भारत सरकार द्वारा जन्म पंजीकरण प्रमाण पत्र को अनिवार्य बनाये जाने के बाद भी ग्रामीण स्तर पर, जागरूकता के अभाव मे अभी तक सब लोग इसे बनवाने के प्रति जागरूक नहीं है। इस प्रमाण पत्र के बनवाने के बाद सबसे ज्यादा आसानी तो बच्चों को स्कूल मे दाखिला दिलवाते समय होती है।
इस मामले मे जब प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे ही लोगों मे ही जन्म प्रमाण पत्र बनवाने का आंकड़ों का ग्राफ काफी नीचे है साथ ही कोर्ट कचहरी या अन्य किसी भी मामले मे किसी भी बालक या बालिका के वयस्क या नाबालिक होने का पता चलने मे भी सुविधा होती है। आज अदालत मे लांबित मुकदमों मे से 16 प्रतिशत मामले आयु से सम्बन्धित होते है। अगर सरकार इस कानून का सख्ती से पालन करवाये तो ऐसे अपराधियों को सज़ा दिलवाने मे आसानी होगी जो कि जघन्य अपराध करने के बाद भी कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर लम्बे समय तक कानून की पकड़ से बाहर रहते है।
यह घटना है राजधानी से मात्र 35-40 किलोमीटर दूर स्थित माल तहसील के माल ब्लाक के अम्बेडकर गांव नरसिंह खेड़ा की। यहॉं पहॅंचने पर कुछ बच्चों से मुलाकात हुई जो अपने हाथों में जन्म प्रमाण-पत्र इस तरह लिए थे जैसे यही सबसे महत्वपूर्ण निधि है। यह पूछने पर यह कार्ड तुम्हें मिले कैसे कुछ संकोच के बाद अनामिका(4 वर्ष), रंजना (5 वर्ष), रागिनी (3 वर्ष) जैसे बच्चों ने स्कूल प्रवेश के समय इनके न होने के कारण स्कूल में कान पकड़ कर उठक-बैठक कराये जाने की बात बताई। घर आकर इन बच्चों ने अपने माता-पिता को अपना कष्ट बताया जिस पर दौड़धूप कर प्रमाण-पत्र बना लिए गये और बच्चों को प्रवेश मिल गया। हाथों में प्रमाण-पत्र के साथ फोटो खिंचवाने का इनका उत्साह देखते ही बन रहा था।
दीप रानी 10वीं और प्रिया 9वीं कक्षाएं की छात्राएं है। इनके पास जन्म प्रमाण-पत्र नहीं है। पूछने पर गंभीरता से बोली कि हमारे एडमिशन के समय इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी थी। राय दिए जाने पर उन्होंने अब बनवाने का आश्वासन दिया ताकि भविष्य में कोई परेशानी नहीं हो।
विलम्ब से प्रमाण-पत्र बनने का भी विधिवत प्रावधान एक्ट में है। क्षेत्रीय कार्यकर्ता शर्मा ने 11 महीनों में सामूहिक रूप से 25 प्रमाण-पत्र बनवाये हैं। नरसिंह खेड़ा गांव में कोई स्कूल नहीं है। सभी बच्चों को अभी 3 किलोमीटर दूर मजरा मसीर रतन जाना पड़ता है जहॉं एक सरकारी तथा एक निजी स्कूल है। ग्रामवासियों के पास खेती बहुत कम है। मुख्य धंधा मजदूरी है। पुरूष-महिलाएं मजदूरी ही करते हैं। मजदूरी के लिए कुछ मनरेगा योजना के अन्तर्गत काम मिल जाता है तो कुछ गांव से बाहर जाकर काम करना पड़ता है। मीरा सरीखी ग्रामवासिनी को दुख है कि उनलोगों के पास वोटर कार्ड है, मनरेगा जॉब कार्ड है, राशन कार्ड है परन्तु जन्म प्रमाण-पत्र नहीं है।
जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है तो यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अब तक की विभिन्न सरकारें इसे भूल चुकी हैं कि ऐसा कोई कानून है भी। पिछले कुछ वर्षों से बच्चों के स्कूल प्रवेश में जन्म तिथि को लेकर विवाद के कारण इस ओर अभिभावकों का ध्यान तो गया ही है, सरकारी स्तर पर भी कुम्भकरणी नींद टूट रही है। दूर क्यों जायं, राजधानी से सटी महज 35-40 किलोमीटर दूर स्थित माल तहसील एक अच्छा उदाहरण बन सकता है। तहसली में 8 ब्लाक हैं जिनमें माल ब्लाक सबसे पिछड़ा है। इस ब्लाक में एक अत्यन्त पिछड़ा गांव है नरसिंह खेड़ा जिसे अम्बेडकर ग्राम का दर्जा देकर विकसित किया जा रहा है। गांव में एक हजार से भी कम (825) की आबादी है जिसमें पुरूष व महिलाओं (बालक-बालिकाओं समेत) की संख्या क्रमशः 450 व पौने चार सौ के लगभग है।
