[English] ३० साल पहले १९८५ में भारत में जब पहले एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति की जांच पक्की हुई, तब चंद चिकित्सकों में जो सर्वप्रथम आगे आये और एचआईवी पोसिटिव लोगों की देखभाल आरंभ की, वो थे डॉ इश्वर गिलाडा, अध्यक्ष, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई).डॉ गिलाडा लखनऊ में १५ दिसम्बर को संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में हुए सेमिनार 'भारत में एड्स को हुए ३० साल: सफलताएँ पर चुनौतियाँ बरकरार' में मुख्य वक्ता थे. यह सेमिनार, एसजीपीजीआई के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट, एएसआई, पीपल्स हेल्थ आर्गेनाइजेशन और सीएनएस द्वारा एसजीपीजीआई में आयोजित किया गया था.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश के सभागार में में ११ दिसम्बर को फॅमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (ऍफ़पीए इंडिया) द्वारा महत्त्वपूर्ण प्रकाशन विमोचित किया गया था जिसमें यह स्पष्ट था कि भारत समेत अनेक देशों ने २०३० तक वैश्विक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वादा किया है जिनमें से लक्ष्य ३.३ के अनुसार “२०३० तक, एड्स, टीबी, मलेरिया और काला अजार जैसी बीमारियाँ समाप्त हो जाएँगी.”
डॉ गिलाडा ने कहा कि “क्या हम उत्तर प्रदेश में एड्स नियंत्रण इतना प्रभावकारी कर रहे हैं कि २०३० तक एड्स समाप्त हो जाये? एड्स को समाप्त करना तो आज ही संभव है और हमें २०३० तक इंतज़ार करने की जरुरत नहीं है यदि सभी वर्गों में समन्वयन बेहतर हो और राजीनीतिक मत हो.”
एचआईवी पॉजिटिव जांच के बाद एंटी-रेट्रो-वायरल दवा न देना हो सकता है चिकित्सकीय अनाचार हो
डॉ इश्वर गिलाडा ने एसजीपीजीआई में कहा कि “इस साल भारत में एड्स को ३० साल पूरे हुए हैं, और इसी साल सबसे ठोस वैज्ञानिक प्रमाण आया है जिसके कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने नयी मार्गनिर्देशिका जारी की है कि बिना सीडी४ काउंट देखे, यदि व्यक्ति की जांच एचआईवी पोसिटिव आती है तो उसको एंटी-रेट्रो-वायरल (एआरटी) दवा मिलनी चाहिए. उप्र और सभी प्रदेशों में सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं में, वैज्ञानिक प्रमाण के मद्दे-नज़र एआरटी बिना सीडी४ काउंट देखे मिलनी चाहिए – यदि ऐसा होगा, तो एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति स्वस्थ रहेगा, समान्य ज़िन्दगी जी सकेगा, और उससे किसी को एचआईवी संक्रमण फैलने का खतरा भी नगण्य हो जायेगा. यदि हम लोग ऐसा न करके, पुरानी दिशानिर्देश के अनुसार सीडी४ कम होने पर एआरटी देंगे तो जन-स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने का कौन जिम्मेदार होगा?”
उप्र एड्स नियंत्रण सोसाइटी के अनुसार, बिना-शुल्क एआरटी दवा २५५७८ लोगों को प्रदेश में दी जा रही हैं (उप्र में औसतन १२३,००० एचआईवी पोसिटिव लोग हैं) – उत्तर प्रदेश में सिर्फ २०% प्रतिशत एचआईवी पोसिटिव लोगों को एआरटी मिल रही है, जबकि देश में ३६% को मिल रही है. उप्र स्टेट एड्स नियंत्रण सोसाइटी के आंकड़ों के अनुसार ७७१२५ लोगों ने सरकारी एड्स कार्यक्रम में कम-से-कम एक बार पंजीकरण किया है – इन सबको दवा क्यों नहीं दी गयी? हर साल, उप्र में ९४३६ लोगों की एचआईवी के कारण मृत्यु होती है. “एड्स के कारण किसी भी व्यक्ति की जान नहीं जानी चाहिए. उप्र में लगभग ८०% एचआईवी पोसिटिव लोगों को अभी तक एआरटी नहीं मिल रही है जो चिंताजनक है – सरकार को हर संभव प्रयास करना चाहिए कि डब्लूएचओ दिशानिर्देश और वैज्ञानिक प्रमाण को संज्ञान में ले और जिसकी भी एचआईवी जांच पोसिटिव आती है उसको एआरटी दी जाए!”
