सांप्रदायिक ध्रुवीकरण

[English] सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), रिहाई मंच और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, जैसे ही यह प्रतीत होना शुरू हुआ कि समाजवादी पार्टी की सरकार ने ८४ कोसी परिक्रमा से निपटने के लिए सराहनीय कदम उठाये हैं और मुसलमानों की नज़रों में उनका कद कुछ ऊँचा हुआ, वैसे ही मुज़फ्फरनगर में दंगे शुरू हो गए. इन दंगों ने सपा सरकार की छवि पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है.

दस दिन तक मुज़फ्फ़रनगर में सांप्रदायिक तनाव बना रहा. मुसलमान नेताओं ने १ सितम्बर को ही मुलायम सिंह से मिल कर वहां अर्धसैनिक बल तैनात करने की मांग की थी.

इस विज्ञप्ति को इन लोगों ने सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), रिहाई मंच और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय की ओर से जारी किया: मुजफ्फरनगर निवासी और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मनीष गुप्ता (9837144590), सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एसआर दारापुरी, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त भोजन अधिकार आयुक्त की उप्र सलाहकार अरुंधति धुरु, मगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय,  वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद शोएब, सोशलिस्ट पार्टी के गिरीश कुमार पाण्डेय, सोशलिस्ट पार्टी के ओंकार सिंह, रिहाई मंच के जुझारू युवा नेता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम, सुरभि अगरवाल, बाबी रमाकांत, आदि।

इस विज्ञप्ति के अनुसार, ३८ लोगों की मृत्यु हो चुकी है, कई लोग घायल हुए हैं, हज़ारों का विस्थापन हुआ है. संपत्ति का भी बहुत नुक्सान हुआ है. दुर्गा शक्ति नागपाल को तो एक ऐसी छोटी सी घटना के कारण निलंबित कर दिया गया, जिसने कोई साम्प्रदायक भावनाएं उजागर नहीं की थीं, परन्तु मुज़फ्फरनगर में अभी तक किसी भी आला अधिकारी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया है. केवल दो एस एच ओ को निलंबित किया गया है. धारा १४४ लागू होने के बावजूद इतनी बड़ी महापंचायत करने की अनुमति दी गयी, जिसमे लोग शस्त्र ले कर आये, इस से यह साफ़ हो जाता है कि प्रशासन की मिली-भगत के कारण ही स्थिति इतनी बिगड़ गयी. महापंचायत करने की अनुमति देने का फैसला किस स्तर पर लिया गया? ज़ाहिर है कि यह निर्णय उन  दो एस एच ओ का तो नहीं था. इसके लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों की पहचान करके उनके खिलाफ सख्त कारवाही की जानी चाहिए।

इस विज्ञप्ति के अनुसार, महापंचायत में बी जे पी के नेताओं ने उत्तेजक भाषण दिए. संघ परिवार ने लोगों को भड़काकर एकत्रित किया। यह संभव नहीं है कि भारतीय किसान यूनियन ने अकेले ही यह सब किया हो. बी के यू तो अपनी वर्तमान स्थिति में किसानों को उनसे जुड़े बड़े-बड़े मुद्दों पर भी संगठित नहीं कर पाता। तो एक साम्प्रदायक मुद्दे पर इतने सारे किसान एकट्ठे कैसे हो गए? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भागीदारी के कारण ही यह मुमकिन हो पाया। प्रश्न यह है कि जब आग में घी डालने वाले संघ परिवार ने नेताओं की पहचान की जा चुकी है तो उनके खिलाफ कोई कारवाही क्यों नहीं हो रही? समाजवादी पार्टी की सरकार को आखिर किस बात का डर है?

इस विज्ञप्ति के अनुसार, पहले भी सपा की सरकार के शासन में साम्प्रदायक दंगे हो चुके हैं, लेकिन कोई इतना भयानक दंगा कभी नहीं हुआ, जिसमे हिंसक तत्वों को इस प्रकार खुली छूट मिली हो और राजनेताओं की मिली-भगत पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष हो. क्या यह सिर्फ एक संयोग है कि नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आगमन के बाद देश में एकाएक साम्प्रदायक तनाव बढ़ गया है? यह कहा जा रहा है की ८४ कोसी की यात्रा द्वारा मोदी अयोध्या के माहौल का आंकलन करना चाहते थे और उसके अनुभव से यह साफ़ हो गया कि बाबरी मस्जिद के मुद्दे का फ़ायदा अब उस प्रकार नहीं उठाया जा सकता जैसा मस्जिद टूटने के समय पर किया गया था. लेकिन ८४ कोसी परिक्रमा ने हिंदुत्वावादी तत्वों को उत्तेजित करना का काम ज़रूर किया। और यह उत्तेजना मुज़फ्फरनगर में बाहर निकल के आई.

इस विज्ञप्ति के अनुसार, अब ध्रुवीकरण पूर्ण हो चूका है.  पारंपरिक रूप से अजित सिंह का समर्थन करने वाली जनता अब कम से कम कुछ समय के लिए बी जे पी का साथ देगी और शायद अगले चुनाव तक यह स्थिति कायम रहे. मुलायम सिंह ने यह सोचा होगा कि उनके प्रतिद्वंदी, राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक दल, का नुक्सान होगा और बी जे पी का समर्थन तो बढ़ेगा  लेकिन इतना भी नहीं की अगले चुनाव में उनके लिए अधिक वोटों का रूप ले. वह तो अभी भी मुसलामानों के सपा के हक में संगठित होने के ख्वाब देख रहे हैं. अपने प्रतिद्वंदी को कमज़ोर करके खुद को सशक्त करने की ऐसी चाल परिस्थिति हात से बहार निकल जाने पर उल्टा असर भी डाल सकती है, जैसा की मुज़फ्फरनगर में देखने को मिल रहा है.

इस विज्ञप्ति के अनुसार, यह बड़े दुःख की बात है कि सपा और बी जे पी जैसे राजनैतिक दलों ने दंगों की राजनीती को खूब बढ़ावा दिया है. उनके लिए तो यह एक खेल मात्र है परन्तु आम जनता इसकी कीमत मौत से चुका रही है.

इस विज्ञप्ति के अनुसार, हम राजनीति के साम्प्रदायक ध्रुवीकरण का सख्त विरोध करते हैं और उम्मीद करते हैं कि प्रदेश की जनता अगले चुनाव में ऐसी घृणित राजनिति करने वाले दलों को मूंह तोड़ जवाब देगी।

सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
सितंबर 2013