पी.एच.सी. का पक्का भवन है तथा चहल-पहल खासी थी। डॉं. आनन्द त्रिपाठी ब्लड प्रेसर नापते किसी मरीज के विषय में सहयोगी से सलाह कर रहे थे। फुरसत पाकर हमारी ओर पूरा ध्यान किया और हमने अपने आने का मतलब बताया। उन्होंने जन्म पंजीकरण प्रमाण-पत्र से संबंधित सहयोगी डॉं. प्रियंका को बुलवा लिया जो 2010 से वहॉं कार्यरत है। कुछ लोगों की आवश्यकता और कुछ अधीक्षक का प्रयास इस दिशा में रंग ला रहा है। इसमें आशा बहुओं का सहयोग भी लिया जा रहा है जो जननी-शिुशु सुरक्षा कार्यक्रम से जुड़ी होती हैं। इन सबका सामूहिक प्रयास यह रहा कि जन्म-मृत्यु की संख्या तो दर्ज हो ही रही है, नवजात शिशुओं का पंजीकरण एवं इसका प्रमाण-पत्र भी डिस्चार्ज के समय (अमूमन तीन दिन) अभिभावकों को सौंप दिया जाता है।
अधीक्षक डॉं. त्रिपाठी यद्यपि 2012 से इस पद पर हैं परन्तु अब तक की प्रगति से संतुष्ट हैं। वैसे तो प्रमाण-पत्र मांगा नहीं जाता था परन्तु पी.एच.सी. द्वारा स्वयं प्रदान करने पर यह बड़ी राहत मानी जा रही है। 1969 से उपरोक्त कानून लागू है किन्तु ग्राम निवासियों में पिछले चार-पाँच साल से जागरूकता बढ़ी है और नागरिक पंजीकरण प्रमाण-पत्र का महत्व समझने लगे है।
माल ब्लाक स्थित पी.एच.सी. क्षेत्र की आबादी लगभग पौने दो लाख (1.71 लाख) है 2001 की जनगणना के अनुसार। तब से अब तक आवादी बढ़ी है और कुछ सरकारी जागरूकता और स्थानीय अधीक्षक, डॉक्टर, आशा बहुओं के रूचि लेने से भी लाभ हो रहा है। फोन नम्बर 108 की सुविधा सराहनीय योगदान कर रही है।पी.एच.सी. में स्टाफ लगभग पूर्ण है। पॉंच पुरूष व एक महिला डाक्टर है। एक संविदा पर भी महिला डाक्टर नियुक्त है। बस एक सर्जन का अभाव है। एक पैरामेडिकल स्टाफ की कार्य में सहायता ली जा रही है। अधीक्षक संतोष के साथ बताते हैं कि पिछले छह महीनें के दौरान जन्म लेने वाले शिशुओं में से 95 प्रतिशत शिशुओं को जन्म पंजीकरण प्रमाण-पत्र दिये जा चुके है।। जनवरी, 2013 से मार्च 31 तक पॉंच सौ पचास शिुशु जनमे जबकि 01 अप्रैल से 06 मई तक 156 बच्चों ने जन्म लिया। वैसे और आंकड़े बताते हैं कि 31-10-2011 से दिसम्बर 2012 तक पी.एच.सी. में 1557 शिशुओं ने जन्म लिया। प्रतिदिन मरीजों के आने-जाने की संख्या 200-300 के बीच है। जिनमें नये व पुराने मरीज शामिल है।
वर्तमान में शिशु जन्म पंजीकरण प्रमाण-पत्र स्कूल प्रवेश में वैध दस्तावेज तो है ही, सबसे अधिक लाभ अपराधियों के खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही में मिलेगा क्योंकि अब तक बहुत से जघन्य अपराध करने वाले अपने को अवयस्क बताकर कानूनी दांवपेंच में जुट जाते है जिनके निस्तारण में वर्ष के वर्ष बीत जाते है और पीड़िता-पीडित को न्याय पाने के लिए बेवजह वर्षो इंतजार करना पड़ता है। राजधानी लखनऊ स्थित आशियाना क्षेत्र के एक बालिका बलात्कार कांड में इसी आयु के झंझट में वर्ष के वर्ष गुजर चुके हैं और अपराधी को दंड नहीं मिल पा रहा है।
