विश्व में 3 अरब से अधिक लोग रोजाना भोजन बनाने के लिए लकड़ी, कोयले या अन्य प्रकार के ठोस ईंधन का प्रयोग करते हैं जिनके कारणवश जानलेवा रोग होने का खतरा अनेक गुना बढ़ता है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डीजीस रिपोर्ट के अनुसार, 40 लाख मृत्यु प्रति-वर्ष सिर्फ भोजन बनाने के लिए ठोस ईंधन के इस्तेमाल से होती हैं। भारत में 10 लाख मृत्यु प्रति वर्ष इसी कारण से होती हैं, जिसके बावजूद भारत सरकार ने सुरक्षित और स्वास्थ्य-वर्धक चूल्हों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। यह केंद्रीय विचार था आज सी-2211 इन्दिरा नगर स्थित प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त केंद्र पर आयोजित मीडिया संवाद का। इसको स्वास्थ्य को वोट अभियान, सीएनएस, आशा परिवार, और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने आयोजित किया था।
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टूबेर्कुलोसिस अँड लंग डीजीस के गैर-संक्रामक रोग विभाग के निदेशक डॉ चेन-युआन चियांग ने वेब-लिंक संवाद द्वारा बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में 90% घरों में भोजन बनाने के लिए ठोस ईंधन ही इस्तेमाल होता है जिसके कारणवश निमोनिया, सीओपीडी, अस्थमा, और अन्य गंभीर श्वास संबंधी रोग होते हैं।
हालांकि महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर ठोस ईंधन के धुएँ का अधिक कुप्रभाव झेलना पड़ता है परंतु अनेक देशों में महिलाएं ही परिवर्तन भी ला रही हैं। उदाहरण के तौर पर, कंबोडिया में महिलाएं ही सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक चूल्हों को बढ़ावा दे रही हैं, अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित कर रही हैं कि वें सुरक्षित चूल्हों का सहजता से उपयोग कर सके, आदि।
चूल्हों के स्वच्छता, कार्य-कुशलता, और सुरक्षा के मापक भी निश्चित करने चाहिए। वर्तमान में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गनाइज़ेशन (आईएसओ) और बियूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड दोनों मिल कर मापक तय करने की प्रक्रिया आगे बढ़ा रहे हैं।
सरकार से अपील है कि सभी लोगों के लिए सुरक्षित और स्वास्थ्य-वर्धक चूल्हे उपलब्ध हों, जिससे कि जन स्वास्थ्य पर भी वांछनीय प्रभाव पड़े।
इस अवसर पर प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, डॉ संदीप पाण्डेय, शोभा शुक्ला, राहुल द्विवेदी, मुक्ता श्रीवास्तव, रितेश आर्या, बाबी रमाकांत आदि लोग भी उपस्थित थे.
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टूबेर्कुलोसिस अँड लंग डीजीस के गैर-संक्रामक रोग विभाग के निदेशक डॉ चेन-युआन चियांग ने वेब-लिंक संवाद द्वारा बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में 90% घरों में भोजन बनाने के लिए ठोस ईंधन ही इस्तेमाल होता है जिसके कारणवश निमोनिया, सीओपीडी, अस्थमा, और अन्य गंभीर श्वास संबंधी रोग होते हैं।
हालांकि महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर ठोस ईंधन के धुएँ का अधिक कुप्रभाव झेलना पड़ता है परंतु अनेक देशों में महिलाएं ही परिवर्तन भी ला रही हैं। उदाहरण के तौर पर, कंबोडिया में महिलाएं ही सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक चूल्हों को बढ़ावा दे रही हैं, अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित कर रही हैं कि वें सुरक्षित चूल्हों का सहजता से उपयोग कर सके, आदि।
चूल्हों के स्वच्छता, कार्य-कुशलता, और सुरक्षा के मापक भी निश्चित करने चाहिए। वर्तमान में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गनाइज़ेशन (आईएसओ) और बियूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड दोनों मिल कर मापक तय करने की प्रक्रिया आगे बढ़ा रहे हैं।
सरकार से अपील है कि सभी लोगों के लिए सुरक्षित और स्वास्थ्य-वर्धक चूल्हे उपलब्ध हों, जिससे कि जन स्वास्थ्य पर भी वांछनीय प्रभाव पड़े।
इस अवसर पर प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, डॉ संदीप पाण्डेय, शोभा शुक्ला, राहुल द्विवेदी, मुक्ता श्रीवास्तव, रितेश आर्या, बाबी रमाकांत आदि लोग भी उपस्थित थे.
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस