[English] आजकल इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट का बाज़ार गर्म है. तम्बाकू कम्पनियाँ इसे सिगरेट के हानि रहित विकल्प के रूप में पेश करके ग्राहकों को एक बार फिर से भ्रमित करने के प्रयास में लगी हुई हैं. 'लाइट जॉय पियो स्वस्थ रहो', 'ग्रीन स्मार्ट लिविंग--धूम्रपान निषिद्ध जीवन का आसान उपाय', 'वेपर-ई सिगरेट के लाभ', 'स्वस्थ ई सिगरेट--धूम्रपान कीजिये और जब चाहे छोड़िये'----ऐसे अनेक ऑनलाइन विज्ञापन ई सिगरेट का गुणगान करके ग्राहकों को भ्रामक रूप से आकर्षित कर रहे हैं।
आखिर यह इलेक्ट्रॉनिक अथवा ई सिगरेट है क्या ? ई सिगरेट का आविष्कार २००३ में एक चीनी फार्मसिस्ट होन लिक ने किया था। आकार में यह मुख्यतर एक साधारण सिगरेट की तरह दिखने वाली इस सिगरेट में तीन कक्ष होते हैं- बैटरी जिसे रिचार्ज किया जा सकता है; ऐटोमाइज़र; और कार्ट्रिज। कार्ट्रिज में प्रोपिलीन ग्लाइकॉल, ग्लिसरीन , स्वाद पदार्थ और निकोटिन युक्त (अथवा निकोटिन रहित) द्रव भरा होता है। बैटरी का बटन दबा कर इस द्रव को ऐटोमाइज़र में गर्म करके वाष्पित किया जाता है और यह भाप या वाष्प उपयोगकर्ता की श्वास के रास्ते उसके फेफड़ों में पहुँच जाती है. अंग्रेजी में इसको स्मोकिंग के बजाय वेपिंग के नाम से जाना जाता है और इसका इस्तेमाल करने वाले को वेपर यानि जो वैपिंग करता हो।
शुरू में चीन की छोटी छोटी कम्पनियाँ ही ई सिगरेट बनाती थीं और बेचती थीं. पर जैसे जैसे इनका बाज़ार बढ़ रहा है, तो बड़ी बड़ी तम्बाकू कम्पनियाँ भी बहती गंगा में बाकायदा नहा रही हैं। ई सिगरेटों को पारम्परिक सिगरेट का सुरक्षित और स्वस्थ विकल्प एवं धूम्रपान छोड़ने का आसान उपाय बताते हुए वे जोर शोर से इनका भ्रामक प्रचार करने में जुटी हैं. हालांकि अभी तक इस विषय पर यथेष्ट वैज्ञानिक शोध नहीं किया गया है कि ई सिगरेट के द्वारा धूम्रपान की आदत छोड़ी जा सकती है या नहीं। फिलहाल वैश्विक स्तर पर ई सिगरेट का बाज़ार २ बिलियन यू एस डॉलर आँका जा रहा है. इसका एक चौथाई विक्रय (५०० मिलियन डॉलर) २०१२ में अमेरिका में हुआ जिसकी २०१३ में दुगुनी होने की संम्भावना थी।
ई सिगरेट की लोकप्रियता किस तेज़ी से बढ़ रही है इसका अंदाज़ा इन चौकाने वाले आंकड़ों से लगाया जा सकता है -- ब्रिटेन में इसके उपभोक्ताओं की संख्या २०१२ में ७००,००० थी जो २०१३ में १.३ मिलियन होकर दूनी हो गयी. वर्तमान में ब्रिटेन के १०% धूम्रपानी ई सिगरेट का प्रयोग कर रहे हैं। इसी प्रकार अमेरिका में २०११-२०१२ के दौरान स्कूली छात्रों में ई सिगरेट का दुगुना होकर १.७८ मिलियन हो गया।
डेनमार्क के ग्लॉस्ट्रोप अस्पताल की डॉ चार्लोटा पीसिंगर के अनुसार, "क्योंकि ई सिगरेट का उत्पादन अभी नियंत्रित नहीं है, इसलिए इनके अंदर प्रयुक्त सामग्री के बारे में यथोचित जानकारी नहीं मिल पाती है। उत्पादक गलत जानकारी भी लेबल पर लगा देते हैं --जैसे जिन उत्पादों पर निकोटीन की मात्रा शून्य अंकित थी उनमें भी निकोटीन पाया गया. सभी ई सिगरटों में प्रयोग किये जाने वाला पदार्थ प्रोपिलीन ग्लाइकॉल फेफड़ों को दीर्घ कालिक नुकसान पहुँचाता है तथा टी बी के इलाज में भी