[English] आज संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में चौथे राष्ट्रीय एड्स अधिवेशन (एसीकान -२०११) का उद्घाटन एस.जी.पी.जी.आई. निदेशक डॉ आर.के.शर्मा ने किया. दक्षिण अफ्रीका से डॉ होसेन कोवाडिया, अंतर्राष्ट्रीय एड्स सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ मार्क वैन्बेर्ग, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के महासचिव डॉ इश्वर एस गिलाडा, एसीकान-२०११ अध्यक्ष डॉ तपन ढोल, आदि विशेषज्ञ भी उद्घाटन समारोह में शामिल थे.
चौथे असिकान में १५ अंतर्राष्ट्रीय एड्स विशेषज्ञ, ७० राष्ट्रीय एड्स विशेषज्ञ, १५० ग्रामीण-शहरी चिकित्सक, और ५०० स्वास्थ्य कर्मी भाग ले रहे हैं.
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के अनुसार, भारत में २३.९५ लाख एच.ए.वी. से ग्रसित लोग हैं. भारतीय जनसंख्या में एच.आई.वी. ०.२५% महिलाओं और ०.३६% पुरुषों में संभावित है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ डी.से.एस. रेड्डी ने कहा कि "नए एच.आई.वी. संक्रमण दर में गिरावट और बढ़ती संख्या में एच.आई.वी. से ग्रसित लोगों का एंटी-रेट्रो-वाइरल दवा लेने के कारणवश एड्स-सम्बंधित मृत्यु दर में भी गिरावट आई है."
२००५ के आंकड़ों के मुकाबले २०१० में एच.आई.वी. दर नशा करने वालों में जो सिरिंज-नीडल बांटते हैं, बढ़ा है (२००५ - १.१% और २०१० - ५%) और सामान्य जन-मानस में कम हुआ है.
कुल एच.आई.वी. ग्रसित लोगों में से ५ प्रतिशत उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं, जबकि २१% आंध्र प्रदेश में और १७% महाराष्ट्र में.
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यक्रमों में भी पिछले सालों काफी बढ़ोतरी हुई है. २००७ में, जिन-समुदाओं को एच.आई.वी. का खतरा अधिक है, जैसे कि समलैंगिक लोग, नशा करने वाले लोग, यौनकर्मी, आदि, उनके लिये सिर्फ ७७३ कार्यक्रम थे और २०११ में १४७३ कार्यक्रम हो गए हैं जो ७५% एच.आई.वी. के अधिक खतरे वाली जनसंख्या को सेवा दे रहे हैं.
यौन रोगों का अनुपात भी बढ़ गया है - २००७ में २.१% था और २०११ में १०.१% हो गया है. राष्ट्रीय एड्स अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ आर.आर. गंगाखेदकर ने कहा कि जिन यौन रोगों का उपचार संभव है उनतक का दर बढ़ गया है.
आज राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान की मदद से ४२६,००० लोगों को एंटी-रेट्रो-वाइरल दवा मिल रही है (२००४ में सिर्फ १६००० को मिल पा रही थी).
चौथे असिकान में १५ अंतर्राष्ट्रीय एड्स विशेषज्ञ, ७० राष्ट्रीय एड्स विशेषज्ञ, १५० ग्रामीण-शहरी चिकित्सक, और ५०० स्वास्थ्य कर्मी भाग ले रहे हैं.
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के अनुसार, भारत में २३.९५ लाख एच.ए.वी. से ग्रसित लोग हैं. भारतीय जनसंख्या में एच.आई.वी. ०.२५% महिलाओं और ०.३६% पुरुषों में संभावित है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ डी.से.एस. रेड्डी ने कहा कि "नए एच.आई.वी. संक्रमण दर में गिरावट और बढ़ती संख्या में एच.आई.वी. से ग्रसित लोगों का एंटी-रेट्रो-वाइरल दवा लेने के कारणवश एड्स-सम्बंधित मृत्यु दर में भी गिरावट आई है."
२००५ के आंकड़ों के मुकाबले २०१० में एच.आई.वी. दर नशा करने वालों में जो सिरिंज-नीडल बांटते हैं, बढ़ा है (२००५ - १.१% और २०१० - ५%) और सामान्य जन-मानस में कम हुआ है.
कुल एच.आई.वी. ग्रसित लोगों में से ५ प्रतिशत उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं, जबकि २१% आंध्र प्रदेश में और १७% महाराष्ट्र में.
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान के कार्यक्रमों में भी पिछले सालों काफी बढ़ोतरी हुई है. २००७ में, जिन-समुदाओं को एच.आई.वी. का खतरा अधिक है, जैसे कि समलैंगिक लोग, नशा करने वाले लोग, यौनकर्मी, आदि, उनके लिये सिर्फ ७७३ कार्यक्रम थे और २०११ में १४७३ कार्यक्रम हो गए हैं जो ७५% एच.आई.वी. के अधिक खतरे वाली जनसंख्या को सेवा दे रहे हैं.
यौन रोगों का अनुपात भी बढ़ गया है - २००७ में २.१% था और २०११ में १०.१% हो गया है. राष्ट्रीय एड्स अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ आर.आर. गंगाखेदकर ने कहा कि जिन यौन रोगों का उपचार संभव है उनतक का दर बढ़ गया है.
आज राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान की मदद से ४२६,००० लोगों को एंटी-रेट्रो-वाइरल दवा मिल रही है (२००४ में सिर्फ १६००० को मिल पा रही थी).
बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.