बाल स्वास्थ्य पोषण माह: बच्चों के लिए आशा की एक किरण

ललितपुर, अगस्त २०१०: भारत जैसे विकासशील देश में भावी नागरिक बच्चे तथा उन्हें जन्म देने वाली महिलाओं से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण उपयोगी योजनाएं सरकारी स्तर पर सतत् प्रयास, समुचित समीक्षा, विश्लेषण और अनुश्रवण (मानीटरिंग) के अभाव में या तो दम तोड़ देती हैं अथवा आंशिक सफलता ही प्राप्त कर पाती हैं। कार्यक्षेत्र में तैनात कर्मचारियों द्वारा बरती जाने वाली उपेक्षा और लापरवाही भी अरबों खरबों रुपयों की अनेक योजनाओं को पानी की तरह बहा दी जाती हैं। सफल योजनाओं का समुचित प्रचार-प्रसार करना चाहिए तथा अच्छे कर्मचारियों, अधिकारियों को प्रोत्साहन तथा पुरस्कार देने से भी स्थिति बदल सकती है।

परन्तु कभी-कभी आशा की किरण भी दिखायी दे जाती है। उत्तर प्रदेश के ७२ जिलों में २००६ से विटामिन ए पूरक खुराक योजना और २००८ से बाल स्वास्थ्य पो’ाण माह (बीएसपीएम) हर छमाही जून व दिसम्बर महीने में मनाया जाता है। इसके दौरान स्वास्थ्य विभाग और बाल विकास सेवा एवं पु’टाहार निदेशालय मिलकर ०-५ वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए सघन स्वास्थ्य एवं पोषण कार्य करते हैं। इन माह में टीकाकरण और विटामिन ए की खुराक आंगनबाड़ी, आशा, आक्जीलरी नर्सिंग मिडवाइफ (एनम), बालबंधु आदि द्वारा पूर्व सर्वेक्षण के फलस्वरूप एकत्रित बच्चों को दी जाती है। इससे बच्चों की विभिन्न बीमारियों से रक्षा, स्वास्थ्य विकास और पोषण स्तर सुधारा जाता है। विटामिन ए की दो खुराकों के बीच छ: माह का अन्तराल होना चाहिए।

इस बार यह माह जून के स्थान पर १० जुलाई से १४ अगस्त २०१० तक आयोजित किया जा रहा है। इसका कारण देश में जनगणना और पल्स पोलियो अभियान है।

प्रारम्भ में योजनाओं की असफलता की संभावना और कारणों की चर्चा की गयी है। किन्तु अनेक क्षेत्र इसके अपवाद रहे हैं। उत्तर प्रदेश का सुदूर दक्षिण स्थित जिला ललितपुर अपवाद है। यहां बाल स्वास्थ्य पोषण माह पिछली छमाही में लक्ष्य का ८६ प्रतिशत पाने में सफल रहा था जबकि इस बार निर्धारित लक्ष्य ९० प्रतिशत रहा और इसे प्राप्त करने में संबंधित विभागों के अधिकारी, कर्मचारी जुटे हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनीसेफ इस कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग प्रदान करती है। यूनीसेफ के झांसी मण्डल के समन्वयक डॉ. हरिशचन्द्र पालीवाल, एमडी ने बताया- ललितपुर जिले के छ: ब्लाकों के १९८ उपकेन्द्रों के १६८१ गांवों में लक्ष्य का ८० प्रतिशत प्रथम सप्ताह की समाप्ति तक प्राप्त कर लिया गया। इस संवाददाता ने स्वयं “शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ उपकेन्द्रों के भ्रमण के दौरान बच्चों व उनके अभिभावकों की जागरुकता तथा उत्साह को महसूस किया। “शहरी क्षेत्र रैदासपुरा उपकेन्द्र-१ हो अथवा ३० किमी दूर बिरधा क्षेत्र अन्तर्गत कपासी आदि गांव हों, टीका लगाने तथा विटामिन ए की खुराक पिलाने जैसी गतिविधियां देखी गयीं।

बीएसपीएम योजना का सर्वाधिक लाभ आदिवासियों तथा पिछड़ी जाति के लोगों को मिल रहा है। ललितपुर जिले में सहरिया जाति की बहुलता है जो मुख्यत: पत्थर तोड़ने का काम करती है। इस जनजाति के लोग जंगली इलाके अथवा बीहड़ों में रहते हैं और बहुत शांतिप्रिय तथा कट्टर धार्मिक परंपराओं के मानने वाले होते हैं। कपासी गांव में आबादी का आधा हिस्सा इनका है। लगभग ५० घर इन्हीं के हैं। यह मजदूरी ईमानदारी से करते हैं परन्तु ठेकेदार द्वारा मजदूरी न दिये जाने पर उन्होंने काम करना तक बन्द कर दिया। सूचना मिलने पर छोटे बच्चों को खुराक पिलाने व टीका लगवाने उपकेन्द्र में उपस्थित थे ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ रहे। 

नौ वर्ष की मोहिनी अपने ढाई साल के भाई दीपक को दलिया दिलाने उपकेन्द्र में आयी और आगे के कार्यक्रम में भी भाग लिया। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र के विकलांग कमलेश की पत्नी रामरती अपनी छोटी बच्ची को दवा पिलाने लायी थी। रामरती सर्वथा अभावग्रस्त है और गांव वालों ने बताया कि इसका भरण-पोषण इसके देवर व जेठ द्वारा किया जाता है। परन्तु टीकाकरण व विटामिन ‘ए’ खुराक पिलाने की जानकारी मिलने पर उपकेन्द्र पहुंची थी।

दुर्गेश नारायण शुक्ल