बाधक होता है। ई सिगरेट में प्रयुक्त द्रव में ये हानिकारक पदार्थ भी पाये गये हैं-- तम्बाकू-विशेष कैंसर कारी नाइट्रोसमाईन, कैडमियम, निकेल, सीसा जैसी विषाक्त धातु, आदि। ई सिगरेट के प्रयोग के अनेक हानिकारक दुष्प्रभाव देखे गए हैं जैसे सीने में दर्द, खांसी, सांस का फूलना, सर दर्द, चक्कर आना. गंम्भीर दुष्प्रभावों में निमोनिया, ह्रदय गति रुक जाना, पक्षाघात और सिगरेट के मुंह के अंदर फट जाने के कारण भीषण रूप से जल जाना और दृष्टि बाधित हो जाना भी शामिल हैं।"
जन स्वास्थ्य पर प्रभाव
एक अध्ययन एक अनुसार ई सिगरेट एमिशन रहित नहीं हैं और उनसे निकलने वाले प्रदूषण उपभोक्ताओं तथा सेकेण्ड हैण्ड स्मोकर्स के स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक हो सकते हैं। डॉ पीसिंगर का मानना है कि, "जन स्वास्थ्य पर प्रभाव दो बातों पर निर्भर करता है-- खतरे का स्तर और उस खतरे से प्रभावित लोगों की संख्या। यदि कोई कम खतरनाक पदार्थ बहुत सारे लोगों को प्रभावित करता है या कोई अधिक खतरनाक पदार्थ थोड़े से लोगों को प्रभावित करता है तो दोनों ही स्थितियों में जन स्वास्थ्य पर समान प्रभाव पड़ता है। जैसे जैसे लोगों के बीच ई सिगरेट का प्रचलन बढ़ेगा वैसे वैसे जन स्वास्थ्य पर उसका प्रतिकूल प्रभाव भी बढ़ेगा। कई लोग जो धूम्रपान नहीं करते हैं वे भी यह सोच कर ई सिगरेट की ओर आकर्षित हो सकते हैं कि शायद यह साधारण धूम्रपान के मुकाबले कम हानिकारक है। पर यह सही नहीं है। इसके अलावा यह कहना भी गलत और खतरनाक है कि ई सिगरेट धूम्रपान त्यागने का साधन है। हमारा ध्येय धूम्रपान छोड़ना होना चाहिए न कि साधारण सिगरेट छोड़ कर ई सिगरेट पीना।"
इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टुबरकुलोसिस एंड लंग डिज़ीज़ के तंबाकू नियंत्रण विभाग के निदेशक डॉ एहसान लतीफ़ का मानना है कि ई सिगरेट द्वारा धूम्रपान की प्रक्रिया को फिर से सामान्य बनाने की कोशिश की जा रही है। वे इस बात से चिंतित हैं कि ई सिगरेट का उत्पादन एवं व्यापार करने वाले उसे पारम्परिक सिगरेट के स्वस्थ विकल्प के रूप में विज्ञापित कर रहे हैं। उनका कहना है कि, "अनुभवी जन स्वास्थ्य कर्मियों को इतिहास से सीख लेनी चाहिए और सिगरेट का इतिहास बताता है कि १९६० के दशक में सिगरेट कंपनियों ने जोरदार दावा किया था उनके उत्पाद स्वास्थ्य के लिए नितांत अहानिकारक और सुरक्षित हैं, जो एक सफ़ेद झूठ था। यही हाल ई सिगरेट का भी है। अभी तक किसी भी वैज्ञानिक अनुसन्धान केंद्र अथवा सरकारी नियामक एजेंसी से ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं मिली है कि आखिर ई सिगरेट के द्वारा उपयोगकर्ता के शरीर में क्या जा रहा है। अभी तो यह तक नहीं पता चला है कि इनमें पाया जाने वाला निकोटीन रासायनिक है अथवा तम्बाकू की पत्तियों का है। जब तक ऐसे गुणात्मक अध्ययन नहीं किये जाते जिनसे उनके बारे में सही और उचित जानकारी मिल सके तब तक उनको रेग्युलेट करना आवश्यक है। ई सिगरेट का बढ़ता हुआ इस्तेमाल न केवल धूम्रपान उन्मूलन अभियान की वर्षों की मेहनत को मिट्टी में मिला देगा वरन स्मोक फ्री नीतियों को भी नुकसान पहुँचायेगा।"
