भारत पाकिस्तान के लोग आपस में मिलते हैं, तो ये सब दुर्भावनाएं विलिप्त हो जाती हैं और मुहब्बत, आपसी लगाव और सदभावना उमड़ती है - बिलकुल उसी तरह जैसे एक परिवार के लोग बरसों बिछड़ने के बाद आपस में मिल रहे हों. ऐतिहासिक कारणों की वजह से भौगोलिक सरहदें हमपर अवश्य थोपी गयी हैं, परन्तु दोनों देशों में लोगों के एक जैसे ही रीति-रिवाज़ और परम्पराएँ हैं, हमारी भाषा, संगीत, खान-पान, और जीवनशैली तक एक जैसी ही है - जिसके कारण नि:संदेह हो कर ये कहा जा सकता है कि दोनों ओर लोगों के मूल्य और चिंतन एक सा ही है. लोगों को सरहदों ने बांटा तो है, पर उनके दिल एक ही हैं.
हम लोगों का मानना है कि यदि दोनों देशों के मध्य सही अर्थों में शांति और दोस्ती कायम करनी है तो पहल लोगों को ही करनी होगी. अनेकों ऐसे प्रयास पिछले बरसों में हुए हैं जिनमें से भारत-पाकिस्तान (दिल्ली से मुल्तान तक) पदयात्रा २००५ एक है. सूफी संतों और कवियों ने प्रेम गीत गए थे जो आज भी दोनों देशों के लोगों के लिए प्रासंगिक हैं. इसी आपसी लगन और बंधुत्व के तारतम्य को मद्देनज़र रखते हुए २००५ दिल्ली-से-मुल्तान तक की पदयात्रा दिल्ली-स्थित सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से आरंभ हुई और मुल्तान-स्थित संत बहाउद्दीन ज़कारिया की दरगाह पर समाप्त हुई थी. इस पदयात्रा ने दोनों देशों के शहरों, गाँव आदि से निकलते हुए प्रेम, शांति और बंधुत्व का सन्देश दिया. इसी के उपरांत अगस्त २००५ में दिल्ली में प्रथम परमाणु-रहित, वीसा-रहित दक्षिण एशिया सम्मलेन हुआ और दूसरा परमाणु-रहित, वीसा-रहित दक्षिण एशिया सम्मलेन २००७ में लाहोर में संपन्न हुआ. इस सम्मलेन को वार्षिक करने के प्रयासों को अनेकों अडचनों ने खंडित किया है, जिनमें से सबसे बड़ी चुनौती है दोनों देशों में व्याप्त वीसा प्रणाली.
जमीनी स्तर पर अनेकों ऐसी पहलों का होना अनिवार्य है जिससे कि दोनों देशों की सरकारों की सोच बदले. जो समस्याएँ दोनों देशों के लोग झेल रहे हैं वो सामान्य हैं - जैसे कि - गरीबी, बेरोज़गारी, वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण की नीतियों की मार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा से जुड़े हुए संगीन मुद्दे, आदि.
दोनों देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य के लिए रुकावटों को क्रमिक रूप से ढीला करना और अंतत: हटाना, आम लोगों का सरहद पार आने-जाने में बढ़ोतरी करना, आदि जैसे कदम नि:संदेह शांति प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाएंगे. आर्थिक रूप से मजबूत भारत एवं पाकिस्तान ही संपूर्ण दक्षिण एशिया के लिये शांति और समृद्धि का युग ला सकते हैं . लेन-देन एवं आपसी सहयोग से, कट्टर राष्ट्रवाद के बजाय दोस्ती एवं शांति के माहौल से ही दोनों देश विकास एवं उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होंगे.
बीते हुए दो सालों में दोनों सरकारों ने शान्ति की ओर कदम बढ़ाए हैं, परन्तु ये प्रयास शिथिल, धीमे, और रुक-रुक के हुए हैं. दोनों देश की सरकारों को आम शांति-प्रिय लोगों की आवाज़ को सुनाने के लिए ही हम सब एक और पहल करने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं - "भारत-पाकिस्तान शांति कारवाँ - अमन के बढ़ते क़दम" - जो मुंबई से कराची तक आयोजित किया जायेगा. इस शांति कारवाँ के जरिये, दोनों देशों के आम लोगों को अपनी शांति एवं दोस्ती की बात रखने का अवसर मिलेगा और ऐसा माहौल बनाने में मदद मिलेगी जिसमें दोनों देशों की सरकारों को वाजिब आवाजों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया जाए.