हम जब बातें कर रहे थे तब कई मरीज अपने इलाज के लिए डॉं त्रिपाठी के कमरे की ओर झांक रहे थे। व्यापक जनहित में हम सबको धन्यवाद देते हुए बाहर आ गये और डॉं त्रिपाठी हमें विदा कर अपने चैम्बर में चले गये।
दुर्गेश नारायण शुक्ल
जून 2013
इस मामले मे जब प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे ही लोगों मे ही जन्म प्रमाण पत्र बनवाने का आंकड़ों का ग्राफ काफी नीचे है साथ ही कोर्ट कचहरी या अन्य किसी भी मामले मे किसी भी बालक या बालिका के वयस्क या नाबालिक होने का पता चलने मे भी सुविधा होती है। आज अदालत मे लांबित मुकदमों मे से 16 प्रतिशत मामले आयु से सम्बन्धित होते है। अगर सरकार इस कानून का सख्ती से पालन करवाये तो ऐसे अपराधियों को सज़ा दिलवाने मे आसानी होगी जो कि जघन्य अपराध करने के बाद भी कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर लम्बे समय तक कानून की पकड़ से बाहर रहते है।
यह घटना है राजधानी से मात्र 35-40 किलोमीटर दूर स्थित माल तहसील के माल ब्लाक के अम्बेडकर गांव नरसिंह खेड़ा की। यहॉं पहॅंचने पर कुछ बच्चों से मुलाकात हुई जो अपने हाथों में जन्म प्रमाण-पत्र इस तरह लिए थे जैसे यही सबसे महत्वपूर्ण निधि है। यह पूछने पर यह कार्ड तुम्हें मिले कैसे कुछ संकोच के बाद अनामिका(4 वर्ष), रंजना (5 वर्ष), रागिनी (3 वर्ष) जैसे बच्चों ने स्कूल प्रवेश के समय इनके न होने के कारण स्कूल में कान पकड़ कर उठक-बैठक कराये जाने की बात बताई। घर आकर इन बच्चों ने अपने माता-पिता को अपना कष्ट बताया जिस पर दौड़धूप कर प्रमाण-पत्र बना लिए गये और बच्चों को प्रवेश मिल गया। हाथों में प्रमाण-पत्र के साथ फोटो खिंचवाने का इनका उत्साह देखते ही बन रहा था।
दीप रानी 10वीं और प्रिया 9वीं कक्षाएं की छात्राएं है। इनके पास जन्म प्रमाण-पत्र नहीं है। पूछने पर गंभीरता से बोली कि हमारे एडमिशन के समय इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी थी। राय दिए जाने पर उन्होंने अब बनवाने का आश्वासन दिया ताकि भविष्य में कोई परेशानी नहीं हो।
विलम्ब से प्रमाण-पत्र बनने का भी विधिवत प्रावधान एक्ट में है। क्षेत्रीय कार्यकर्ता शर्मा ने 11 महीनों में सामूहिक रूप से 25 प्रमाण-पत्र बनवाये हैं। नरसिंह खेड़ा गांव में कोई स्कूल नहीं है। सभी बच्चों को अभी 3 किलोमीटर दूर मजरा मसीर रतन जाना पड़ता है जहॉं एक सरकारी तथा एक निजी स्कूल है। ग्रामवासियों के पास खेती बहुत कम है। मुख्य धंधा मजदूरी है। पुरूष-महिलाएं मजदूरी ही करते हैं। मजदूरी के लिए कुछ मनरेगा योजना के अन्तर्गत काम मिल जाता है तो कुछ गांव से बाहर जाकर काम करना पड़ता है। मीरा सरीखी ग्रामवासिनी को दुख है कि उनलोगों के पास वोटर कार्ड है, मनरेगा जॉब कार्ड है, राशन कार्ड है परन्तु जन्म प्रमाण-पत्र नहीं है।
जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है तो यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अब तक की विभिन्न सरकारें इसे भूल चुकी हैं कि ऐसा कोई कानून है भी। पिछले कुछ वर्षों से बच्चों के स्कूल प्रवेश में जन्म तिथि को लेकर विवाद के कारण इस ओर अभिभावकों का ध्यान तो गया ही है, सरकारी स्तर पर भी कुम्भकरणी नींद टूट रही है। दूर क्यों जायं, राजधानी से सटी महज 35-40 किलोमीटर दूर स्थित माल तहसील एक अच्छा उदाहरण बन सकता है। तहसली में 8 ब्लाक हैं जिनमें माल ब्लाक सबसे पिछड़ा है। इस ब्लाक में एक अत्यन्त पिछड़ा गांव है नरसिंह खेड़ा जिसे अम्बेडकर ग्राम का दर्जा देकर विकसित किया जा रहा है। गांव में एक हजार से भी कम (825) की आबादी है जिसमें पुरूष व महिलाओं (बालक-बालिकाओं समेत) की संख्या क्रमशः 450 व पौने चार सौ के लगभग है।