अंतर राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
ब्राज़ील, नॉर्वे और सिंगापुर में ई सिगरेट प्रतिषिद्ध हैं और इंडोनेशिया में उनका विक्रय अवैध है।
ब्रिटेन में निकोटिन युक्त ई सिगरेटों की गुणवत्ता और सेफ्टी सुनिश्चित करने हेतु उन्हें २०१६ से औषधि के रूप में नियंत्रित किया जायेगा। दिसंबर २०१३ में अपने न्यू यॉर्क मेयर के तीसरे कार्यकाल के अंतिम दिन माइकेल ब्लूमबर्ग (जिनका तम्बाकू नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान है) ने ई सिगरेट पर 'स्मोक फ्री एयर एक्ट' लागू करके उन स्थानों पर उनके इस्तेमाल पर रोक लगा दी जहाँ अन्य तम्बाकू पदार्थ प्रतिषिद्ध हैं। कनाडा में निकोटिन युक्त ई सिगरेट प्रतिषिद्ध हैं। तथा कनाडा का स्वास्थ्य विभाग नागरिकों को ई सिगरेट का उपयोग न करने की सलाह देता है क्योंकि वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। जुलाई २०१३ में दिल्ली में विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की क्षेत्रीय बैठक में सर्व सम्मति से भारत के इस प्रस्ताव को माना गया कि जन स्वास्थ्य हित में ई सिगरेट पर पूर्ण निषेध लगना चाहिए।
परन्तु चिंता का विषय यह है कि ई-सिगरेट विभिन्न आकर्षक रंगों और स्वादों में उपलब्ध हैं जैसे चॉकलेट, पुदीना, नींबू, वैनीला, मेन्थॉल, बबल गम आदि. उनके नाम भी बहुत लुभावने हैं--मोचा मैडनेस, कॉटन कैंडी, काऊ बॉय, क्यूबन सुप्रीम। क्या ये सब युवाओं और विद्यार्थियों को धूम्रपान की ओर आकर्षित करने के तम्बाकू उद्योग के नए हथकंडे हैं? फिलहाल वैज्ञानिक तथा चिकित्सक इस बात से हमें सावधान करते हैं कि ई सिगरेट के दीर्घ कालिक प्रभाव अभी अज्ञात हैं. अत: इनके प्रयोग में सावधानी बरतनी आवश्यक है।
शोभा शुक्ला, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जनवरी २०१४
आखिर यह इलेक्ट्रॉनिक अथवा ई सिगरेट है क्या ? ई सिगरेट का आविष्कार २००३ में एक चीनी फार्मसिस्ट होन लिक ने किया था। आकार में यह मुख्यतर एक साधारण सिगरेट की तरह दिखने वाली इस सिगरेट में तीन कक्ष होते हैं- बैटरी जिसे रिचार्ज किया जा सकता है; ऐटोमाइज़र; और कार्ट्रिज। कार्ट्रिज में प्रोपिलीन ग्लाइकॉल, ग्लिसरीन , स्वाद पदार्थ और निकोटिन युक्त (अथवा निकोटिन रहित) द्रव भरा होता है। बैटरी का बटन दबा कर इस द्रव को ऐटोमाइज़र में गर्म करके वाष्पित किया जाता है और यह भाप या वाष्प उपयोगकर्ता की श्वास के रास्ते उसके फेफड़ों में पहुँच जाती है. अंग्रेजी में इसको स्मोकिंग के बजाय वेपिंग के नाम से जाना जाता है और इसका इस्तेमाल करने वाले को वेपर यानि जो वैपिंग करता हो।
शुरू में चीन की छोटी छोटी कम्पनियाँ ही ई सिगरेट बनाती थीं और बेचती थीं. पर जैसे जैसे इनका बाज़ार बढ़ रहा है, तो बड़ी बड़ी तम्बाकू कम्पनियाँ भी बहती गंगा में बाकायदा नहा रही हैं। ई सिगरेटों को पारम्परिक सिगरेट का सुरक्षित और स्वस्थ विकल्प एवं धूम्रपान छोड़ने का आसान उपाय बताते हुए वे जोर शोर से इनका भ्रामक प्रचार करने में जुटी हैं. हालांकि अभी तक इस विषय पर यथेष्ट वैज्ञानिक शोध नहीं किया गया है कि ई सिगरेट के द्वारा धूम्रपान की आदत छोड़ी जा सकती है या नहीं। फिलहाल वैश्विक स्तर पर ई सिगरेट का बाज़ार २ बिलियन यू एस डॉलर आँका जा रहा है. इसका एक चौथाई विक्रय (५०० मिलियन डॉलर) २०१२ में अमेरिका में हुआ जिसकी २०१३ में दुगुनी होने की संम्भावना थी।
