वास्तविक और आदर्श सेवाओं में अंतर दर्शाते हैं - डबल्यूएचओ के नए एचआईवी दिशानिर्देश

[English] मलेशिया में सम्पन्न हुई एड्स विज्ञान से संबन्धित अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एचआईवी के उपचार और बचाव के लिए नए दिशानिर्देश (गाइडलाइंस) जारी किए। यह डबल्यूएचओ दिशानिर्देश अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यदि इन्हें एड्स कार्यक्रमों में ईमानदारी से लागू किया जाये तो एचआईवी के साथ जीवित लोगों के जीवन में बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है - वें स्वास्थ रह सकते हैं, सामान्य जीवनयापन कर सकते हैं, और संक्रमण की रोकधाम में भी वांछनीय असर पड़ेगा।

उत्तर प्रदेश नेटवर्क ऑफ पोजिटिव पीपल (यूपीएनपी+) के नरेश यादव का कहना है कि "सिर्फ दिशा-निर्देश से जीवन नहीं बचेंगे, जीवन बचाने हैं तो उसके लिए प्रभावकारी एड्स कार्यक्रम, पर्याप्त निवेश और दवाएं चाहिए"।

नए डबल्यूएचओ एचआईवी दिशा-निर्देश के अनुसार, यदि एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति का सीडी4 काउंट 500 सेल्स/mm३ या उससे कम है तो उसको एंटी-रेट्रो-विरल थेरेपी (एआरटी) दवाएं आरंभ करनी चाहिए जो जीवनउपरांत बिना-नागे चलती हैं। एचआईवी संक्रमण के शीघ्र बाद ही 500 सीडी4 काउंट पर एआरटी दवा आरंभ करने से व्यक्ति सामान्य जीवन यापन कर पता है, स्वस्थ रहता है, और उससे अन्य लोगों को एचआईवी संक्रमण भी फैलने का खतरा अत्यंत कम रहता है। इससे पहले डबल्यूएचओ के दिशा-निर्देश ने 2010 में 350 सीडी4 काउंट पर एआरटी दवा आरंभ करने की सलाह दी थी।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के डॉ बीबी रेवरी ने सीएनएस से एक साक्षात्कार में 1 जुलाई 2013 को कहा कि "हम लोग काफी समय से 350 या उससे कम सीडी4 काउंट पर एआरटी दवा आरंभ कर रहे हैं। स्टेज 3 और 4, टीबी और एचआईवी सह-संक्रमण और गर्भवती महिलाओं को एआरटी बिना सीडी4 काउंट को मापे आरंभ करनी चाहिए। यदि डबल्यूएचओ की नए दिशा निर्देश लागू हो गए तो उनसे विकसित और विकासशील देशों में हो रहे एचआईवी उपचार और देखभाल में अंतर कम होगा। परंतु हमारे भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह बड़ी चुनौती है कि अधिकांश एचआईवी के साथ जीवित लोग बहुत कम सीडी4 काउंट के साथ एआरटी केन्द्रों पर पहुँचते हैं। हमें एचआईवी से संक्रमित लोगों को अत्यंत शीघ्र ही चीन्हा होगा। अन्य चुनौतियों में से एक यह है कि हम अधिक लोगों का एचआईवी परीक्षण कैसे करें जिससे कि अधिक से अधिक लोग अपने एचआईवी स्टेटस (पोसिटिव या नेगेटिव) से परिचित हों और आवश्यकतानुसार उपचार और देखभाल की सेवाओं का लाभ उठा सकें। एक और चुनौती यह भी होगी कि कैसे अधिक से अधिक लोगों को एआरटी दवाओं पर नियमित रूप से रख सकें और सुनिश्चित करें कि किसी की दवा लेने में कोई अवरोध न आये और सभी लोग सहजता से एचआईवी केन्द्रों की सेवाओं का लाभ उठा सकें।"

नए डबल्यूएचओ एचआईवी दिशा-निर्देश (गाइडलाइंस) के मुख्य बिन्दु:
* हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति जिसका सीडी4 काउंट 500 सेल्स/एमएम3 या उससे कम है, उसे एआरटी मिले

* अब नए लोगों को दी जा रही एआरटी में यह तीन दवाएं हों: टेनोफोवीर, लामिवुडीन (या एमत्रिसीटाबीन) और एफीवीरेंज। यह दवाएं अलग-अलग गोली में नहीं, बल्कि एक ही गोली में मिश्रित हो कर दिन में एक बार दी जाएँ।

* 5 साल से कम उम्र के बच्चों को, गर्भवती और स्तनपान करा रही महिलाओं को और उन लोगों को जिनके पार्टनर एचआईवी के साथ जीवित हैं, उन सबको सीडी4 काउंट बिना देखे एआरटी प्राप्त होनी चाहिए।

* टीबी और हेपटाइटिस बी के साथ संक्रमित लोगों को भी एआरटी भी सीडी4 काउंट बिना देखे मिलनी चाहिए।

