महंगाई की मार, कैसे मनाएं त्योहार - क्या यही हैं अच्छे दिन?

मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में, महंगाई के विरोध में एक धरने का नेत्रित्व कर रहे थे, ने कहा कि "नरेन्द्र मोदी का एक चुनावी वायदा था कि महंगाई कम करेंगे। किंतु हो उल्टा रहा है। अरहर दाल का दाम चार माह में ही रु. 100 प्रति किलोग्राम से बढ़कर रु. 200 हो गया है, यानी दो गुना बढ़ोतरी। भला भारत का गरीब इंसान जिसका भोजन उसकी दिहाड़ी पर निर्भर है कैसे अपने बच्चों को दाल खिला पाएगा जो प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। याद रखें कि भारत में आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यानी जो कुपोषण का शिकार है वह अब भुखमरी का भी शिकार हो सकता है।"

तेज़ी से बढ़ती महंगाई के विरोध में, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के तहत आयोजित धरने पर, अनेक लोग शामिल हुए. डॉ संदीप पाण्डेय जो सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, ने बताया कि "आम इंसान यदि दाल छोड़ कर रोटी के साथ सिर्फ सब्जी खाना चाहे तो भी मुश्किल है। प्याज का दाम रु. 30-35 प्रति किलो से बढ़कर रु. 60, यानी दोगुना, हो गया है। रोटी के साथ प्याज खाना भी दूभर हो गया है। इसी तरह ज्यादातर सब्जियों के दाम भी करीब-करीब दोगुने हो गए हैं। ऐसा लगता है कि सरकार ने अंततः गरीबी खत्म करने का अनोखा तरीका खोज ही निकाला है - गरीब को ही खत्म कर दो!"

"सबसे चिंता की बात है कि महंगाई की वजह से गरीब के लिए जीना कितना कठिन हो गया है यह कहीं बहस का मुद्दा ही नहीं है। बिहार चुनाव में भी नहीं। इस ओर लोगों का ध्यान न जाए इसलिए दादरी जैसे कांड होते हैं ताकि जनता गाय के मांस की बहस में ही उलझी रहे।"

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के वरिष्ठ नेता गिरीश कुमार पांडे ने कहा कि "किसान बेहाल है। उसको अपने उत्पाद की पूरी कीमत नहीं मिलती। सरकार की तरफ से जो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए वह दलालों के लगे होने के कारण नहीं मिलता। गर्मी में बेमौसम बरसात से फसल बरबाद हो गई। फिर समय से वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ा। सरकार ने किसानों को न तो फसल नुकसान होने का और न ही उन परिवारों को जिनके यहां किसी सदस्य ने आत्म हत्या कर ली ठीक से मुआवजा दिया। बीमा कम्पनियां तो कहीं नजर ही नहीं आईं। आखिर ये किसान का बीमा किस उद्देश्य से कराती हैं? अजीब विडम्बना है कि पैदा करने वाला तो कर्ज के बोझ में आत्म हत्या कर रहा है क्यों कि उसके उत्पाद का उसे ठीक से मूल्य नहीं मिल रहा और फिर भी उत्पाद का मूल्य बाजार में उपभोक्ता के लिए इतना महंगा कैसे? यह किसी से छिपा नहीं है कि व्यापारी वर्ग भाजपा का एक मजबूत समर्थक है। यानी अच्छे दिन आने के बाद मेहनत करने वाले की कीमत पर बिचौलियों की चांदी हो गई।"

सिटीजन न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
२१ अक्टूबर २०१५