- जो बच्चे क्रमिमुक्त होने से रह गये वे अगामी 28 जनवरी को द्वा लें -
बिहार में 1.7 करोड़ बच्चों ने 23 जनवरी को क्रमिमुक्त कार्यक्रम में भाग लिया, जो विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय-आधरित क्रमिमुक्त कार्यक्रम है. 70,000 से अधिक विद्यालयों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया. विभिन्न शोध कार्यो से यह पाया गया है कि बच्चो को कृमिमुक्त (Dewormed) करने से उनके शिक्षा एवं पोषण के स्तर मे काफी महत्वपूर्ण सुधार होते हैं।
जहाँ कृमि संक्रमण ज्यादा है वहाँ डिवर्मिंग के फलस्वरूप विधालय में 25 प्रतिशत तक उपसिथति में वृद्धि परिलक्षित होती है। कृमि से संक्रमित बच्चों के शिक्षित होने की संभावना सामान्य बच्चों की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत कम होती है एवं वे वयस्क होने पर अपने हमउम्र की तुलना में लगभग 43 प्रतिशत कम आय हीं अर्जित कर पाते हैं।
राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार, शिक्षा परियोजना परिषद, पटना तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्था डिवर्म दी वर्ल्ड के द्वारा अगस्त 30, 2010 को एक समझौता ज्ञापन पर संयुक्त हस्ताक्षर किया गया, जिसमें पूरे राज्य में 6-14 वर्ष के सभी बच्चो को विधालय स्वास्थ्य के अन्तर्गत कृमि से मुक्त करने हेतु दवा प्रदान किये जाने का प्रावधान किया गया है । डिवर्म द वर्ल्ड इनिसिएटिव की राष्ट्रीय निदेशक प्रिया झा ने बताया कि स्वास्थ्य, शिक्षा, एवं महिला एवं बाल कल्याण विभागों के बीच प्रभावकारी अंतर्विभागीय समन्वय ने ही बिहार में विश्व के सबसे बड़े विधालय-आधारित कृमिमुक्त कार्यक्रम को सफल बनाया।
विधालय जाने वाले बच्चे कृमि संक्रमण के लिए आसान शिकार बन जाते हैं तथा यह संक्रमण उनके स्वास्थ्य, पोषण तथा शिक्षा को काफी बुरी तरह प्रभावित करता है। यह विधालय आधारित डिवर्मिंग कार्यक्रम मृदाजनित कृमि (Round Worm, Hook Worm तथा Whip Worm) को समाप्त करने का एक सफल प्रयास है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य के सभी सरकारी एवं विधालयो में 6-14 वर्ष आयु के बच्चों को कृमिमुक्त करने हेतु एक खुराक अलबेडांजोल; 400 भोजन के पश्चात खिलाया जाना है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणित खुराक है। यह दवा विधालय के प्रधानाध्यापक के देख-रेख मे दो शिक्षको द्वारा खिलायी जाती है ।
एलबेडांजोल की गोली खिलाये जाने का अगला चक्र 28 जनवरी, 2014 (माप अप डे) को निर्धारित है। राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार, ने इस कार्यक्रम में अनपेक्शित प्रतिकूल प्रभाव से निबटने की पूरी तैयारी की. सभी प्रधान-अध्यापक और विद्यलाय के शिक्षकों को क्रमिमुक्त कार्यक्रम में होने वाले प्रतिकूल प्रभाव से सम्बंधित पूरी जानकारी दी गयी थी. 23 जनवरी को कुछ बच्चों को मध्यम श्रेणी के प्रतिकूल प्रभाव हुए जिसको राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार, ने सम्भाला. सभी बच्चे सुरक्षित हैं और प्रारंभिक इलाज के बाद घर भेजे गये हैं.
प्रिया झा ने बताया कि क्रमिमुक्त कार्यक्रम में कुछ बच्चो में प्रतिकूल प्रभाव लघु और कम समय अवधि के लिये होते हैं. जिन बच्चों में क्रमि की संख्या अत्याधिक होती है उनमें पेट में दर्द आदि हो सकता है. क्रमिमुक्त कार्यक्रम में इस्तेमाल होने वाली यह द्वा और इस्की खुराक विश्व में अनेक देशों में दी जाती है.
सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
बिहार में 1.7 करोड़ बच्चों ने 23 जनवरी को क्रमिमुक्त कार्यक्रम में भाग लिया, जो विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय-आधरित क्रमिमुक्त कार्यक्रम है. 70,000 से अधिक विद्यालयों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया. विभिन्न शोध कार्यो से यह पाया गया है कि बच्चो को कृमिमुक्त (Dewormed) करने से उनके शिक्षा एवं पोषण के स्तर मे काफी महत्वपूर्ण सुधार होते हैं।
जहाँ कृमि संक्रमण ज्यादा है वहाँ डिवर्मिंग के फलस्वरूप विधालय में 25 प्रतिशत तक उपसिथति में वृद्धि परिलक्षित होती है। कृमि से संक्रमित बच्चों के शिक्षित होने की संभावना सामान्य बच्चों की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत कम होती है एवं वे वयस्क होने पर अपने हमउम्र की तुलना में लगभग 43 प्रतिशत कम आय हीं अर्जित कर पाते हैं।
राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार, शिक्षा परियोजना परिषद, पटना तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्था डिवर्म दी वर्ल्ड के द्वारा अगस्त 30, 2010 को एक समझौता ज्ञापन पर संयुक्त हस्ताक्षर किया गया, जिसमें पूरे राज्य में 6-14 वर्ष के सभी बच्चो को विधालय स्वास्थ्य के अन्तर्गत कृमि से मुक्त करने हेतु दवा प्रदान किये जाने का प्रावधान किया गया है । डिवर्म द वर्ल्ड इनिसिएटिव की राष्ट्रीय निदेशक प्रिया झा ने बताया कि स्वास्थ्य, शिक्षा, एवं महिला एवं बाल कल्याण विभागों के बीच प्रभावकारी अंतर्विभागीय समन्वय ने ही बिहार में विश्व के सबसे बड़े विधालय-आधारित कृमिमुक्त कार्यक्रम को सफल बनाया।
विधालय जाने वाले बच्चे कृमि संक्रमण के लिए आसान शिकार बन जाते हैं तथा यह संक्रमण उनके स्वास्थ्य, पोषण तथा शिक्षा को काफी बुरी तरह प्रभावित करता है। यह विधालय आधारित डिवर्मिंग कार्यक्रम मृदाजनित कृमि (Round Worm, Hook Worm तथा Whip Worm) को समाप्त करने का एक सफल प्रयास है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य के सभी सरकारी एवं विधालयो में 6-14 वर्ष आयु के बच्चों को कृमिमुक्त करने हेतु एक खुराक अलबेडांजोल; 400 भोजन के पश्चात खिलाया जाना है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणित खुराक है। यह दवा विधालय के प्रधानाध्यापक के देख-रेख मे दो शिक्षको द्वारा खिलायी जाती है ।
एलबेडांजोल की गोली खिलाये जाने का अगला चक्र 28 जनवरी, 2014 (माप अप डे) को निर्धारित है। राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार, ने इस कार्यक्रम में अनपेक्शित प्रतिकूल प्रभाव से निबटने की पूरी तैयारी की. सभी प्रधान-अध्यापक और विद्यलाय के शिक्षकों को क्रमिमुक्त कार्यक्रम में होने वाले प्रतिकूल प्रभाव से सम्बंधित पूरी जानकारी दी गयी थी. 23 जनवरी को कुछ बच्चों को मध्यम श्रेणी के प्रतिकूल प्रभाव हुए जिसको राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार, ने सम्भाला. सभी बच्चे सुरक्षित हैं और प्रारंभिक इलाज के बाद घर भेजे गये हैं.
प्रिया झा ने बताया कि क्रमिमुक्त कार्यक्रम में कुछ बच्चो में प्रतिकूल प्रभाव लघु और कम समय अवधि के लिये होते हैं. जिन बच्चों में क्रमि की संख्या अत्याधिक होती है उनमें पेट में दर्द आदि हो सकता है. क्रमिमुक्त कार्यक्रम में इस्तेमाल होने वाली यह द्वा और इस्की खुराक विश्व में अनेक देशों में दी जाती है.
सिटीजन न्यूज़ सर्विस - सीएनएस