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के एआरटी नोडल अधिकारी डॉ डी हिमांशु ने भी सेमिनार में अपना मत रखा. किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त जिनकी टीम ने दशकों पहले लखनऊ में एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति की पहली सर्जरी की थी, ने कहा कि एड्स-से जुड़ा भेदभाव और शोषण के कारण आज भी एचआईवी पोसिटिव लोगों को सरकारी और निजी स्वास्थ्य केन्द्रों पर इलाज कराने में मुश्किलें आती हैं जो खेदजनक है. डॉ गिलाडा ने कहा कि जैसे कि स्वास्थ्यकर्मियों को यदि एचआईवी संक्रमण का खतरा हो तो पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफाईलाक्सिस (पीईपी) दवा दी जाती है, यही उन महिलाओं को दी जाए जो यौन हिंसा का शिकार होती हैं.
डॉ तपन ढोल, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी विभाग एसजीपीजीआई, जो मुख्य आयोजक थे, उन्होंने कहा कि एआरटी के कारण एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है परन्तु एड्स-सम्बंधित सह-संक्रमण से मृत होने का खतरा भी बढ़ रहा है. उदाहरण के तौर पर, टीबी, हेपेटाइटिस आदि एचआईवी पोसिटिव लोगों में अभी भी मृत्यु का एक बड़ा कारण हैं. डॉ ढोल ने कहा कि सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं में एचआईवी और टीबी कार्यक्रमों में समन्वयन जरुरी है. डॉ ढोल ने कहा कि नॉन-टूबरकुलर मयको-बैक्टीरिया की जांच बिना विलम्ब हो और इलाज भी समय से सही मिलना चाहिए. एचआईवी पोसिटिव लोगों में अन्य रोगों पर भी ध्यान दिया जाए जैसे कि ह्रदय रोग, पक्षघात, कैंसर, लीवर समस्याएँ, गुर्दे के रोग, आदि.
डॉ गिलाडा ने प्रदेश सरकार से अपील की कि माता-पिता से नवजात बच्चों में एचआईवी संक्रमण को पूर्णत: रोका जाए और शुन्य दर जल्द-से-जल्द हो, सभी सरकारी और गैर-सरकारी वर्गों में समन्वयन प्रभावकारी हो, जो कार्यक्रम और नीतियाँ सफल हैं उनको बढ़ाया जाए और जो असफल हो रही हैं उनको बंद किया जाए. युवायों और नशा-मुक्ति कार्यक्रम भी जरुरी हैं क्योंकि ५०% से अधिक नए एचआईवी संक्रमण अभी भी युवाओं में हो रहे हैं.”
सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
१५ दिसम्बर २०१५
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश के सभागार में में ११ दिसम्बर को फॅमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (ऍफ़पीए इंडिया) द्वारा महत्त्वपूर्ण प्रकाशन विमोचित किया गया था जिसमें यह स्पष्ट था कि भारत समेत अनेक देशों ने २०३० तक वैश्विक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वादा किया है जिनमें से लक्ष्य ३.३ के अनुसार “२०३० तक, एड्स, टीबी, मलेरिया और काला अजार जैसी बीमारियाँ समाप्त हो जाएँगी.”
डॉ गिलाडा ने कहा कि “क्या हम उत्तर प्रदेश में एड्स नियंत्रण इतना प्रभावकारी कर रहे हैं कि २०३० तक एड्स समाप्त हो जाये? एड्स को समाप्त करना तो आज ही संभव है और हमें २०३० तक इंतज़ार करने की जरुरत नहीं है यदि सभी वर्गों में समन्वयन बेहतर हो और राजीनीतिक मत हो.”
एचआईवी पॉजिटिव जांच के बाद एंटी-रेट्रो-वायरल दवा न देना हो सकता है चिकित्सकीय अनाचार हो
डॉ इश्वर गिलाडा ने एसजीपीजीआई में कहा कि “इस साल भारत में एड्स को ३० साल पूरे हुए हैं, और इसी साल सबसे ठोस वैज्ञानिक प्रमाण आया है जिसके कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने नयी मार्गनिर्देशिका जारी की है कि बिना सीडी४ काउंट देखे, यदि व्यक्ति की जांच एचआईवी पोसिटिव आती है तो उसको एंटी-रेट्रो-वायरल (एआरटी) दवा मिलनी चाहिए. उप्र और सभी प्रदेशों में सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं में, वैज्ञानिक प्रमाण के मद्दे-नज़र एआरटी बिना सीडी४ काउंट देखे मिलनी चाहिए – यदि ऐसा होगा, तो एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति स्वस्थ रहेगा, समान्य ज़िन्दगी जी सकेगा, और उससे किसी को एचआईवी संक्रमण फैलने का खतरा भी नगण्य हो जायेगा. यदि हम लोग ऐसा न करके, पुरानी दिशानिर्देश के अनुसार सीडी४ कम होने पर एआरटी देंगे तो जन-स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने का कौन जिम्मेदार होगा?”