* एचआईवी कार्यक्रमों का टीबी कार्यक्रम, परिवार कल्याण, बाल एवं महिला कल्याण आदि कार्यक्रमों से समोचित तालमेल हो जिससे कि प्रभावकारी नतीजे मिल सके।
अधिकांश लोग एआरटी केंद्र पर जब आते हैं तो उनका सीडी4 काउंट बहुत कम होता है (अक्सर 100 या उससे भी कम)। मौजूदा नीति के अनुसार, यूपी में 350 से कम सीडी4 काउंट पर एआरटी मिलनी चाहिए लेकिन जब तक हम लोग एचआईवी पोसिटिव लोगों को जल्दी टेस्ट नहीं करेंगे जिससे कि वें एआरटी कार्यक्रम का लाभ तब उठा पाएँ जब उनका सीडी4 काउंट अधिक है, तब तक प्रदेश एचआईवी नीति का भरपूर लाभ नहीं मिलेगा। एचआईवी के साथ जीवित लोग तब एआरटी केंद्र आ रहे हैं जब उनका सीडी4 काउंट बहुत कम होता है और वें अनेक अवसरवाद संक्रमण से जूझ रहे होते हैं जैसे कि टीबी।

यदि उनको एआरटी 500 सीडी4 काउंट पर नियमित मिले तो उनको टीबी होने का खतरा भी कम हो जाता है, वे स्वस्थ रहते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनसे किसी और को एचआईवी संक्रमण होने का खतरा 96% कम हो जाता है।

एचपीटीएन 052 शोध/ स्टडी
 एचपीटीएन 052 स्टडी 2011 से यह प्रमाणित हुआ कि यदि एचआईवी के साथ जीवित लोग एआरटी नियमित लेते रहें, और उनका विरल लोड नगण्य रहे, तो उनसे एचआईवी संक्रमण फैलने का खतरा 96% कम हो जाता है।

एक अन्य शोध में यह भी प्रमाणित हुआ कि यदि एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति नियमित रूप से एआरटी लेते रहे, सीडी4 काउंट 500 से ऊपर रहे, विरल लोड नगण्य रहे, तो उनकी जीवन आयु उतनी ही होती है जितनी तब होती यदि उन्हे एचआईवी संक्रमण नहीं हुआ होता। उनके टीबी होने का खतरा भी बहुत कम हो जाता है जो इसलिए महत्वपूर्ण बात है क्योंकि टीबी एचआईवी पोसिटिव लोगों में सबसे प्रमुख मृत्यु का कारण है।

नरेश यादव का मानना है कि सभी जरूरतमन्द एचआईवी के साथ जीवित लोगों तक उपचार पहुंचे यह तो अतिआवश्यक है ही, परंतु सिर्फ उपचार से ही कुछ हद तक तो एचआईवी रोकधाम संभव होगी पर पूर्णत: नहीं होगी। नरेश यादव का मानना है कि अधिक से अधिक लोगों तक एचआईवी उपचार पहुंचाने के साथ-साथ, एचआईवी रोकधाम के लिए भी ठोस कदम उठाने चाहिए जैसे कि: 'प्रेप', नर और मादा कोंडोम का अधिक इस्तेमाल, जो लोग नशा करते हैं उनको स्वच्छ सुई देना, क्षति-कम करने वाले कार्यक्रम चलना, और नयी दवाएं, जाँचें, और टीके के शोध में निवेश करना आदि शामिल है। बिना एचआईवी, टीबी, आदि विभिन्न कार्यक्रमों में पर्याप्त संयोजन के भी प्रभावकारी एचआईवी नियंत्रण संभव नहीं है। दवाओं के उत्पादन को मुनाफे की बाज़ार वाली राजनीति से बचाने की भी जरूरत है।

नए डबल्यूएचओ दिशा निर्देश के अनुसार, सभी 5 साल से कम बच्चों को, गर्भवती और स्तनपान करा रही महिलाओं को और उन लोगों को जिनके पार्टनर एचआईवी के साथ जीवित हैं, उन सबको एआरटी बिना सीडी४ काउंट देखे प्राप्त होनी चाहिए।  टीबी और हेपटाइटिस बी के साथ संक्रमित लोगों को भी एआरटी बिना सीडी4 काउंट देखे मिलनी चाहिए।

नए डबल्यूएचओ दिशा निर्देश के अनुसार जो नए व्यसक लोग एआरटी लेने वाले हैं उनको एक ही गोली में तीनों दवाएं मिश्रित हो कर दवा मिलनी चाहिए। इस दिशा निर्देश के अनुसार, 3 एंटी-रेट्रो-विरल दवाएं जो देनी चाहिए वें इस प्रकार हैं: टेनोफोवीर, लामिवुडीन (या एमत्रिसीटाबीन) और एफीवीरेंज, जो एक ही गोली में मिश्रित हो कर दिन में एक बार देनी चाहिए।

बाबी रमाकांत, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जुलाई 2013