२०१५ तक शून्य एच.आई.वी. संक्रमण एवं मृत्यु से बहुत दूर है भारत

[English] [फोटो] थाईलैंड की प्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्माता एवम् ऍफ़.एम. रेडियो पत्रकार सुश्री जित्तिमा जनतानामालाका ने लखनऊ के सी-ब्लाक चौराहा इंदिरा नगर स्थित प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त केंद्र के प्रांगण में असंक्रामक रोगों एवम् दीर्घकालिक व्याधियों से सम्बंधित अपने  कुछ प्रासंगिक वृत्तचित्रों का प्रदर्शन गणमान्य पत्रकारों और नागरिकों के समक्ष किया.

सुश्री जित्तिमा जनतानामालाका थाईलैंड के चियांग माई नामक शहर में स्थित जे.आई.सी.एल.मीडिया एंड कम्यूनिकेशन सर्विसेस कम्पनी, (जो सी.एन.एस.की होस्ट कम्पनी है), की प्रबंध निदेशक भी हैं. जून २०११ में जित्तिमा की फिल्म "प्रोटेक्ट पब्लिक हेल्थ" ब्राज़ील में प्रदर्शित की गयी थी.

इस अवसर पर हाल ही में लखनऊ के  संजय  गाँधी  स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में एड्स पर आयोजित ऐसीकोन २०११ पर उनके द्वारा बनायी गयी फिल्म "गेटिंग टू  जीरो : लॉन्ग  रोड  अहेड  फॉर  इंडीयास  एड्स  प्रोग्राम” का भी प्रदर्शन किया गया. करीब ३० मिनट लम्बे इस वृत्त चित्र में उन मूलभूत वास्तविकताओं को दर्शाया गया है जो यू.एन.एजेंसियों द्वारा प्रस्तावित और भारत सरकार द्वारा अनुमोदित, एच.आई.वी. एवम् एड्स संबधित नए संक्रमणों, नई मृत्युओं और इस रोग से जुड़ी हुयी सामाजिक भ्रांतियों को २०१५ तक पूर्ण रूप से ख़तम करने के लक्ष्य में बाधक सिद्ध हो सकती हैं.

जब तक टी.बी.और एच.आई.वी. के सह संक्रमण को रोका नहीं जायेगा तब तक एड्स से ग्रसित व्यक्ति मरते रहेंगे, क्योंकि एड्स पीड़ित व्यक्तियों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण टी.बी.ही है. जब तक हम एच.आई.वी. के हाई रिस्क ग्रुप, जैसे समलैंगिक, इंजेक्शन द्वारा ड्रग लेने वाले, वेश्यावृत्ति करने वाले, आदि व्यक्तियों का समाज में बहिष्कार करेंगे, उनके साथ भेदभाव करेंगे तथा उन्हें अपराधी घोषित करते रहेंगे, तब तक हमारी वर्तमान स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल सकेगा और उनमें एड्स/एच.आई.वी. संक्रमण का खतरा बना रहेगा. एच.आई.वी. सम्बन्धी नए संक्रमणों, मृत्यु और भेदभाव को पूर्ण रूप से शून्य करने के लिए हमारी वर्तमान स्वास्थ्य  प्रणाली को सुदृढ़ करना नितांत आवश्यक है, ताकि कोई भी निमोनिया, अतिसार, कुपोषण,तपेदिक,हेप टाइटिस बी एवम् सी आदि निरोध्य बीमारियों से (जिनका इलाज संभव है) न मरे.

यह हम सभी के लिए शर्म की बात है उचित दवाएं उपलब्ध होने पर भी १८,००० शिशु (२००९ के आंकड़े) जन्म के दौरान एच.आई.वी. से संक्रमित हो रहे हैं, क्योंकि उनके माता पिता में से एक अथवा दोनों एच.आई.वी. से ग्रसित थे. भारत का नेशनल एड्स कंट्रोल ओर्गैनाईजेशन (नैको) इस प्रकार की अनावश्यक मृत्यों को रोकने में क्यूँ असफल हो रहा है? यह एक विचारणीय प्रश्न है. इस प्रकार के संक्रमण को रोकने के लिए नैको द्वारा अभी भी नेविरापीन नामक दवा दी जा रही है जो अधिक कारगर नहीं है, तथा अन्य प्रभावकारी दवाएं बाज़ार में उपलब्ध है.

सी.एन.एस.