उप्र एड्स नियंत्रण सोसाइटी के अनुसार, बिना-शुल्क एआरटी दवा २५५७८ लोगों को प्रदेश में दी जा रही हैं (उप्र में औसतन १२३,००० एचआईवी पोसिटिव लोग हैं) – उत्तर प्रदेश में सिर्फ २०% प्रतिशत एचआईवी पोसिटिव लोगों को एआरटी मिल रही है, जबकि देश में ३६% को मिल रही है. उप्र स्टेट एड्स नियंत्रण सोसाइटी के आंकड़ों के अनुसार ७७१२५ लोगों ने सरकारी एड्स कार्यक्रम में कम-से-कम एक बार पंजीकरण किया है – इन सबको दवा क्यों नहीं दी गयी? हर साल, उप्र में ९४३६ लोगों की एचआईवी के कारण मृत्यु होती है. “एड्स के कारण किसी भी व्यक्ति की जान नहीं जानी चाहिए. उप्र में लगभग ८०% एचआईवी पोसिटिव लोगों को अभी तक एआरटी नहीं मिल रही है जो चिंताजनक है – सरकार को हर संभव प्रयास करना चाहिए कि डब्लूएचओ दिशानिर्देश और वैज्ञानिक प्रमाण को संज्ञान में ले और जिसकी भी एचआईवी जांच पोसिटिव आती है उसको एआरटी दी जाए!”
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के एआरटी नोडल अधिकारी डॉ डी हिमांशु ने भी सेमिनार में अपना मत रखा. किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त जिनकी टीम ने दशकों पहले लखनऊ में एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति की पहली सर्जरी की थी, ने कहा कि एड्स-से जुड़ा भेदभाव और शोषण के कारण आज भी एचआईवी पोसिटिव लोगों को सरकारी और निजी स्वास्थ्य केन्द्रों पर इलाज कराने में मुश्किलें आती हैं जो खेदजनक है. डॉ गिलाडा ने कहा कि जैसे कि स्वास्थ्यकर्मियों को यदि एचआईवी संक्रमण का खतरा हो तो पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफाईलाक्सिस (पीईपी) दवा दी जाती है, यही उन महिलाओं को दी जाए जो यौन हिंसा का शिकार होती हैं.
डॉ तपन ढोल, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी विभाग एसजीपीजीआई, जो मुख्य आयोजक थे, उन्होंने कहा कि एआरटी के कारण एचआईवी पोसिटिव व्यक्ति सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है परन्तु एड्स-सम्बंधित सह-संक्रमण से मृत होने का खतरा भी बढ़ रहा है. उदाहरण के तौर पर, टीबी, हेपेटाइटिस आदि एचआईवी पोसिटिव लोगों में अभी भी मृत्यु का एक बड़ा कारण हैं. डॉ ढोल ने कहा कि सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं में एचआईवी और टीबी कार्यक्रमों में समन्वयन जरुरी है. डॉ ढोल ने कहा कि नॉन-टूबरकुलर मयको-बैक्टीरिया की जांच बिना विलम्ब हो और इलाज भी समय से सही मिलना चाहिए. एचआईवी पोसिटिव लोगों में अन्य रोगों पर भी ध्यान दिया जाए जैसे कि ह्रदय रोग, पक्षघात, कैंसर, लीवर समस्याएँ, गुर्दे के रोग, आदि.
डॉ गिलाडा ने प्रदेश सरकार से अपील की कि माता-पिता से नवजात बच्चों में एचआईवी संक्रमण को पूर्णत: रोका जाए और शुन्य दर जल्द-से-जल्द हो, सभी सरकारी और गैर-सरकारी वर्गों में समन्वयन प्रभावकारी हो, जो कार्यक्रम और नीतियाँ सफल हैं उनको बढ़ाया जाए और जो असफल हो रही हैं उनको बंद किया जाए. युवायों और नशा-मुक्ति कार्यक्रम भी जरुरी हैं क्योंकि ५०% से अधिक नए एचआईवी संक्रमण अभी भी युवाओं में हो रहे हैं.”
सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
१५ दिसम्बर २०१५