इस शांति कारवाँ के माध्यम से, हम लोगों से निम्नलिखत बिंदुओं पर सहयोग की अपेक्षा करते हैं:
१. सरहद के आर-पार लोगों के आने-जाने को आसान बनाया जाए. वर्तमान में सरहद के आर-पार आने-जाने पर अनेकों प्रकार के व्यवधान हैं - जिनमें से कुछ तो हास्यास्पद हैं. हम लोग चाहेंगे कि इन व्यवधानों को हटाया जाए, क्योंकि सरहद के आर पार लोगों के बीच प्रगाढ़ लगाव है. लोगों के बीच भावनात्मक जुडाव है - जो दोनों देशों की सरकारों के बीच व्याप्त नफरत और शंका के ठीक विपरीत है! दोनों देशों की सरकारों को लोगों की इच्छाओं एवं अरमानों को अनसुना नहीं करना चाहिए, और लोगों को बिना रोकटोक के आने-जाने और मिलने-जुलने के लिए छूट मिलनी चाहिए. असल में तो वीसा-पासपोर्ट प्रणाली को हटाना चाहिए.
२. आम लोगों की भावना का आदर करते हुए भारत-पाकिस्तान को बिना-शर्त दोस्ती कायम करनी चाहिए और सभी मुद्दों को बात-चीत से सुलझाना चाहिए जिससे कि अमन का वातावरण कायम हो सके. भारत-पाकिस्तान के मध्य सारे संगीन मुद्दों को शांति वार्ता के जरिये ही सुलझाना चाहिए. इन मुद्दों में कश्मीर का मुद्दा भी शामिल है (जिसका हल हमारी राय में जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को शामिल करके ही ढूँढा जा सकता है), और आतंक-सम्बंधित गतिविधियाँ भी जिसके शिकार दोनों देश के लोग होते रहे हैं.
३. भारत एवं पाकिस्तान को अपने-अपने परमाणु कारखानों को जल्दी-से-जल्दी दुष्क्रियाशील करना चाहिए. दोनों देशों को बारूदी सुरंगों को नष्ट करना चाहिए और फौजों को वापस बैरकों में भेज देना चाहिए. हमारा मानना है कि दोनों देशों को अपने बहुमूल्य संसाधनों को रक्षा-बजट के नाम पर व्यर्थ गंवाना बंद करना चाहिए और इन संसाधनों से गरीबी हटाने में व्यय करना चाहिए. जो लोग इस शांति कारवाँ का हिस्सा हैं उनका मानना है कि सच्ची सुरक्षा हथियारों के ढेर इकठ्ठे करने से नहीं आती बल्कि सच्ची सुरक्षा आपसी विश्वास और भरोसे पर स्थापित संबंधों से ही आती है. हकीकत यह है कि परमाणु बम एवं बारूदी सुरंगों से 'दुश्मन' को क्षति पहुँचने के बजाय अपने ही लोगों को कहीं अधिक नुक्सान पहुँच रहा है, इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा की ये हथियार जन-विरोधी हैं.
४. दोनों देशों के बीच लुका-छुपी और लघु-तीव्रता वाला युद्ध समाप्त हो और दोनों देशों की गुप्तचर संस्थाएं पर रोक लगे, ताकि सरहद के पार अशांति उत्पन्न न हो.
शांति और विकास सिर्फ विश्वास और आपसी सद्भावना वाले वातावरण में ही संभव है - इस शांति कारवाँ का यह स्पष्ट सन्देश है. हम भलीभांति जानते हैं कि हमारे लक्ष्य सिर्फ इस प्रयास से नहीं हासिल हो सकते. हम यह भी मानते हैं कि दोनों देशों के लोगों द्वारा किये जा रहे अनेकों शांति प्रयासों में यह शांति कारवाँ एक है. आइये हम सब एकजुट हो कर इस शांति प्रक्रिया को निरंतर बढ़ाते रहे जिससे कि न केवल भारत-पाकिस्तान के मध्य बल्कि संपूर्ण दक्षिण एशिया में भी आपसी विश्वास, सद्भावना और शांति का वातावरण बना रहे.