पी.एच.सी. का पक्का भवन है तथा चहल-पहल खासी थी। डॉं. आनन्द त्रिपाठी ब्लड प्रेसर नापते किसी मरीज के विषय में सहयोगी से सलाह कर रहे थे। फुरसत पाकर हमारी ओर पूरा ध्यान किया और हमने अपने आने का मतलब बताया। उन्होंने जन्म पंजीकरण प्रमाण-पत्र से संबंधित सहयोगी डॉं. प्रियंका को बुलवा लिया जो 2010 से वहॉं कार्यरत है। कुछ लोगों की आवश्यकता और कुछ अधीक्षक का प्रयास इस दिशा में रंग ला रहा है। इसमें आशा बहुओं का सहयोग भी लिया जा रहा है जो जननी-शिुशु सुरक्षा कार्यक्रम से जुड़ी होती हैं। इन सबका सामूहिक प्रयास यह रहा कि जन्म-मृत्यु की संख्या तो दर्ज हो ही रही है, नवजात शिशुओं का पंजीकरण एवं इसका प्रमाण-पत्र भी डिस्चार्ज के समय (अमूमन तीन दिन) अभिभावकों को सौंप दिया जाता है।
अधीक्षक डॉं. त्रिपाठी यद्यपि 2012 से इस पद पर हैं परन्तु अब तक की प्रगति से संतुष्ट हैं। वैसे तो प्रमाण-पत्र मांगा नहीं जाता था परन्तु पी.एच.सी. द्वारा स्वयं प्रदान करने पर यह बड़ी राहत मानी जा रही है। 1969 से उपरोक्त कानून लागू है किन्तु ग्राम निवासियों में पिछले चार-पाँच साल से जागरूकता बढ़ी है और नागरिक पंजीकरण प्रमाण-पत्र का महत्व समझने लगे है।
माल ब्लाक स्थित पी.एच.सी. क्षेत्र की आबादी लगभग पौने दो लाख (1.71 लाख) है 2001 की जनगणना के अनुसार। तब से अब तक आवादी बढ़ी है और कुछ सरकारी जागरूकता और स्थानीय अधीक्षक, डॉक्टर, आशा बहुओं के रूचि लेने से भी लाभ हो रहा है। फोन नम्बर 108 की सुविधा सराहनीय योगदान कर रही है।पी.एच.सी. में स्टाफ लगभग पूर्ण है। पॉंच पुरूष व एक महिला डाक्टर है। एक संविदा पर भी महिला डाक्टर नियुक्त है। बस एक सर्जन का अभाव है। एक पैरामेडिकल स्टाफ की कार्य में सहायता ली जा रही है। अधीक्षक संतोष के साथ बताते हैं कि पिछले छह महीनें के दौरान जन्म लेने वाले शिशुओं में से 95 प्रतिशत शिशुओं को जन्म पंजीकरण प्रमाण-पत्र दिये जा चुके है।। जनवरी, 2013 से मार्च 31 तक पॉंच सौ पचास शिुशु जनमे जबकि 01 अप्रैल से 06 मई तक 156 बच्चों ने जन्म लिया। वैसे और आंकड़े बताते हैं कि 31-10-2011 से दिसम्बर 2012 तक पी.एच.सी. में 1557 शिशुओं ने जन्म लिया। प्रतिदिन मरीजों के आने-जाने की संख्या 200-300 के बीच है। जिनमें नये व पुराने मरीज शामिल है।
वर्तमान में शिशु जन्म पंजीकरण प्रमाण-पत्र स्कूल प्रवेश में वैध दस्तावेज तो है ही, सबसे अधिक लाभ अपराधियों के खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही में मिलेगा क्योंकि अब तक बहुत से जघन्य अपराध करने वाले अपने को अवयस्क बताकर कानूनी दांवपेंच में जुट जाते है जिनके निस्तारण में वर्ष के वर्ष बीत जाते है और पीड़िता-पीडित को न्याय पाने के लिए बेवजह वर्षो इंतजार करना पड़ता है। राजधानी लखनऊ स्थित आशियाना क्षेत्र के एक बालिका बलात्कार कांड में इसी आयु के झंझट में वर्ष के वर्ष गुजर चुके हैं और अपराधी को दंड नहीं मिल पा रहा है।
हम जब बातें कर रहे थे तब कई मरीज अपने इलाज के लिए डॉं त्रिपाठी के कमरे की ओर झांक रहे थे। व्यापक जनहित में हम सबको धन्यवाद देते हुए बाहर आ गये और डॉं त्रिपाठी हमें विदा कर अपने चैम्बर में चले गये।
दुर्गेश नारायण शुक्ल
जून 2013