ई सिगरेट की लोकप्रियता किस तेज़ी से बढ़ रही है इसका अंदाज़ा इन चौकाने वाले आंकड़ों से लगाया जा सकता है -- ब्रिटेन में इसके उपभोक्ताओं की संख्या २०१२ में ७००,००० थी जो २०१३ में १.३ मिलियन होकर दूनी हो गयी. वर्तमान में ब्रिटेन के १०% धूम्रपानी ई सिगरेट का प्रयोग कर रहे हैं। इसी प्रकार अमेरिका में २०११-२०१२ के दौरान स्कूली छात्रों में ई सिगरेट का दुगुना होकर १.७८ मिलियन हो गया।
डेनमार्क के ग्लॉस्ट्रोप अस्पताल की डॉ चार्लोटा पीसिंगर के अनुसार, "क्योंकि ई सिगरेट का उत्पादन अभी नियंत्रित नहीं है, इसलिए इनके अंदर प्रयुक्त सामग्री के बारे में यथोचित जानकारी नहीं मिल पाती है। उत्पादक गलत जानकारी भी लेबल पर लगा देते हैं --जैसे जिन उत्पादों पर निकोटीन की मात्रा शून्य अंकित थी उनमें भी निकोटीन पाया गया. सभी ई सिगरटों में प्रयोग किये जाने वाला पदार्थ प्रोपिलीन ग्लाइकॉल फेफड़ों को दीर्घ कालिक नुकसान पहुँचाता है तथा टी बी के इलाज में भी बाधक होता है। ई सिगरेट में प्रयुक्त द्रव में ये हानिकारक पदार्थ भी पाये गये हैं-- तम्बाकू-विशेष कैंसर कारी नाइट्रोसमाईन, कैडमियम, निकेल, सीसा जैसी विषाक्त धातु, आदि। ई सिगरेट के प्रयोग के अनेक हानिकारक दुष्प्रभाव देखे गए हैं जैसे सीने में दर्द, खांसी, सांस का फूलना, सर दर्द, चक्कर आना. गंम्भीर दुष्प्रभावों में निमोनिया, ह्रदय गति रुक जाना, पक्षाघात और सिगरेट के मुंह के अंदर फट जाने के कारण भीषण रूप से जल जाना और दृष्टि बाधित हो जाना भी शामिल हैं।"
जन स्वास्थ्य पर प्रभाव
एक अध्ययन एक अनुसार ई सिगरेट एमिशन रहित नहीं हैं और उनसे निकलने वाले प्रदूषण उपभोक्ताओं तथा सेकेण्ड हैण्ड स्मोकर्स के स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक हो सकते हैं। डॉ पीसिंगर का मानना है कि, "जन स्वास्थ्य पर प्रभाव दो बातों पर निर्भर करता है-- खतरे का स्तर और उस खतरे से प्रभावित लोगों की संख्या। यदि कोई कम खतरनाक पदार्थ बहुत सारे लोगों को प्रभावित करता है या कोई अधिक खतरनाक पदार्थ थोड़े से लोगों को प्रभावित करता है तो दोनों ही स्थितियों में जन स्वास्थ्य पर समान प्रभाव पड़ता है। जैसे जैसे लोगों के बीच ई सिगरेट का प्रचलन बढ़ेगा वैसे वैसे जन स्वास्थ्य पर उसका प्रतिकूल प्रभाव भी बढ़ेगा। कई लोग जो धूम्रपान नहीं करते हैं वे भी यह सोच कर ई सिगरेट की ओर आकर्षित हो सकते हैं कि शायद यह साधारण धूम्रपान के मुकाबले कम हानिकारक है। पर यह सही नहीं है। इसके अलावा यह कहना भी गलत और खतरनाक है कि ई सिगरेट धूम्रपान त्यागने का साधन है। हमारा ध्येय धूम्रपान छोड़ना होना चाहिए न कि साधारण सिगरेट छोड़ कर ई सिगरेट पीना।"
इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टुबरकुलोसिस एंड लंग डिज़ीज़ के तंबाकू नियंत्रण विभाग के निदेशक डॉ एहसान लतीफ़ का मानना है कि ई सिगरेट द्वारा धूम्रपान की प्रक्रिया को फिर से सामान्य बनाने की कोशिश की जा रही है। वे इस बात से चिंतित हैं कि ई सिगरेट का उत्पादन एवं व्यापार करने वाले उसे पारम्परिक सिगरेट के स्वस्थ विकल्प के रूप में विज्ञापित कर रहे हैं। उनका कहना है कि, "अनुभवी जन स्वास्थ्य कर्मियों को इतिहास से सीख लेनी चाहिए और सिगरेट का इतिहास बताता है कि १९६० के दशक में सिगरेट कंपनियों ने जोरदार दावा किया था उनके उत्पाद स्वास्थ्य के लिए नितांत अहानिकारक और सुरक्षित हैं, जो एक सफ़ेद झूठ था। यही हाल ई सिगरेट का भी है। अभी तक किसी भी वैज्ञानिक अनुसन्धान केंद्र अथवा सरकारी नियामक एजेंसी से ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं मिली है कि आखिर ई सिगरेट के द्वारा उपयोगकर्ता के शरीर में क्या जा रहा है। अभी तो यह तक नहीं पता चला है कि इनमें पाया जाने वाला निकोटीन रासायनिक है अथवा तम्बाकू की पत्तियों का है। जब तक ऐसे गुणात्मक अध्ययन नहीं किये जाते जिनसे उनके बारे में सही और उचित जानकारी मिल सके तब तक उनको रेग्युलेट करना आवश्यक है। ई सिगरेट का बढ़ता हुआ इस्तेमाल न केवल धूम्रपान उन्मूलन अभियान की वर्षों की मेहनत को मिट्टी में मिला देगा वरन स्मोक फ्री नीतियों को भी नुकसान पहुँचायेगा।"
अंतर राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
ब्राज़ील, नॉर्वे और सिंगापुर में ई सिगरेट प्रतिषिद्ध हैं और इंडोनेशिया में उनका विक्रय अवैध है।
ब्रिटेन में निकोटिन युक्त ई सिगरेटों की गुणवत्ता और सेफ्टी सुनिश्चित करने हेतु उन्हें २०१६ से औषधि के रूप में नियंत्रित किया जायेगा। दिसंबर २०१३ में अपने न्यू यॉर्क मेयर के तीसरे कार्यकाल के अंतिम दिन माइकेल ब्लूमबर्ग (जिनका तम्बाकू नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान है) ने ई सिगरेट पर 'स्मोक फ्री एयर एक्ट' लागू करके उन स्थानों पर उनके इस्तेमाल पर रोक लगा दी जहाँ अन्य तम्बाकू पदार्थ प्रतिषिद्ध हैं। कनाडा में निकोटिन युक्त ई सिगरेट प्रतिषिद्ध हैं। तथा कनाडा का स्वास्थ्य विभाग नागरिकों को ई सिगरेट का उपयोग न करने की सलाह देता है क्योंकि वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। जुलाई २०१३ में दिल्ली में विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की क्षेत्रीय बैठक में सर्व सम्मति से भारत के इस प्रस्ताव को माना गया कि जन स्वास्थ्य हित में ई सिगरेट पर पूर्ण निषेध लगना चाहिए।
परन्तु चिंता का विषय यह है कि ई-सिगरेट विभिन्न आकर्षक रंगों और स्वादों में उपलब्ध हैं जैसे चॉकलेट, पुदीना, नींबू, वैनीला, मेन्थॉल, बबल गम आदि. उनके नाम भी बहुत लुभावने हैं--मोचा मैडनेस, कॉटन कैंडी, काऊ बॉय, क्यूबन सुप्रीम। क्या ये सब युवाओं और विद्यार्थियों को धूम्रपान की ओर आकर्षित करने के तम्बाकू उद्योग के नए हथकंडे हैं? फिलहाल वैज्ञानिक तथा चिकित्सक इस बात से हमें सावधान करते हैं कि ई सिगरेट के दीर्घ कालिक प्रभाव अभी अज्ञात हैं. अत: इनके प्रयोग में सावधानी बरतनी आवश्यक है।
शोभा शुक्ला, सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जनवरी २०१४